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राजपथ-जनपथ : ​दिल्ली जैसी चिंता एटीआर के ग्रामीणों की
05-Jul-2025 6:50 PM
राजपथ-जनपथ : ​दिल्ली जैसी चिंता एटीआर के ग्रामीणों की

दिल्ली जैसी चिंता एटीआर के ग्रामीणों की
सुप्रीम कोर्ट में लंबे समय से उस मामले की सुनवाई चल रही है, जिसमें 2023 में लागू किए गए वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम की वैधता को चुनौती दी गई है। यह नया कानून कमर्शियल उद्देश्यों से वन भूमि के अधिग्रहण के लिए रास्ते खोलता है। इसे 1980 के पुराने कानून में संशोधन कर बनाया गया है, लेकिन इसमें कई अहम बदलाव किए गए हैं।

हाल ही में देश के करीब 60 पूर्व नौकरशाहों ने सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई को पत्र लिखकर आपत्ति जताई है कि इस अधिनियम पर राय देने के लिए जो समिति गठित की गई है, उसमें सिर्फ पूर्व नौकरशाह ही शामिल हैं, कोई स्वतंत्र विशेषज्ञ नहीं। यह स्पष्ट रूप से हितों के टकराव  का मामला है। जिन अफसरों ने खुद इस कानून को बनाने में भूमिका निभाई, उनसे यह अपेक्षा करना कि वे उसे निष्पक्ष रूप से अध्ययन कर खारिज करेंगे, उम्मीद कम  है।
अब इसी तरह की आपत्ति छत्तीसगढ़ से भी आई है। फर्क सिर्फ इतना है कि यहां विरोध पूर्व नौकरशाहों ने नहीं, बल्कि जंगलों में रहने वाले स्थानीय आदिवासी समुदायों ने किया है।

अचानकमार टाइगर रिजर्व (एटीआर) में वन विभाग ने खुद को वन अधिकार कानून की नोडल एजेंसी घोषित कर दी है। आदिवासी समुदायों का कहना है कि यह न सिर्फ संविधान के खिलाफ है, बल्कि इससे ग्राम सभाओं के अधिकार भी कमजोर होते हैं।

इस फैसले का विरोध करते हुए अचानकमार टाइगर रिजर्व संघर्ष समिति, चार पंचायतों के सरपंच, एक जनपद सदस्य, और 19 ग्राम सभाओं के प्रतिनिधियों ने मिलकर मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा है। उनकी मांग है कि वन विभाग का यह आदेश तुरंत रद्द किया जाए और आदिवासी विकास विभाग को ही नोडल एजेंसी बनाया जाए, जो ग्राम सभाओं को वन प्रबंधन का अधिकार सौंपे। 
सरकारी अफसरों की नियुक्ति जंगल बचाने के लिए होती है, लेकिन आज दिल्ली से लेकर छत्तीसगढ़ तक चिंता यह है कि जंगलों को उनसे कैसे बचाया जाए?

सूट के दाम पर चप्पल!!
राज्य ग्रामीण विकास संस्थान में चप्पल, ट्रैक सूट जैसे साम्रगी खरीदी पर विवाद चल रहा है। संस्थान ने करीब डेढ़ करोड़ की खरीद की प्रक्रिया पूरी कर ली थी, लेकिन ऊंचे दामों पर खरीद की शिकायत पर प्रक्रिया रोक दी गई है।

बताते हैं कि डेढ़-दो सौ रूपए की चप्पल 13-14 सौ रुपए में खरीदने का प्रस्ताव था। ये सामग्री बस्तर से संस्थान देखने आए विद्यार्थियों को दिया जाना था। हालांकि प्रस्ताव खारिज नहीं किया गया है। मगर खरीद प्रक्रिया को लेकर संस्थान के डायरेक्टर पीसी मिश्रा पर उंगलियां उठ रही है।

आईएफएस के वर्ष-85 बैच के अफसर मिश्रा एपीसीसीएफ के पद से रिटायर होने के बाद पिछले चार साल से संविदा पर है। मिश्रा राज्य बनने के बाद सबसे ज्यादा समय तक पंचायत ग्रामीण विकास विभाग के अलग-अलग विंग में काम करने वाले अफसर हैं। उन्हें काफी अनुभवी माना जाता है। विभाग ने उनकी संविदा नियुक्ति एक साल और बढ़ाने का प्रस्ताव सरकार को भेजा था, लेकिन तीन महीने की संविदा नियुक्ति मिल पाई। यह अवधि 31 जुलाई को खत्म हो रही है। ताजा विवाद के बाद उनकी संविदा नियुक्ति की अवधि आगे बढ़ती है या नहीं, यह देखना है।

