दिनेश अकुला
बुधवार को तिरुपति में हुई भगदड़ में छह लोगों की मौत हो गई और 40 से अधिक लोग घायल हो गए। यह दुखद घटना टाली जा सकती थी, और अब विशेषज्ञ और भक्त यह सवाल कर रहे हैं कि इसे कैसे रोका जा सकता था। तिरुमला के भगवान वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में वैकुंठ द्वार दर्शन एक लोकप्रिय आयोजन है, जो हर साल लाखों भक्तों को आकर्षित करता है। लेकिन अनुमानित भीड़ और मंदिर के विशाल संसाधनों के बावजूद, खराब योजना और भीड़ प्रबंधन की कमी ने इस आध्यात्मिक अनुभव को एक आपदा में बदल दिया। मुख्य समस्या टोकन वितरण प्रणाली में थी, जो अपर्याप्त योजना और उचित भीड़ नियंत्रण की कमी के कारण अराजक हो गई।
यह अराजकता वैकुंठ एकादशी की पूर्व संध्या पर हुई, जो तिरुमला मंदिर में एक महत्वपूर्ण उत्सव है। भक्तों का मानना है कि वैकुंठ द्वारम या मंदिर के उत्तरी प्रवेश द्वार से गुजरने से उन्हें दिव्य आशीर्वाद मिलता है और स्वर्ग के द्वार खुलते हैं। इस विश्वास के कारण 10 दिनों के उत्सव के दौरान तिरुमला में लाखों भक्त आते हैं। सबसे व्यस्त दिनों में 2 से 3 लाख लोग एकत्र होते हैं, जिससे मंदिर प्रशासन के लिए भीड़ प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) ने वैकुंठ द्वार दर्शन के पहले तीन दिनों में 1.2 लाख टोकन वितरित करने की योजना बनाई थी, लेकिन यह व्यवस्था बड़ी संख्या में भक्तों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने में विफल रही।
टोकन वितरण प्रक्रिया को सुधारने के लिए, तिरुपति के विभिन्न स्थानों जैसे विष्णु निवासम और एमजीएम हाई स्कूल में टोकन काउंटर स्थापित किए गए थे। तीन जनवरी को हजारों भक्त अपने टोकन प्राप्त करने के लिए सुबह से ही इन स्थानों पर एकत्र हो गए। शाम होते-होते, स्थिति तब खराब हो गई जब एक महिला को काउंटर से बाहर निकालने के लिए एक गेट खोला गया। भीड़ आगे बढ़ी, जिससे भगदड़ मच गई, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए। टीटीडी के अध्यक्ष बी आर नायडू के अनुसार, भगदड़ तब हुई जब भक्त एक साथ आगे बढऩे लगे और कतारें टूट गईं।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने इस त्रासदी पर गहरा दुख व्यक्त किया। एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर उन्होंने लिखा, ‘तिरुपति में विष्णु निवासम के पास तिरुमला श्रीवारी वैकुंठ द्वार के दर्शन के लिए टोकन लेने के दौरान हुई भगदड़ में कई भक्तों की मौत की खबर से मैं स्तब्ध हूं। यह दुखद घटना मुझे बहुत परेशान कर रही है।’ मुख्यमंत्री कार्यालय ने कहा कि नायडू स्थिति की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं और उन्होंने इस घटना की जांच के आदेश दिए हैं।
उन्होंने मृतकों के परिवारों के लिए वित्तीय सहायता की घोषणा की और अधिकारियों को घायलों को सर्वोत्तम चिकित्सा देखभाल प्रदान करने का निर्देश दिया। गृह मंत्री वंगलपुडी अनीता ने बड़े समारोहों के दौरान महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता पर जोर दिया।
पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने सरकार से घायलों को उचित चिकित्सा देखभाल प्रदान करने का आह्वान किया। पूर्व टीटीडी अध्यक्ष भुमा करुणाकर रेड्डी ने प्रशासनिक विफलताओं के कारण इस घटना को जिम्मेदार ठहराया। उपमुख्यमंत्री के पवन कल्याण ने अपनी संवेदना व्यक्त की और तिरुपति जाने की योजना बनाई। आईटी, इलेक्ट्रॉनिक्स और शिक्षा मंत्री एन लोकेश नायडू ने कहा कि भगदड़ में जान गंवाने की घटना ने उन्हें गहरा आघात पहुंचाया है और उन्होंने भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग की। पूर्व राज्य मंत्री वेलमपल्ली श्रीनिवास ने राज्य सरकार और टीटीडी पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए कहा कि बेहतर योजना और समन्वय से इस त्रासदी को टाला जा सकता था। उन्होंने कहा कि भक्तों की जरूरतों की बजाय वीआईपी सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करने से इस घटना में योगदान दिया गया।
कई भक्तों का मानना है कि यह त्रासदी टाली जा सकती थी अगर टीटीडी ने पोस्ट-कोविड टोकन वितरण प्रणाली को लागू किया होता, जो ऑनलाइन बुकिंग की अनुमति देती है और शारीरिक कतारों को कम करती है। पद्मावती पार्क होल्डिंग एरिया में एक भक्त ने कहा, ‘अगर पोस्ट-कोविड टोकन सिस्टम का पालन किया जाता, तो यह त्रासदी टाली जा सकती थी।’ उचित भीड़ नियंत्रण के बिना शारीरिक टोकन वितरण की ओर अचानक बदलाव ने इस आपदा को जन्म दिया। टोकन काउंटरों पर भीड़ उमड़ पड़ी, और स्पष्ट संचार की कमी और खराब भीड़ प्रबंधन ने स्थिति को और बिगाड़ दिया।
