-कमलेश
“सात तारीख़ से एक हफ़्ता पहले मेरे पास एक लड़की का फ़ोन आया. उसने कहा मैं बहुत परेशान हूं और मुझे यहां से निकलना है तो मैंने पूछा कि क्या बात है, क्या घरेलू हिंसा हुई है? उसने कहा नहीं और बस रोना शुरू कर दिया. उसने कहा कि मदद के लिए मैं घर से किसी को नहीं बुला सकती.”
सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी की ये बातें उस लड़की से हुई थीं जिसकी अलग सेक्शुअल ओरिएंटेशन (यौन व्यवहार) होने के बावजूद भी जबरन एक लड़के से शादी करा दी गई. लड़की का कहना है कि वो लेस्बियन है और लड़के से शादी नहीं करना चाहती थी.
लड़की का आरोप है कि उन्होंने अपने लेस्बियन होने के बारे में घर में बार-बार बताया था लेकिन फिर भी उनकी शादी एक लड़के से कर दी गई. ऐसे में उन्हें मजबूरन अपने ससुराल से भागकर ग़ैर-सरकारी संस्था ‘अनहद’ की मदद लेनी पड़ी.
आज ये मामला दिल्ली हाईकोर्ट में है और वो लड़की अपने अधिकारों और सुरक्षा की माँग कर रही है.
कोर्ट ने लड़की की याचिका पर सुरक्षा मुहैया कराते हुए कहा है कि एक बालिग़ लड़की को ससुराल या मायके में रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. वो जहां चाहे रह सकती है.
इस मामले में उन्हें 'अनहद' से मदद मिली और वो अब दिल्ली के ही एक और एनजीओ के शेल्टर होम में रह रही हैं.
सब जानते हुए भी हुई शादी
अनहद से ही जुड़ीं शबनम हाशमी बताती हैं, “मेरे पास दोबारा सात तारीख़ को सुबह सात बजे किसी और लड़की का फ़ोन आया और उसने कहा कि वो बहुत परेशान है. उस दिन पीड़ित लड़की का भी फिर से फ़ोन आया.”
“उन्होंने बताया कि लड़की की ज़बरदस्ती शादी कर दी गई है और वो बहुत परेशान है. बात करके मुझे लगा कि कुछ गंभीर मामला है. मैंने उन्हें ऑफ़िस बुलाया. तब आकर उन्होंने मुझे पूरी कहानी बताई.”
पीड़िता ने अपनी याचिका में बताया है कि किस तरह उनकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ शादी कर दी गई और वो डेढ़ साल इस घुटन में जीती रहीं.
याचिका के मुताबिक़ पीड़िता की अक्टूबर 2019 में शादी हुई थी. उन्होंने शादी से पहले अपने माता-पिता को खुलकर बता दिया था कि वो लेस्बियन हैं और उनकी लड़कों में कोई रूचि नहीं है. उन्हें शादी नहीं करनी है.
लेकिन घरवालों ने जबरन शादी करा दी. शादी के बाद वो दिल्ली के बुराड़ी इलाक़े में अपने ससुराल आ गईं. यहां आकर उन्होंने अपने पति को बता दिया कि वो लड़कों में रूचि नहीं रखतीं और इस शादी में नहीं रह सकतीं. उनके बीच शारीरिक संबंध भी स्थापित नहीं हुए.
याचिका में कहा गया है कि वो इस जबरन शादी से बिल्कुल नाख़ुश थीं और धीरे-धीरे अवसाद में जाने लगी थीं. उन्हें कई बार आत्महत्या का भी ख्याल आया. इससे परेशान होकर उन्होंने अपने पति से तलाक़ लेने की बात की. लेकिन, तलाक़ किसी ना किसी वजह से टलता रहा.
शबनम हाशमी बताती हैं कि पति ने तलाक़ से मना नहीं किया लेकिन कहा कि छोटी बहन की शादी तक रुक जाओ वरना बदनामी होगी. पीड़िता रुक गईं क्योंकि कुछ ही महीनों में शादी होने वाली थी. लेकिन, इसके बाद मार्च 2020 में लॉकडाउन हो गया. बहन की शादी भी हो गई लेकिन तलाक़ नहीं हो पाया.
