संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ढाका और दिल्ली के दिल मिलना दोनों के लिए जरूरी
10-Aug-2024 8:32 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :   ढाका और दिल्ली के दिल  मिलना दोनों के लिए जरूरी

बांग्लादेश के ताजा हालात पर न सिर्फ हिन्दुस्तान की बल्कि बाकी दुनिया की भी नजरें लगी हुई हैं। हिन्द महासागर के इस क्षेत्र में दो बड़ी ताकतों, भारत और चीन के बीच तो भारत के हर सरहदी देश के साथ संबंधों का मुकाबला चलते रहता है। सिर्फ पाकिस्तान ऐसा है जिससे भारत के रिश्ते सुधरने का माहौल नहीं है, लेकिन उससे परे बाकी तमाम देशों में, म्यांमार, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, और श्रीलंका के साथ ये दोनों देश सतह के ऊपर और सतह के नीचे मुकाबले में लगे रहते हैं। अपनी राजनीतिक अस्थिरता, और ऐतिहासिक सत्तापलट के चलते आज बांग्लादेश इन दो बड़ी आर्थिक ताकतों के बीच ताजा अखाड़ा बन सकता है। ऐसे में यह बात भी बहुत मायने रखेगी कि बांग्लादेश की नई सरकार भारत के बारे में क्या रूख रखती है। शेख हसीना की अवामी लीग की जिस सरकार को हटाया गया है, उसके साथ भारत के रिश्तों को लेकर, हसीना विरोधियों के बीच खुली नाराजगी है कि भारत ने ढाका की इतनी भ्रष्ट और तानाशाह हुकूमत का जरूरत से आगे बढक़र समर्थन किया था, और आज भी शेख हसीना को भारत ने फिलहाल तो जगह दी हुई है। लेकिन बांग्लादेश से भारत को लेकर दो किस्म के अलग-अलग बयान सामने आ रहे हैं, इन्हें बारीकी से समझने की जरूरत है।

बांग्लादेश में एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री रहीं खालिदा जिया को शेख हसीना ने जेल में डाल रखा था, और हसीना के देश छोडक़र भाग जाने के बाद वहां खालिदा जिया को जेल से रिहा कर दिया गया है। उन्होंने बांग्लादेश को एक लोकतांत्रिक और सभी धर्मों के सम्मान वाला देश बनाने का आव्हान किया है, और उन्होंने धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमलों के खिलाफ चेतावनी दी है। करीब 80 बरस की हो चलीं खालिदा जिया को हसीना सरकार में 2018 में भ्रष्टाचार के आरोप में 17 साल कैद सुनाई गई थी। अब हसीना की विदाई के बाद राष्ट्रपति ने अपने हुक्म से ही खालिदा जिया को रिहा कर दिया है, और उनका बेटा भी देश के नए हालात में सत्ता के करीब रहने की कोशिश कर रहा है। लेकिन खालिदा जिया के इस बयान को समझने की जरूरत है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले नहीं होने चाहिए। अगर यह एक ईमानदार बयान है, और सिर्फ जुबानी जमाखर्च नहीं है, तो इससे बांग्लादेश में आज हिन्दुओं और हिन्दुस्तानियों पर हो रहे हमलों के घटने की उम्मीद की जा सकती है। इसके अलावा बांग्लादेश के नोबल शांति पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री मुहम्मद यूनुस ने योरप से लौटकर नई सरकार के मुखिया की हैसियत से सलाहकार का एक अभूतपूर्व पद मंजूर तो किया है, लेकिन उन्होंने देश में चल रही सभी तरह की हिंसा को तुरंत रोकने की अपील की है जिसमें धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हो रहे सांप्रदायिक हमले शामिल है। एक वीडियो में यूनुस बोलते दिख रहे हैं कि अगर अल्पसंख्यकों पर हमले नहीं थमेंगे, तो वे इस्तीफा दे देंगे। यह बात अधिक मायने इसलिए रखती है कि आज बांग्लादेश में सत्ता को संभालने, और हालात को सुधारने के लिए वे अकेले काबिल व्यक्ति माने जा रहे हैं, और जिन छात्रों के आंदोलन की वजह से हसीना की रवानगी हुुई है, उन छात्रों की एक मांग यह भी थी कि मुहम्मद यूनुस सरकार के मुखिया बने। और ऐसे में अगर वे अल्पसंख्यकों पर हमले रोकने के लिए इस्तीफे तक की धमकी दे रहे हैं, तो फिर इसे उनकी एक गंभीर कोशिश ही मानना चाहिए। उन्होंने साफ-साफ कहा है कि इन हमलों को रोके बिना मेरी कोशिशें बेकार जाएंगी, और अधिक अच्छा तो यह होगा कि ऐसे में मैं सामने से हट ही जाऊं। अभी यूनुस ने छात्र नेताओं, फौज, और राष्ट्रपति, इन सबकी अपील पर सलाहकार की शक्ल में सरकार का मुखिया बनना मंजूर किया है, और साथ-साथ यह भी कहा है कि अगर अल्पसंख्यकों पर हमले जारी रहते हैं, तो यह ताजा क्रांति बेकार हो जाएगी। उन्होंने इसे 1971 के बांग्लादेश निर्माण के बाद की दूसरी क्रांति कहा है। उन्होंने देश की तरक्की के लिए हिंसा से दूर रहने की जरूरत भी करार दी है।

