संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : हिंसा में बदलती मोहब्बत को भारत में समझने की जरूरत
12-Aug-2024 5:15 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  हिंसा में बदलती मोहब्बत को  भारत में समझने की जरूरत

एक अजीब सी खबर सामने आई है जिसमें एक शादीशुदा महिला पति को छोडक़र अलग रह रही थी, फिर उसका किसी और से प्रेमसंबंध हो गया, और वह प्रेमी के साथ रहने लगी। इस बीच उसने अपने तीन बच्चों को मां-बाप के घर छोड़ दिया, और जिला अदालत में बच्चों के गुजारे के लिए उसने पति पर मुकदमा करके मासिक खर्च हासिल करना भी शुरू कर दिया था। त्रिकोण के ये तीनों कोने एक ही जाति के भी हैं। और संबंधों का बनना-बिगडऩा परिवारों की जानकारी में भी था। इस मामले में दिलचस्प मोड़ तब आया जब पति और प्रेमी दोनों इस महिला से थक गए थे, और उन्होंने मिलकर कोई एक हिन्दी फिल्म देखी, उससे कत्ल करने का तरीका समझा, और फिर पति और प्रेमी ने मिलकर इस महिला का कत्ल कर दिया। मामला कुछ अजीब सा है, और यह इंसानी रिश्तों की जटिलता को बताता है। इस तरह के मामलों को महज पुलिस और अदालत का सामान मानना ठीक नहीं होगा, और समाज को, लोगों को इससे कुछ सीखना चाहिए। इस तरह के कई दूसरे मामले भी सामने आए हैं जिनमें अधिकतर मामलों में पति ही पत्नी की हत्या करते हैं, लेकिन कुछ मामले ऐसे भी हुए हैं कि नशे में धुत्त पति को पत्नी ने ही मार डाला। कुछ मामले ऐसे भी हुए कि पत्नी ने प्रेमी के साथ मिलकर पति का कत्ल कर दिया। ऐसी तमाम किस्म की विविधता पारिवारिक हिंसा में देखने में मिलती है। और इस बारे में सोचने की जरूरत है कि इसके पीछे की कौन सी सामाजिक वजहें हैं?

हिन्दुस्तान के एक बड़े हिस्से में आज भी परिवार ही शादियां तय करते हैं। युवक-युवतियों को बस हाँ कहना होता है, क्योंकि बहुत से मामलों में लड़कियां आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होतीं, और लडक़े भी बेरोजगार रहते हुए मां-बाप के पैसों पर पलते रहते हैं। ऐसी शादियां परिवार करवा तो देते हैं, लेकिन रिश्ता तय करने के मां-बाप के पैमाने अलग रहते हैं, और खुद लडक़े-लडक़ी की हसरतें एक पीढ़ी बाद वाली रहती हैं, और हो सकता है कि बेमेल की शादी में ये हसरतें पूरी न होती हों। इसलिए मां-बाप की करवाई शादी में निभने की अलग वजहें रहती हैं, और कई वजहें न निभने की भी रहती हैं। दुनिया के जिन देशों में नौजवान अपनी मर्जी से शादी करते हैं, वहां शादियां अधिक सुखी रहती हैं, रिश्ते टूटने पर तलाक कम हिंसक रहते हैं, और दोनों ही जोड़ीदारों की नई जिंदगी शुरू होने की गुंजाइश अधिक रहती है। दुनिया के बहुत से विकसित देशों में लोग इस बात की परवाह भी नहीं करते कि किसी महिला के बच्चे का पिता कौन है, और वह महिला उसके साथ शादीशुदा है या नहीं? लोग किसी से यह भी नहीं पूछते कि वे तलाकशुदा हैं, या दूसरी या तीसरी बार शादी करने वाले। लेकिन प्रेमसंबंधों और शादियों में हिंसा वहां कम होती है, वह जुर्म तक नहीं पहुंचती, और लोग समय रहते अलग हो जाते हैं, और आगे अपनी-अपनी जिंदगी की तरफ देखते हैं। हिन्दुस्तान में बहुत से मामलों में भूतपूर्व प्रेमी या भूतपूर्व पति महिला को अपनी खानदानी जमीन मानते हुए उस पर काबिज रहना चाहते हैं, और अलग होने पर भी वे अगले रिश्ते से रश्क करते हुए उसके खिलाफ हिंसा पर उतारू रहते हैं। हिन्दुस्तान में जहां पर हिन्दू समाज में मृत पुरखों का पिंडदान करके उनसे स्थाई मुक्ति पा लेने का धार्मिक रिवाज है, वहां पर लोग भूतकाल के अपने संबंधों की फिक्र करते हुए अपने वर्तमान और भविष्य दोनों को तबाह करने पर आमादा दिखते हैं। बहुत से लोग फेसबुक पर अपनी पूर्व पत्नी या पूर्व प्रेमिका की पोस्ट को पसंद करने वाले, या उस पर टिप्पणी करने वाले लोगों को देखकर फिर यह देखने की कोशिश भी करते हैं कि वे लोग कौन हैं। लोगों को जब अपने भूत से पीछा छुड़ा लेना चाहिए, और वर्तमान में कहीं और सुख जुटाना चाहिए, तब लोग बैक व्यू मिरर में देखते हुए गाड़ी आगे चलाते हैं, और टक्कर की नौबत में पहुंच जाते हैं। यही सिलसिला हिन्दुस्तान में टूटे हुए, या टूटते हुए रिश्तों को हिंसा और जुर्म तक पहुंचा देता है। कानूनी रूप से अलग होकर, या प्रेमसंबंध तोडक़र लोग बाकी जिंदगी सुख-चैन से जिएं, उतनी समझदारी कम लोग दिखाते हैं, और बहुत से लोग किसी वर्तमान देह से लिपटने के बजाय भूत से लिपटे हुए अपना जीना हराम करते रहते हैं।