इलाज कराने की धमकी
पीड़िता के पति भारतीय वायु सेना में हैं तो उनकी पोस्टिंग कहीं बाहर थी. पीड़िता की अपने दोस्तों से भी बात होती रहती थी.
याचिका के मुताबिक़ ससुराल में उन पर विवाहेत्तर संबंध होने का आरोप लगाया गया. ये बात उनके मायके वालों को भी बताई गई. पीड़िता ने अपने माता-पिता को बताया कि वो इस शादी में कितनी परेशान हैं. उन्होंने अपने पिता को ‘सत्यमेव जयते’ सीरीज़ का वो एपिसोड भी भेजा जो एलजीबीटी समुदाय की समस्याओं पर आधारित था.
लेकिन, उनके माता-पिता नहीं माने और कहा कि उन्हें वापस ले जाने से समाज में बदनामी होगी. साथ ही कहा कि उनका सेक्शुअल ओरिएंटेशन एक बीमारी है जिसका वो इलाज कराएंगे. इसके बाद पीड़िता बुरी तरह घबरा गईं.
शबनम हाशमी बताती हैं, "जब पीड़िता मेरे पास आई तो बहुत डरी हुई थी. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. अपने माता-पिता की बात से उसे लगा कि अब वो आकर ले जाएंगे और फ़ोन भी ले लेंगे. उसके पास वहां से निकलने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था. तब उन्होंने मुझे फ़ोन किया."
पीड़िता को समझाने और पुलिस के पास शिकायत दर्ज करने पर उनकी मानसिक स्थित बेहतर हुई और वो अब शेल्टर होम में रह रही हैं.
शबनम हाशमी ने बताया कि नौ तारीख़ को उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका डालकर पीड़िता के अधिकारों की सुरक्षा की माँग की.
लेकिन, इस बीच शबनम हाशमी को धमकियां भी मिलीं. वो बताती हैं कि, "मेरे पास रात से फ़ोन आने शुरू हो गए. परिवार के लोग उस शेल्टर होम में भी पहुँच गए जहां लड़की को रखा गया था. वो लड़की को वापस देने के लिए कहने लगे."
क्या कहता है परिवार
इस मामले में हमने पीड़िता के पिता भरत सिंह से भी बात की. उनका कहना है कि उन्हें अपनी बेटी के लेस्बियन होने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.
उन्होंने बताया, “बेटी ने कभी इस बारे में नहीं बताया वरना हम उसकी शादी ही नहीं कराते. उसके ससुराल में क्या चल रहा था हमें ये भी नहीं पता. जब उन्होंने बताया कि बेटी ससुराल से चली गई है तो हम वहां पहुँचे. हमने बस कहा कि बेटी से मिला दें. अगर मिलना नहीं चाहती तो बस उसे दिखा ही दें.”
भरत सिंह कहते हैं कि उनका परिवार कोर्ट में नहीं जाएगा. बेटी जहां रहना चाहे रह सकती है. घर आना चाहे तो घर भी आ सकती है.
हालांकि, पीड़िता की वकील वृंदा ग्रोवर ने बताया कि उन्होंने और कोर्ट में न्यायाधीश ने पीड़िता से ख़ुद बात की है और पूछा है कि वो कहां रहना चाहती हैं. पीड़िता का कहना है कि फ़िलहाल वो अपने परिवार से नहीं मिलना चाहतीं क्योंकि उसे ख़तरा है. बाद में क्या करना है आगे देखेंगी.
वृंदा ग्रोवर बताती हैं, “हाईकोर्ट में हमने इसलिए ये मामला डाला क्योंकि उसके माता-पिता को जैसे ही पता चला कि वो घर से निकली है, उसकी लिए तलाश शुरू हो गई. उसे यही डर था कि उसके माता-पिता या तो उसको ज़बरदस्ती ससुराल भेजेंगे या पंडित और डॉक्टर को दिखाएंगे. कोर्ट ने एकदम से राहत दी.”