वैकुंठ एकादशी उत्सव भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह उत्सव 10 दिनों तक चलता है, जिसके दौरान कई तीर्थयात्री वैकुंठ द्वारम से गुजरने के लिए तिरुमला आते हैं। तिरुमला मंदिर दुनिया के सबसे धनी धार्मिक संस्थानों में से एक है, जिसकी वार्षिक आय 1,365 करोड़ से अधिक है। वर्ष 2024 में, मंदिर ने 2.55 करोड़ से अधिक तीर्थयात्रियों का स्वागत किया। अपनी संपत्ति के बावजूद, मंदिर प्रबंधन भक्तों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सका। टीटीडी ने सुरक्षा और भीड़ प्रबंधन के लिए 3,000 पुलिस कर्मियों और 1,550 कर्मचारियों को तैनात किया। उन्होंने सुबह 6:00 बजे से आधी रात तक पानी और भोजन की निरंतर आपूर्ति की भी व्यवस्था की। हालांकि, ये कदम विशाल भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त नहीं थे।
हालिया त्रासदी ने बड़े आयोजनों के प्रबंधन को लेकर मंदिर की तैयारियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। टीटीडी बोर्ड अध्यक्ष की अध्यक्षता में तिरुपति में एक आपातकालीन बैठक आयोजित की गई थी ताकि घटना का समाधान किया जा सके। भीड़ को नियंत्रित करने, भक्तों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और घायलों को चिकित्सा देखभाल प्रदान करने के लिए उपाय किए जा रहे हैं।
भगदड़ ने महत्वपूर्ण वैकुंठ एकादशी उत्सवों पर एक साया डाल दिया है। जबकि यह उत्सव आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, भक्तों की सुरक्षा सबसे पहले होनी चाहिए। यह त्रासदी धार्मिक आयोजनों में बेहतर भीड़ प्रबंधन की आवश्यकता को उजागर करती है। ऑनलाइन टोकन बुकिंग प्रणाली को फिर से लागू करना काउंटरों पर भीड़ को कम करने में मदद कर सकता है। दर्शन के लिए विशिष्ट समय स्लॉट निर्धारित करना भक्तों के प्रवाह को प्रबंधित करने और भीड़भाड़ को रोकने में सहायक हो सकता है। अधिक सुरक्षा कर्मियों और निगरानी प्रणालियों का उपयोग करके भीड़ की गतिविधियों की निगरानी की जा सकती है और संभावित जोखिमों का समय रहते पता लगाया जा सकता है। आपातकालीन प्रोटोकॉल स्थापित करना और कर्मचारियों को भीड़भाड़ से निपटने के लिए प्रशिक्षित करना आवश्यक है। घोषणाओं, डिजिटल बोर्डों और स्वयंसेवकों के माध्यम से भक्तों को स्पष्ट निर्देश प्रदान करना अपेक्षाओं को प्रबंधित करने और घबराहट को कम करने में मदद कर सकता है।
यह घटना टीटीडी और आंध्र प्रदेश सरकार को भक्तों की सुरक्षा को अनुष्ठानिक कार्यक्रमों से ऊपर प्राथमिकता देने के लिए प्रेरित करनी चाहिए। मंदिर प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य भक्तों की भलाई सुनिश्चित करना होना चाहिए। कोई भी धार्मिक उत्साह मानव जीवन को खतरे में डालने का औचित्य नहीं ठहरा सकता।
साल के पहले दिन गढ़चिरौली पुलिस को मिली बड़ी कामयाबी
सीएम फडनवीस की मौजूदगी में मुख्यधारा में वापसी
प्रदीप मेश्राम
राजनांदगांव, 1 जनवरी (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। साल के पहले दिन महाराष्ट्र के गढ़चिरौली पुलिस को नक्सल मोर्चे पर एक बड़ी कामयाबी मिली। बुधवार को लाखों रुपए की ईनामी महिला नक्सली तारक्का ने आत्मसर्मपण कर दिया।
तारक्का के सरेंडर का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि पुलिस ने मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस की मौजूदगी में उसे सरेंडर कराया। बताया जाता है कि एक बड़े कैडर की नक्सली तारक्का ने वापसी कर संगठन से मुंह मोड़ लिया। ऐसे में नक्सलियों की सांगठनिक जड़े कमजोर साबित होने लगी है।
मिली जानकारी के अनुसार तारक्का ने बीते दिनों गढ़चिरौली पुलिस के जरिए मुख्यधारा का रास्ता चुना है। स्टेट कमेटी मेंबर तारक्का की वापसी से पुलिस काफी उत्साहित है। उसके सरेंडर से नक्सल अभियान में पुलिस को काफी मदद मिलेगी। पुलिस ने तारक्का से नक्सलियों की भावी रणनीति को लेकर भी अहम जानकारी हासिल की है। तारक्का मूलत: गढ़चिरौली की रहने वाली है।
बताया जाता है कि बतौर नक्सली उसने 40 वर्ष से ज्यादा संगठन को दिया है। वह पोलित ब्यूरो मेंबर सोनू की पत्नी है।
62 वर्षीय तारक्का के नाम महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा और तेंलगाना में कई आपराधिक रिकार्ड है। खबर है कि गढ़चिरौली पुलिस ने तारक्का के नक्सल संगठन में प्रभावशाली कैडर होने के चलते मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस के समक्ष सरेंडर कराया है।
यह भी खबर है कि तारक्का के साथ दो और हार्डकोर नक्सलियों ने वापसी की है। पुलिस का कहना है कि आने वाले दिनों में कई बड़े नक्सली मुख्यधारा में लौट सकते हंै।
