(मारिया कनिंघम, यूएनएसडब्ल्यू सिडनी)
सिडनी, 26 अक्टूबर। अमेरिका में मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के अनुसंधानकर्ताओं के नेतृत्व में एक टीम ने गैस और धूल के एक सुदूर अंतरतारकीय बादल में कार्बन युक्त बड़े अणुओं की खोज की है।
यह उन लोगों के लिए रोमांचकारी है, जो ज्ञात अंतरतारकीय अणुओं की जानकारी रखते हैं और उन्हें उम्मीद है कि हम यह पता लगा सकेंगे कि ब्रह्मांड में जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई।
लेकिन यह अणु की सूची में एक और अणु से कहीं ज्यादा है। ‘साइंस’ पत्रिका में आज प्रकाशित अनुसंधान के निष्कर्षों के मुताबिक जटिल कार्बनिक अणु (कार्बन और हाइड्रोजन के साथ) संभवतः ठंडे, काले गैस बादल में मौजूद थे, जिसने हमारे सौर मंडल को जन्म दिया।
इसके अलावा,ये अणु पृथ्वी के निर्माण के बाद तक एक साथ बने रहे। यह हमारे ग्रह पर जीवन की प्रारंभिक उत्पत्ति को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
मुश्किल है नष्ट करना, पता लगाना भी मुश्किल
इस अणु को पाइरीन कहा जाता है, जो एक पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन या संक्षेप में पीएएच है। जटिल लगने वाले इस नाम से हमें पता चलता है कि ये अणु कार्बन परमाणुओं के छल्लों से बने हैं।
कार्बन रसायन पृथ्वी पर जीवन का आधार है। लंबे समय से ज्ञात है कि पीएएच अंतरतारकीय माध्यम में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, इसलिए वे पृथ्वी पर कार्बन-आधारित जीवन कैसे आया, इसके सिद्धांतों में प्रमुखता से शामिल हैं।
हम जानते हैं कि अंतरिक्ष में कई बड़े पीएएच हैं, क्योंकि खगोलशास्त्रियों को दृश्य और इंफ्रारेड प्रकाश में उनके संकेत मिले हैं। लेकिन हमें नहीं पता कि वे विशेष रूप से कौन से पीएएच हो सकते हैं।
पाइरीन अब तक अंतरिक्ष में पाया गया सबसे बड़ा पीएएच है, हालांकि इसे ‘छोटा’ या साधारण पीएएच कहा जाता है, जिसमें 26 परमाणु होते हैं। लंबे समय से यह माना जाता था कि ऐसे अणु तारा निर्माण के कठोर वातावरण में बचे नहीं रह सकते। मान्यता थी कि जब नवनिर्मित तारे से निकलने वाले विकिरण में सबकुछ डूबा रहता है, तो जटिल अणु नष्ट हो जाते हैं।
यहां तक जबतक ऐसे अणु नहीं मिले थे, तब ऐसा माना जाता था कि दो से अधिक परमाणुओं वाले अणु इसी कारण से अंतरिक्ष में मौजूद नहीं हो सकते। साथ ही, रासायनिक मॉडल दिखाते हैं कि पाइरीन बनने के बाद उसे नष्ट करना बहुत मुश्किल है।
पिछले वर्ष, वैज्ञानिकों ने बताया कि उन्हें हमारे अपने सौरमंडल के रयुगु नामक क्षुद्रग्रह के नमूनों में बड़ी मात्रा में पाइरीन मिला है। उन्होंने तर्क दिया कि कम से कम इसका कुछ भाग ठंडे अंतरतारकीय बादल से आया होगा, जो हमारे सौर मंडल से पहले अस्तित्व में था।
