कोण्डागांव
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कोण्डागांव, 18 नवंबर। शासकीय गुण्डाधूर स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कोण्डागांव में जनजातीय गौरव दिवस पर ‘जनजातीय समाज का गौरवशाली इतिहास’ विषयक कार्यक्रम संपन्न हुआ। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में नगर पालिका परिषद कोण्डागांव के अध्यक्ष नरपति पटेल, विशिष्ट अतिथि के रूप में नगर पालिका परिषद,कोण्डागांव के उपाध्यक्ष जसकेतु उसेण्डी, अन्य विशिष्ट अतिथि के रूप में कुलवंत चहल, सखाराम कोर्राम, प्रदीप नाग और स्रोत वक्ता के रूप में सामाजिक कार्यकर्ता श्री रामनाथ कश्यप की गरिमामयी उपस्थिति रही। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. सरला आत्राम द्वारा की गई। कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों एवं प्राचार्य द्वारा संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलन के साथ हुई।
कार्यक्रम के संयोजक एवं समाजशास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. किरण नुरुटी ने विषय की प्रस्तावना का वाचन करते हुए कहा कि जनजातीय समाज भारत की प्राचीनतम सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण आधार है। बस्तर का आदिवासी समाज न केवल प्रकृति के प्रति गहन आस्था रखता है, बल्कि अपने ऐतिहासिक संघर्ष, परंपराओं, कला और सामाजिक संरचना के माध्यम से भारतीय संस्कृति को अद्वितीय शक्ति प्रदान करता है। यह दिवस आदिवासी अस्मिता, गौरव और योगदान को पुनर्स्मरण करने का अवसर है। उन्होंने बस्तर की रीतियों, देवस्थानों, पारंपरिक उत्सवों, और सामाजिक संगठन की अनूठी संरचना का उल्लेख करते हुए बताया कि आदिवासी परंपरे भारतीय ज्ञान परंपरा से गहराई से जुड़ी हैं।
इसके पश्चात महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने जनजातीय संस्कृति पर आधारित रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुति दी, जिसमें बस्तर की लोकनृत्य परंपराएँ, वाद्य-ताल और पारंपरिक परिधानों की झलक ने उपस्थित लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित जसकेतु उसेण्डी ने कहा कि बस्तर की जनजातीय परंपराएं सदियों से प्रकृति-सम्मत जीवन शैली का महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। आधुनिक समय में इन परंपराओं को समझना और संरक्षित करना आवश्यक है ताकि आने वाली पीढिय़ाँ भी इस ज्ञान से लाभान्वित हो सकें। उन्होंने युवाओं को जनजातीय इतिहास और सामाजिक संरचना का अध्ययन करने तथा उसकी विशिष्टताओं को राष्ट्र के सामने स्थापित करने की प्रेरणा दी।
मुख्य अतिथि नरपति पटेल ने जनजातीय समाज की सामूहिकता, सरल जीवन शैली और साहसिक परंपरा को रेखांकित करते हुए कहा कि हमारा आदिवासी समाज संघर्ष, सम्मान और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है।
बस्तर की जनता ने इतिहास में अनेक बार अपने अधिकार, संस्कृति और भूमि की रक्षा के लिए अदम्य साहस दिखाया है। जनजातीय गौरव दिवस हमें यह याद दिलाता है कि भारत की असली विविधता इन्हीं मूल संस्कृतियों में निहित है। उन्होंने महाविद्यालय द्वारा ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जाने की सराहना की और कहा कि इससे युवाओं में सांस्कृतिक जागरूकता तथा सामाजिक मूल्यों के प्रति सम्मान बढ़ता है।
स्रोत वक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता रामनाथ कश्यप ने ‘जनजातीय समाज का गौरवशाली इतिहास’ विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि बस्तर के जनजातीय समुदायों ने प्रकृति, संस्कृति और समाज के संतुलन को बनाए रखने का जो अनूठा मार्ग अपनाया है, वह विश्व के लिए प्रेरणा है। खेल, कला, कृषि, चिकित्सा, सामाजिक-संगठन, वन-संरक्षण और सामुदायिक न्याय व्यवस्था—इन सभी में आदिवासी समाज की अनूठी परंपराएँ हैं, जिन्हें समझना और संरक्षित करना हम सब की जिम्मेदारी है। उन्होंने यह भी कहा कि जनजातीय युवाओं को शिक्षा और आधुनिक तकनीक के माध्यम से सशक्त बनाना भविष्य के विकास की कुंजी है। अंत में कार्यक्रम की अध्यक्ष डॉ. सरला आत्राम ने अपने उद्बोधन में कहा कि महाविद्यालय सदैव सांस्कृतिक, सामाजिक और शैक्षणिक समृद्धि के लिए प्रतिबद्ध रहा है। जनजातीय गौरव दिवस जैसे आयोजनों से छात्र न केवल अपनी जड़ों से जुड़ते हैं, बल्कि समाज की विविधताओं को समझने और सम्मान देने की भावना भी उत्पन्न होती है। उन्होंने सभी अतिथियों, संयोजकों और विद्यार्थियों को सफल आयोजन के लिए शुभकामनाएँ दीं।
कार्यक्रम के सह-संयोजक डॉ. पुरोहित कुमार सोरी ने आभार प्रदर्शन और महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक नसीर अहमद ने मंच संचालन किया।
इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के प्राध्यापकगणों में शशिभूषण कन्नौजे, शोभाराम यादव, रुपा सोरी, विनय कुमार देवांगन, नेहा बंजारे, अर्जुन सिंह नेताम, समलेश पोटाई, लोचन सिंह वर्मा सहित बड़ी संख्या में महाविद्यालय के कर्मचारी एवं विद्यार्थीगण उपस्थित रहे।