बताया जाता है कि तारक्का की वापसी के लिए नक्सल ऑपरेशन आईजी संदीप पाटिल, डीआईजी अंकित गोयल और एसपी नीलोत्पल काफी दिनों से प्रयासरत थे।
ओडिशा-महाराष्ट्र सीमा के जंगलों तक ड्रोन से निगरानी
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 30 दिसंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व इलाके में अवैध कटाई, शिकार, और अतिक्रमण को रोकने के लिए वन विभाग की ईनामी योजना कारगर साबित हो रही है। इस कड़ी में अतिक्रमण, और अवैध कटाई की सूचना देने पर 50 हजार रूपए तक ईनाम दिया जा रहा है। विभाग की ईनामी योजना का प्रतिफल यह रहा कि अब तक डेढ़ सौ से अधिक शिकारियों, और तस्करों को हिरासत में लिया जा चुका है। यही नहीं, वन अमले ने ओडिशा, और महाराष्ट्र जाकर कार्रवाई की है।
ओडिशा के सीमावर्ती उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व इलाके में पिछले वर्षों में अवैध कटाई, जंगली जानवरों के शिकार और वनभूमि पर अतिक्रमण के दर्जनों मामले सामने आए हैं। इस पर कार्रवाई करने में वन अमला नाकाम भी रहा है। वन विभाग ने अतिक्रमण करने वालों, और तस्करों के खिलाफ कार्रवाई के लिए डीएफओ वरूण जैन ने नई ईनामी योजना लाँच किया।
साल भर के भीतर यह योजना प्रभावी दिख रही है। इस योजना के चलते न सिर्फ शिकार बल्कि लकड़ी की तस्करी पर भी काफी हद तक अंकुश लगा है। योजना के तहत जंगली जानवरों के शिकार करने वालों या फिर उनका मांस बेचने वालों की सूचना देने पर पांच हजार रूपए तक ईनाम घोषित किया गया है। इसी तरह वृक्षों की कटाई, अतिक्रमण करने वालों को रंगे हाथों पकड़वाने पर 10 से 50 हजार रूपए तक ईनाम का ऐलान किया गया है। यही नहीं, ढाबों और आरामिलों में अवैध चिरान सप्लाई की सूचना पर पांच हजार का ईनाम घोषित किया गया है। ईनामी योजना से मुखबिरी तंत्र को सुदृढ़ बनाने में काफी मदद मिली है। ईनाम की राशि फोन-पे, गूगल-पे, या फिर बैंक खाते में सीधे दी रही है। सूचना देने वालों के नाम पूरी तरह गोपनीय रखे जा रहे हैं। इसके लिए डीएफओ/उपनिदेशक के वॉट्सऐप नंबर जारी किए गए हैं। इसकी पूरी जानकारी वनग्रामों में वॉल पेंटिंग कर दी गई है।
डीएफओ वरूण जैन ने ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में बताया कि ईनामी योजना का अच्छा असर देखने को मिला है। अवैध गतिविधियों की छोटी-छोटी जानकारी वन अमले तक पहुंच रही है। उन्होंने बताया कि अब तक 35-40 एंटी पोंचिंग ऑपरेशन कर करीब डेढ़ सौ शिकारी-तस्करों को हिरासत में लिया गया, और अदालती कार्रवाई की गई है। जैन ने बताया कि ओडिशा के रायगढ़ा जिले में हाथी दांत तस्कर बरामद किए गए। इसी तरह महाराष्ट्र के गढ़चिरौली इलाके से पेंगुइन सेल्क बरामद किए गए हैं।
वन विभाग के सूत्रों के मुताबिक सीमावर्ती इलाके के जंगलों की ड्रोन से निगरानी की जा रही है। महाराष्ट्र, ओडिशा के वन अमलों और डीआरआई के साथ मिलकर संयुक्त अभियान छेड़ा गया है। ताकि न केवल टाइगर रिजर्व, बल्कि बाघ, हाथी, तेंदुआ, कॉरीडोर सुरक्षित रहे। इन इलाकों में रहने वाले चरवाहे मुखबिर बन रहे हैं। स्थानीय स्तर पर एक सम्मेलन कर सूचनातंत्र को मजबूत बनाने में उनकी भागीदारी पर चर्चा भी की गई है। बारनवापारा अभ्यारण्य इलाके में भी वन्यप्राणियों की सुरक्षा, और अवैध शिकार को रोकने के लिए रेंज स्तर पर गश्ती दल का गठन किया गया है। कुल मिलाकर ईनामी योजना के चलते शिकारियों, और तस्करों के खिलाफ जो जानकारी मिल रही है, वो पहले नहीं मिल पा रही थी। इससे वनों को सुरक्षित रखने में मदद मिल रही है।
सर्वाधिक राजस्व कर्मी पकड़ाए
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 29 दिसंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। प्रदेश में रिश्वतखोरी के मामले बढ़ रहे हैं। इस साल 53 अधिकारी-कर्मचारी रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़े गए हैं, जो पिछले पांच साल में सबसे ज्यादा है। रिश्वत लेने वालों में राजस्व विभाग के अधिकारी-कर्मचारी सबसे आगे हैं।
एसीबी ने रिश्वतखोरी की शिकायतों पर कार्रवाई की है, और प्रदेश के अलग-अलग जिलों में रिश्वत लेते 53 अधिकारी-कर्मचारी पकड़े गए हैं। इनमें राज्य प्रशासनिक सेवा के दो अफसर भी हैं।
पिछले पांच सालों में रिश्वतखोरी के प्रकरणों में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी हुई है। इस दौरान कुल 124 अधिकारी-कर्मचारियों को एसीबी ने रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार किया है। इनमें सबसे ज्यादा राजस्व विभाग के हैं। राजस्व विभाग के एसडीएम से लेकर पटवारी तक कुल 36 अधिकारी-कर्मचारी रिश्वत लेते पकड़ाए हैं। इसके बाद स्कूल शिक्षा विभाग के 14, नगरीय प्रशासन के 6 और 8 कर्मचारी स्वास्थ्य विभाग के हैं। संचानालय में पहली बार डिप्टी डायरेक्टर स्तर के अफसर रंगे हाथों गिरफ्तार हुए हैं।