तो क्यों न किसी अन्य ठंडे अंतरतारकीय बादल को देखकर कुछ खोजा जाए? खगोल भौतिकीविदों के लिए समस्या यह है कि हमारे पास पाइरीन का सीधे पता लगाने के लिए उपकरण नहीं हैं। यह रेडियो दूरबीन के पकड़ में नहीं आते।
‘ट्रेसर’ का उपयोग करना
टीम ने जिस अणु का पता लगाया है उसे 1-सायनोपाइरीन नाम दिया है, जिसे हम पाइरीन का ‘‘ट्रेसर’’ कहते हैं। इसका निर्माण पाइरीन और सायनाइड के परस्पर क्रिया से होता है, जो अंतरतारकीय अंतरिक्ष में आम बात है।
अनुसंधानकर्ताओं ने पश्चिमी वर्जीनिया में स्थापित ग्रीन बैंक टेलीस्कोप का उपयोग करके वृषभ नक्षत्र में टॉरस आणविक बादल या टीएमसी-1 को देखा। पाइरीन के विपरीत, 1-सायनोपाइरीन का रेडियो दूरबीनों द्वारा पता लगाया जा सकता है।
ऐसा इसलिए है, क्योंकि 1-साइनोपाइरीन अणु छोटे रेडियो तरंग उत्सर्जक के रूप में कार्य करते हैं - जो पृथ्वी के रेडियो स्टेशनों के छोटे संस्करण हैं।
वैज्ञानिकों को पाइरीन की तुलना में 1-सायनोपाइरीन का अनुपात पता है, इसलिए वे अंतरतारकीय बादल में पाइरीन की मात्रा का अनुमान लगा सकते हैं।
उन्होंने जो पाइरीन की मात्रा पाई, वह काफी महत्वपूर्ण थी। महत्वपूर्ण बात यह है कि ‘टॉरस मॉल्युकूलर क्लाउड’ में यह खोज बताती है कि ठंडे, काले आणविक बादलों में बहुत अधिक पाइरीन मौजूद है, जो तारों और सौर प्रणालियों का निर्माण करते हैं।
जीवन की जटिल उत्पत्ति
हम धीरे-धीरे इस निष्कर्ष पर पहुंच रहे हैं कि पृथ्वी पर जीवन कैसे विकसित हुआ। यह तस्वीर हमें बताती है कि जीवन अंतरिक्ष से आया था - कम से कम जीवन बनाने के लिए जरूरी जटिल कार्बनिक, पूर्व-जैविक अणु तो अंतरिक्ष से आए थे।
रयुगु से प्राप्त निष्कर्षों से पता चलता है, पाइरीन तारों के जन्म से जुड़ी कठोर परिस्थितियों में भी जीवित रहता है, यह इस पूरे विमर्श का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
सरल जीवन, जिसमें एक एकल कोशिका शामिल है। जब पृथ्वी की सतह ठंडी हो गई और तापमान इस स्तर पर पहुंचा कि जटिल अणु वाष्पीकृत नहीं हो, उसी के तुरंत बाद जीवाश्म रिकॉर्ड में (भूवैज्ञानिक और खगोलीय दृष्टि से) ये दिखाई दिये। पृथ्वी के लगभग 4.5 अरब वर्ष के इतिहास में यह घटना 3.7 अरब वर्ष पहले घटित हुई थी।
‘टॉरस मॉल्यूकुलर क्लाउड’ में 1-सायनोपाइरीन की नयी खोज से पता चलता है कि जटिल अणु वास्तव में हमारे सौर मंडल के निर्माण की कठोर परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते हैं। इसकी वजह से कार्बन आधारित जीवन जो पृथ्वी पर 3.7 अरब साल पहले आया, उसका आधार पाइरीन उपलब्ध था।
यह खोज पिछले दशक की एक अन्य महत्वपूर्ण खोज से भी जुड़ी है, जो अंतरतारकीय माध्यम में पहला चिरल अणु, प्रोपिलीन ऑक्साइड है। प्रारंभिक पृथ्वी की सतह पर सरल जीवन रूपों के विकास को संभव बनाने के लिए हमें चिरल अणुओं की आवश्यकता थी।
इस प्रकार हमारा यह सिद्धांत सही लग रहा है कि पृथ्वी पर प्रारंभिक जीवन के अणु अंतरिक्ष से आए थे। (द कन्वरसेशन)
(द कन्वरसेशन) धीरज दिलीप