चूंकि भारत की तकरीबन तमाम आबादी आस्थावान और धर्मालु है, नास्तिक बिल्कुल उंगलियों पर गिने जाने लायक हैं, इसलिए यह माना जाना चाहिए कि प्रेम और पारिवारिक संबंधों में हिंसा करने वाले सारे ही लोग आस्तिक हैं, किसी न किसी धर्म को मानते हैं, और उनका धर्म उन्हें ऐसी हिंसा करने से नहीं रोकता। यह सवाल कम वजनदार नहीं है कि हिन्दुस्तानी जिंदगी में एक सबसे महत्वपूर्ण पहलू बना हुआ धर्म लोगों को हिंसक बनने से क्यों नहीं रोक पाता? इस बारे में लोगों को इसलिए भी सूचना चाहिए कि अधिकतर परिवारों का ढांचा एक जाति, या कम से कम एक धर्म के भीतर रहता है, चारों तरफ प्रवचन चलते रहते हैं, टीवी पर दर्जनों धार्मिक और आध्यात्मिक चैनल रात-दिन नसीहतें उगलते रहते हैं, घर-घर में धार्मिक किताबें भरी रहती हैं, और इसके बाद भी लोग इतने हिंसक बने रहते हैं। यहां पर यह बात भी याद आती है कि योरप में जो देश सबसे अधिक नास्तिक हो चुके हैं, वे ग्लोबल हैप्पीनेस इंडेक्स पर सबसे ऊपर हैं। वे देश धर्म से परे हैं, धार्मिक कट्टरता, साम्प्रदायिकता वहां की जिंदगी सी हट चुकी है, जाति व्यवस्था वहां है नहीं, समाज इतना उदार है कि किसी की निजी जिंदगी के बारे में लोगों की उत्सुकता नहीं है, और वैसे लोग दुनिया में सबसे अधिक खुश भी हैं। इधर हिन्दुस्तान में सात जनम तक साथ निभाने की कसमों के साथ, सात फेरों के साथ लोगों की शादियां होती हैं, और बहुत से जोड़ों में बिना प्रेम शादी करवा दी जाती है, और उनकी जिंदगी में किसी प्रेम का मौका आ भी नहीं पाता। कुछ जोड़े प्रेम के साथ, प्रेम के बाद शादीशुदा जिंदगी शुरू करते हैं, और रोज की दिक्कतों के चलते वह प्रेम भी जल्द ही काफूर हो जाता है।

अभी जिस ताजा घटना को लेकर हमने इस मुद्दे पर लिखना जरूरी समझा, उसमें तो एक महिला पति को छोडक़र निकली, और कोई प्रेमी तलाशा। बाद में पति और प्रेमी दोनों उससे इतने थक गए, कि दोनों ने मिलकर एक फिल्म बार-बार देखकर, उसी फिल्मी अंदाज में उस महिला का कत्ल कर दिया। अब भला कोई बेवफा भी हो, तो किसके भरोसे हो? जिसे छोड़ा वह, और जिसे पकड़ा वह, दोनों कत्ल में भागीदार हो गए! गजब की कहानी है, समाज के लोगों को इससे सबक लेना चाहिए। 

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