गरियाबंद

अगली पीढ़ी तक पहुंचे वैद्यराजों का ज्ञान-वरुण जैन
06-Jul-2025 8:02 PM
अगली पीढ़ी तक पहुंचे वैद्यराजों का ज्ञान-वरुण जैन

औषधीय पौधों के संरक्षण के लिए वैद्यराजों को प्रशिक्षण

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

गरियाबंद, 6 जुलाई। गरियाबंद जिले में विलुप्त प्राय औषधीय पौधों की प्रजातियों को संरक्षित करने और उनके संवर्धन के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है।

वन विभाग और ग्रीन कैनोपी इंडिया नामक निजी संस्था के संयुक्त तत्वावधान में जिले के 120 से अधिक वैद्यराजों को एकदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य औषधीय पौधों के विनाश-विहीन विदोहन को बढ़ावा देना, उनके संरक्षण को सुनिश्चित करना और इस पारंपरिक ज्ञान को नई पीढ़ी तक पहुंचाना रहा। कार्यक्रम में जिले के सुदूर अंचलों से पहुंचे वरिष्ठ वैद्यराजों ने अपने क्षेत्र से लाए औषधि पौधों का रोपण वन विभाग की नर्सरी में किया।

प्रशिक्षण के दौरान विषय विशेषज्ञ डॉ. राजेंद्र प्रसाद मिश्र ने जंगल में पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों की पहचान, उनके रखरखाव, और उपयोग की उचित मात्रा के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि अनियंत्रित दोहन के कारण कई औषधीय पौधों की प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। इसलिए, इन पौधों का उपयोग इस तरह करना चाहिए कि उनकी उपलब्धता जंगलों में बनी रहे। डॉ. मिश्र ने वैद्यराजों को जड़ी-बूटियों के संरक्षण के लिए टिकाऊ तकनीकों के बारे में भी जागरूक किया।

वरिष्ठ वैद्यराजों ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि विभिन्न औषधीय पौधों के विशिष्ट हिस्सों का उपयोग किन बीमारियों के इलाज में किया जाता है। उन्होंने जड़ी-बूटी निर्माण की पारंपरिक विधियों पर भी प्रकाश डाला, जिससे न केवल उपचार प्रभावी हो, बल्कि पौधों का संरक्षण भी सुनिश्चित हो।

कार्यक्रम में वैद्यराजों के पारंपरिक ज्ञान को दस्तावेजीकृत करने और इसे अगली पीढ़ी तक हस्तांतरित करने की जरूरत पर भी चर्चा की गई। कई वैद्यराजों ने उन बीमारियों के इलाज पर चर्चा की, जिनका उपचार आधुनिक चिकित्सा पद्धति (एलोपैथी) में संभव नहीं है। उन्होंने जड़ी-बूटियों पर वैज्ञानिक शोध और अनुसंधान की आवश्यकता पर बल दिया ताकि इनके औषधीय गुणों को और बेहतर ढंग से समझा जा सके।

 इस अवसर पर उदंती-सीता नदी टाइगर रिजर्व के उपसंचालक वरुण जैन ने कहा-औषधीय पौधे हमारी प्राकृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा हैं। इनका संरक्षण न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि हमारी स्वास्थ्य परंपराओं के लिए भी जरूरी है। इस प्रशिक्षण के माध्यम से हम वैद्यराजों को सशक्त बनाना चाहते हैं ताकि वे इस ज्ञान को आगे बढ़ाएं। साथ ही नहीं पीढ़ी तक उनका ज्ञान पहुंचे।

गरियाबंद के उपवन मंडल अधिकारी मनोज चंद्राकर ने बताया कि वन विभाग औषधीय पौधों के संरक्षण के लिए लगातार प्रयासरत है। उन्होंने कहा- हमारा लक्ष्य है कि जंगल में औषधीय पौधों की प्रजातियों को बचाया जाए और स्थानीय समुदाय को इसके महत्व के बारे में जागरूक किया जाए। इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं।

ग्रीन कैनोपी इंडिया की और से पहुंची देवयानी शर्मा ने कहा, हमारा संगठन प्रकृतिक वनोंसधी और उससे इलाज की परंपराओं के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है। वैद्यराजों का यह पारंपरिक ज्ञान अनमोल है, और इसे सहेजने के लिए हम वन विभाग के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। हमारा प्रयास है कि  इस ज्ञान को नई पीढ़ी तक पहुंचाया जाए और औषधीय पौधों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित हो।

छूरा क्षेत्र के वैद्यराज ईश्वर सिंह ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, हमारे पूर्वजों ने हमें जड़ी-बूटियों का उपयोग सिखाया है, लेकिन आज इन पौधों का संरक्षण जरूरी है। इस प्रशिक्षण से हमें नई तकनीकों और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बारे में जानकारी मिली, जो हमारे काम को और प्रभावी बनाएगी।

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत न केवल वैद्यराजों को प्रशिक्षित किया गया, बल्कि औषधीय पौधों के संरक्षण के लिए भविष्य की योजनाओं पर भी चर्चा की गई। वन विभाग और ग्रीन कैनोपी इंडिया ने जंगल में औषधीय पौधों के संरक्षण के लिए स्थानीय समुदायों को प्रोत्साहित करने की योजना बनाई है।


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