संपादकीय
कुछ घटनाएं जो कि स्वाभाविक तौर पर आम लगनी चाहिए, वे आज के माहौल में बड़ी खास लगने लगती हैं। दो दिनों से एक वीडियो तैर रहा है कि पानी में एक कार डूबती चली जा रही है, और एक छोटी सी नाव पर सवार एक नौजवान कार की खिडक़ी से किसी व्यक्ति को खींचकर निकालने की कोशिश में लगा हुआ है। दो मिनट के इस वीडियो में नाव डूब जाती है, कार भी डूब जाती है, लेकिन यह नौजवान किसी तरह से कार के ड्राइवर को बचा लेता है। तब तक किनारे से पहुंचा एक और नौजवान मदद करता है, और दोनों मिलकर किसी तरह कार सवार को बचाकर किनारे लाते हैं। इन तीनों के नाम सहित यह वीडियो हजारों लोगों ने आगे बढ़ाया है, और खबर शायद सही ही रही होगी कि इसका कोई खंडन देखने नहीं मिला। कार चालक हिन्दू था, उसे बचाने वाला मुस्लिम था, और किनारे से पहुंचा तीसरा नौजवान हिन्दू था। डूबते हुए को बचाते हुए किसी को उसके जात-धरम पूछने की न जरूरत रहती है, न फुरसत रहती है। इसी तरह जब कोई डूब रहा हो तो उसे बचाने वाले के जात-धरम क्या हैं, इसे पूछने की भी जहमत कोई नहीं उठाते। यह तो सीधे-सीधे डूबते से बचने की बात, लोग तो अस्पताल के ब्लड बैंक में खून लेते हुए, या आंखें और किडनी देते हुए कभी नहीं पूछते कि देने वालों के जात-धरम क्या हैं। जब अपनी जान पर आ पड़ी हो, तो जिससे जान बच रही है, वे ईश्वर ही लगते हैं। जात-धरम तब सूझते हैं जब पेट भरा रहता है, और दिल-दिमाग पर बददिमागी छाई रहती है। राह चलते भिखारी होटल-ठेले वालों के नाम पढ़-पढक़र भीख नहीं मांगते, और इसी तरह घरों की तख्तियों पर जात-धरम देखकर लोग मांगने नहीं पहुंचते, या घर छोडक़र आगे नहीं बढ़ते।
एक हिन्दू को बचाने वाले इस मुसलमान नाव वाले की बात पर लिखने की आज इतनी बड़ी वजह नहीं रहती, अगर जम्मू से एक दूसरी खबर नहीं आई रहती। दुनिया के सबसे अधिक फौजी मौजूदगी वाले जम्मू-कश्मीर में अभी जम्मू के एक पत्रकार ने एक अफसर के नशा-तस्करी में हाथ होने की रिपोर्टिंग की, तो उसका 40 बरस पुराना घर आनन-फानन बुलडोजर से गिरा दिया गया। कहा गया कि वह सरकारी जमीन पर बना हुआ अवैध निर्माण था। वैसी सरकारी जमीन पर दूसरे दर्जनों और अवैध निर्माण बरकरार हैं, और इस पत्रकार का यह मकान भी 40 साल से वहां बना हुआ था, और दूसरे मकानों की तरह। एक रिपोर्ट उसने बनाई, और उसे बेघर कर दिया गया। उसके बच्चे मलबे के पास खुली जमीन पर बैठे हुए थे। यह देखकर जम्मू के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने सार्वजनिक रूप से अपनी जमीन के कागज इस पत्रकार अरफाज अहमद डैंग को दिए, और कहा कि चाहे उसे भीख मांगनी पड़े, वह उनका घर बनवाकर रहेंगे। कुलदीप शर्मा नाम के इस सामाजिक कार्यकर्ता ने सार्वजनिक रूप से यह कहा कि वे सिर्फ कागज नहीं दे रहे हैं, जमीन अरफाज के नाम करने की पूरी कानूनी कार्रवाई भी कर रहे हैं। कुलदीप शर्मा एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, और उनकी बेटी तान्या शर्मा ने कहा कि उन्हें अपने पिता पर गर्व है जिन्होंने एक बेहतरीन मिसाल कायम की है कि हिन्दू-मुस्लिम एकता को मजबूत करना चाहिए। जम्मू के अफसरों ने बिना किसी कानूनी कार्रवाई के इस एक अकेले एकमंजिला मकान को मलबे में बदल दिया। कुलदीप शर्मा के बारे में लोगों ने बताया कि वे अरफाज का घर टूटने से बहुत परेशान थे, और उन्होंने खुद होकर यह फैसला लिया। उनकी बेटी पिछले कुछ सालों से आसपास के गरीब बच्चों को मुफ्त की ट्यूशन पढ़ाती हैं। कुलदीप शर्मा का कहना है कि अरफाज ने उस वक्त सच बोला जब बहुत कम लोगों में ऐसा कहने की हिम्मत रह गई है। बदकिस्मती से सच के लिए कोई जगह नहीं है। उन्होंने कहा कि मैं इस परिवार के घर को दुबारा खड़ा करने में काम आ सकूं, मेरा ईश्वर मेरे जाने के बाद भी मेरे सिर पर छत रखेगा।
