संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कश्मीर पर आतंकी हमले के बाद मोदी सरकार पर हिसाब करने का भी जिम्मा
23-Apr-2025 4:37 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : कश्मीर पर आतंकी हमले के बाद मोदी सरकार पर हिसाब करने का भी जिम्मा

सैलानियों की जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर में कल जो आतंकी हमला हुआ, उसने कुछ दर्जन गैरमुस्लिमों को नहीं मारा, उसने कश्मीर के लाखों लोगों के रोजगार मार दिए, कश्मीर की मेहमाननवाजी की साख मार दी, और अमन-पसंद मुस्लिमों के लिए पूरे देश में एक फजीहत खड़ी कर दी क्योंकि इस घटना के बाद कुछ आतंकी-मुस्लिमों के किए हुए इस हमले से बाकी मुस्लिमों को भी कई किस्म की गैरजिम्मेदार तोहमतें झेलनी पड़ रही हैं। पहलगाम में देश भर से पहुंचे हुए सैलानी घूम रहे थे, और कुछ गिने-चुने आतंकी बंदूकबाज वहां पहुंचे, और लोगों को छांट-छांटकर या अंधाधुंध मारना शुरू किया। कुछ लोगों का यह तजुर्बा रहा कि उन्होंने सैलानियों का धर्म पूछ-पूछकर, छांट-छांटकर गैरमुस्लिमों को, या सिर्फ हिन्दुओं को मारा, और शायद सिर्फ मर्दों को मारा, उनके साथ की महिलाओं को छोड़ दिया। पहली नजर में इसे पाकिस्तान से आए हुए आतंकियों का किया काम माना जा रहा है, और आगे चलकर हो सकता है कि कुछ स्थानीय लोग भी उनके साथ शामिल मिलें। लेकिन गर्मी के इस मौसम में जिस कश्मीर में हर दिन लाख या लाखों लोगों के पहुंचने की उम्मीद पर्यटन से जुड़े कारोबारियों और मजदूरों को थी, वह पूरी खत्म हो गई। अब शायद ही सैलानी पहले सरीखी बेफिक्री से इस मौसम में कश्मीर जाएंगे, और शायद यही आतंकियों की नीयत भी है कि कश्मीर के रोजगार को खत्म करवाया जाए, ताकि वहां पर जनता में बेचैनी बढ़ सके, और एक बार फिर से हिंसा का माहौल बने।

यह याद रखने की जरूरत है कि कश्मीर की आज की तस्वीर पिछले कुछ बरसों के उस चबूतरे पर खड़ी हुई है जो कि इस राज्य के विभाजन, धारा 370 खत्म करने, और राज्य का पूर्ण राज्य का दर्जा खत्म करने के बाद केन्द्र के कड़े नियंत्रण से बना है। हाल के बरसों में कश्मीर में एक अभूतपूर्व शांति दिख रही थी। सतह के भीतर भी अगर लोगों के मन में कोई नाराजगी उबल रही थी, उबल रही है, तो वह कम से कम सामने नहीं आ रही। 2019 में कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करके संविधान से धारा 370 हटाने का काम मोदी सरकार ने किया था, और उस वक्त देश की विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ कश्मीर की हर पार्टी ने इसका जमकर विरोध किया था, और महबूबा मुफ्ती का वह बयान याद पड़ता है जिसमें उन्होंने कहा था कि कश्मीर घाटी में आग लग जाएगी। और 370 के हटने के बाद वहां एक पत्थर भी नहीं चला, और सुप्रीम कोर्ट ने भी मोदी सरकार के इस फैसले को सही ठहराया। हम अपने खुद के कोई तर्क यहां इस्तेमाल नहीं कर रहे, लेकिन यह बात तो साफ है कि लोकतंत्र में गिने-चुने तरीके ही परख बन सकते हैं। पहला तो यह कि जनता की कोई हिंसक प्रतिक्रिया तो नहीं है, दूसरा यह कि देश की सबसे बड़ी अदालत सरकार के इस फैसले को क्या समझती है? इन दोनों पर ही मोदी सरकार के फैसले के खिलाफ कुछ नहीं आया, इसलिए कश्मीर ने अपने विशेष दर्जे को खोकर भी हिंसा से दूर रहना तय किया, वहां चुनाव भी हुए, और फारूख-उमर अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस ने सरकार बनाई। राज्य का पूर्ण राज्य का दर्जा भी शायद जल्द ही वापिस कायम हो जाएगा। ऐसे में कश्मीर में स्थानीय राजनीतिक दलों और जनता के बीच कुछ नाराजगी रहते हुए भी अगर एक असाधारण शांति बनी हुई थी, तो यह छोटी बात नहीं थी। कल के आतंकी हमले को लेकर केन्द्र सरकार के कश्मीर में शांति के दावे को झूठा करार देना इसलिए जायज नहीं होगा कि देश के सरहदी राज्यों में कभी भी आतंकी हमले हो सकते हैं, और इनके पीछे आमतौर पर सरहद पार की ताकतों का हाथ भी हो सकता है। इसलिए कल का यह हमला चाहे कितना ही नुकसानदेह क्यों न रहा हो, उसे कश्मीर में आमतौर पर चली आ रही शांति की असफलता मानना ठीक नहीं होगा। ऐसे अकेले हमले कहीं पर भी हो सकते हैं, देश की संसद पर भी हुए हैं, मुम्बई में भी हुए हैं, और पंजाब और कश्मीर में भी हुए हैं। जिन लोगों को यह लगता है कि यह केन्द्र और राज्य की खुफिया एजेंसियों की नाकामी का सुबूत है, उसकी वजह से हुई घटना है, तो यह समझ लेना चाहिए कि खुफिया जानकारी की सफलता कभी भी नहीं दिखती है क्योंकि उसके सफल होने से कई तरह के हमले नहीं हो पाते हैं, और जनता को दिखता भी नहीं है कि क्या नहीं हो पाया। दूसरी तरफ जब कोई हमला हो जाता है, तो फिर उसे खुफिया एजेंसी की नाकामयाबी ही मान लिया जाता है।

