संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : किस प्रदेश का नैतिक हक है दूसरे प्रदेश में होते बलात्कार पर सवाल उठाने का?
20-Aug-2024 5:36 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : किस प्रदेश का नैतिक हक है दूसरे प्रदेश में होते बलात्कार  पर सवाल उठाने का?

देश में जब महिलाओं और लड़कियों की हिफाजत की गारंटी देने वाले उनके भाईयों का राखी-त्यौहार चल रहा था, तब तमिलनाडु की एक खबर आई कि वहां कृष्णागिरी नाम की जगह पर एक निजी स्कूल के प्रिंसिपल ने एक फर्जी एनसीसी कैम्प लगाया, उसमें 13 साल की एक छात्रा के साथ रेप हुआ, और 12 अन्य छात्राओं का यौन-शोषण हुआ। स्कूल में एनसीसी की ईकाई नहीं थी, और प्रिंसिपल ने कुछ बाहरी लोगों के साथ मिलकर एक फर्जी एनसीसी कैम्प लगाया जिसमें 41 छात्र-छात्राओं को शामिल किया गया। इसमें 17 लड़कियां थीं, जिनमें से 13 का यौन-शोषण हुआ। अभी कोलकाता में मेडिकल छात्रा के साथ हुए बलात्कार और उसकी हत्या पर देश विचलित है ही, इस बीच यूपी और बिहार में दलित नाबालिग लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार हो रहा है, अभी हमारे सामने यूपी के प्रयागराज का एक वीडियो है जिसमें बंदूक की नोंक पर एक महिला को बाल पकडक़र घसीटकर ले जाया जा रहा है, यूपी की ही एक दूसरी खबर है कि भाई को राखी बांधने जा रही महिला को रास्ते में रोककर उसे लूटा गया, और विरोध करने पर उसके साथ जा रहे उसके जेठ को गोली मार दी गई। महिलाओं के खिलाफ सेक्स-जुर्म की खबरों से मीडिया पटा हुआ है, और दो-चार दिन के भीतर ही छत्तीसगढ़ में बलात्कार और सेक्स-शोषण, और अश्लील संदेश भेजने वाले कई प्रिंसिपल, हेडमास्टर, शिक्षक गिरफ्तार किए गए हैं। सवाल यह है कि जिन देशों में असली या मुंहबोले भाई-बहनों के संबंधों को प्रचारित करने वाला राखी जैसा कोई त्यौहार नहीं है, वहां लड़कियों और महिलाओं के साथ इस तरह के जुर्म नहीं होते हैं। यह मामला कुछ उसी तरह का लगता है कि उत्तर भारत की जिन नदियों को मां मानकर उनकी पूजा होती है, वहां पर उनका पानी प्रदूषण से सड़ गया है, और उसमें नहाना भी महफूज नहीं है। दूसरी तरफ उत्तर भारत में जहां पर नदियों को लेकर किसी तरह की मां-बहन की भावना नहीं है, वहां पर पानी ऐसा साफ दिखता है कि नदी या झील की तलहटी की रेत के कण भी गिन लें।

तमिलनाडु जैसे पढ़े-लिखे और विकसित राज्य में स्कूल-कॉलेज बाकी भारत से बेहतर माने जाते हैं, और वहां पर अगर फर्जी एनसीसी कैम्प लगाकर लड़कियों का ऐसा शोषण किया गया है, तो यह बहुत अधिक हैरान और हक्का-बक्का करने वाली घटना है। अधिक सदमा इस बात से भी पहुंचता है कि जब एक छात्रा ने कैम्प आयोजक शिवरामन द्वारा अपने यौन-शोषण की शिकायत प्रिंसिपल से की, तो प्रिंसिपल ने उसे अनसुना कर दिया, और घटना को छिपाने की कोशिश की। इसके बाद लडक़ी ने अपने मां-बाप को बताया तो वे पुलिस के पास गए, और तब इस मामले का भांडाफोड़ हुआ। इसमें 11 लोग गिरफ्तार हुए हैं जिसमें फर्जी एनसीसी कैम्प आयोजक, प्रिंसिपल, दो टीचर, और एक पत्रकार भी शामिल हैं। शुरू में मामले को दबाने में लगे स्कूल के लोगों पर अब नाबालिग छात्राओं की मेडिकल कॉलेज के बाद पॉक्सो एक्ट के तहत भी कार्रवाई हुई है।

