गरियाबंद

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजिम, 23 फरवरी। संत समागम में शामिल होने देश के विभिन्न क्षेत्रों से साधु-संत महात्मा पहुंचे हुए हैं। त्रिवेणी संगम क्षेत्र में बने संत समागम स्थल पर श्रध्दालुओ की भीड़ देखी जा रही है। लोमष ऋषि आश्रम में एक ऐसे संत आए हैं, जिनका नाम है चंदन भारती। वे जुना अखाड़ा से है, उनके गुरू सुशील भारती जी है। महाराज जी की जटा और दाढ़ी 6 फीट की है। उन्होंने चर्चा के दौरान बताया कि वे प्रयागराज से सीधे राजिम कुंभ आए हैं। 2006 से प्रतिवर्ष राजिम कुंभ मेला में शामिल होते हैं। अपनी जटा के बारे में बताया कि जो शिव जी के भक्त होते हैं, वे श्रद्धा भाव से जटा रखते हंै। साधु एक जगह स्थिर नहीं होते। वे साधना पूर्ण जीवन व्यतीत करते हंै। जंगल-झाड़ी में जहां मन लगता है, वहीं विश्राम कर लेते है। वे सुख-सुविधाओं को त्याग कर शिव भक्ति में लीन रहते हंै। शिव भक्तों में जटा के महत्व को बताते हुए कहा कि इन जटाओं को रखने के पीछे कई धार्मिक, वैज्ञानिक और अध्यात्मिक कारण होते है। कोई भी व्यक्ति सन्यास लेने के बाद ही साधु बनते है, जो की सांसारिक मोह-माया से दूर होते है। जप-तप और अनुष्ठान से श्रेष्ठ कार्य कर अपना जीवन ईश्वर की सेवा मे समर्पित करते है। साधु-संतों की जटाए उनके जीवन में त्याग-तपस्या पूर्ण जीवन शैली का प्रतीक है।
उनकी जटाएं भगवान शिव के प्रति उनकी सच्ची अराधना को प्रदर्शित करते हंै।