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थाईलैंड में दंगा नियंत्रण करने वाली पुलिस शांतिपूर्ण तरीके से होने वाले प्रदर्शनों पर भी बर्बरता ढाह रही है. इससे अब तक कई लोगों की मौत हो गई है. एक्टिविस्ट सुधारों को लागू करने और जवाबदेही तय करने की मांग कर रहे हैं.
डॉयचे वैले पर एम्मी ससिपोर्नकर्न की रिपोर्ट-
पिछले महीने बैंकॉक में एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (एपीईसी) शिखर सम्मेलन के विरोध में शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे लोगों को तितर-बितर करने के लिए थाई ने हिंसक रणनीति अपनाई. लोगों पर जमकर लाठियां भांजी और रबड़ की गोलियों का इस्तेमाल किया.
एक्टिविस्ट पायु बूनसोफन ने इस मामले पर डीडब्ल्यू से बातचीत करते हुए कहा कि पुलिस की बर्बर कार्रवाई से उनकी एक आंख की रोशनी चली गई और दर्जनों लोग घायल हो गए.
उन्होंने कहा, "जिस समय पुलिस ने लाठीचार्ज किया उस समय हम लोग दोपहर का भोजन करने के लिए बैठे थे. अचानक हुई इस कार्रवाई से हम हैरान रह गए. पुलिस को पहले से पता था कि हम आराम कर रहे हैं और उन्होंने बिना किसी चेतावनी के लाठीचार्ज कर दिया.”
पायु ने आगे कहा, "हमें पहले से यह अनुमान था कि पुलिस भीड़ को तितर-बितर करने के लिए कुछ न कुछ करेगी. हमें लगा था कि वह ज्यादा से ज्यादा वाटर कैनन का इस्तेमाल करेगी, क्योंकि हम शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे थे. हमारे पास किसी तरह का हथियार नहीं था.”
दरअसल, क्वीन सिकीकिट नेशनल कन्वेंशन सेंटर में 18 नवंबर को एपीईसी शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया था. इस दौरान, सरकार की पर्यावरण और विकास रणनीति और व्यापार से जुड़ी नीतियों के विरोध में 350 लोगों ने कन्वेंशन सेंटर तक प्रदर्शन मार्च करने की कोशिश की. इस प्रदर्शन में ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र के किसान और मजदूर शामिल थे.
लोकतंत्र समर्थक एक्टिविस्ट और ‘सिटीजन्स स्टॉप एपेक 2022' गठबंधन के नेता पातसरावली तानकितविबुलपोन ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमें इस बात की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी कि पुलिस बर्बरतापूर्ण तरीके से बल प्रयोग करेगी, क्योंकि यह विरोध लोगों की आजीविका को सीधे तौर पर प्रभावित करने वाले संसाधनों के मुद्दे से जुड़ा था.”
एमनेस्टी इंटरनेशनल के थाईलैंड कैंपेनर कैथरीन गर्सन ने कहा कि पायु के साथ ही उस घटना को कवर कर रहे पत्रकार भी चोटिल हुए हैं. जबकि उन्होंने थाई जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा जारी मीडिया आर्मबैंड पहना हुआ था. उनके ऊपर भी लाठियां बरसाई गईं. उनमें से एक के चेहरे पर कांच की बोतल से वार किया गया.
पुलिस बर्बरता का पुराना इतिहास
एपीईसी की बैठक की वजह से अंतरराष्ट्रीय मीडिया की निगाहें उस जगह पर थीं. इसके बावजूद, पुलिस ने बर्बर रूख अपनाया. इस घटना ने यह जाहिर कर दिया कि जब भी प्रदर्शनकारी देश की प्रमुख संस्थाओं पर सवाल उठाते हैं, तो उनकी आवाज को किस तरह दबाया जाता है, चाहे वह सरकार हो, सेना, राजशाही या फिर कोई बड़ा कारोबारी.
2020 के अंत में, थाईलैंड की सत्ता को चुनौती देने वाले युवा प्रदर्शनकारियों पर तीन अलग-अलग मौकों पर रासायनिक गैस, आंसू गैस और वाटर कैनन का इस्तेमाल किया गया था. जबकि, ये प्रदर्शनकारी शांतिपूर्वक और निहत्थे प्रदर्शन कर रहे थे.
