महासमुन्द

नए महिला पंचायत प्रतिनिधियों को लेकर कानाफूसी, पतियों की सक्रियता चर्चा में
24-Mar-2025 3:06 PM
नए महिला पंचायत प्रतिनिधियों को लेकर कानाफूसी, पतियों की सक्रियता चर्चा में

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

महासमुंद, 24 मार्च। महासमुंद जिले के जनपदों, और पंचायतोंं में पचास फीसदी महिला जनप्रतिनिधि चुनकर आई हैं। इनमें से अधिकांश को पढऩे- लिखने नहीं आता। यही कारण है कि चुनकर आने के बाद जब शपथ ग्रहण  हुआ तो कागज में लिखे शब्दों को नहीं पढ़ पाईं।

 इस तरह इस बार ऐसे शपथ ग्रहण का महासमुंद जिले के लोग गवाह रहे। जिन जनप्रतिनिधियों ने शपथ ठीक ढंग से नहीं लिया, उनके बारे में जानकारी मिली है कि पति पहले नेतागिरी करते थे, इसीलिए महिला आरक्षण का लाभ उनकी पत्नी को दिया गया है। चुनाव सभी के पतियों ने ही लोगों के बीच जाकर चुनाव प्रचार किया। जीत का प्लान बनाया। महिला प्रतिनिधियों को मतदाताओं के बीच ले जाना जरूरी था तो ले गये। लेकिन क्या बोलना है, कैसे बोलना है, सब काम पुरुषों ने ही किया। अब जीत के बाद हस्ताक्षर करने के अलावा सारे काम उनके पुरुष ही कर रहे हैं।

शपथ ग्रहण के बाद जिला पंचायत महासमुंद और जनपद पंचायत महासमुंद के अध्यक्ष जब पत्रकारों के सामने आईं तो उनकी हालत  खराब थी। पत्रकार भी पशोपेश में थे कि क्या पूछा जाए। ऐसा नहीं है कि पढ़ी-लिखी महिलाएं जीतकर नहीं आई हैं। आई भी हैं तो उन्हें संगठन ने अध्यक्ष-उपाध्यक्ष के काबिल नहीं माना। पढ़ लिखकर चुुनाव जीत चुुकी महिला प्रतिनिधियों को पाठ पढ़ाया गया कि संगठन जिनका नाम ले उन्हीं  का समर्थन करना है। किसी ने कोई भी विरोध किया तो भगवान जी उन्हें सजा देंगे। जनपद पंचायत में तो एक पार्टी ने अपने सदस्यों को गंगाजल की  शपथ करवाने के बाद मतदान के लिए भेजा।

नाम न छापने की शर्त पर एक नेता ने कहा कि देश चाहता है कि जो कुछ समझ न सके, कुछ बोल न सके वो ही पद में रहें ताकि ऊपर से कंट्रोल किया जा सके। पूर्व विधायक विनोद चंद्राकर का कहना है कि लोगों ने मन में कभी यह विचार भी नहीं आया होगा कि आखिरकार शपथ ग्रहण समारोह इतना महत्वपूर्ण क्यों होता है। हमारे देश के संविधान में शपथ ग्रहण को लेकर क्या नियम हैं। चुनावों में भाग लेने वाले हर उम्मीदवार को शपथ लेना और हस्ताक्षर करना आवश्यक है। 

जिला कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. रश्मि चंद्राकर कहती हैं कि पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया है। अब  पंचायतों के कामकाज में पारदर्शिता, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता को प्राथमिकता मिलना चाहिए। जो महिला जनप्रतिनिधि राजनीति नहीं समझ  सकी हैं वे भी धीरे-धीरे इसे सीखने की कोशिश करें।

पूर्व जिला पंचाायत अध्यक्ष सरला कोसरिया का कहना है कि सभी महिला प्रतिनिधि धीरे-धीरे सब कुछ सीख जाएंगी। पुरूषों के  मुकाबले महिलाएं गांवों में शुद्ध पेयजल, कानून व्यवस्था एवं महिला सुरक्षा पर अधिक जागरुक होती हैं। महिलाओं की प्रधानता से गांव में शांति व  सद्भाव का वातावरण निर्मित होगा। नशाखोरी जैसी सामाजिक बुराई को समाप्त करने का बीड़ा भी महिला स्व सहायता समूहों ने उठाया है। आरक्षण  के कारण सैद्धान्तिक रूप से शक्ति महिलाओं के हाथों में आ गई है। यह सच है कि आज भी पुरुष ही सत्ता पर वास्तविक नियन्त्रण रखे हुए हैं।

उन्होंने माना कि अज्ञानता एवं अनुभवहीनता पुरुषों पर निर्भरता महिलाओं के लिए आरक्षण को अर्थहीन बना देती है। अत: यह आवश्यक है कि महिलाओं में जागरुकता लाई जाये। उनको राजनीतिक जानकारी से अवगत करवाया जाए। जहां तक सम्भव हो उन्हें नई भूमिका को निभाने के लिए शिक्षित एवं प्रशिक्षित किया जाए।

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