संपादकीय
सूप बोले तो बोले, छलनी भी बोले। अभी देश के उपराष्ट्रपति ने तमिलनाडु के गवर्नर-मामले में सुप्रीम कोर्ट पर बड़ा हमला बोला ही है, जिसकी धूल अभी बैठी भी नहीं है, कि कल भाजपा के एक मुखर सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि देश में गृहयुद्ध जैसी स्थिति के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा देश में जितने गृहयुद्ध हो रहे हैं उनके लिए सीजेआई जिम्मेदार हैं। वक्फ एक्ट की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नए कानून की कुछ बातों पर रोक लगाई है, इसे लेकर निशिकांत दुबे भडक़े हुए हैं। इसके साथ-साथ उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा से पास विधेयकों के मामले में राष्ट्रपति को कैसे निर्देश दिया है? उन्होंने कहा कि सीजेआई की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं, संसद कानून बनाती है, तो क्या संसद को भी निर्देश देंगे। निशिकांत दुबे के अलावा एक और भाजपा सांसद दिनेश शर्मा ने भी चीफ जस्टिस पर हमला किया है, और कहा है कि भारत के संविधान के अनुसार कोई भी लोकसभा और राज्यसभा को निर्देश नहीं दे सकता। इन दोनों बयानों पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा ने बीती देर रात ट्विटर पर लिखा है कि इनके बयानों से भाजपा का कोई लेना-देना नहीं है, यह इनका व्यक्तिगत बयान है, लेकिन भाजपा ऐसे बयानों से न तो कोई इत्तफाक रखती है, और न ही कभी ऐसे बयानों का समर्थन करती है। उन्होंने लिखा कि भाजपा इन बयानों को सिरे से खारिज करती है। उन्होंने यह भी लिखा कि भाजपा ने हमेशा ही न्यायपालिका का सम्मान किया है, और उनके आदेशों और सुझावों को सहर्ष स्वीकार किया है। उन्होंने लिखा कि मैंने इन दोनों (सांसदों) को, और सभी को ऐसे बयान न देने के लिए निर्देश दिया है।
अब जब संसद में बढ़-चढक़र बोलने वाले भाजपा सांसद निशिकांत दुबे इतना बड़ा बयान दे रहे हैं, तो लोगों के मन में यह संदेह भी पैदा होता है कि क्या इसे उनके ऊपर कहीं से मंजूरी मिली हुई है? एक सांसद अपने दम पर यह कह सकता है कि सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमा से बाहर जा रहा है, और देश में जितने गृहयुद्ध हो रहे हैं, उसके जिम्मेदार केवल चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस खन्ना साहब हैं? दरअसल उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने वकालत के अपने पुराने अनुभव के बावजूद, और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहने के बाद जब सुप्रीम कोर्ट पर भयानक हमला बोला है, तो वह एक किस्म से बाकी कई लोगों के लिए इशारा, उकसावा, और भडक़ावा भी हो जाता है कि वे भी लाठी लेकर सुप्रीम कोर्ट पर पिल पड़ें। कांग्रेस और एआईएमआईएम ने इसे अदालत को धमकी करार दिया है।
हम नेताओं के जवाबी हमलों की बात न भी करें, तो भी देश में 11 बरस से राज कर रहे भाजपा लीडरशिप के गठबंधन के राज में क्या सचमुच देश में कई जगह गृहयुद्ध चल रहा है? और क्या हिन्दू और मुस्लिमों के बीच कोई गृहयुद्ध चल रहा है जिसके लिए भाजपा सांसद ने सीजेआई को जिम्मेदार ठहराया है? अगर मोदी और शाह के राज में, और देश में डेढ़ दर्जन प्रदेशों में भाजपा-एनडीए के राज में अगर जगह-जगह गृहयुद्ध चल रहा है, तो निशिकांत दुबे को पहले तो पार्टी के भीतर ही इस पर बात करनी चाहिए। फिर यह बात भी हैरान करती है कि देश पर राज कर रही पार्टी का सांसद इस देश में जगह-जगह गृहयुद्ध चलने की बात कह रहा है जो कि न तो विपक्ष कह रहा है, न ही भारत के बाहर की भारतविरोधी ताकतें ऐसा कह रही हैं। और तो और खालिस्तानी भी यह नहीं कह रहे कि भारत में कोई गृहयुद्ध चल रहा है।
