संपादकीय

छत्तीसगढ़ में विधानसभा का एक और छोटा सत्र आकर चले गया, लेकिन प्रदेश में पिछली सरकार के वक्त से खरीदी में जो व्यापक भ्रष्टाचार चले आ रहा था, और आज भी चले जा रहा है, उसकी चर्चा विधानसभा से अधिक तो अखबारों में हो रही है। केन्द्र सरकार के कहे हुए उसके एक खरीदी पोर्टल जेम के मार्फत से ही हर खरीदी करना, हर किस्म के टेंडर बुलवाना, छत्तीसगढ़ सरकार ने भी शुरू किया है, और इसके साथ ही भ्रष्टाचार का एक नया संगठित सिलसिला चालू हो गया है। अभी कई अलग-अलग खबरें बताती हैं कि जिस तरह भूपेश सरकार के वक्त दस रूपए के सामान को दो-चार सौ रूपए में लिया जाता था, आज भी जेम पोर्टल के माध्यम से कुछ वैसा ही सिलसिला जारी है। देश की सरकारें खरीदी के कोई भी तरीके निकाल लें, उनमें छेद ढूंढने का काम ठेकेदार और सप्लायर तुरंत ही कर लेते हैं। और ऐसा करके वे अफसरों का बोझ हल्का भी कर देते हैं। फिर आज की भारत की आम राजनीतिक स्थिति यह है कि सत्ता हांकने वाले नेता और अफसर बड़ी तेजी से एक भागीदारी विकसित कर लेते हैं, और इन्हें राह और तरकीब दिखाने का काम वही पुराने घुटे हुए सप्लायर और ठेकेदार करने लगते हैं जो कि पिछली कई सरकारों से यही काम करते आ रहे हैं। और तो और कई मंत्रियों के तो भ्रष्टाचार को देखने वाले पीए तक ज्यों के त्यों बने रहते हैं, उनकी किसी भी दर्जे की बदनामी सत्तारूढ़ पार्टी को नहीं दिखती।
आज छत्तीसगढ़ दो किस्म की खबरों से लबालब है, एक तो भूपेश सरकार के समय खरीदी और निर्माण में किस दर्जे का भ्रष्टाचार हुआ। उनमें से कई मामलों को लेकर अदालत में मुकदमे चल रहे हैं, और जेल सुपरिटेंडेंट से कई दर्जा ऊपर के अफसर उनकी जेलों में बंद हैं। बल्कि छत्तीसगढ़ की जेल को तो पहली बार भ्रष्टाचार के मामले में एक मंत्री रहे हुए व्यक्ति के अतिथि सत्कार का भी मौका मिल रहा है। एक भी दिन ऐसा नहीं गुजरता है जब पिछले पांच बरस की कांग्रेस सरकार के किसी भ्रष्टाचार की खबर अखबारों में न रहे, लेकिन आज की सरकार में भी जो खरीदी हो रही है, जो सप्लायर और ठेकेदार हैं, वे नई ऑनलाईन टेंडर-प्रणाली में भी पहले जैसा ही भ्रष्टाचार किए चले जा रहे हैं। अभी तो एक-एक सामान जितने महंगे दामों पर लेने की खबरें आ रही हैं, उससे यह लगता है कि राजीव गांधी ने दिल्ली से निकले हुए रूपए के जमीन तक पहुंचते हुए 17 पैसे हो जाने की जो बात कही थी, वह भी अब बीते हुए जमाने का अंदाज हो गया है। आज की सरकार में भी अफसर जो कोशिश कर रहे हैं, वे हजार रूपए के सामान को 32 हजार रूपए में लेना चाह रहे हैं, और मौजूदा भाजपा सरकार का कहना है कि वह इस तरह की कोशिशों को रोकती चल रही है। दूसरी तरफ कुछ आरटीआई एक्टिविस्ट, और पत्रकार लगातार यह भांडाफोड़ भी कर रहे हैं कि कई मामलों में खरीदी और भ्रष्टाचार आसमान छू रहा है।