हिन्दुस्तान के लोगों को ऐसे मौके पर आतंकियों की नीयत को पूरा करने में नहीं जुट जाना चाहिए। वे चाहते हैं कि भारत में हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच एक खाई खुद जाए, परस्पर अविश्वास फैल जाए, और अधिक बेहतर हो कि साम्प्रदायिक तनाव भी खड़ा हो जाए। इसके साथ-साथ जैसा कि हमने ऊपर जिक्र किया है कि आतंकियों का एक मकसद यह भी लगता है कि शांति से जीते हुए, और संपन्नता की तरफ बढ़ते हुए कश्मीर में बदअमनी फैले, लोग बेरोजगार हो जाएं, क्योंकि बेरोजगारों के बीच आतंकवादी हत्यारे तैयार करना अधिक आसान होता है। कल का यह हमला पाकिस्तान में चल रहे घरेलू तनाव की तरफ से ध्यान हटाने और बंटाने के लिए भी करवाया हुआ हो सकता है, क्योंकि वहां हाल के महीनों में बलूचिस्तान और दूसरी जगहों पर आतंकी हमलों में बड़ी संख्या में लोग मारे गए हैं, और कुछ घरेलू अशांति और हिंसा के लिए पाकिस्तान ने भारत पर भी तोहमत लगाई है। हो सकता है कि पाकिस्तान में बसी हुई कुछ ताकतें कश्मीर के पहलगाम के कल के हमले को अपना काम बताते हुए पाकिस्तान की घरेलू जमीन पर समर्थन और आर्थिक मदद भी जुटाने लगें।

भारत का साथ दुनिया के अधिकतर देशों ने इस मौके पर दिया है, और ऐसा लगता है कि भारत इस हमले के जवाब में अगर कोई फौजी कार्रवाई करता भी है, तो भी बहुत से देश उसे उसका हक मानेंगे। हम अभी अधिक अटकल लगाना नहीं चाहते कि इसके पीछे कौन सी ताकतें हैं, क्योंकि खुद पाकिस्तान में सरकार के काबू से परे की कुछ ऐसी ताकतें हैं, जिनसे वहां की सरकार भी परेशान है। ऐसे में भारत में कुछ सुबूतों की चर्चा चल रही है कि पाकिस्तान की किन ताकतों ने यह हमला करवाया है। आज जब अमरीका यूक्रेन पर हमला करने वाले रूस का हिमायती हो गया है, और फिलीस्तीन पर लगातार हमले करने वाले इजराइल को बम सप्लाई कर रहा है, तो भारत की इस हमले के खिलाफ की गई किसी फौजी कार्रवाई पर दुनिया में किसी का अधिक कहने का हक रह नहीं जाएगा। देखना है कि भारत सरकार इस पर किस तरह की कार्रवाई करती है। फिलहाल 2019 से अब तक कश्मीर को मोटेतौर पर जिस तरह मोदी सरकार ने संभालकर रखा था, उसे इस एक आतंकी हमले ने गड़बड़ा दिया है। इसके पीछे के लोगों की शिनाख्त करके उन पर कार्रवाई करने का एक बड़ा दबाव आज भारत सरकार पर भी है।

इन सबके बीच भारत में लोगों को एक-दूसरे धर्म के साथ प्रेम से रहना चाहिए, क्योंकि किसी एक आतंकी हमले के जवाब में अगर देश के भीतर हिंसा खड़ी होती है, तो उसमें बेकसूर मारे जाएंगे, और पूरे देश का बड़ा नुकसान होगा। आज कश्मीर की निर्वाचित राज्य सरकार के साथ मिलकर केन्द्र की मोदी सरकार को ही सब कुछ करना है, और न सिर्फ भारत के लोग, बल्कि बाकी दुनिया के लोग भी उसकी ओर देख रहे हैं। भारत की जवाबी कार्रवाई अच्छा होगा कि ठोस सुबूतों के आधार पर हो, और दुनिया के दोस्त देशों को पहले या बाद भरोसे में लिया जाए। भारत की विपक्षी पार्टियों को भी इस मौके का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए, क्योंकि हर किसी के राज में ऐसे मौके आते रहे हैं।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


अन्य पोस्ट