अब खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के एक वरिष्ठ नेता और देश के मंत्री रह चुके खांडकर मुशर्रफ का बयान भी गौर करने लायक है। उन्होंने कहा है कि शेख हसीना के ढाका से चले जाने के बाद भारत ने जिस तरह से उनकी मेजबानी की गई वो चिंता को बढ़ाने वाला है। उन्होंने पार्टी की तरफ से कहा कि भारत फिर से हसीना की सत्ता में वापिसी चाहता है। और इसके लिए उनका समर्थन कर रहा है, और यह बात ठीक नहीं है। उन्होंने उम्मीद जताई कि भारत सरकार अब शेख हसीना और उनकी अवामी लीग पार्टी को समर्थन देना जारी नहीं रखेगी। इस पार्टी के उपाध्यक्ष ने भी कहा कि अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक भारत की मर्जी है कि वह जिसे चाहे शरण दे, लेकिन बांग्लादेश के लोग उम्मीद करते हैं कि भारत सरकार अवामी लीग जैसे भ्रष्ट और तानाशाहीभरे शासन का हमेशा समर्थन नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में यह बात सभी को पता है कि अवामी लीग की सरकार जनता की गहरी नाराजगी के बावजूद इतने समय तक इस बड़े पड़ोसी के समर्थन की वजह से ही टिकी रही। हालांकि उन्होंने बांग्लादेश में चल रहे, इंडिया आऊट अभियान, के बारे में कहा कि यह छुटपुट और अस्थाई घटनाएं हैं, और न तो बांग्लादेश के लोग, और न ही बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ऐसे अभियान का समर्थन करती है।

भारत के लिए यह मौका बड़ी कूटनीतिक समझदारी को दिखाने का इसलिए है कि यह न सिर्फ उन हजारों भारतीयों की हिफाजत का मुद्दा है जो कि बांग्लादेश में काम कर रहे हैं, या बसे हुए हैं, उससे अधिक बढक़र यह मामला भारत में बसे हुए करोड़ों बांग्लादेशियों का है जो कि 1947 में भी शरणार्थी होकर भारत आए, 1971 में भी आए, और जिनका वहां से आना-जाना, भारत में कमाना-खाना लगातार चलते ही रहता है। बांग्लादेश में अगर हिन्दुओं और हिन्दुस्तानियों के साथ जुल्म अधिक होंगे, तो भारत में भी बांग्लादेश से आए और कानूनी दर्जा प्राप्त, या गैरकानूनी बसे लोगों के खिलाफ उसकी हिंसक प्रतिक्रिया हो सकती है जो कि देश की कानून व्यवस्था के लिए बहुत बड़ा खतरा रहेगी। इसलिए न सिर्फ बांग्लादेश की जमीन पर अभी मौजूद हिन्दुओं और हिन्दुस्तानियों की फिक्र करते हुए, बल्कि हिन्दुस्तान में अराजक नौबत आने से रोकने के लिए भी भारत सरकार को बांग्लादेश की नई सरकार के साथ अपने रिश्तों में बड़ी सावधानी बरतनी पड़ेगी। और किसी भी पड़ोसी देश के साथ भारत के ऐसे गहरे ताल्लुकात नहीं हैं, और भारत की जमीन पर अवैध बांग्लादेशियों का मुद्दा दशकों से एक राजनीतिक मुद्दा चले आ रहा है, जो अभी सुलझने के आसपास भी नहीं है, और इन्हीं से निपटने के लिए भारत में एक नया कानून भी बनाया गया है जिस पर अमल अभी पूरी कड़ाई से नहीं की गई है।

चीन की सीधी दखल के लिए बांग्लादेश में आज जो माहौल बना हुआ है, उसे पूरी तरह अनदेखा करना भी भारत के सरहदी हितों के लिए सही नहीं होगा। हमें पूरी उम्मीद है कि भारत सरकार इन जटिलताओं को समझ रही होगी, और हो सकता है कि भारत में नागरिकों का जो रजिस्टर बनाया जा रहा है, खासकर असम में जो एनआरसी डिटेंशन सेंटर बनाए गए हैं, वैसे अतिउत्साही काम भी शायद कुछ अरसे के लिए धीमे करने पड़े। फिलहाल न सिर्फ बांग्लादेश, बल्कि भारत के नागरिकों में सजग तबका भी गौर से यह देख रहा है कि भारत सरकार पड़ोस की इस बदली हुई हकीकत के साथ किस तरह रिश्ता कायम कर पाती है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 


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