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ऑस्ट्रेलिया में फेसबुक कॉमेंट के लिए भी हो सकता है मीडिया कंपनियों पर मुकदमा
08-Sep-2021 8:31 PM
ऑस्ट्रेलिया में फेसबुक कॉमेंट के लिए भी हो सकता है मीडिया कंपनियों पर मुकदमा

ऑस्ट्रेलिया के समाचार माध्यमों को अब उन टिप्णियों के लिए भी मुकदमे झेलने पड़ सकते हैं, जो उनके सोशल मीडिया पेज पर पाठकों द्वारा की जाती हैं.

डॉयचे वैले पर  विवेक कुमार की रिपोर्ट- 

ऑस्ट्रेलिया के हाई कोर्ट ने समाचार माध्यमों को उनके फेसबुक या अन्य किसी सोशल मीडिया पेज पर टिप्पणियों के लिए भी जिम्मेदार माना है. एक मामले में फैसला सुनाते हुए हाई कोर्ट ने कहा है कि फेसबुक या अन्य किसी सोशल मीडिया पेज पर आने वाली टिप्पणियों के लिए भी समाचार माध्यम जिम्मेदार हैं.

क्या था मामला?

2016 में एक किशोर डिलन वॉलर के साथ हिरासत में हुए बुरे बर्ताव को एक टीवी रिपोर्ट में दिखाया गया था. उस युवक की जंजीरों में बंधे होने और उस पर थूके जाने जैसी तस्वीरें खबरों में दिखाई गई थीं. इन तस्वीरों पर देशभर में बड़ा मुद्दा बना था जिसके बाद नॉर्दरन टेरिटरी राज्य में किशोर कैदियों के साथ बर्ताव की जांच हुई.

इस पूरे मामले पर समाचार माध्यमों ने खूब खबरें और लेख छापे थे. ये सारी सामग्री सोशल मीडिया पर भी पोस्ट की गई जिन पर पाठकों ने टिप्पणियां कीं. 2017 में वॉलर हिरासत से रिहा हुए और उन्होंने कई समाचार माध्यमों पर मानहानि के मुकदमे किए.

वॉलर ने अपने मुकदमे में सिडनी मॉर्निंग हेरल्ड (जिसकी मालिक कंपनी अब नाइन एंटरनेटमेंट है) और न्यूज कॉर्प के द ऑस्ट्रेलियन और स्काई न्यूज ऑस्ट्रेलिया को पक्ष बनाया था, जिनकी सोशल मीडिया पोस्ट पर कथित मानहानि भरी टिप्पणियां आई थीं.

चार साल लंबी कानूनी लड़ाई

लगभग चार साल चली कानूनी लड़ाई में मीडिया कंपनियों ने दलील दी कि वे सोशल मीडिया पर आई टिप्पणियों के लिए जिम्मेदार नहीं हैं क्योंकि पाठकों द्वारा लिखी गई सामग्री की प्रकाशक कंपनियां नहीं हैं. मीडिया कंपनियों का तर्क था कि प्रकाशक होने के लिए उनका सामग्री के प्रकाशन से पहले उसे देखना जरूरी है.

2019 में न्यू साउथ वेल्स राज्य के सुप्रीम कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज करते हुए मीडिया कंपनियों के खिलाफ फैसला दिया था. इस फैसले के खिलाफ उन्होंने देश के सर्वोच्च न्यायालय में अपील की. सर्वोच्च न्यायालय ने भी मीडिया कंपनियों के तर्कों को अनुचित माना.

जजों के बहुमत से दिए गए अपने फैसले हाई कोर्ट ने कहा कि एक सार्वजनिक फेसबुक पेज बनाने और उस पर समाचार सामग्री साझा करने से मीडिया कंपनियों प्रकाशक हो जाती हैं क्योंकि उन्होंने पाठकों को टिप्पणियां करने के लिए मंच उपलब्ध कराया और उन्हें टिप्पणियां करने के लिए प्रोत्साहित किया.

क्यों अहम है ये फैसला?

डिलन वॉलर का मामला अब दोबारा निचली अदालत में जाएगा जहां इस बात पर फैसला होगा कि वे टिप्पणियां मानहानि करती हैं या नहीं. उनके वकीलों ने हाई कोर्ट के फैसले को ऐतिहासिक बताया.

मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा, "यह फैसला जिम्मेदारी वहां डालता है, जहां होनी चाहिए, यानी भारी-भरकम संसाधनों वाली मीडिया कंपनियों पर. जिम्मेदारी उन टिप्पणियों की निगरानी की, (खासकर तब) जबकि वे जानते हैं कि किसी व्यक्ति की मानहानि की काफी संभावना है.”

हालांकि, मीडिया कंपनियां इस फैसले को खतरनाक मान रही हैं क्योंकि इससे मानहानि के मुकदमों की बाढ़ आ सकती है. नाइन के एक प्रवक्ता ने एक बयान जारी कर कहा, "बेशक हम इस नतीजे से निराश हैं क्योंकि इसका असर इस बात पर पड़ेगा कि भविष्य में हम सोशल मीडिया पर क्या पोस्ट करेंगे.” (dw.com)

 


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