जानकारी के मुताबिक वर्ष 2019 में 17 अधिकारी-कर्मचारी रिश्वत लेते पकड़ाए थे। वर्ष 2020 में यह संख्या बढक़र 22 हो गई। इसके बाद वर्ष 2021 में 14 अधिकारी-कर्मचारी रिश्वत लेते एसीबी के हत्थे चढ़े हैं। वर्ष 2022 में 18 अधिकारी-कर्मचारी रिश्वत लेते पकड़ाए हैं। खास बात यह है कि वर्ष 2023 में रिश्वतखोरी के एक भी प्रकरण दर्ज नहीं किए गए थे। मगर वर्ष 2024 में 53 अधिकारी-कर्मचारी रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार हुए हैं। इनमें राज्य प्रशासनिक सेवा के दो अफसर शामिल हैं।
पिछले पांच सालों में जिन अधिकारी-कर्मचारियों के खिलाफ रिश्वतखोरी के प्रकरण दर्ज किए गए हैं, उनमें अनिल शर्मा सीएमओ अभनपुर, सब इंजी. सुरेश गुप्ता अभनपुर नगरीय प्रशासन, दीपक सिंह नामदेव जिला क्षेत्राधिकारी अंत्याव्यवसायी निगम सहकारिता, डॉ.अविनाश खरे स्वास्थ्य, मरिया नूसबेग स्कूल शिक्षा, नरेन्द्र बोरसे, पटवारी, बलौदाबाजार, रामअवतार दुबे राजस्व बिलासपुर, देवेश कुमार बघेल, उपसंचालक नगर निवेश, अब्दुल रऊफ खान, नगरीय प्रशासन, सत्यप्रकाश मधुकर, उपअभियंता नगरीय प्रशासन, आकांक्षा मेमन पटवारी, सुरेश कुर्रे श्रम, अमर दहायत पटवारी, मंजू एक्का सहायक ग्रेड-2 राजस्व, ए.आर. खान सहायक ग्रेड-1 स्वास्थ्य, धीरेन्द्र सिंह परिहार जेल प्रहरी, कोरबा, संतोष पांडेय स्टेनो कलेक्टर कार्यालय बैकुंठपुर, बी.आर.कैवत्र्य सहायक ग्रेड-3, एस.भट्टाचार्य रेलवे, बी.एल.साहू मुख्य लिपिक स्वास्थ्य, सुभाशीष सरकार रेलवे, सुमित्रा सिदार राजस्व, गिरवर कुशवाहा स्वास्थ्य, पटेल राम राजवाड़े स्कूल शिक्षा, श्रीमती लोचन साहू राजस्व, नवीन कुमार देवांगन समन्वय रूर्बन मिशन पंचायत, कपूरचंद साहू स्कूल शिक्षा, राजबहादुर सिंह राजस्व, अमन पालीवाल नगरीय प्रशासन, नितिन सिंह बैस सहायक संचालक ग्रामोद्योग, विनय कुमार सिन्हा सहायक ग्रेड-2, सरगुजा जल संसाधन, कमलेश कुमार मिरी नायब तहसीलदार जशपुर, दीपक कुमार यादव सहायक ग्रेड-3, पशु चिकित्सा, सुनील सिंह राजपूत उपयंत्री पंचायत एवं ग्रामीण विकास, युधिष्ठिर पटेल बरमकेला पटवारी, मनीष प्रभाकर शाखा प्रबंधक ग्रामीण बैंक महासमुंद, अनुज सिन्हा पटवारी सूरजपुर, सुनील कुमार अग्रवाल उपअभियंता बलौदाबाजार, विनय कुमार गुप्ता सीईओ जनपद सदस्य बलरामपुर, प्रमोद गुप्ता सहायक ग्रेड-2 स्कूल शिक्षा, किशोर मेश्राम स्कूल शिक्षा, गजेन्द्र चन्द्रवंशी राजस्व, कुलेश्वर गायकवाड़ मुख्य कार्यपालन अधिकारी बलौदाबाजार, मुकेश कुमार मिताई पटवारी, अमित कुमार गुप्ता पटवारी, डॉ.एन.के. अग्रवाल सहायक संचालक, रथराम बंजारे सहायक ग्रेड-2, सत्यनारायण साहू बलौदाबाजार स्कूल शिक्षा, मुनेश्वर राम सहायक ग्रेड-2 राजस्व, डी.डी.जायसवाल ईई पंचायत एवं ग्रामीण विकास, प्रमोद कुमार श्रीवास्तव पटवारी, शिवधर ओझा स्कूल शिक्षा विकास नारंग यातायात, हनी कश्यप क्लर्क, एन.एस.मरावी राजस्व, आर.बी. चौरसिया एसडीओ, आर.बी.सिंह, डी.के.आचार्य जल संसाधन, नीलकमल सोनी पटवारी जामुल, जुगेश्वर प्रसाद सहायक ग्रेड-2, भूपेन्द्र ध्रुव पटवारी धमतरी, रविशंकर खलको सहायक ग्रेड-2, मुकेश कुमार साव सब इंजीनियर, परमजीत सिंह गुरूदत्ता कृषि, उमाशंकर गुप्ता, सवित त्रिपाठी पशु चिकित्सा, गजेन्द्र गौतम, संजय कुमार, योगेश कोरी वन, करूण डहरिया सीईओ ग्रामीण विकास, राजेश मड़ावे एसडीओ पीएचई, रामगोपाल साहू राजस्व, आशुतोष तिवारी, अमित दुबे कैशियर, टी.आर. मेश्राम कार्यपालन अभियंता जल संसाधन, संतोष देवांगन राजस्व निरीक्षक, मिलन भगत वन, नीलेश्वर कुमार ध्रुव, बालकृष्ण चौहान आवास एवं पर्यावरण, अरविन्द गुप्ता, संकट मोचन राय, रमेश कुमार देशलहरे, राजेश्वर दास मानिकपुरी राजस्व, डी.सी.सोनकर नगरीय प्रशासन, देवेन्द्र स्वर्णकार उपअभियंता, भागीरथी खांडे, कविनाथ सिंह उइके, अबीरराम, धमरपाल दास सरगुजा, माधव सिंह एएसआई, विवेक कुमार परगनिया राजस्व खैरागढ़, विजय कुमार पटवारी पामगढ़, वेदवती दरियो टीआई महिला थाना रायपुर, खीरसागर बघेल नायब तहसील धमतरी, संकेत कुमेटी सहायक ग्रेड-2 नारायणपुर, सूरजकुमार नाग सहायक अधीक्षक, डॉ. वेणुगोपाल राव स्वास्थ्य, धर्मेन्द्र साहू, देवसिंह बघेल, सौरभ ताम्रकार, प्रभारी एसडीओ छुईखदान, हरीशंकर राठिया राजस्व, बृजेश कुमार मिश्रा पटवारी, गौतम सिंह आयाम, दिनेश कुमार उपसंचालक, हिमेन्द्र ठाकुर, लितिपुष्प लता बेक, नरेन्द्र राउतकर, वेदप्रकाश पांडेय, ओमप्रकाश नवरत्न, वीरेन्द्र पाण्डेय सरगुजा पटवारी, सत्येन्द्र सिन्हा पंचायत, रामायण प्रसाद पाण्डेय नगरीय प्रशासन, पुरूषोत्तम गौतम राजस्व, अरूण दुबे स्कूल शिक्षा, महेन्द्र ध्रुव पटवारी, टेकराम माहेश्वरी, एसडीएम, गौवकरण सिंह बघेल नगर सैनिक, देवकुमार सिंह, अश्वनी राठौर, धीरेन्द्र लाटा राजस्व, रामकृष्ण सिन्हा, संजय सिंह, श्रीनिवास एसईसीएल शामिल हैं।