“कोर्ट ने कहा कि एक व्यस्क औरत को बिल्कुल भी जबरन किसी रिश्ते में नहीं रख सकता. अगर उसकी सेक्शुअल ओरिएंटेशन अलग है तो उसके साथ इस तरह की ज़बरदस्ती नहीं की जा सकती. पति को जल्द से जल्द शादी रद्द करने के लिए भी कहा. पति ने भी सहमति जताई है.”
वह बताती हैं कि एक बार केस ख़त्म हो जाएगा तो पीड़िता अपने अनुसार रह सकती हैं. वो पढ़ाई या नौकरी जो भी कर सकती हैं.
सिर्फ़ एक मामला नहीं
इस मामले में पीड़िता के साथ जो हुआ वो कोई पहला मामला नहीं है. कई और लेस्बियन लड़कियों को ऐसी ही परेशानियों से गुज़रना पड़ता है.
शबनम हाशमी बताती हैं कि उनके ही पास एक डेढ़ महीना पहले एक लेस्बियन कपल का मामला आया था. उनके ऊपर परिवार का बहुत दबाव था. लड़की घर से भागी थी. फिर उसे सुरक्षा दिलाई गई.
समानाधिकार कार्यकर्ता हरीश अय्यर कहते हैं, “समलैंगिकों के साथ जबरन शादी या दबाव डालने के मामले कम नहीं हैं लेकिन समस्या ये है कि इसका कोई डाटा ही नहीं है. ये दिखाता है कि उन्हें लेकर सरकारें गंभीर ही नहीं हैं. वरना स्थितियां ऐसी हैं कि कई बार हफ़्ते में दो बार मेरे पास मदद के लिए फ़ोन आते हैं.”
“दरअसल, हमारे समाज में औरत की मर्ज़ी और इच्छा मायने ही नहीं रखती है. समलैंगिक लड़कों के मुक़ाबले समलैंगिक लड़कियों की ज़िंदगी और भी मुश्किल होती है. लड़की के लिए लोग मानते ही नहीं कि उसकी भी कोई शारीरिक इच्छाएं हो सकती हैं. अब जिसकी शारीरिक इच्छाएं ही नहीं, वो हां या ना कैसे कर सकती है. वो शादी में हिंसा भी झेलती हैं.”
माता-पिता सामाजिक डर से या बाद में ठीक हो जाएगी ये सोचकर उसकी शादी कर देते हैं. लेकिन इस तरह उसे ख़ुशियां मिलती नहीं बल्कि छिन जाती हैं.
ऐसे में जानकार बहुत बड़े स्तर पर जागरूकता अभियान की ज़रूरत पर ज़ोर डालते हैं ताकि जितना लोग सामलैंगिकता के बारे में सुनेंगे और समझेंगे, उतना ही इसे स्वीकार कर पाएंगे.
समलैंगिक विवाह को मौलिक अधिकार क्यों नहीं मानती केंद्र सरकार
धर्म और जाति से परे यहां लोग लिखते हैं अपने प्यार की कहानियां
वृंदा ग्रोवर कहती हैं कि क़ानून और समाज दोनों स्तर पर स्वीकार्यता की ज़रूरत है. अगर समलैंगिक विवाह को मंज़ूरी मिलती है तो इससे समाज में एक व्यापक समझ बनेगी. सरकार की ज़िम्मेदारी है कि इस बात को समझाने के लिए सामाजिक जागरूकता अभियान चलाए ताकि लोग समझ सकें कि ये प्राकृतिक है और हमें ये स्वीकार करना चाहिए.
उनका कहना है कि वक़्त के साथ ये बदलेगा लेकिन उस बीच कई नौजवानों को बहुत पीड़ा उठानी पड़ेगी.
फ़िलहाल मौजूदा मामले में पीड़िता शेल्टर होम में रह रही हैं. मामला ख़त्म होने तक उन्हें और मदद करने वाली संस्था को सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी. इस मामले की अगली सुनवाई 25 मार्च को है. (bbc.com)