धमतरी
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कुरुद, 3 दिसंबर। एक सडक़ दुर्घटना में 95 फीसदी दिव्यांग होने के बावजूद अपनी कल्पना को रंगों में साकार करने वाले कुरूद के प्रसिद्ध चित्रकार बसंत साहू को दिल्ली के विज्ञान भवन में अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस के अवसर पर आयोजित समारोह में भारत की राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने अपने हाथों से सम्मानित किया।
भारत सरकार सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा दिव्यांगजन सशक्तिकरण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार 2025 के अंतर्गत कुरुद के प्रसिद्ध चित्रकार बसन्त साहू को सर्वश्रेष्ठ दिव्यांगजन चुना गया था। 3 दिसंबर को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में उन्हें इस राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि के साथ-साथ पूरे छत्तीसगढ़ और देश के लिए गर्व का क्षण है। यहां पर यह बताना लाजमी होगा कि 15 सितंबर 1995 को एक सडक़ हादसे में बसंत के रीढ़ की हड्डी बुरी तरह प्रभावित हो गई, डॉक्टरों ने स्पष्ट कर दिया कि उनका 95 फीसदी शरीर काम नहीं करेगा।
इस घटना के बाद वे महीनों बिस्तर पर रहे और बिस्तर पर लेटे हुए दीवारों पर लगी तस्वीरों को देख-देख कर चित्रकारी का मन बना लिया। इसके बाद उन्होंने कोरे कागज पर चित्र उकेरने शुरू किया। लेकिन हाथों की उंगलियां साथ नहीं दे रही थी। तब उन्होंने अपने दाएं हाथ में एक पट्टा बंधवा उसमें ब्रश फंसाकर कैनवास में लकीरे उकेरने लगे। वे रंगों में ब्रश डूबोते हैं और कांपते हाथों से उकेरे लकीरों को रंगों से भर देते हैं।
एक तस्वीर बनने में उन्हें चार से पांच दिन लग जाते हैं। उनकी कलाकृतियों के बारे में कला प्रेमियों और विशेषज्ञों का मानना है कि बसंत की पेंटिंग्स सौंदर्य में बेजोड़ और उनमें संवेदनशीलता और गहराई का अद्भुत मेल भी होता है। 52 वर्षीय बसंत पिछले 30 वर्षों से व्हीलचेयर के सहारे रंगों का संसार रचने में लगे हैं।
इस बारे में बसंत का कहना है कि जब कर्म समर्पण बन जाए,और सीमाएं साधना तो पुरस्कार नहीं, परमात्मा की कृपा मिलती है। मुझे राष्ट्रीय पुरस्कार मिलना मेरा नहीं, मेरी माँ की तपस्या, रंगों के विश्वास और लोगों के स्नेह का प्रतिफल है। मैंने जीवन से सीखा शरीर सीमित हो सकता है,पर आत्मा की उड़ान अनंत होती है। मेरी हर रचना उसी उड़ान की गवाही है। इस गौरवशाली उपलब्धि के लिए साहू परिवार को चंहुओर से बधाई मिल रही है।


