संपादकीय
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप से कल हुई मुलाक़ात में जो मतभेद सामने आए वे वैचारिक नहीं थे, तथ्यों को लेकर थे। यूक्रेन के मुद्दे पर ट्रंप उसी तरह आदतन झूठ बोलते रहे जिस तरह वे अमरीका के भीतर के अनगिनत मुद्दों पर बोलते रहे हैं, और बाक़ी दुनिया के बारे में भी झूठ बोलने का उनका लंबा इतिहास है। ट्रंप ने जब यह कहा कि यूरोपीय देशों ने यूक्रेन को फ़ौजी मदद दी थी और इसके बदले में वे यूक्रेन से अब पैसे वसूल रहे हैं तो मैक्रों ने मीडिया की मौजूदगी में ही ट्रम्प को दुरुस्त किया और कहा कि यूरोप यूक्रेन से उसे दी गई फौजी मदद को वापिस नहीं ले रहा है बल्कि उसने जो हिस्सा यूक्रेन को कर्ज की शक्ल में दिया था उसे ही वापस लेगा। यह सुनकर ट्रम्प चुप रहे और हामी भरते रहे। मतलब यह कि उनके पास मैक्रों के कहे हुए का कोई जवाब नहीं था। ट्रंप योरप से यूक्रेन-रूस मुद्दे पर और टैरिफ जैसे दूसरे कई मुद्दे पर भी ठीक उसी तरह दूर होते चले जा रहे हैं जिस तरह आज धरती के ध्रुवों पर बड़े-बड़े हिमखंड अलग होकर बह जा रहे हैं। योरप के एक सबसे बड़े देश फ्रांस के राष्ट्रपति की ट्रंप से मुलाकात योरप के साथ उनका पहला बड़ा औपचारिक संपर्क था और इसमें जिस तरह मीडिया के कैमरों के सामने यूक्रेन की खदानों पर कब्जे की अमरीकी खूनी नीयत उजागर हुई है उससे भी ट्रम्प जैसे बेशर्म को कोई फर्क पड़ता हो ऐसा नहीं लगता। ट्रम्प दशकों बाद एक बहुत ही प्यासे साम्राज्यवादी देश की तरह खुलकर सामने आए हैं और पूरी दुनिया में लोकतंत्र को बढ़ावा देने का अमरीका का पुराना नारा उन्होंने पैरों तले रौंद दिया है।
ट्रंप की शक्ल में अमरीकी वोटरों ने अपने ख़ुद के लिए चार बरसों की एक बहुत ही घटिया दर्जे की मुसीबत चुनी है, और दुनिया के लिए एक ऐसा तानाशाह चुना है जो एक ऐतिहासिक देश फ़िलिस्तीन की दसियों लाख जनता को उठाकर उसके पड़ोसी देशों में फेंक देने पर आमादा है, और जो फ़िलिस्तीन को एक रियल एस्टेट प्रोजेक्ट बनाना चाहता है, किसी भी दूसरे ट्रम्प टावर को तरह। दुनिया ने ऐसा कोई देश देखा नहीं था जो कि इस बेशर्मी के साथ किसी देश को मलबे का ढेर बताते हुए उसे वहाँ के नागरिकों के बिना, सैलानियों के लिए एक शानदार सैरगाह बनाने की बात इस बेशर्मी से करता हो जिस बेशर्मी से किसी देश के सबसे बड़े बाहुबलि दूसरों की जमीन पर अवैध कब्जा करके इमारत बनाते हैं। ट्रंप ने पिछले अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन के कार्यकाल में अमरीका से रूस को भेजी गई सैनिक मदद का बिल बनाकर यूक्रेन को थमा दिया है, और हिंदुस्तान को कोई हैरानी होनी नहीं चाहिए कि 1960 के दशक में अमरीका से भारत को मिले हुए अनाज की मदद के एवज में ट्रंप भारत के ताजमहल पर कब्जे का एक नोटिस भेज दें। भारत में उस वक्त भुखमरी की नौबत थी और अमरीका ने उसके पास का जरूरत से अधिक गेहूं भारत को रियायती दाम पर दिया था, ट्रंप हो सकता है कि पिछली एक सदी में अमरीका से जिस देश को जो मदद मिली हो उसके खाता बही देखकर बिल बनाने में रातों की नींद ख़राब कर रहा हो।
ट्रंप इक्कीसवीं सदी की सबसे बड़ी मिसाल है, कि कोई एक देश अपना नेता चुनते हुए किस तरह बाक़ी दुनिया पर एक तानाशाह थोप सकते हैं। अमरीकियों ने पूरी दुनिया के लिए बर्बादी लाने वाला यह जो चुनाव किया है इसके लिए अगले चार बरस वे ख़ुद भी अफ़सोस करेंगे ऐसा लगता है क्योंकि अमरीका के भीतर ट्रंप के फ़ैसले लोगों को जिस बड़े पैमाने पर बेरोज़गार कर रहे हैं वह भयानक है, इसके अलावा अमरीका का जो तबका लोकतांत्रिक मूल्यों की बात करता है वह गहरे सदमे का शिकार है कि उनका देश आज देश के भीतर और देश के बाहर किस हद तक अलोकतांत्रिक, हमलावर, और दूसरे के खून का प्यासा फौजी तानाशाह बन चुका है।
ट्रंप ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दुनिया की तस्वीर को ऊन के बहुत उलझे हुए लच्छे के तरह करके रख दिया है जिसमें भविष्य का कोई सिरा किसी को न दिखायी पड़ रहा है, न समझ आ रहा है। ट्रंप की चुनावी जीत के बाद भी दुनिया में कौन यह सोच सकते थे कि महीने भर के भीतर ही ट्रंप अमरीका के परंपरागत और लंबे समय के साथियों, नाटो के सदस्यों को कचरे की टोकरी में फेंककर रूस के साथ हो जाएगा और चीन अमरीका के इस रुख की तारीफ़ करने लगेगा। यूक्रेन एक हैरतअंगेज मिसाल बन गया है कि दुनिया की तीनों महाशक्तियां किस तरह एक साथ आ गई है, और दुनिया में अब शक्ति संतुलन के पुराने तमाम गणित फेल हो गए हैं। यह कुछ वैसा ही हुआ है कि धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के चुंबक के दो सिरे मिलकर एक हो जाएं और दुनिया के अंतरराष्ट्रीय संबंध गाजा के मलबे में तब्दील हो जाएं। ट्रंप की मनमानी, बेदिमागी, और तानाशाही ने दुनिया को आज विश्व इतिहास के सबसे बड़े असमंजस के सामने खड़ा कर दिया है, दुनिया के कोई भी महत्वपूर्ण देश ऐसी नौबत की कल्पना भी नहीं कर पाए होंगे। ख़ुद इजराइल ने भी आज तक अपने सबसे सुखद सपने में भी यह नहीं सोचा था कि फ़िलिस्तीनियों को उनके गाजा से बाहर कर वहाँ पर कोई सैरगाह बनायी जा सकती है। ट्रंप अपने दोस्तों के सुखद सपनों से अधिक, और उनके दुःस्वप्नों से अधिक, दोनों किस्म की नौबत दुनिया पर उसी अंदाज़ में थोप रहा है जिस तरह उत्तर भारत में एक आम हिन्दुस्तानी सड़क पर तंबाकू की पीक उगल देता है। इस सनकी, बदजुबान वाले तानाशाह ने धरती को अपनी सनक का पीकदान बना छोड़ा है और वह धरती के ग्लोब को अपनी मेज पर घुमा-घुमाकर देख रहा है कि वह अगली पेशाब किस देश पर करे।