बेमेतरा

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बेमेतरा, 24 अप्रैल। शून्य जंगल वाले जिले में दो अलग-अलग क्षेत्रों में पौधरोपण कर हरा-भरा करने के लिए 2013 में प्रारंभ की गई योजना में से केवल बिरमपुर उसलापुर के 57 हेक्टेयर भूखंड में 73 हजार से अधिक पौधे रोपे गए थे। योजना के तहत अब तक पौधों को तैयार होकर पेड़ बनने के साथ ही मानव निर्मित जंगल के स्वरूप में आ जाना था। मौके पर जंगल तैयार होना तो दूर लगाए गए पौधों में से 60 फीसदी से अधिक पौधे पेड़ बनने से पहले ही मर गए या फिर जानवर के ग्रास बन गए।
मौके पर पेड़ से अधिक झाडिय़ां व काटे गए पेड़ के ठूंठ ही नजर आ रहे हैं। पुरानी योजना फेल होने के बाद एक बार फिर पौधरोपण की तैयारी की जा रही है। वहीं जुनवानी में एक जंगल तैयार किया जाना था, पर नहीं हो पाया है। दोनों गांव में से एक गांव में ही आधा-अधूरा जंगल तैयार हो पाया है। ग्राम उसलापुर में सिंचाई की कमी है।
वन विहीन जिले को हरा-भरा करने की चुनौती वर्षों से रही है। इसके लिए साल दर साल अलग-अलग विभागों से पैाधा तैयार कर रोपा जा रहा है। लेकिन पौधरोपण का शत-प्रतिशत लाभ जिले को नहीं मिल पा रहा है। वहीं सुरक्षा को लेकर भी योजना में कमी नजर आ रही है।
पौधरोपण स्थल पर बाड़-घेरे कम दिखाई दे रहे हैं, जिसकी वजह से जंगल बनने से पूर्व 170 एकड़ से अधिक भूभाग पर पौधरोपण के तहत लगाए गए पौधे लापरवाही की भेंट चढ़ गए हैं। रिकार्ड में जिले में कराए गए पौधरोपण को सफल बताया गया है लेकिन वास्तव में जमीनी हकीकत से परे है।
इस मामले में लोगों का कहना है कि पौधों के सूखने से वन विभाग की लापरवाही साफ नजर आ रही है। यदि विभाग सही समय पर ध्यान देता तो ये स्थिति नहीं बनती। सही समय पर सिंचाई नहीं की गई। न ही खाद डाले गए। परिणामस्वरुप पौधे नष्ट हो गए। वहीं जानवरों से भी रक्षा नहीं की गई, जिससे पौधे पेड़ नहीं बन सके।
आगजनी में जले पौधे, उबर नहीं पाए
बताना होगा कि जिले का सबसे बड़ा पौधरोपण ग्राम उसलापुर बिरमपुर में वर्ष 2013 में कैपा के तहत किया गया, जहां पर वानकी पौधों के साथ ही औषधीय पौधों को भी रोपा गया था। वर्ष 2016 में उक्त वन में आग लग जाने की वजह से आधे से अधिक पौधे नष्ट हो गए थे। आगजनी की घटना के 9 साल बाद भी ग्रोथ नहीं मिल पाई है। गिने-चुने ही पेड़ बन पाए हैं।
पौधों को पानी देने के लिए रखा टैंकर हो गया कंडम
150 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल वाले एरिया में रोपे गए पौधों की सिंचाई के लिए एक टैंकर उपलब्ध कराया गया था, जो आज की हालत में कंडम हो गया है। वहीं सामने स्टाफ क्वार्टर की स्थिति भी जर्जर हो चुकी है। बैरिकेड्स क्षतिग्रस्त होने की वजह से मवेशी पौधों को नुकसान पहुंचाते देखे जा सकते हैं। मौके की स्थिति को देखते हुए सहज ही समझा जा सकता है कि एक करोड़ से अधिक खर्च करने के बाद भी वन को तैयार करने में इच्छा शक्ति की कमी है। ग्रामीणों ने बताया कि वन के तैयार होने से यहां पर लोगों का आना-जाना हो सकता था पर आज तक वन तैयार नहीं हुआ।
अब 42 लाख खर्च कर 37 हेक्टेयर में किया जाएगा पौधरोपण
उसलापुर बिरमपुर के इस वन को एक बार फिर तैयार करने की तैयारी वन विभाग द्वारा की जा रही है। नई योजना के तहत वन को दो फेस में तैयार किया जायेगा, जिसके प्रथम फेस में 42 लाख खर्च कर 37 हेक्टेयर में 33 हजार पौधे लगाए जाएंगे, जिसकी तैयारी प्रारंभ कर दी गई है।
वन विहीन जिला इसलिए रूचि कम, ध्यान केवल वन वाले जिलों में
प्रदेश के वन विहीन जिलों में से एक बेमेतरा जिला में वन विभाग के पास अमले की कमी है। पूर्व में कार्यरत रहे कई कर्मचारियों के रिटायर होने के बाद नव पदस्थापना नहीं होने से भी बेमेतरा, साजा व नवागढ़ परिक्षेत्र में फील्ड के लिए कार्यरतों की कमी भारी पड़ रही है, जिससे हरियाली बिखेरने की योजना का प्रतिफल कमजोर आ रहा है।
अनुविभागीय अधिकारी वन विभाग बीएन दुबे ने बताया कि ग्राम उसलापुर में कैंपा योजना के तहत 2013 में पौधरोपण किया गया था। उसमें लगभग 35त्न पौधे जीवित हैं। एक बार फिर मौके पर 33000 पौधे लगाए जाएंगे। योजना तैयार कर ली गई है, जिसकी तैयारी शुरू हो गई है।