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इस बरस कोई पद्म सम्मान न मिलने का ग़म गलत हो चुका हो तो छत्तीसगढ़ के पद्म इतिहास को भी देख लें..
26-Jan-2022 8:23 AM
इस बरस कोई पद्म सम्मान न मिलने का ग़म गलत हो चुका हो तो छत्तीसगढ़ के पद्म इतिहास को भी देख लें..

इतिहास पर एक नजर, और एक नजर में इतिहास 

कल गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर केंद्र सरकार की ओर से पद्म सम्मानों की घोषणा की गई। सात पेज लंबी इस फेहरिस्त में छत्तीसगढ़ का कोई भी नाम नहीं था। इससे उन लोगों को बड़ी निराशा हुई जो इन सामानों को सम्मान की नजर से देखते हैं। अब ऐसा क्यों हुआ, और क्या ऐसा पहली बार हुआ, इसके साथ-साथ बहुत से दूसरे सवालों के जवाब दे रहे हैं छत्तीसगढ़ के एक संस्कृति-जानकार राहुल कुमार सिंह। राहुल छत्तीसगढ़ की संस्कृति और इतिहास के बड़े जानकार हैं, लेकिन साथ-साथ उन्हें संस्कृति विभाग का अफसर रहते हुए सरकारी प्रक्रियाओं का भी अधिक ज्ञान है। उनका लिखा हुआ यह ताजा लेख आज लोगों को पद्म सम्मानों की लिस्ट में छत्तीसगढ़ के न होने के गम से उबरने में मदद भी कर सकता है, और लोगों का सामान्य ज्ञान तो बढ़ेगा ही बढ़ेगा। -संपादक

-राहुल कुमार सिंह

छत्तीसगढ़ में यह साल पद्म पुरस्कारों के नाम पर सूना रहा। बधाइयों का तांता लगने का अवसर नहीं बना तो स्वाभाविक ही अफसोस, उपेक्षा, पक्षपात, क्षोभ, पात्रता, काबिलीयत, प्रतिभा, राजनीति पर बातें होने लगीं। यह मौका सयापे से अधिक इस ओर ध्यान देने का है कि चूक कहां हो जाती है, हम पिछड़ कहां जाते हैं। ऐसा भी होता आया है कि किसी को नहीं मिला का शोक करने वाले, पुरस्कृत की पात्रता पर भी सवाल उठाने में देर नहीं करते। जबकि राज्य से किसी का चयन हो खुशी की बात होनी चाहिए और नाम न होने पर अफसोस करने से जल्द उबर कर, अपने प्रयासों को प्रभावी बनाते अगले साल पर ध्यान केंद्रित करना जरूरी है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि छत्तीसगढ़ में प्रतिभाओं की कमी नहीं, ऐसा भी नहीं कि पद्म पुरस्कारों के लिए प्रविष्टियां न गई हों, मगर संयोग कि इस वर्ष के पद्म पुरस्कारों की सूची में छत्तीसगढ़ का नाम नहीं आया। अब तक के पद्म पुरस्कारों पर नजर डालें तो छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद 2002 और 2003 में क्रमशः हबीब तनवीर और तीजनबाई को पद्मभूषण सम्मान मिला था। इसके बाद 2006 ऐसा वर्ष था, जब छत्तीसगढ़ से कोई नाम नहीं था। यहां उल्लेख आवश्यक है कि हबीब तनवीर को यह सम्मान छत्तीसगढ़ से नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश कोटे से मिला था, उन्हें पद्मश्री सम्मान भी दिल्ली कोटे से मिला था। इसी तरह जगदलपुर वाली मेहरुन्निसा परवेज अब भोपालवासी, बिलासपुर वाले दिवंगत सत्यदेव दुबे, रायपुर वाले शेखर सेन अब पुणेवासी और भिलाई वाले बुधादित्य मुखर्जी अब कोलकातावासी, को भी अन्य राज्यों के कोटे से सम्मान मिला न कि छत्तीसगढ़ कोटे से।

