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मुस्लिम देशों से चीन की बढ़ती नज़दीकी में पाकिस्तान की क्या भूमिका है
24-Apr-2022 7:46 PM
मुस्लिम देशों से चीन की बढ़ती नज़दीकी में पाकिस्तान की क्या भूमिका है

OIC


-रजनीश कुमार

दुनिया में कई चीज़ें उलट-पुलट रही हैं. कहा जा रहा है कि शीत युद्ध के बाद पहली बार दुनिया एक बार फिर से उसी तरह के संकट में समाती दिख रही है.

यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद स्थिति और जटिल हो गई है. अमेरिका चाहकर भी सऊदी अरब, यूएई और भारत जैसे देशों को रूस के ख़िलाफ़ लामबंद करने में नाकाम रहा है.

इस बीच ख़बरें ऐसी भी आईं कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने लाख कोशिश की कि सऊदी अरब तेल का उत्पादन बढ़ाए लेकिन वह तैयार नहीं हुआ.

मजबूरी में अमेरिका ने अपने सुरक्षित तेल को बाज़ार में लाने लाने का फ़ैसला किया.

वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति जो बाइडन ने सऊदी अरब और यूएई के नेताओं से बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया.

अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका बोरिया-बिस्तर समेट चुका है और खाड़ी के देशों में भी उसे लेकर भरोसा कम हुआ है.

ऐसे में कहा जा रहा है कि अमेरिका की ख़ाली जगह को चीन भर रहा है और इस्लामिक देशों से उसका संबंध लगातार मज़बूत हो रहा है.

ओआईसी देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक
जब इमरान ख़ान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे तभी पिछले महीने 22-23 मार्च को इस्लामाबाद में मुस्लिम देशों के संगठन ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन यानी ओआईसी देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई थी.

ओआईसी की इस बैठक में चीन के विदेश मंत्री वांग यी को विशेष रूप से बैठक में अतिथि देश के तौर पर बुलाया गया था.

इस बैठक में कश्मीर और फ़लस्तीन में आत्मनिर्णय के अधिकार को लेकर एक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास किया गया था.

ओआईसी में 57 मुस्लिम या मुस्लिम बहुत देश हैं. इनकी आबादी क़रीब 1.9 अरब है. अंतरराष्ट्रीय डिप्लोमेसी और अहम संसाधनों पर इन देशों का ख़ास दख़ल है.

ओआईसी की बैठक के प्रभाव को लेकर लाहौर स्थित थिंक टैंक जिन्ना रफ़ी फाउंडेशन के चेयरमैन और पाकिस्तान के जाने-माने लेखक इम्तियाज़ रफ़ी बट ने लेख लिखा था. उन्होंने अपने लेख में लिखा है कि वांग यी चीन की सरकार के पहले सदस्य हैं, जिन्हें ओआईसी की बैठक में बुलाया गया.

इम्तियाज़ रफ़ी के मुताबिक़, "ओआईसी की बैठक में चीन का आना एक अहम परिघटना है और इसका ख़ास असर होगा. चीन मुस्लिम दुनिया में काफ़ी गहराई से अपना पैर जमा रहा है. 50 मुस्लिम देशों में 600 अलग-अलग परियोजनाओं में चीन ने कुल 400 अरब डॉलर का निवेश किया है. मुस्लिम वर्ल्ड चीन की ओर विकास के लिए देख रहा है. इस मामले में पाकिस्तान लोगों को क़रीब लाने में मदद कर रहा है. पाकिस्तान ने इसी के तहत इस्लामाबाद में आयोजित ओआईसी की बैठक में चीन को बुलाया. मुस्लिम देशों ने भी पाकिस्तान की इस पहल की प्रशंसा की."

इम्तियाज़ ने लिखा है, "चीन और सऊदी अरब तेल का व्यापार डॉलर के बदले यूआन में करने पर बात कर रहे हैं. इसके अलावा ईरान में चीन पहले से ही इन्फ़्रास्ट्रक्चर पर 60 अरब डॉलर निवेश की बात पक्की कर चुका है. पश्चिम अब इस्लामिक देशों का विश्वसनीय साझेदार नहीं है. चीन इस्लामिक देशों में अमेरिका की जगह ले रहा है. महामारी के दौरान उसने कोरोना वैक्सीन की 1.5 अरब डोज़ मुफ़्त में पहुँचाई थी."

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कश्मीर का मुद्दा
ओआईसी की बैठक में पाकिस्तान ने कश्मीर का मुद्दा खुलकर उठाया था और चीन के विदेश मंत्री ने भी कहा कि था कि कश्मीर पर वह पाकिस्तान की चिंता को समझते हैं. इसके अलावा वांग यी ने फ़लस्तीन समस्या के समाधान के लिए भी दो देश के फ़ॉर्म्युले का समर्थन किया था.

क्या वाक़ई पाकिस्तान इस्लामिक देशों को चीन के क़रीब लाने में मदद कर रहा है?

भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने बीबीसी से कहा, "मैं ऐसा नहीं मानता हूँ. चीन के अपने हित हैं और उन हितों की वजह से पश्चिम एशिया से अपनी क़रीबी बढ़ा रहा है. वह न तो पाकिस्तान के कारण ऐसा कर रहा है और न ही इस्लामिक देश होने की वजह से."

अब्दुल बासित कहते हैं, "पाकिस्तान अभी उस पोजिशन में नहीं है कि चीन को किसी गुट में ले जा सके. ओआईसी की बैठक में भले चीन को अतिथि के तौर पर बुलाया गया था लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इस बैठक के कारण चीन इस्लामिक देशों के क़रीब आया है."

"चीन की अपनी ऊर्जा ज़रूरतें हैं और वह पश्चिम एशिया से ऊर्जा के आयात करने में नंबर वन है. चीन इन देशों में निवेश भी कर रहा है. ऐसे में वह अपनी मौजूदगी अपने हितों के हिसाब से बढ़ा रहा है न कि पाकिस्तान की कोशिश से."

अब्दुल बासित कहते हैं कि चीन की मध्य-पूर्व में बढ़ती मौजूदगी भारत के लिए चिंताजनक हो सकती है.

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पश्चिम एशिया की स्थिति
बासित कहते हैं, "बड़ी संख्या में भारतीय खाड़ी के देशों में काम करते हैं. इस पर कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन दोनों देशों के आर्थिक हित टकरा सकते हैं. चीन अगर खाड़ी के देशों में सैन्य मौजूदगी बढ़ाएगा तो भारत के लिए चिंता की बात होगी. मध्य-पूर्व में चीन की मौजूदगी कोई नई नहीं है लेकिन यह मौजूदगी लगातार मजबूत हो रही है."

खाड़ी के कई देशों में भारत के राजदूत रहे तलमीज़ अहमद कहते हैं कि पश्चिम एशिया में स्थिति बदल चुकी है. वह कहते हैं कि बदलाव आ चुका है क्योंकि अमेरिका पर लोगों का भरोसा कम हुआ है और चीन ने इन इलाक़ों में 30 साल पहले जो अपनी दस्तक दी थी वह बहुत ही मज़बूत स्थिति में है.

तलमीज़ अहमद कहते हैं, "हालत यहाँ तक पहुँच चुकी है कि सऊदी अरब और यूएई के नेता राष्ट्रपति बाइडन से बात तक करने के लिए तैयार नहीं हैं. ये वही बाइडन हैं, जिन्होंने सत्ता में आते ही कहा था कि वह केवल अपने समकक्षों से बात करेंगे. लेकिन जब ज़रूरत पड़ी तो अपनी ही कही बात से मुकर गए और क्राउन प्रिंस से बात करने का फ़ैसला किया लेकिन क्राउन प्रिंस ने बात करने से इनकार कर दिया. यह बाइडन की नीति की नाकामी ही है. अमेरिका पश्चिम एशिया में अपना भरोसा खो चुका है और चीन उसकी जगह लेता दिख रहा है."

जो बाइडन
तलमीज़ अहमद कहते हैं, "चीन की बेल्ट रोड परियोजना में खाड़ी के सभी देशों की दिलचस्पी है. यहाँ तक कि ईरान और सऊदी भी इस मामले में अपना मतभेद किनारे रखते हुए दिख रहे हैं. यूक्रेन के मामले में भी पश्चिम एशिया के देश अमेरिका के पीछे नहीं हैं. यहाँ तक कि यूएई जैसा क़रीबी पार्टनर भी दो मौक़ों पर संयुक्त राष्ट्र में रूस के ख़िलाफ़ वोटिंग से बाहर रहा. इन देशों को पता है कि रूस और चीन लोकतंत्र या मानवाधिकार के नाम पर कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे. इसके अलावा चीन और रूस की विदेश में एक किस्म की निरंतरता भी है. दूसरी तरफ़ अमेरिका में रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी के सत्ता में आते ही कई चीज़ें बदल जाती हैं."

रूस और चीन में जिस तरह की सत्ता है, खाड़ी के इस्लामिक देशों में भी उसकी तरह की सरकारें हैं. लंबे समय से सत्ता एक परिवार या धार्मिक नेताओं के हाथ में रहती है. ऐसे में यहाँ के इस्लामिक देशों के यह चिंता नहीं रहती है कि लोकतंत्र या मानवाधिकार को लेकर संबंधों में कोई कड़वाहट नहीं आएगी.

चीन के लिए ऊर्जा ज़रूरतें पश्चिम एशिया से पूरी हो रही हैं और यहाँ के देश अपनी प्रगति में चीन निवेश को हाथोहाथ ले रहे हैं.

ऐसे में कहा जा रहा है कि इस्लामिक देशों और चीन का गठजोड़ आपसी हितों पर जुड़ा है और यह ईरान जैसे मुल्क के लिए अमेरिका के ख़िलाफ़ एक माकूल विकल्प है.' (bbc.com)


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