टाटा मेमोरियल अस्पताल के डॉक्टरों की सलाह पर डॉक्टर दंपति कौंदकेरा पहुंचा
महासमुंद के किसान ने खेतों में बोया था
-उत्तरा विदानी
महासमुंद, 27 दिसंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। कैंसर रोधी दवा के रूप में संजीवनी चावल का उपयोग अब शुरू हो चुका है। एक हफ्ते पहले रायुपर से महासमुंद पहुंचे एक डॉक्टर दंपति से इसकी शुरुआत हुई है। संजीवनी चावल की प्रजाति की खोज इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय रायपुर में हुई है और कौंदकेरा के किसान योगेश्वर चंद्राकर ने इसे अपने खेत के थोड़े से हिस्से में उगाने की शुरुआत की है। हाल ही में संजीवनी कैंसर अस्पताल रायपुर के डॉक्टरों की सुझाव पर डॉक्टर दंपति ने इसे दवा के रूप में शुरू किया है।
नाम न छापने की शर्त पर डॉक्टर दंपति ने बताया कि देशी-विदेशी की दवाईयां खाते-खाते लाखों खर्च हो गए, लेकिन मर्ज पूरी तरह ठीक नहीं हो रहा था। एलोपैथी इलाज से आराम तो मिलता था लेकिन कुछ दिनों के बाद समस्या फिर से उठ खड़ी होती थी। अब उन्होंने संजीवनी चावल की शुरुआत की है। यदि यह उनकी बीमारी ठीक करता है तो विश्व में यह पहली खोज होगी, जो कैंसर को जड़ से खत्म करेगा।
मालूम हो कि ‘छत्तीसगढ़’ ने पहले ही संजीवनी चावल की खेती के बारे में खबर प्रकाशित की थी। योगेश्वर चंद्राकर ने कौंदकेरा स्थित अपने खेत में इसे बोया था। इस खेती को देखने विदेश से कुछ वैज्ञानिक कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के कृषि वैज्ञानिकों के साथ कौंदकेरा पहुंचे थे। एक महीने पहले ही संजीवनी धान पककर तैयार हुआ तो योगेश्वर चंद्राकर ने इसके बीजों को सहेजकर अपने घर में रख लिया।
अभी एक हफ्ते पहले ही यहां रायपुर निवासी एक डॉक्टर दंपति पहुंचे और चावल खरीदा। डॉक्टर दंपत्ति ने पहचान गुप्त रखने की बात कहते बताया-पत्नी को 4 साल पहले ओवेरियन कैंसर का पता चला। दो साल तक संजीवनी अस्पताल रायपुर से उच्च स्तरीय इलाज चला। एलोपैथी दवाईयां दी गई। आराम भी मिला, लेकिन कुछ दिनों के बाद फिर से लिंफनोड में कैंसर का लक्षण दिखने लगा। इसके बाद एम्स में मौखिक सलाह ली।
न्यूयार्क के डाक्टरों से भी लगातार सलाह लेते रहे। इससे पहले छत्तीसगढ़ केरिजनल और सेंटर डीके अस्पताल में इलाज जारी रहा। कीमो चलाकर देखा। एक साल तक ऐसा चला। कोई रिजल्ट नहीं आया। संजीवनी अस्पताल रायपुर से रंगीन सिटी स्केन में पता चला कि मर्ज घटने के बजाय बढ़ रहा है। तब जाकर संजीवनी अस्पताल के डॉक्टरों ने सलाह दी कि संजीवनी चावल का उपयोग दवा के रूप में लेने से कैंसर को जड़ से खत्म किया जा सकता है। इसके बीज राज्य के कुछ किसानों को उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से दिया गया है। वहां से चावल उपलब्ध हो सकता है।
इसके बाद डॉक्टर दंपति ने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय जाकर इसकी पूरी जानकारी ली। उन्होंने बताया कि ‘छत्तीसगढ़’ अखबार में कौंदकेरा में इसकी खेती के बारे में पढ़ा था, इसलिए गांव को ढूंढते वहां गया और किसान योगेश्वर चंद्राकर से मुलाकात की। उनसे पैकेट बंद 100-100 ग्राम चावल के तीन पैकेट लिए और टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के डाक्टरों से डोज के बारे में जानकारी ली।
उन्होंने बताया कि टाटा मेमोरियल अस्पताल के डॉक्टरों ने भाभा रिसर्च सेंटर की सलाह पर बताया है कि मरीज को लगातार दस दिनों तक 10-10 ग्राम चावल लेना है। चावल को पकाना नहीं हैं बल्कि इसे उबलते हुए पानी में भिगाना मात्र है। जब यह पूरी तरह भीग जाए तो इसे दो-दो चम्मच रोज कच्चा ही चबाकर खाना है। दस दिन तक लगातार इसे खाने के बाद अगले बीस दिन तक कोई दवा नहीं लेना है और बीस दिन बाद फिर से दस दिन ऐसा करना है। यह प्रक्रिया तीन महीने तक जारी रखना है। इस बीच कोई दवाई नहीं लेना है।
उन्होंने बताया कि यह केवल एक्सपेरीमेंट है। यदि इसका रिजल्ट वैज्ञानिकों के उम्मीद अनुसार आता है तो यह विश्व का पहला खोज होगा, जो कैंसर रोगियों के लिए वरदान साबित होगा।
