दुर्ग
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भिलाई नगर, 8 नवंबर। शुक्रवार को भारत के राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् - जिसका आशय है माँ, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ- की 150वीं वर्षगाँठ थी।
यह रचना, अमर राष्ट्रगीत के रूप में स्वतंत्रता सेनानियों और राष्ट्र निर्माताओं की अनगिनत पीढिय़ों को प्रेरित करती रही है और यह भारत की राष्ट्रीय पहचान और सामूहिक भावना का चिरस्थायी प्रतीक है। वंदे मातरम् पहली बार साहित्यिक पत्रिका बंगदर्शन में 7 नवंबर 1875 को प्रकाशित हुआ था। बाद में, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने इसे अपने अमर उपन्यास आनंदमठ में शामिल किया, जो 1882 में प्रकाशित हुई।
रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे संगीतबद्ध किया था। यह देश की सभ्यतागत, राजनीतिक और सांस्कृतिक चेतना का अभिन्न अंग बन चुका है। इस महत्वपूर्ण अवसर को मनाना सभी भारतीयों के लिए एकता, बलिदान और भक्ति के उस शाश्वत संदेश को फिर से दोहराने का अवसर है, जो वंदे मातरम् में समाहित है।
इसी ऐतिहासिक अवसर पर, सीमा सुरक्षा बल, छत्तीसगढ़ के सामरिक मुख्यालय, रिसाली (भिलाई) में राष्ट्रीय गीत गायन का भव्य आयोजन किया गया। इस अवसर पर सभी अधिकारियों, अधीनस्थ अधिकारियों एवं जवानों ने एक स्वर में राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् का सामूहिक गायन किया।
इस कार्यक्रम के दौरान गिरधारी लाल मीणा, उपमहानिरीक्षक (पी. एस. ओ) ने कार्मिकों को बताया कि, वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पूरे देश के लिए गर्व और राष्ट्रभक्ति का अद्वितीय अवसर है। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के मार्गदर्शन में इस ऐतिहासिक पर्व को वर्षभर चलने वाले महाअभियान के रूप में पूरे देशभर में मनाया जा रहा है। इस अभियान का उद्देश्य राष्ट्रीय गीत की भावना को जन-जन तक पहुँचाना और भारत की सांस्कृतिक एकता, गौरव तथा राष्ट्रीय चेतना को सशक्त बनाना है।