अब ऐसा लगता है कि सरकार में जो अफसर-कर्मचारी स्थाई रहते हैं, उनके मन से जेल जाने का डर खत्म हो गया है। गिरफ्तार लोगों की अदालत के गलियारों की जो तस्वीरें छपती हैं, उससे भी अब लोगों की शर्म कम हो गई है। पैसे का महत्व इतना अधिक हो गया है कि लोग अपनी इज्जत और नौकरी, सबको दांव पर लगाकर अधिक से अधिक कमा लेना चाहते हैं। सबको मालूम है कि कभी भ्रष्टाचार उजागर भी होता है, तो सौ में से एक-दो मामलों की ही जांच होती है, और जांच पूरी होने के बाद सरकार से बहुत ही कम मामलों में मुकदमे की इजाजत मिलती है, और मुकदमे चलने पर बहुत ही कम लोगों को भ्रष्टाचार पर सजा हो पाती है। निचली अदालत तक भी कोई निपटारा होने में बहुत साल लग जाते हैं। अभी-अभी छत्तीसगढ़ सरकार के एक रिटायर्ड फूड अफसर के खिलाफ अनुपातहीन सम्पत्ति के मामले में मुकदमा चलाने की इजाजत मिली है जो कि यह राज्य बनने के पहले ही अविभाजित मध्यप्रदेश में रिटायर हो चुके थे। अब 82 बरस की उम्र में उस पर मुकदमा चलना शुरू होगा। यह अफसर 22 साल पहले रिटायर हो चुका है, और उस पर हुई कार्रवाई का मुकदमा अब 30 बरस बाद चलना शुरू हो रहा है। निचली अदालत के बाद सुप्रीम कोर्ट तक जाने की आजादी बाकी ही है जो कि और दस-बीस बरस गुजारने में मदद कर सकती है। कुल मिलाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार का रोकथाम का ढांचा, किसी किस्म की खुफिया निगरानी की कमी, फिर जांच और मुकदमे की बदहाली, और फिर आखिर में जाकर भारतीय न्याय व्यवस्था का लचीलापन, ये सब मिलाकर भ्रष्ट लोगों के मन में बहुत बड़ी आशा खड़ी करते हैं कि उनका कुछ बिगडऩे वाला नहीं है। छत्तीसगढ़ में नौबत अधिक खराब इसलिए है कि पिछले पांच बरस में जितने किस्म के भ्रष्टाचार के नए-नए रिकॉर्ड बने हैं, उनके मुकाबले अब की गड़बडिय़ां बड़ी छोटी लगती हैं। लेकिन खबरों में जिस तरह की बात आती है, अगर उसे तुरंत रोका नहीं गया, तो भाजपा सरकार के पांच बरस पूरे होने तक ऐसे बहुत से मामले इकट्ठे हो जाएंगे।
लेकिन हम अधिक अमूर्त बात करना नहीं चाहते, आज जेम नाम के पोर्टल के माध्यम से ही हर किस्म के टेंडर भरने की जो बंदिश लगी है, उसके चलते देश भर में जेम पोर्टल पर तरह-तरह की सेटिंग करने की खबरें आती हैं। अब छत्तीसगढ़ में अगर अफसर सवा लाख के टीवी को आदिवासी स्कूलों के लिए पांच-पांच लाख में खरीद रहे हैं, तो कैंसर का यह ट्यूमर आज नहीं तो कल किसी जांच में सामने आएगा ही। भ्रष्टाचार जब तक तैरकर सतह पर नहीं आता है, तब तक भ्रष्ट लोग अतिआत्मविश्वास में कई किस्म के और भ्रष्टाचार कर चुके रहते हैं। हम केन्द्र सरकार की भारतमाला परियोजना में छत्तीसगढ़ में हुए परले दर्जे के संगठित अपराध में हर दर्जे के अफसरों, और दोनों बड़ी पार्टियों के नेताओं, सभी को शामिल देख रहे हैं, और जेल के भीतर जिस तरह से नेता-अफसर-ठेकेदार इकट्ठा हो गए हैं, हो सकता है कि वे जेल विभाग के टेंडरों की सेटिंग करने में भी लग गए हों। छत्तीसगढ़ को भ्रष्टाचार से बचने का जो तजुर्बा लेना था, उसके बजाय भ्रष्टाचार करने के तजुर्बे को लेकर वे ही सप्लायर-ठेकेदार सरकारी विभागों पर हावी हो चुके हैं, और अब वे भारत सरकार के शुरू किए हुए जेम पोर्टल पर भी राज करते हैं। यह सिलसिला इसलिए खतरनाक है कि पूरे देश में जिस जेम पोर्टल को भ्रष्टाचार खत्म करने वाला माना जा रहा था, उसकी साख डूबते हुए टाइटेनिक जहाज सरीखी हो गई है, और सरकारी खरीदी इसी जहाज पर सवार होकर खजाने को डुबाती जा रही है। इस पर देश की सभी सरकारों को गौर करना पड़ेगा, क्योंकि यह भ्रष्ट लोगों का सबसे पसंदीदा पोर्टल बन चुका है।