इस मामले में इंदिरा गांधी एग्रीकल्चर कॉलेज रायपुर का कहना है कि संजीवनी चावल अभी ट्रायल में है। हमने इसके पेटेंट का सोचा है। टाटा मेमोरियल अस्पताल मुंबई में भी इसका पैकेट जा रहा है।
कैैंदकेरा के किसान योगेश्वर चंद्राकर ने बताया कि मुझे खेती किसानी के भिन्न-भिन्न तरीके का बदलाव पसंद है। संजीवनी धान के बारे में भाभा रिसर्च सेंटर का पढ़ा तो इंदिरा गांधी कृषि केन्द्र रायपुर जाकर इसकी पूरी जानकारी ली। वहां के वैज्ञानिकों से सलाह लेकर बीज अपने साथ लाया और इस साल खेत में बो दिया। अभी नया बीज तैयार है। थोड़े से रकबे ही बोया था। इसका चावल मशीन से नहीं निकाला जाता, बल्कि मूसल आदि से कूटकर निकाला जाता है ताकि चावल का बाहरी आवरण बिल्कुल भी नष्ट न हो। इसके बाद इसे 100-100 ग्राम के पैकेट में बंद करके रख लिया और पहला किस्त अभी-अभी जारी किया हूं। यह अभी तो पूरी तरह नि:शुल्क है। यदि रिजल्ट अच्छा आता है आगे एक एकड़ में इसकी बोनी करने की इच्छा है। वास्तव में यदि सक्सेज होता है तो विश्व का पहला खोज होगा जो कैंसर रोधी है।
अगले छह माह बस्तर के अंदरुनी इलाकों में संघर्ष
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 25 दिसंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। बस्तर के अंदरुनी इलाकों में सुरक्षाबलों के करीब 50 हजार जवानों, और दो हजार नक्सलियों के बीच लड़ाई निर्णायक मोड़ पर है। लड़ाई जीतने के लिए स्थानीय लोगों का समर्थन जुटाने की भरपूर कोशिश चल रही है। इस कड़ी में प्रभावित इलाकों में युद्धस्तर पर विकास हो रहा है, और सडक़, बिजली, पेयजल, और स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई जा रही है। पुलिस अफसरों का मानना है अगले छह महीने काफी महत्वपूर्ण रहेंगे, और नक्सलियों की प्रतिक्रिया का जवाब देने के लिए हरसंभव कदम उठाए जा रहे हैं।
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 31 मार्च 2026 तक नक्सलियों के सफाए का ऐलान कर चुके हैं। शाह इस सिलसिले में दो बड़ी बैठक ले चुके हैं। नक्सलवाद का केन्द्र बिन्दु छत्तीसगढ़ का बस्तर इलाका है, और सबसे ज्यादा नक्सली यहीं है। इसलिए यहां विशेष रूप से ध्यान दिया जा रहा है। पिछले दो साल से नक्सलियों के खिलाफ व्यापक अभियान चला है, और इसमें 219 नक्सली मारे गए। करीब साढ़े 8 सौ गिरफ्तार हुए, और 802 ने आत्मसमर्पण किया है।
बस्तर के बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, व कांकेर, और कोंडागांव में नक्सली सक्रिय हैं। सबसे ज्यादा नक्सली बीजापुर, सुकमा, और दंतेवाड़ा में हैं। घने जंगल-पहाड़, और दुर्गम होने की वजह से अंदरुनी इलाकों में नक्सलियों से लड़ाई आसान नहीं है। इन सबको देखते हुए नक्सलियों पर हमले के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर लोगों का समर्थन जुटाने के लिए अभियान चल रहा है। दुर्गम इलाके में स्थानीय लोगों का नक्सलियों के प्रति सकारात्मक रूख रहा है। इसलिए लड़ाई कठिन होती रही है। मगर अब स्थानीय स्तर पर लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए पुलिस ने सरकार के सहयोग से अभियान को सफलता मिली है। बड़ी संख्या में नक्सली मुख्यधारा में आए हैं।
एडीजी (नक्सल ऑपरेशन) विवेकानंद ने ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में कहा कि नक्सल प्रभावित इलाकों के रहने वाले परिवार के हर सदस्य को किसी न किसी योजना का लाभ मिले, यह सरकार की कोशिश है। इसके लिए ‘नियद नेल्ला नार’ योजना काफी अहम है।
उन्होंने कहा कि बीजापुर, और सुकमा के दुर्गम इलाकों के सडक़ बनाने के लिए बीआरओ भी जुट गई है। इससे पहुंचविहीन क्षेत्रों में आवागमन सुलभ हो पाएगा, और शासन की योजनाओं का लाभ वहां रहने वाले लोगों को मिल पाएगा।
नक्सल ऑपरेशन से जुड़े एक अफसर ने ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में सुरक्षाबलों के हौसले बुलंद हैं, लेकिन नक्सली जवाबी कार्रवाई करने के फिराक में भी है। इन सबको ध्यान में रखते हुए योजनाएं आगे बढ़ाई जा रही है। बस्तर में सीआरपीएफ के अलावा, बीएसएफ के साथ-साथ जिला पुलिस बल भी तैनात है। कुल मिलाकर 50 हजार से अधिक सुरक्षाबल मौजूद हैं। इन सबके बीच तालमेल काफी बेहतर हुआ है। यहां नक्सल ऑपरेशन की केन्द्रीय गृह मंत्रालय सीधे मॉनिटरिंग कर रही है।
सूत्र बताते हैं कि बीजापुर, दंतेवाड़ा, और सुकमा के अंदरुनी इलाकों में करीब दो हजार नक्सली मौजूद हैं, इनमें से एक हजार पूरी तरह प्रशिक्षित हैं, बाकी एक हजार ज्यादा प्रशिक्षित नहीं हैं।
बताया गया कि बीजापुर और सुकमा में ही करीब दो साल के भीतर 50 हेलीपैड बनाए गए हैं। इनमें से कुछ हेलीपैड में नाईट लैंडिंग की भी सुविधा है। यही नहीं, घायल जवानों को उचित स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए एयर एंबुलेंस भी तैयार रखे गए हैं।
