अंतरराष्ट्रीय

(सुमीर कौल)
नयी दिल्ली, 8 मई। प्रतिबंधित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के दो केंद्र- इसका बहावलपुर स्थित मुख्यालय और पाकिस्तान के पंजाब में स्थित नरोवाल आत्मघाती हमलावर तैयार करने वाले अड्डों के रूप में काम करते थे। अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को यहां यह जानकारी देते हुए कहा कि इन अड्डों के ना केवल फलस्तीनी संगठन हमास के साथ संबंध थे, बल्कि ये अफगानिस्तान से तस्करी करके लाए गए नाटो बलों के हथियारों के भंडारण केंद्र के रूप में काम करते थे।
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के एक-दूसरे के विपरीत छोर पर स्थित ये दोनों केंद्र बुधवार तड़के भारतीय वायुसेना द्वारा दागी गई मिसाइलों से ध्वस्त हुए उन नौ लक्ष्यों में शामिल थे, जिन्हें 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले का कड़ा जवाब देने के तहत निशाना बनाया गया था।
ये कार्रवाई पहलगाम आतंकवादी हमले के जवाब में की गई थी जिसमें 25 पर्यटकों और एक स्थानीय गाइड की आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी।
अधिकारियों के अनुसार, 15 एकड़ में फैला जैश-ए-मोहम्मद का बहावलपुर केंद्र इसके प्रमुख अब्दुल रऊफ असगर द्वारा चलाया जाता रहा है और इस इलाके में जैश-ए-मोहम्मद के संस्थापक मसूद अजहर और उसके परिवार के अन्य सदस्यों के आवास हैं।
मसूद अजहर ने भारतीय वायुसेना की ओर से ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत किए गए हमलों के बाद स्वीकार किया कि बहावलपुर स्थित उसके संगठन के मुख्यालय पर भारत के मिसाइल हमले में उसके परिवार के 10 सदस्य और चार करीबी सहयोगी मारे गए।
अजहर के हवाले से जारी एक बयान में कहा गया है कि बहावलपुर में जामिया मस्जिद सुभान अल्लाह पर हमले में मारे गए लोगों में जैश प्रमुख की बड़ी बहन और उसका पति, एक भतीजा और उसकी पत्नी, एक और भतीजी और उसके बाकी परिवार के पांच बच्चे शामिल हैं।
अधिकारियों ने कहा कि बहावलपुर केंद्र अफगानिस्तान में उत्तर अटलांटिक संधि (नाटो) के सैनिकों द्वारा छोड़े गए हथियारों और गोला-बारूद को जमा करने के लिए कुख्यात है।
उन्होंने कहा कि बहावलपुर में अक्सर जैश के वे कमांडर आते जाते रहते हैं जो अफगानिस्तान में लड़ रहे थे। उन्होंने कहा कि असगर खैबर पख्तूनख्वा में सक्रिय अपराधियों के एक गिरोह के माध्यम से एम4 श्रृंखला की राइफलों सहित अन्य हथियारों की खेप की खरीद करने और इनकी तस्करी करने में शामिल है। खैबर पख्तूनख्वा को पहले उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत (एनडब्ल्यूएफपी) के रूप में जाना जाता था।
इन हथियारों और गोला-बारूद में एम4 श्रृंखला की राइफल के अलावा स्नाइपर राइफलें, कवच-भेदी गोलियां, नाइट विजन डिवाइस (एनवीडी) और एनवीडी से सुसज्जित राइफलें शामिल थीं।
नरोवाल स्थित केंद्र के बारे में अधिकारियों ने कहा कि इसका इस्तेमाल फलस्तीनी हमास समूह से युद्धक रणनीति सीखने के लिए किया जाता रहा है।
हमास की संलिप्तता 2014 में तब शुरू हुई जब जैश के एक आतंकवादी मोहम्मद अदनान अली, जिसका कोड नाम ‘डॉक्टर’ था, ने दूसरे समूह खालिस्तान टाइगर फोर्स के सदस्य रमनदीप सिंह उर्फ गोल्डी को थाईलैंड में ‘पैराग्लाइडर’ का प्रशिक्षण दिया था।
यह प्रशिक्षण भारत निर्वासित किए गए जगतार सिंह तारा और उसके साथियों जसविंदर सिंह जस्सा और मोहम्मद उमर गोंडल ने भी दिया था।
अधिकारियों ने कहा कि घुसपैठ के लिए सुरंगों के इस्तेमाल और ‘पैराग्लाइडिंग’ की रणनीति पश्चिम एशिया में हमास द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली कार्यप्रणाली से प्रेरित लगती है।
उन्होंने आगे कहा कि जैश के आतंकवादियों और हमास के नेताओं के बीच नियमित बातचीत के बारे में कई गोपनीय जानकारी मिली हैं।
इस साल फरवरी में हमास के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) के रावलकोट में ‘कश्मीर एकजुटता दिवस’ पर एक रैली को संबोधित किया, जिसमें लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के शीर्ष आतंकवादी शामिल हुए।
रैली को हमास के प्रवक्ता खालिद कद्दौमी ने संबोधित किया जिसे भारतीय एजेंसियों ने जम्मू-कश्मीर में जेहादी अभियान को कश्मीर में फलस्तीनी लड़ाई से जोड़ने के प्रयास के रूप में देखा।
बहावलपुर और नरोवाल स्थित अड्डों ने भारत में कई आत्मघाती हमलों के लिए जिम्मेदार आतंकवादियों को तैयार किया है। इन हमलों में 2016 में पठानकोट स्थित वायुसेना अड्डे समेत 2020 में नगरोटा पर किया गया हमला शामिल है।
इन ‘फिदायीन’ (आत्मघाती) हमलों के लिए प्रशिक्षित किए गए लोगों में मसूद अजहर के करीबी रिश्तेदार, खासतौर पर उसका भतीजा तल्लाह रशीद, साथ ही उस्मान, उमर और मोहम्मद इस्माइल उर्फ ‘लंबू’ शामिल थे। (भाषा)
ऐसी रिपोर्ट हैं कि इन प्रशिक्षण केंद्रों में प्रशिक्षित किए जाने के बाद लोगों को हथियार प्रशिक्षण के लिए बालाकोट भेजा गया था।