असली माल अभी छुपा कर रखा है?
प्रदेश में चर्चित आबकारी घोटाले की परतें खुल रही हैं। ईडी, और फिर ईओडब्ल्यू -एसीबी ने घोटाले की रकम को लेकर साक्ष्य जुटाए हैं।

जांच एजेंसी ने कोर्ट में पेश पूरक चालान में बताया कि घोटाले की राशि का बड़ा हिस्सा हर एक-दो दिन में हवाला के लिए दिल्ली, मुंबई, और कोलकाता व अन्य जगहों पर भेजा जाता था। जांच एजेंसी ने दो हवाला कारोबारी सुमित मालू, और रवि बजाज के बयान भी लिए हैं।

यह भी बताया गया कि हर महीने दो बार 10-10 करोड़ रुपए दुर्ग-भिलाई के एक चिन्हित राजनीतिक व्यक्ति को भेजा जाता था। यह व्यक्ति कौन है, इसका जिक्र एजेंसी ने नहीं किया है।

जांच एजेंसी ने यह भी बताया कि घोटाले की रकम अनवर ढेबर के होटल वेलिंगटन कोर्ट में रखी जाती थी, और होटल के मैनेजर दीपेन्द्र चावड़ा के पास रकम जमा होती थी।

जांच एजेंसी को घोटाले के अहम सूत्रधार विकास अग्रवाल उर्फ सुब्बू की तलाश है। विकास को घोटाले के आरोपी अनवर ढेबर का करीबी माना जाता है। विकास के स्टाफ के लोग ही राशि कवासी लखमा, और अन्य विशिष्ट लोगों तक पहुंचाते थे। यह भी जानकारी मिली है कि विकास अग्रवाल विदेश भाग गया है। उसकी जानकारी जुटाई जा रही है। एजेंसी से जुड़े लोगों का मानना है कि घोटाले को लेकर अभी काफी कुछ आना बाकी है। यानी पिक्चर अभी बाकी है।

दिल्ली का न्यौता 
आठवें वेतन आयोग को लेकर केन्द्र सरकार की धीमी गति देश भर के सरकारी अमले के लिए समझ से परे है। पहले तो बिना  संघर्ष के समय से पहले गठित करने का फैसला किया। और फिर उसके बाद से आयोग को अस्तित्व में लाने आवश्यक कार्रवाई में लगातार देरी की जा रही। गठन के 6 माह बाद भी आयोग के अध्यक्ष, सदस्य, सचिव और अन्य 37 अधिकारियों की नियुक्ति नहीं की जा सकी है और कामकाज के लिए टर्म्स ऑफ रिफरेन्स भी तय नहीं हो पाए हैं। यह सब कुछ होने के बाद, आयोग को राज्यवार दौरे कर रायशुमारी भी करनी है। उसके बाद सबकी मांगों को एग्जाई कर पे बैंड तैयार करना आदि-आदि, बहुत काम करना होगा। समय कम है काम बहुत है। क्योंकि नया वेतनमान अगले साल जनवरी से लागू होना है। यह तो रही एक बात। दूसरी बात आयोग के लिए स्वीकृत 37 पदों के सेट अप में कोई अधिकारी जाना नहीं चाह रहे। जबकि ये पद प्रतिनियुक्ति के हैं। बीते छह माह में डीओपीटी ने पांच बार केंद्रीय विभागों को पत्र लिखकर प्रतिनियुक्ति के लिए ऑफर भी दिया। लेकिन एक ने भी इच्छा नहीं जताई। सभी, 37 पद अब तक खाली ही हैं। इसे देखते हुए डीओपीटी ने अब देश भर से आवेदन मंगाए हैं। कल ही सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर आयोग में अवर सचिव के लिए 31 जुलाई तक आफर मंगाया है। यानी अभी भी पूर्ण आयोग के गठन में लंबा इंतजार करना होगा। (rajpathjanpath@gmail.com)


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