दुर्ग

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कुम्हारी, 01 अप्रैल। रविवार को कुम्हारी स्थित भगतसिंह शाखा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरआरएस) के वर्षप्रतिपदा उत्सव का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित मुकुन्द हम्बर्डे ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, यानी नववर्ष के प्रथम दिन के महत्व पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि आज वर्षप्रतिपदा है, जो सृष्टि का आरंभ दिवस है और इसी दिन से हिंदुओं ने अपनी काल गणना भी प्रारंभ की है। उन्होंने उपस्थित सभी को नववर्ष की शुभकामनाएं दीं।
हम्बर्डे ने हिन्दुनववर्ष मनाने के महत्व को स्वत्व-स्मरण बताते हुए कहा कि विदेशी आक्रमणों के दौरान हमने अपनी अस्मिता को सुरक्षित रखा, लेकिन धीरे-धीरे हम आत्मविस्मृत होते चले गए। हम अपनी पहचान, परंपरा और संस्कृति को भूलने लगे, जिसके कारण समाज न केवल पराधीन हुआ, बल्कि अपनी मूल पहचान भी खो बैठा। उन्होंने कहा कि जब कोई समाज आत्मविस्मृत होता है, तो वह विनाश की ओर अग्रसर होता है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रयासों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने आंदोलन और कुछ क्रांतिकारियों ने सशस्त्र आक्रमण का मार्ग चुना। लेकिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने सभी उपायों पर विचार करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि जब तक हिंदू समाज आत्मगौरव से युक्त और संगठित नहीं होगा, तब तक वह न स्वतंत्र हो सकता है और न ही प्रगति कर सकता है। उन्होंने डॉ. हेडगेवार की वेदना का उल्लेख करते हुए कहा कि हिंदू समाज की आत्मविस्मृति की पीड़ा उनके मन को सालती थी, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने आरएसएस की स्थापना की। उन्होंने कहा कि हृदय की व्यथा संघ बन फूट निकली। अपने अथक परिश्रम और तपस्या से उन्होंने नागपुर के एक छोटे से स्थान से शुरू हुए संघ को 1940 तक भारत के हर क्षेत्र में पहुंचा दिया।
हम्बर्डे ने रा. स्व. संघ के संस्थापक और आद्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार की जन्मजयंती पर स्वयंसेवकों से यह प्रण लेने का आह्वान किया कि वे उनकी वेदना को अपने मन में धारण कर, उन्हीं के समान तपस्या करते हुए संघ को उत्तरोत्तर बढ़ाते रहेंगे।
अंत में उन्होंने सभी को नववर्ष की पुन: शुभकामनाएं देते हुए अपने वक्तव्य को विराम दिया।