जानकारों का मानना है कि सब कुछ ठीक रहा तो जून तक बीजापुर, सुकमा, और दंतेवाड़ा के अंदरुनी इलाकों के नक्सलियों का सफाया हो सकता है। पुलिस अफसरों का कहना है कि बाकी राज्यों में सौ-दो सौ से ज्यादा नक्सली नहीं हैं। छत्तीसगढ़ में संख्या हजार से ऊपर होने के कारण ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। राजनांदगांव के मानपुर-मोहला में तो नक्सल गतिविधियों पर तकरीबन काफी हद तक अंकुश लग गया है। यहां स्थानीय बल के अलावा आईटीबीपी के जवान तैनात हैं। बीजापुर में जून के बारिश शुरू हो जाती है। इससे पहले तक ऑपरेशन खत्म करने की तैयारी चल रही है। बहरहाल, बस्तर में आने वाले दिनों में नक्सलियों के खिलाफ भीषण लड़ाई होने के संकेत हैं।
शहरी नेटवर्क पर भी नजर
जांच एजेंसियां नक्सलियों के खुफिया नेटवर्क पर नजर रखी हुई है। पुलिस ने एक बड़े नक्सली प्रभाकर को गिरफ्तार किया था।
प्रभाकर पिछले दिनों दुर्ग आया था, और वहां अपना इलाज करा रहा था। अब पुलिस प्रभाकर जैसों से संपर्क रखने वालों की पतासाजी में जुट गई है। प्रभाकर से लगातार पूछताछ चल रही है। चर्चा है कि आने वाले दिनों में नक्सलियों के शहरी नेटवर्क का भी खुलासा हो सकता है।
पिछली बार कई बड़े नाम हुए थे बाहर
विशेष रिपोर्ट : राजेश अग्रवाल
रायपुर, 24 दिसंबर (‘छत्तीसगढ़’संवाददाता)। सर्वोच्च न्यायालय के 6 साल पुराने एक आदेश ने सूचना आयुक्तों की नियुक्ति को न केवल बेहद पेचीदा और सरकारों को जवाबदेह बना दिया है बल्कि इसमें राजनीतिक नियुक्तियों और सिफारिशों की संभावना भी खत्म सी हो गई है। हालत यह रही है कि छत्तीसगढ़ में इस साल सूचना आयुक्त के दो पदों पर आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों को भी इसी वजह से मौका नहीं मिल पाया।
मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर भी सरकार को तीसरी बार आवेदन मंगाना पड़ा है, जिसके लिए आवेदन करने की प्रक्रिया हाल ही में पूरी हुई है। छत्तीसगढ़ के मुख्य सूचना आयुक्त के पद से रिटायर्ड आईएएस एमके राउत नवंबर 2022 से रिटायर हो चुके हैं। उनकी जगह दो साल से खाली है। अब तीसरी बार फिर विज्ञापन निकालकर इस पद के लिए सरकार ने आवेदन मंगाए हैं। 29 नवंबर को जारी विज्ञापन में 16 दिसंबर को आवेदन की अंतिम तिथि रखी गई थी। हालांकि आवेदन करने वालों की सूची सामान्य प्रशासन विभाग की वेबसाइट पर अब तक डाली नहीं गई है। आवेदकों की सूची चयन प्रक्रिया शुरू होने के पहले कभी भी अपलोड की जा सकती है।
इस साल 2024 के मार्च माह में दो सूचना आयुक्तों का कार्यकाल खत्म हो गया। नई सरकार ने थोड़ी तत्परता दिखाई और जनवरी में ही इन पदों के लिए आवेदन मंगा लिए। सामान्य प्रशासन विभाग के सूचना का अधिकार प्रकोष्ठ में दर्ज जानकारी के अनुसार सूचना आयुक्त पद के लिए 200 से अधिक लोगों ने आवेदन किया था, जिनमें से 58 ऐसे प्रशासनिक अधिकारी जो या तो सेवानिवृत्त हो गए थे, या बहुत जल्द होने वाले थे। इनमें आईएएस डॉ. संजय अलंग, उमेश कुमार अग्रवाल, आईपीएस संजय पिल्ले, आईएफएस आशीष कुमार भट्ट जैसे नाम भी शामिल हैं। चयन समिति ने इनके मुकाबले आलोक चंद्रवंशी और नरेंद्र कुमार शुक्ला का नाम फाइनल किया और उनको नियुक्ति दी गई। इनमें शुक्ला सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हैं, पर उनकी नियुक्ति की वजह यह थी कि उनका बायोडाटा सुप्रीम कोर्ट के मापदंडों के सबसे करीब था।
दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका संख्या 436/2018, (अंजली भारद्वाज विरुद्ध केंद्र सरकार) के अपने निर्णय में सूचना आयुक्तों की नियुक्तियों के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान देने का निर्देश दिया। था जस्टिस ए के सीकरी और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की बेंच ने निर्देश दिया कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए ऐसे व्यक्तियों को चुना जाना चाहिए जिनके पास विधि, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, समाज सेवा, प्रबंधन, पत्रकारिता, जनसंपर्क या प्रशासन में व्यापक ज्ञान और अनुभव हो। शीर्ष न्यायालय ने यह भी निर्देशित किया कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति ऐसे व्यक्तियों से की जानी चाहिए जो किसी राजनीतिक दल से संबद्ध न हों और न ही कोई अन्य लाभ का पद धारण कर रहे हों। आदेश में यह भी कहा गया कि चयन करते समय केवल सेवानिवृत्त नौकरशाहों के आवेदनों को प्राथमिकता नहीं दें।