बंगाल की घटना को लेकर देश भर में भूचाल आया हुआ है, और कई दूसरे प्रदेशों में सत्तारूढ़ पार्टियां बंगाल की ममता बैनर्जी सरकार पर हमले कर रही हैं। कोलकाता के मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में जितना भयानक रेप-मर्डर हुआ है, उसके चलते देश में यह भूचाल स्वाभाविक है। लेकिन इसे सिर्फ  बंगाल की घटना मानकर छोड़ देना ठीक नहीं होगा। देश भर में तकरीबन हर प्रदेश में महिलाओं की हालत एक जैसे खतरे में हैं। लोगों को याद होगा कि मणिपुर में आदिवासी महिलाओं के साथ जो सामूहिक और सार्वजनिक यौन-शोषण हुआ था, उस पर वहां के भाजपा मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के टेलीफोन कॉल की बातचीत की जो रिकॉर्डिंग जांच आयोग को दी गई है, उसमें ऐसे सेक्स-जुर्म के लिए उनका बर्दाश्त साफ-साफ दिखाई पड़ता है। सीएम ने एक बैठक में आदिवासी महिलाओं को बिना कपड़े उनके बदन के साथ खेलते हुए हिंसक भीड़ जिस तरह का बर्ताव कर रही थी, सीएम उसे न्यायोचित ठहराते सुनाई देते हैं। सत्तारूढ़ और दूसरे राजनीतिक दलों का इस तरह का हाल बहुत से प्रदेशों में दिखाई पड़ता है, कहीं कम, कहीं ज्यादा। कुल मिलाकर हालत यह है कि महिलाओं पर होने वाले रेप से अगर कोई राजनीति न सधे, तो फिर ऐसी शिकार महिलाओं के साथ कोई नेता और पार्टियां खड़े भी न हों। यह तो पार्टियों को एक-दूसरे पर हमला करने का मौका मिलता है, बलात्कार की शिकार लडक़ी या महिला के तबके से हमदर्दी दिखाते हुए, दरअसल उसे भडक़ाने का मौका मिलता है, इसलिए कहीं जुलूस निकलते हैं, तो कहीं मोमबत्तियां जलती हैं। बहुत से नेता, और सामाजिक आंदोलनकारी सच्ची हमदर्दी के साथ भी महिलाओं के साथ खड़े रहते हैं। यह पूरा सिलसिला देश में स्थाई रूप से पैर जमा चुका एक परले दर्जे का पाखंड साबित करता है, और इससे यह देश कैसे उबर पाएगा, यह सोच पाना भी मुश्किल है। अलग-अलग राज्यों और देश की संवैधानिक संस्थाओं का रूख भी अलग-अलग पार्टियों के राज वाले प्रदेशों के एक सरीखे बलात्कार को लेकर इतना अलग-अलग रहता है कि लगता है कि देश के कुछ राज्य विदेश हैं। देश में जिस वक्त महिला आयोग, मानवाधिकार आयोग, अनुसूचित जाति आयोग, और अनुसूचित जनजाति आयोग, अल्पसंख्यक आयोग की धारणा शुरू हुई, उस वक्त किसी को यह अंदाज भी नहीं था कि ये संस्थाएं उनमें मनोनीत करने वाले नेताओं की पार्टियों के प्रकोष्ठ सरीखी होकर रह जाएंगी। अब जब देश भर में यही हाल चल रहा है, तो किस सरकार को अधिक बुरा कहा जाए? सच तो यह है कि जब तक संवैधानिक संस्थाओं को राजनीतिक मनोनयनों से बाहर नहीं किया जाएगा, तब तक सरकारों से सवाल करना बड़ा मुश्किल होगा। हम पिछले कई बरस से यह बात उठाते आ रहे हैं, और देश में हर कुछ हफ्तों में ऐसी घटना होती है जो कि इसकी अधिक जरूरत साबित करती है। फिलहाल किसी प्रदेश में हुई घटना पर वहां की सत्तारूढ़ पार्टी के विरोधी नेताओं का देश भर से जाकर गिद्धों की तरह मंडराना, उनकी अपनी पार्टी के राज वाले प्रदेशों की घटनाओं पर भी सवाल उठाता है। भारतीय राजनीति को देखने वाले लोगों को नीयत की ऐसी बेईमानी जरूर समझनी चाहिए।  

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