संपादकीय
अभी पिछले महीने दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर कई विमानों के उडऩे और उतरने में दिक्कत आई थी, और उन्हें जो सिग्नल मिलने चाहिए थे, वे गड़बड़ लग रहे थे। गनीमत ये है कि बिना किसी हादसे के वह दौर निकल गया लेकिन एयर ट्रैफिक कंट्रोलरों को तुरंत ही यह बात समझ में आ गई थी कि किसी ने विमानों, और कंट्रोल टॉवर के जीपीएस सिग्नलों के साथ छेड़छाड़ की थी। यह बात केंद्र सरकार ने संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में बताई है और कहा है कि जीपीएस-स्पूफिंग की यह हरकत दिल्ली के अलावा कोलकाता, अमृतसर, मुंबई, हैदराबाद, बैंगलुरू, और चेन्नई एयरपोर्ट पर भी हुई थी। मतलब यह कि देश के सात अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डों को एक ऐसी छेडख़ानी का निशाना बनाया गया था जिससे विमान हादसे हो सकते थे। एक ही वक्त जब ऐसी जीपीएस छेडख़ानी इतनी जगहों पर एक साथ हो सकती है, तो फिर बाकी एयरपोर्ट पर भी हो सकती है, और तकनीकी सावधानी में भारत से कमजोर और भी बहुत से देशों में हो सकती है। अभी कल-परसों ही हमने अपने अखबार या यू-ट्यूब चैनल पर साइबर हमलों के बारे में कहा था कि एआई से लैस कुछ आतंकी संगठन अपने अलग-अलग किस्म के एजेंडा को लेकर हर किस्म के कंप्यूटर और डिजिटल सिस्टम पर हमले कर सकते हैं। हमने कहा ही था, और कल संसद में सरकार ने एक सवाल के जवाब में यह बात मान भी ली है। समाचार में कहा जा रहा है कि अमरीका में बैठे हुए लोग उन्हें हासिल उपकरणों से ऐसे नकली सिग्नल कहीं भी भेज सकते हैं। आज से 25 साल पहले बनी हॉलीवुड की फिल्मों में साइबर हमलों और किसी देश की बिजली व्यवस्था, ट्रैफिक व्यवस्था, बैंकिंग व्यवस्था पर पूरी तरह कब्जा कर लेने के मुजरिमों या आतंकियों के हमले दिखाए जा चुके हैं। अब बस धीरे-धीरे वे सिनेमाघरों के पर्दों से असल जमीन पर उतर रहे हैं।
कोई अगर अपने घर बैठे मामूली उपकरणों और कंप्यूटरों का इस्तेमाल करके विमानों को फर्जी जीपीएस सिग्नल भेज सकते हैं, तो फिर इजराइल जैसे हमलावर देश जो कि पूरी दुनिया में हमलावर और घुसपैठिया टेक्नोलॉजी बेचने के लिए बदनाम हैं, वे क्या-क्या नहीं कर सकते? लोगों को अभी पिछले ही साल की वह घटना याद होगी कि अपने को नापसंद एक दूसरे देश के संगठन के तमाम नेताओं के इस्तेमाल किए जा रहे पेजर संचार उपकरणों में इजराइल ने किस तरह एक साथ विस्फोट किया था। मतलब यह कि उसे ऐसी तकनीकी ताकत हासिल है, दुनियाभर में ऐसे लोग बिखरे हुए हैं जिन्हें वह अपना दुश्मन मानता है, और इजराइली कारोबारी लगातार इस तरह की तबाही लाने वाले उपकरण और टेक्नॉलॉजी बनाने और बेचने के लिए बदनाम भी हैं। ऐसे में जैसे-जैसे दुनिया टेक्नॉलॉजी पर अधिक, और अधिक आश्रित होती जाएगी, वैसे-वैसे वह खतरे, और अधिक खतरे में पड़ती भी जाएगी। अब आज भारत के सात अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डों पर अगर एक साथ गड़बड़ी फैलाई जा सकी है, तो यह सोचा जा सकता है कि देश में आने, और यहां से जाने वाले मुसाफिरों और सामानों में कितनी बाधा खड़ी की जा सकती है।
