अंतरराष्ट्रीय
अफ़ग़ानिस्तान में भूकंप से भारी तबाही मची है. अब तक 800 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. हज़ारों से ज्यादा घायल हैं.
राहत कर्मी आज उन जगहों पर भी पहुंच पा रहे हैं जहां कल तक पहुंच पाना मुश्किल था. मलबे में फंसे और लोगों को निकाला जा रहा है और उन्हें अस्पताल पहुंचाया जा रहा है.
बीबीसी संवाददाता यमा बरीज़ ने भूकंप प्रभावित इलाकों का जायजा लेने के दौरान वहां की स्थिति के बारे में बताया.
वो लिखते हैं, ''कुनार जाते वक़्त मैंने नांगरहार के स्थानीय अस्पताल का एक बार फिर दौरा किया. आज यहां 80 से ज़्यादा घायल लोग लाए गए हैं. इनमें से ज़्यादातर लोग मज़ार दरा और नारगुल के हैं.''
''ये कुनार के वे ज़िले हैं जो कल तक रेस्क्यू टीम की पहुंच से बाहर थे. घायलों में से अधिकतर को एयरलिफ़्ट कर जलालाबाद के अस्पताल लाया गया है.''
''आज अस्पताल का माहौल कुछ शांत नज़र आया. भूकंप के सदमे का असर थोड़ा कम होता दिखा. कुछ लोग अपनी आपबीती साझा करने की स्थिति में नज़र आ रहे थे.''
बरीज़ ने बताया, ''मैंने मज़ार दरा के रहने वाले नादेर ख़ान से मुलाक़ात की. तक़रीबन 50 साल के नादेर ने बताया कि रविवार रात भूकंप में उनका घर गिरने से उन्होंने अपने दोनों बेटे, दो बहुएं और पोते-पोतियों को खो दिया.''
वह रोते हुए कहते हैं कि वह सिर्फ़ अपने दो पोते-पोतियों को बचा सके, लेकिन उन्हें यह भी नहीं मालूम कि वे अब कहां हैं.
नादेर ने कहा कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि अब कहां जाएं, क्योंकि लौटने के लिए उनके पास कुछ नहीं बचा. न परिवार, न घर.
नादेर अपने बेटों को याद करते हुए ज़ोर-ज़ोर से रोने लगते हैं और कहते हैं कि काश वह उन्हें बचा पाते.
जब वह थोड़ा संभले तो उन्होंने कहा, "मेरे सर और रीढ़ की हड्डी में चोट आई थी, इसलिए मैं हिल भी नहीं पाया और उन्हें बचा नहीं सका. काश मैं ठीक होता तो उन्हें बचा लेता."
नादेर को रेस्क्यू टीमों ने अस्पताल पहुंचाया. नादेर कहते हैं, "मुझे नहीं मालूम कि मेरे बेटों के शवों का क्या हुआ."
नांगरहार हेल्थ अथॉरिटी के हेड ने मुझे बताया कि उनकी टीमें सबसे ज़्यादा प्रभावित इलाक़ों में से कुछ तक पहुंच गई हैं, जहां कल तक पहुंचना मुमकिन नहीं था.
टीमों को कुछ उपकरण और संसाधन दिए गए हैं, लेकिन तबाही की गंभीरता को देखते हुए यह काफ़ी नहीं है.
मैंने उनसे पूछा कि क्या राहत टीमों में कोई महिला स्वास्थ्यकर्मी भी शामिल हैं, तो उन्होंने कहा कि पहाड़ी इलाक़े की वजह से महिला कर्मियों का वहां पहुंचना मुश्किल है.(bbc.com/hindi)