इन दो घटनाओं को देखें, तो लगता है कि रात-दिन नफरती लावा उगलने वाले टीवी चैनलों की पहुंच से कुछ लोग अब भी बेअसर रह गए हैं। टीवी चैनल खुद बहुत से लोगों के असर में, बहुत से लोगों को खुश रखने के लिए ऐसा करते हैं, और ऐसा करते हुए शायद अपना सुख भी जुटाते हैं। लेकिन बिना शोहरत की चाह के भी कई लोग, शायद अधिकतर लोग एक-दूसरे के काम आने के लिए एक पैर पर तैयार खड़े रहते हैं। भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौर में सिक्खों और मुस्लिमों के बीच सबसे अधिक खून बहा था, लेकिन आज जब सिक्ख बाढ़ में डूबे हुए लोगों की मदद करने को रात-दिन काम करते हैं, तो लोगों का धरम जानते हुए भी उनके मन में कोई भेदभाव नहीं आता। पंजाब के गांवों में सोच-समझकर, ठंडे दिल से फैसला लेकर एक के बाद दूसरे गुरुद्वारे में लोग नमाज पढऩे की जगह बनाकर देते हैं। कई जगहों के ऐसे फोटो-वीडियो भी हमने देखे हैं जहां लोग सडक़ पर नमाज पढ़ रहे हैं, और उनके आसपास गैरमुस्लिम लोग एक घेरा डालकर खड़े हैं ताकि आती-जाती ट्रैफिक से किसी को चोट न लगे। ये तमाम वे जगहें हैं जहां मीडिया नाम के यूनियन कार्बाइड कारखाने अपनी मिक गैस फैला नहीं पाए हैं।
इन्हीं दोनों घटनाओं पर लिखते हुए आज भी कुछ सच्चे और खरे इंसानों ने सोशल मीडिया पर याद दिलाया है कि अभी कश्मीर से गरम कपड़े बेचने के लिए छत्तीसगढ़ के चिरमिरी पहुंचे कश्मीरी नौजवान नजाकत अली का वहां सार्वजनिक अभिनंदन हुआ क्योंकि वह हर बरस यहां पर आता तो रहता था, लेकिन पिछली बार के बाद इस बार के बीच पहलगाम के आतंकी हमले में उसने 11 लोगों की जान बचाई थी। इस विशाल देश में भले इंसानों के विशाल हृदय के उदाहरण बिखरे पड़े हैं, लेकिन जो लोग नफरत की चुनिंदा बातों को आगे फैलाकर हवा में जहर घोलना चाहते हैं, उनके लिए हर जात-धरम के कुछ मुजरिम हैं, जिनके जुर्म का निशाना दूसरे जात-धरम के लोग हैं। यह तो लोगों पर निर्भर करता है कि वे अपने बच्चों के लिए एक जहरीली हवा छोडक़र जाना चाहते हैं, या इंसानियत की बेहतर मिसालें। इस मुद्दे पर हमारे लिखने का मकसद किसी भी तरह से नफरती लोगों को प्रभावित करने का नहीं है। वे हमारे सरीखे असर से परे के लोग हैं। हम सिर्फ ऐसे दुविधाग्रस्त लोगों तक ही इंसानियत की बात पहुंचा सकते हैं, जो अभी तक नफरती खेमे का हिस्सा नहीं बने हैं, और नफरती प्रचार से प्रभावित होकर वे दुविधा की सरहद पर खड़े हुए हैं। किसी भी खेमे को चाहे वे नफरती हों, चाहे मोहब्बती, उन्हें एक-दूसरे पर अपनी ऊर्जा बर्बाद नहीं करनी चाहिए। पोप के सनातन प्रवेश, या शंकराचार्य को ईसाई बनाने की कोशिशें बेनतीजा होना तय रहती है। कोशिश उन्हीं लोगों पर की जा सकती है जिनके भीतर की इंसानियत पूरी तरह से हिंसानियत में नहीं बदल चुकी है। फैजल नाम के एक नौजवान ने शुभम नाम के एक नौजवान को डूबने से बचाकर इंसानियत को डूबने से बचा लिया, और एक अरफाज के घर को तोड़ देने वाली हिंसानियत को शिकस्त देते हुए एक कुलदीप शर्मा ने उसके घर को बनाने का बीड़ा उठा लिया, हिन्दुस्तान को इससे अधिक और चाहिए क्या? (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


