गरियाबंद
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‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
गरियाबंद, 7 नवंबर। मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार परिवार वर्षों से उपेक्षित है, जबकि उनका पूरा जीवन मिट्टी पर आश्रित है, इस महंगाई के दौर में उन्हें बर्तनों व मूर्तियों का संतोषजनक व सही मोल भी नहीं मिलता है, उनका दुखड़ा सुनने के लिये उनके पास कोई नहीं आता है। कुम्हारों को शासन से भी ऐसी कोई विशेष सहायता नहीं मिलती जिसे लेकर वे अपना व्यवसाय बढ़ा सके और उनकी तरक्की हो उनकी कला को आगे बढ़ाने के लिये भी कोई ठोस प्रयास सरकार ने नहीं किये है।
ग्राम पंचायत मैनपुर के आश्रित ग्राम नदीपारा में कुम्हार परिवार वर्षों से निवासरत है, यहां 75 फीसदी आबादी कुम्हारों की है, और यह ग्राम मूलभूत सुविधाओं के लिये तरस रहा है। नदी के बाढ़ से इन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ता है। कुम्हार परिवार के लोगों ने बताया कि त्यौहार को छोड़ अन्य दिनों में उन्हें उनकी मिट्टी पर की गई मेहनत का कोई संतोषजनक मोल नहीं मिलता, उनकी जीविका का साधन मिट्टी का बर्तन बनाना है, और वे इसी से परिवार का जीविकोपार्जन करते है।
नदीपारा में कुम्हारों की लगभग 60-70 परिवार निवास करते है और महंगाई से जूझ रहे है हर वर्ष रंगों की कीमत बढ़ती जा रही है मिटटी के बर्तन बनाने व इस त्यौहारी सीजन में पोरा चुकी, दिया, नदिया बैल व मूर्ति बनाने में उन्हें महंगे रंगों का उपयोग करना पड़ता है और तो और इन्हें पकाने के लिये लकड़ी भी खरीदना पड़ता है। लकड़ी की कीमत भी बढ़ गई है, जिसके कारण उन्हें पर्याप्त मुनाफा नहीं मिलता है।
शासन ने कुम्हारों को इलेक्ट्रानिक चाक व जमीन तथा अन्य सुविधा उपलब्ध कराने की बात कही थी, लेकिन यहां के एक भी कुम्हार परिवार को लाभ नहीं मिला है। अधिकांश लोगों को यह भी पता नहीं है कि शासन अनुदान उपलब्ध कराती है। कुम्हार पिछड़े वर्ग में आते है सदियों से वे इस पेशे से जुड़े होने के कारण मिट्टीकला उन्हें विरासत में मिली है।
नदीपारा में निवास करने वाले कुम्हार परिवार के उदेराम पाड़े, उकिया बाई, टंकधर, बेनुराम, उमाशंकर, पारेश्वर, निर्मला, बलराम, जोहरसिंह ने बताया कि शासन द्वारा उन्हें किसी भी प्रकार की सहयोग व अनुदान नहीं दिया जाता है।
दिवाली में कुम्हारों द्वारा बनाए गए दीये से ही हमारे घर रोशन होंगे। पूजापाठ, अनुष्ठान, मांगलिक कार्यक्रम हो या फिर अंतिम संस्कार, मिट्टी के बने पात्रों के बिना कोई भी कार्य पूरा नहीं होता। छत्तीसगढ़ में मिट्टी के पात्र बनाने के व्यवसाय में लगे कुम्हारों की जिंदगी दिया तले अंधेरा की कहावत को चरितार्थ कर रहा है। शासन द्वारा घोषणा के बाद न तो प्रदेश के कुम्हारों को मिट्टी के लिए जमीन नसीब हुई और न ही मिट्टी के बर्तन को पकाने लकड़ी या भूसे की व्यवस्था है।
कुम्हार उदेराम पाड़े ने बताया कि प्रदेश के कुम्हारों को वर्ष 2006 में हुए प्रदेश स्तरीय अधिवेशन में मिट्टी के लिए प्रत्येक गांव में 5-5 एकड़ जमीन देने घोषणा तत्कालीन सरकार द्वारा की गई थी। इस घोषणा को अब तक अमल में नहीं लाया जा सका है।
रामा चक्रधारी बताते हैं कि मिट्टी के कच्चे बर्तनों को पकाने के लिए पर्याप्त मात्रा में लकड़ी व भूषा नहीं मिलने के कारण लोग इस व्यवसाय से किनारा कर रहे हैं। व्यवसाय तो चौपट हो ही रहा है साथ ही बच्चों का भविष्य भी अंधकार में जा रहा है।