याद करते चलें यद्यपि पश्चिम बंगाल कोटे से, किंतु 1965 में छत्तीसगढ़ के पद्म सम्मानित पहले व्यक्ति डॉ. द्विजेन्द्रनाथ मुखर्जी हैं। बैरन बाजार का मुखर्जी कम्पाउंड उन्हीं के नाम पर है। बताया जाता है कि बागवानी के शौकीन डॉ. मुखर्जी ने सेवानिवृत्ति के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ जेनेवा में नियुक्ति के प्रस्ताव को बगीचे के मोह में ठुकराया और रायपुर रह गए। डॉ. मुखर्जी को टेनिस, फोटोग्राफी, शिकार, चित्रकारी तथा वन और पशु-पक्षियों सहित कुत्तों का शौक रहा। कविता करने वाले डॉ. मुखर्जी ने बच्चों के लिए बांग्ला में पुस्तक ‘मोनेर कोथा’ - मन की कथा, भी लिखी। वहीं छत्तीसगढ़ राज्य गठन के पूर्व एकमात्र पद्म सम्मान 1976 में मुकुटधर पाण्डेय को मिला था।

पद्म सम्मान की कार्यवाही केंद्र सरकार में गृह विभाग के अधीन होती है। पिछले वर्षों से पद्म सम्मान के लिए प्रविष्टियां आनलाइन आमंत्रित की जाती हैं। सामान्यतः जुलाई माह से आरंभ हो कर प्रविष्टि की अंतिम तिथि 15 सितंबर निर्धारित होती है और अक्टूबर से चयन प्रक्रिया आरंभ हो जाती है। गत वर्षों में सूचना का अधिकार के तहत ली गई जानकारी से पता चला कि ऑनलाइन प्रक्रिया के बाद प्रविष्टियों की संख्या दस हजार से भी अधिक होती है। जानकार बताते हैं कि प्रविष्टियों के आरंभिक परीक्षण के पश्चात नवंबर माह तक निर्णायक मंडल सम्मान हेतु नामों का चयन कर अनुशंसा कर देते हैं और इसके पश्चात दिसंबर में नामों की पुष्टि और सत्यापन की कार्यवाही कर सूची को जनवरी के आरंभ तक अंतिम रूप दे दिया जाता है। प्रत्येक वर्ष 25 जनवरी इन सम्मानों के घोषणा के लिए नियत तारीख है।

अब नजर डालें छत्तीसगढ़ और सम्मान की प्रविष्टियों पर। आनलाइन के पहले ऐसे भी उदाहरण रहे हैं जब पद्म पुरस्कार के लिए प्रपत्र में प्रविष्टि तैयार कर भेजने के बजाय हस्ताक्षर अभियान चलाया गया, जैसे लाला जगदलपुरी के लिए। कई प्रविष्टियां ऐसी भी होती जैसा बच्चों को स्कूल में अवकाश के लिए एक पेज का आवेदन पत्र लिखाया जाता है। निर्धारित प्रारूप और प्रक्रिया के प्रति आमतौर पर अनभिज्ञता होती थी। आनलाइन के दौर में भी ऐसे उदाहरण हैं, जिनमें आवेदनकर्ता प्रविष्टि जमा करने के लिए कलेक्टर, संस्कृति विभाग या मंत्रालय के चक्कर लगाते रहते हैं और उनकी शिकायत होती है कि उनका आवेदन नहीं लिया जा रहा था या उसे दिल्ली नहीं भेजा गया। फिर जोर-जुगाड़ की संभावना, आशा और आशंका। जबकि आनलाइन आवेदन प्रक्रिया स्वयं में पूरी तरह पारदर्शी और स्पष्ट है, जिसमें आवश्यकता इस बात की होती है कि निर्धारित प्रारूप में निर्देशों के अनुकूल शब्द संख्या में जानकारी और प्रपत्र तैयार कर निर्धारित समय-सीमा में अपलोड कर दिया जाए।

