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अंबिकापुर के भगत सिंह वार्ड में बनेगा भव्य भगत सिंह चौक
23-Mar-2025 9:37 PM
अंबिकापुर के भगत सिंह वार्ड में बनेगा भव्य भगत सिंह चौक

भाजपा युवा पार्षद दीपक यादव की पहल

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

अंबिकापुर, 23 मार्च। भाजपा युवा पार्षद दीपक यादव ने शहीद भगत सिंह वार्डवासियों के साथ वीर शहीद क्रांतिकारियों को याद कर छायाचित्र पर पुष्पअर्पित किया।

इस अवसर पर शहीद भगत सिंह वार्ड न. 28 भाजपा के युवा पार्षद दीपक यादव ने कहा कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाने वाले युवा क्रांतिकारी के रूप में वीरगति को प्राप्त करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्रोत भगत सिंह के नाम पर कोई चौक अम्बिकापुर शहर में नहीं है।

चूंकि मेरे वार्ड  का नाम शहीद भगत सिंह वार्ड के नाम से है तो उनकी प्रतिमा के साथ भव्य चौक की स्थापना भी भगत सिंह वार्ड में ही हो  और मैं पूरा भरोसा दिलाता हूं कि शहीद भगत सिंह चौक की स्थापना होगी, जिसके लिए मैं पुरजोर कोशिश करूंगा ।

आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारी और नरमवादी दोनों का अपना ही योगदान रहा है।  शहीद दिवस हर साल 23 मार्च को मनाया जाता है। इस दिन लोग स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देते हैं, जिन्होंने ब्रिटिश शासन से भारत की आज़ादी के लिए अपनी जान दे दी थी।

आज के दिन को इतिहास के पन्ने में काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है। 23 मार्च की आधी रात को अंग्रेज हुकूमत ने भारत के तीन सपूतों- भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फंसी पर लटका दिया था। देश की आजादी के लिए खुद को देश पर कुर्बान करने वाले इन महान क्रांतिकारियों को याद करने के लिए ही शहीद दिवस मनाया जाता है।

शहीद दिवस का इतिहास

नवंबर 1928 में लाला लाजपत राय की मृत्यु के बाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और अन्य लोगों ने बदला लेने की कसम खाई। राय भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के एक बड़े नेता थे। उन्होंने जेम्स ए स्कॉट को मारने की साजिश रची। स्कॉट ब्रिटिश राज में पुलिस अधीक्षक थे।

वह स्कॉट ही थे, जिन्होंने पुलिस को प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज करने का आदेश दिया था और राय पर व्यक्तिगत हमला किया था, जिससे उन्हें काफी गंभीर चोटें आई थीं। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव स्कॉट की हत्या कर ब्रिटिश शासन को एक बड़ा पैग़ाम भेजना चाहते थे। हालांकि, ग़लत पहचान की वजह से स्कॉट की जगह जॉन पी सॉन्डर्स मारे गए, जो एक सहायक पुलिस अधीक्षक थे। भगत सिंह और बीके दत्त (बटुकेश्वर दत्त) ने 8 अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेंबली में बम फेंके थे। बम फेंकने के बाद वहीं पर इन दोनों ने गिरफ्तारी दी थी। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव पर सॉन्डर्स की हत्या का आरोप लगाया गया था। उन्हें मौत की सज़ा सुनाई गई और 24 मार्च, 1931 को फांसी की तारीख तय की गई। हालांकि, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर जेल में 23 मार्च से पहले ही फांसी दे दी गई थी।

इसका कारण ये है कि इन वीर सपूतों को फांसी की सज़ा सुनाए जाने से पूरे देश में लोग भडक़े हुए थे। ऐसे माहौल में अंग्रेज़ सरकार डर गई। सरकार को लगा कि माहौल बिगड़ सकता है। लिहाज़ा फांसी की सज़ा की तारीख में बदलाव करके एक दिन पहले यानी 23 मार्च को भारत मां के वीर सपूत सरदार भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को अंग्रेज़ों ने फांसी दे दी। शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव आज भारत के नौजवानों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।

पुष्पांजलि कार्यक्रम भगत सिंह वार्ड के त्रिकोण चौक में रखा गया जिसमें मुख्य रूप से वरिष्ठ भाजपा कार्यकर्ता राम सिंह,मनीष दुबे,गणेश सिंह देव वर्मा,जितेंद्र पासवान,भाजयूमो जिला उपाध्यक्ष विकाश शुक्ल,चंदन ,मनोज सिन्हा,पीयूष त्रिपाठी,नगर उपाध्यक्ष शौरभ मिश्रा,रवि यादव,राहुल शर्मा,परमेश मिश्रा,रिसब यादव, प्रिंस चौबे,लाल कुशवाहा,मिंटू सिंह,अंकित सिंह,क्रेजी वासु अन्य युवा साथी उपस्थित रहे।

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