इसी सुप्रीम कोर्ट का दिया गया राम मंदिर का फैसला भाजपा और उसके दूसरे हिन्दू संगठनों को बहुत सुहाया। इसके बाद भी कई ऐसे दूसरे फैसले हैं जो भाजपा को बहुत पसंद आए। इसी सुप्रीम कोर्ट ने कश्मीर में धारा-370 खत्म करने को सही ठहराया, इसी अदालत ने 2016 की नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया, और भाजपा ने इस फैसले को ऐतिहासिक कहा था। राम मंदिर का जिक्र हम कर ही चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट को अलग-अलग फैसलों के वक्त अलग-अलग गालियों से नवाजना जायज बात नहीं है। अगर मुख्य न्यायाधीश चाहें तो कल अदालत शुरू होने पर निशिकांत दुबे को मुख्य न्यायाधीश, और पूरी अदालत की अवमानना के लिए कटघरे में खड़ा कर सकते हैं, जो कि पूरी तरह जायज बात होगी। और फिर उस पर निशिकांत दुबे को बचाने के लिए उनके हिमायती बड़े-बड़े दिग्गज वकील वहां जोर-आजमाइश करके देख लें, और साबित करें कि देश में गृहयुद्ध चल रहे हैं, और सीजेआई उसके लिए जिम्मेदार हैं।
देश में न्यायपालिका के फैसलों को लेकर अलग-अलग पार्टियों, धर्मों, और तबकों को अलग-अलग मौकों पर खुशी या निराशा होती ही रहती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि धनखड़ या निशिकांत दुबे के अंदाज में अदालत को उसकी औकात गिनाने के लिए ओछा हमला किया जाए। और इस मामले में तो दिक्कत यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट के साफ-साफ फैसले को असंवैधानिक बताया जा रहा है, और राष्ट्रपति को लोकतंत्र से और ऊपर की एक संस्था बताया जा रहा है। यह भी साबित करने की कोशिश की जा रही है कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राष्ट्रपति जिन कागजों पर रबर स्टॉम्प लगाते हैं, वे कागज भी लोकतंत्र से ऊपर हैं, और सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा के भी ऊपर हैं। यह सिलसिला एक गंभीर संवैधानिक व्यवस्था, और लोकतंत्र की भाषा और भावना, सबके ही खिलाफ है। जनता के बीच कुतर्कों को परोसने का काम जब उपराष्ट्रपति दर्जे का व्यक्ति करता है, और संविधान की एक गलत व्याख्या करके लोगों में गलतफहमी पैदा करता है, तो फिर उस पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए।
यह तो ठीक है, कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बिना अधिक देर किए उसी दिन अपने सांसदों की अनर्गल बातों से किनारा कर लिया है। और भी पार्टियां अपने बेकाबू और बड़बोले नेताओं को समय-समय पर इसी तरह भुगतती रहती हैं। कुछ पार्टियों को तो अपने सांसदों के खिलाफ कार्रवाई भी करनी पड़ती है, लोगों को कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर का बयान और उन पर पार्टी द्वारा की गई कार्रवाई याद होगी। एक बयान के बाद जितनी कार्रवाई होनी चाहिए थी, वह करके भाजपा ने नुकसान को बढऩे से रोका है। अभी वक्फ बोर्ड का मामला चलते ही रहेगा, और किसी एक धर्म के लोगों, या दूसरे धर्म के लोगों को यह पसंद आ सकता है, या नापसंद भी। इसलिए सभी पार्टियों को अपने लाउडस्पीकरों को रोककर रखना चाहिए, और इसके लिए उन्हें और कोई रास्ता न सूझे, तो हॉलीवुड की एक फिल्म द साइलेंस ऑफ द लैम्बस देखनी चाहिए, जिसका एक मानवभक्षी किरदार भारत की पार्टियों को सुझा सकता है कि वे अपने नेताओं को काबू में कैसे रखें। इसमें मानवभक्षी हो गए एक मुजरिम को पुलिस हथकड़ी-बेड़ी में जकडक़र रखती है, फिर भी वह एक पुलिसवाले को खा जाता है। इसके बाद उसके मुंह को एक ऐसा मास्क लगाकर बांधा जाता है कि वह किसी और को न खा सके। पार्टियों को अपने नफरत फैलाने वाले या बड़बोले लोगों के लिए हॉलीवुड से ऐसे मास्क बुलवाने चाहिए, इससे ट्रम्प भी खुश होगा क्योंकि भारत और अमरीका के बीच का व्यापार संतुलन इससे दूर होगा। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)