कोण्डागांव

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कोंडागांव, 8 अक्टूबर। जनजातीय समाज का सहभागिता भाव और मौखिक शिक्षा का इतिहास अद्वितीय है। हमारी बाड़ी और खेतों में जड़ी-बूटी के रूप में औशधि के खान हैं। यह समाज स्वास्थ्य, शिक्षा, परंपरा के क्षेत्र में सशक्त है। जनजातीय समाज के पास हर प्रकार के ज्ञान का भंडार है। बस जो ज्ञान-परंपराएं परिस्थिति और काल के गर्त में चली गई है उसे उकेरकर सामने लाने की आवश्कता है।
उक्त बातें सोमवार को शहीद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि बस्तर विकास प्राधिकरण की उपाध्यक्ष लता उसेंडी ने व्यक्त किए। कार्यक्रम में महापौर सफीरा साहू, कुलपति प्रो. मनोज कुमार श्रीवास्तव, वनवासी विकास समिति के वैभव सुरंगे सहित अन्य उपस्थित थे।
‘जनजातीय समाज का गौरवशाली अतीत- ऐतिहासिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक योगदान’ विषय पर आयोजित कार्यशाला में सुश्री उसेंडी ने कहा कि देश में जनजातीय वीर-वीरांगणाओं के बलिदान की कई भूमि हैं जिसे प्रणाम करने की इच्छा करती है। नई पीढ़ी को इसकी जानकारी होनी चाहिए। हम अपनी परंपराओं और ज्ञान को भुलाते जा रहे हैं। इस ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित कर भावी पीढ़ी तक ले जाने की जरूरत है।
कुलपति प्रो. मनोज कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि अतीत से लेकर अब तक देश के निर्माण व विकास में जनजातीय समाज का योगदान अन्य समाज से तिल मात्र कम नहीं है। जनजातीय समाज का हर क्षेत्र में योगदान इतिहास में दर्ज है। प्रो. श्रीवास्तव ने बताया कि वर्तमान की केंद्र सरकार ने सम्पूर्ण जनजातीय समाज के उत्थान के लिए नौ पैरामीटर आइडेंटिफाई कर काम शुरू किया है। इसमें धरती आबा जनजाति ग्राम उत्कर्ष अभियान के तहत 80 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे। इससे देश के 63 हजार जनजातीय गांव लाभान्वित होंगे।
महापौर सफीरा साहू ने कहा कि जब आधुनिक शस्त्र नहीं थे तब भी जनजातीय समाज अपने परंपरागत अस्त्रों से देश की आजादी के लिए लड़ा। हम फिर से उस इतिहास को जानने का प्रयास कर रहे हैं। इसे वर्तमान युवा पीढ़ी भी जाने और लोगों को बताए।
कार्यशाला के प्रमुख वक्ता वैभव सुरंगे ने कहा कि जनजातीय समाज को समझने के लिए केवल विदेशी लेखकों को पढऩे की आवश्यकता नहीं है। जनजातीय समाज के अतीत को जानने के लिए संथाल, मुरिया, मुंडा, गोंड व हल्बा इत्यादि समाज के पुरूखों से मिलना होगा। उन्होंने कहा कि मुख्य समाज का इस ओर कभी ध्यान ही नहीं गया कि जनजातीय समाज का भी कोई आध्यात्मिक योगदान है और उनका का कोई दर्शन है। जनजातीय समाज को सुनने से ज्यादा महसूस करके समझा जा सकता है।
श्री सुरंगे ने परलकोट विद्रोह, सिद्धो कान्हों, भूमकाल, पामगढ़ भील क्रांति इत्यादि का जिक्र करते हुए कहा कि जनजातीय समाज को लेकर अंग्रेजों के कारण बनी खराब छबि को बदलने का काम शिक्षा जगत के लोग ही कर सकते हं। जनजातीय समाज की एक-एक परंपरा का डॉक्यूमेंटेशन किए जाने की जरूरत है। उनके इतिहास को लेकर नए सिरे से रिसर्च करना जरूरी है।
कुलसचिव अभिषेक कुमार बाजपेई ने कहा कि किसी समाज की संस्कृति नश्ट हो जाती है तो वह समाज भी मिट जाता है। हमें अपने गौरवमयी इतिहास और संस्कृति को युवा पीढ़ी के सहारे आगे तक पहुंचाना है।
कार्यशाला के संयोजक डॉ. सजीवन कुमार ने कहा कि जनजातीय समाज के वीर-वीरांगणाएं प्रताडि़त होकर भी देश के लिए संघर्श करते रहे। हमें इन वीरों के इतिहास को शोध के सहारे लिखित रूप प्रस्तुत करने की जरूरत है।
कार्यक्रम के तकनीकी सत्र को वनवासी कल्याण आश्रम के राजीव शर्मा, प्रकाश ठाकुर, यज्ञ जी, उमेश सिंह हरवंशु जोशी ने संबांधित किया। इस दौरान अगले 15 नवंबर तक विवि और कॉलेजों में होने वाले कार्यक्रम की रूप रेखा पर चर्चा की गई। कॉलेजों में जनजातीय वीर- वीरांगणाओं से लेकर प्रश्नोत्तरी, फोटो प्रदर्शनी, पेंटिंग, सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसे विविध कार्यक्रम को करने जानकारी दी गई। इसमें बस्तर संभाग के 52 कॉलेजों से आए कार्यक्रम के संयोजकों और सह संयोजकों ने भाग लिया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. दिनेश ने किया। कार्यक्रम में पूर्व विधायक राजाराज तोड़ेम, दशरथ कश्यप, रामनाथ कश्यप, एस राव, गोपाल भारद्वाज, कमलेश, सत्यनारायण पुजारी, बालसाय नेताम, एसपी बिसेन, डॉ. केपी सिंह, संजय जायसवाल, चेलाराम सिन्हा, गोपालनाथ, विमल पांडेय, शिवशंकर जी, रूपनाथ पांडेय, अमित कुमार इत्यादि उपस्थित थे।