दुनिया में जगह-जगह सार्वजनिक उपयोग की प्रणालियों और टेकनॉलॉजी में छेडख़ानी के खतरों के बारे में हम लगातार आगाह करते हैं कि कुछ आतंकी संगठन एआई का इस्तेमाल करके किसी खास तबके को निशाना बना सकते हैं। अब पर्यावरण बचाने के लिए कोई ऐसा संगठन एआई आधारित आतंक का सहारा ले सकता है, और अतिसंपन्न आबादियों तक बिजली पहुंचाने वाले बिजलीघरों को ठप्प कर सकता है कि एक-एक व्यक्ति इतनी बिजली इस्तेमाल क्यों करे? इसी तरह एक-एक मुसाफिर को लेकर जाने वाले पर्यावरण के लिए बहुत महंगे निजी विमानों की आवाजाही को ऐसी ही जीपीएस-स्पूफिंग से रोका-टोका जा सकता है, उन्हें तबाह भी किया जा सकता है। ऐसा करने वाले आतंकी समूह अपनी हरकत को यह कहते हुए भी जायज ठहरा सकते हैं कि वे पर्यावरण बर्बाद करने वालों को एक चेतावनी दे रहे थे।
ऑटोमेशन किस तरह जिंदगी को प्रभावित कर रहा है इसकी कुछ मिसालें हर हफ्ते कहीं न कहीं सामने आती हैं जब सडक़ों पर कोई गाड़ी एक्सीडेंट का शिकार होती है, उसमें आग लग जाती है, और उसके दरवाजे ऑटोलॉक से बंद हो जाते हैं, जो कि भीतर के मुसाफिर खोल भी नहीं पाते, जलकर खत्म हो जाते हैं। अधिक से अधिक ऑटोमेशन काम की सहूलियत को बढ़ाता है, लेकिन काम को खतरनाक भी करता है। आज पूरी दुनिया में अधिकतर काम इसी तरह की टेक्नॉलॉजी के अधिक से अधिक मोहताज हो चुके हैं। लोग अपने मोबाइल फोन पर कोई काम करके दुनिया के सुपर कंप्यूटरों को काम से लगा सकते हैं। हम एआई के एक बहुत मामूली औजार से कोई सवाल करके धरती के किसी दूसरे कोने के कंप्यूटरों को व्यस्त कर सकते हैं। एक-दूसरे से इस तरह, इस हद तक, बेतार जुड़ी हुई दुनिया जितनी सहूलियत की लगती है, उतनी ही वह नाजुक भी हो गई है। आज दुनिया के जो काम पूरी तरह कंप्यूटरों पर टिक गए हैं, और जिन्होंने अपना कोई गैर-कंप्यूटरीय विकल्प बनाकर नहीं रखा है, उन्हें यह सोचना चाहिए कि कंप्यूटर सिस्टम बंद हो जाने से कितने मरीजों का इलाज ही बंद हो जाएगा?
हमारी तरह के बहुत मामूली समझ वाले लोग भी अपनी कुछ सौ पढ़ी हुई अपराधकथाओं के आधार पर आसानी से यह कल्पना कर सकते हैं कि एआई की मदद से लोग अपने खुद के तय किए हुए दुश्मनों का कितना नुकसान कर सकते हैं। न तो हमें एआई का अधिक तजुर्बा है, न ही किसी साजिश या जुर्म का, फिर भी यह कल्पना बड़ी आसान है। यह तय मानना चाहिए कि हमारी तरह के साधारण लोग जो कल्पना कर रहे हैं, पेशेवर मुजरिम या पेशेवर आतंकी उससे हजारों गुना आगे तक की सोच चुके होंगे, और तैयारी कर चुके होंगे। भारत सरकार को उसके आधा दर्जन से अधिक अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डों पर की गई इस छेडख़ानी से न सिर्फ हवाईअड्डों की हिफाजत के बारे में दोबारा सोचना चाहिए, बल्कि यह भी देखना चाहिए कि क्या कंप्यूटर-सिस्टम से छेडख़ानी करके कोई रेलगाडिय़ों के सिग्नल को भी बदल सकते हैं? कोई व्यस्त शहरी ट्रैफिक सिग्नलों को भी ठप्प कर सकते हैं, जैसा कि हॉलीवुड की एक फिल्म में चौथाई सदी पहले दिखाया जा चुका है। जिस रफ्तार से कोई देश या दुनिया टेक्नॉलॉजी के मामले में आगे बढ़ते हैं, उसी रफ्तार से एक मुजरिम के नजरिए से यह सोचा जाना चाहिए कि वे तबाही कैसे ला सकते हैं, और उस नजरिए का मुकाबला करने के लिए सरकारों को अपनी तैयारी भी करनी चाहिए।