गर्सन ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमने उन घटनाओं का दस्तावेज तैयार किया है जब पुलिस ने प्रदर्शन के दौरान अवैध तरीके से बल प्रयोग किया. कई प्रदर्शनों में बच्चों के शामिल होने के बावजूद पुलिस के रवैये में कोई बदलाव नजर नहीं आया.”
पिछले साल अगस्त महीने में बैंकॉक में डिन डेंग पुलिस स्टेशन के बाहर 15 वर्षीय वारित सोमनोई को गर्दन में गंभीर रूप से चोट लग गई थी. बाद में उस बच्चे की मौत हो गई. सरकार विरोधी रैली में आंसू गैस की गोली लगने से लोकतंत्र समर्थक एक्टिविस्ट थानत थनाकितमनय की भी एक आंख की रोशनी चली गई.
थाईलैंड के नर्सुआन यूनिवर्सिटी में सेंटर ऑफ आसियान कम्युनिटी स्टडीज के पॉल चेम्बर्स ने डॉयचे वेले को बताया, "थाईलैंड में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अनियंत्रित बल प्रयोग करने का पुलिस का पुराना इतिहास है. जब थाई पुलिस बल प्रयोग नहीं करती है, तब हैरानी होती है.”
एमनेस्टी इंटरनेशनल के पुलिस और मानवाधिकार कार्यक्रम की प्रमुख अंजा बिएनर्ट ने डीडब्ल्यू को बताया, "रबड़ की गोलियों का इस्तेमाल हिंसा को रोकने और मौजूदा संसाधनों की मदद से स्थिति नियंत्रित न होने पर किया जाना चाहिए. साथ ही, गोली चलाने से पहले स्पष्ट तौर पर चेतावनी दी जानी चाहिए.”
पुलिस ने एपेक शिखर सम्मेलन के बाहर 25 प्रदर्शनकारियों को भी गिरफ्तार किया. बाद में उन्हें इस शर्त पर जमानत दी गई कि वे आगे से किसी भी राजनीतिक सभा में शामिल नहीं होंगे और दूसरों को शामिल न होने को कहेंगे. यह एक ऐसा संसाधन है जिसका इस्तेमाल पुलिस एक्टिविस्टों को उनके अधिकार के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाने के लिए करती है.
चेम्बर्स ने कहा, "देश में वाकई में पुलिस सुधार और पुलिस के दुरुपयोग को रोकने वाले कानून लागू करने की जरूरत है. हालांकि, ऐसे सुधारों को लागू करना वास्तविक चुनौती है.”
पुलिस सुधार की मांग
प्रदर्शनकारियों ने एपेक सम्मेलन के दौरान हुए लाठीचार्ज के बाद इसे ‘खूनी एपेक' कहा है. साथ ही, अब वे मांग कर रहे हैं कि पुलिस इस मामले में माफी मांगे, पीड़ितों को मुआवजा मिले और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो.
प्रदर्शनकारी भीड़ नियंत्रित करने वाली पुलिस व्यवस्था में सुधार की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि ड्यूटी पर तैनात रहने वाले पुलिस अधिकारियों के नाम सार्वजनिक किए जाने चाहिए. साथ ही, रबड़ की गोलियों के इस्तेमाल पर भी पाबंदी लगाई जाए.
वहीं दूसरी ओर, राष्ट्रीय पुलिस प्रमुख डमरोंग्सक किट्टीप्रपास ने कहा कि पुलिस चोट लगने के मामलों की जांच करेगी. हालांकि, चेम्बर्स को लगता है कि इससे कोई बड़ा बदलाव नहीं होने वाला है.
वह कहते हैं, "पुलिस ने इस तरह की जांच पहले भी की है. उस आधार पर किसी सार्थक नतीजे की उम्मीद नहीं है.”
पायु सहित अन्य घायल प्रदर्शनकारियों और पत्रकारों ने कानूनी कार्रवाई करने की योजना बनाई है. उन्हें उम्मीद है कि उनके इस कदम से अधिकारी भीड़ नियंत्रित करने के लिए भविष्य में उचित कदम उठाएंगे. (dw.com)