पद्म सम्मानों की पात्रता और उपयुक्तता को ले कर भी टिप्पणियां की जाती हैं। इस संबंध में डॉ. सुरेन्द्र दुबे, अनुज शर्मा और अनूप रंजन के नामों के साथ प्रतिकूल प्रतिक्रिया आती रही थी। उक्त तीनों से मेरा व्यक्तिगत परिचय है तथा कुछ मुद्दों पर इनसे मेरी गंभीर असहमतियां और मतभेद भी हैं किंतु इनके पद्म सम्मान पर मुझे हमेशा प्रसन्नता और गर्व महसूस हुआ है। जहां तक औचित्य और पात्रता का सवाल है डॉ. सुरेन्द्र दुबे की लोकप्रियता असंदिग्ध है और अमरीकी वाइट हाउस में कविता पढ़ने जैसी उपलब्धि उनके नाम है। इसी तरह अनुज शर्मा आंचलिक फिल्मों के ऐसे कलाकार हैं, जिनके नाम सफलता और उपलब्धियों के ढेरों रेकार्ड हैं, जिन तक न सिर्फ छत्तीसगढ़, बल्कि अन्य राज्यों में शायद ही कोई पहुंचा हो। अनूप रंजन पांडेय, कई दशकों से बस्तर के अंदरूनी इलाकों में बिना किसी संस्थागत मदद के कलाकारों से नियमित संपर्क में रह कर, बस्तर की सांगीतिक परंपरा को सामने ले कर आए, वह अपने में अनूठी मिसाल है। यों भी भावनात्मक रूप से छत्तीसगढ़ या राज्य से जुड़े किसी भी व्यक्ति का सम्मानित होना, सदैव स्वागतेय होना चाहिए।

इसी क्रम में 2021 के पद्म पुरस्कार में ध्यान देने की बात है कि भिलाई के राधेश्याम बारले को पद्मश्री सम्मान मिला, पंथी नर्तक के रूप में उनकी खासी प्रतिष्ठा है मगर रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव और बिलासपुर के ही दस से अधिक ऐसे पंथी दल हैं जो उनके दल से कम नहीं, फिर बारले ही क्यों? यहां रेखांकित करना आवश्यक है कि पंथी के अतिरिक्त अन्य गतिविधियों तथा उनसे जुड़ी अपनी उपलब्धियों के दस्तावेजों को जमा करते हुए उन्हें सुरक्षित व्यवस्थित रखने और उन्हें प्रस्तुत करने का उन जैसा कौशल सबमें नहीं होता। तात्पर्य यह कि ऐसे किसी सम्मान के लिए आवश्यक प्रक्रिया और दस्तावेज, जानकारियों का अभाव हो तो पात्र भी सम्मान पाने से वंचित हो सकते हैं। याद कर लें कि देवदास बंजारे को पद्म सम्मान नहीं मिला था।

कुछ अन्य बातें। एक ओर छत्तीसगढ़ के धरमपाल सैनी और दामोदर गणेश बापट पद्म सम्मानित हुए। वहीं पी.डी. खेड़ा, केयूर भूषण, पवन दीवान, गहिरा गुरु का नाम इस सूची में शामिल नहीं हुआ, इसका तात्पर्य यह नहीं कि इनमें से कोई नाम सम्मान के उपयुक्त नहीं था। इसी तरह साहित्य के क्षेत्र में विनोद कुमार शुक्ल और राजेश्वर दयाल सक्सेना को अब तक पद्म सम्मान नहीं मिला है। लाला जगदलपुरी, बिमलेंदु मुखर्जी, अरुण कुमार सेन, तुलसीराम देवांगन, गुणवंत व्यास, पीडी आशीर्वादम, बसंत तिमोथी, मनीष दत्त का नाम भी इस संदर्भ में याद किया जाना चाहिए, जिन्हें पद्म सम्मान नहीं मिला। पुरातत्व के क्षेत्र में डॉ. विष्णु सिंह ठाकुर के अवदान को भी नहीं भुलाया जा सकता। विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय ऐसे कई नाम निर्विवाद हैं, जिनकी पात्रता पर कोई सवाल नहीं हो सकता, जिनमें कुछ उदाहरणस्वरूप नाम डॉ. योगेश जैन, डॉ. ओमप्रकाश वर्मा, डॉ. आदित्य प्रताप देव हैं। इनमें ऐसे लोग भी हैं, जो किसी सम्मान, पुरस्कार के लिए उद्यत नहीं रहे, जबकि इसके लिए जागरूकता और पुरस्कार के लिए आवश्यक प्रक्रिया अनुकूल उद्यम आवश्यक होता है। इसलिए पुरस्कार को मात्र योग्यता और पात्रता से सीधे जोड़ कर देखना उचित नहीं होता।  

इस वर्ष पद्म-सूनेपन के साथ तोहमत और सयापे से जितनी जल्दी हो सके उबरना श्रेयस्कर और इसके प्रति जागरूकता के साथ उपयुक्त प्रयास की ओर ध्यान देना आवश्यक, ताकि अगले वर्षों में राज्य में बधाइयों का संयोग लगातार बनता रहे।
 

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