केंद्रीय सूचना आयोग में नियुक्तियों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक पारदर्शी प्रक्रिया का पालन करने की आवश्यकता को रेखांकित किया। इसमें प्रधानमंत्री, लोक सभा में विपक्ष के नेता और एक मंत्री शामिल हों। इसी के अनुरूप छत्तीसगढ़ में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए बनी समिति में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत और एक मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल शामिल थे।
हालांकि चयन के लिए रखी गई बैठक में डॉ. महंत किसी कारण से शामिल नहीं हो पाए थे। चंद्रवंशी और शुक्ला की नियुक्ति का निर्णय शेष दोनों सदस्यों ने लिया था। अब समिति में फेरबदल नहीं किया गया तो ये ही सदस्य निर्णय लेंगे। मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष तो रहेंगे ही, मंत्री को जरूर बदला जा सकता है।
मालूम हो कि, याचिका में उल्लेख था कि केद्रीय सूचना आयोग और राज्य के आयोगों में कई पद वर्षों से रिक्त चल रहे हैं और सरकारें इनमें नियुक्ति के लिए कोई प्रयास नहीं कर रही हैं। शीर्ष न्यायालय ने यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि सूचना आयोगों में रिक्त पदों को शीघ्र भरा जाए ताकि आरटीआई अधिनियम का प्रभावी कार्यान्वयन हो सके।
जिनके पास विधि, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, समाज सेवा, प्रबंधन, पत्रकारिता, जनसंपर्क या प्रशासन में व्यापक ज्ञान और अनुभव हो ऐसे आवेदकों की तलाश ही सूचना आयुक्त के योग्य उम्मीदवारों की तलाश में देरी की एक वजह बन रही है। सूचना आयुक्त के विज्ञापन की तरह ही सामान्य प्रशासन विभाग ने मुख्य सूचना आयुक्त के पदों का विज्ञापन जारी करते हुए इसका स्पष्ट उल्लेख किया है कि आवेदक का इन सभी सातों क्षेत्रों में कोई न कोई योगदान होना चाहिए।
बीते मार्च में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के समय आवेदनों को शार्ट लिस्ट करते समय इन सभी बिंदुओं पर चेक लिस्ट बनाई गई थी। उदाहरण के लिए डॉ. अलंग को प्रशासन का अनुभव तो था लेकिन बाकी क्षेत्र- विधि, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, समाज सेवा, प्रबंधन, पत्रकारिता-जनसंपर्क में अपनी सेवाओं का, यदि हो तो- उन्होंने आवेदन में इसका कोई जिक्र नहीं किया था। यही स्थिति दूसरे भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारियों की थी।
सूचना आयुक्त नियुक्त किए गए नरेंद्र शुक्ला आईएएस होने के कारण प्रशासन में दक्षता रखते हैं। इसके अलावा वे विधि स्नातक हैं। उन्होंने अपने आवेदन के साथ पत्रकारिता तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी में किए गए कार्यों का भी दस्तावेज दिया। इस तरह से सात बिंदुओं में से चार उनके अनुकूल रहे। इसी तरह दूसरे सूचना आयुक्त आलोक चंद्रवंशी के आवेदन में पत्रकारिता और जनसंपर्क को छोड़ शेष क्षेत्रों विधि, विज्ञान-प्रौद्योगिकी, सामाजिक क्षेत्र, प्रबंधन और प्रशासन के अनुभव का उल्लेख किया गया था। चेक लिस्ट की सात बिंदुओं में से पांच में उन्होंने अपने योगदान का विवरण दिया। हालांकि इनके अलावा भी कई आवेदक इसी तरह चार या पांच क्षेत्रों में अनुभव रखने वाले थे, पर संभवत: अनुभव के वर्ष कम या कार्यक्षेत्र इनके मुकाबले कम महत्व के थे, इसलिए उन्हें खारिज किया गया।
अब इन्हीं मापदंडों के आधार पर मुख्य सूचना आयुक्त का भी चयन होना है। चर्चा यह हो रही है कि एक बड़े अफसर, जो शीघ्र सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं, उन्होंने भी इस पद के लिए आवेदन किया है। उनके मुकाबले में कोई दूसरा आवेदन नहीं आने पर नियुक्ति सुनिश्चित समझी जा सकती है।
0 विदर्भ की 62 सीटों में घमासान, फडऩवीस, पटोले, बावनफूले जैसे दिग्गज की साख दांव पर
राजनांदगांव की सीमा पर छत्तीसगढ़ी गीतों से प्रचार
नागपुर-गोंदिया से लौटकर प्रदीप मेश्राम
राजनांदगांव, 17 नवंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। आगामी 20 नवंबर को नई सरकार चुनने जा रही महाराष्ट्र के विदर्भ की 62 सीटों पर पार्टी उम्मीदवारों के बीच मुकाबला रोमांचक हो चला है। खासतौर पर पूर्वी विदर्भ की कई सीटों में राजनीतिक दलों ने सियासी सफलता के लिए रिश्तेदारों को भी एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में उतारने से परहेज नहीं किया है। वहीं राजनांदगांव जिले की सीमा से सटे गांवों में भाजपा-कांग्रेस समेत अन्य दलों के उम्मीदवार अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए छत्तीसगढ़ी गीतों का सहारा ले रहे हैं। छत्तीसगढ़ी आधारित चुनावी गीतों के जरिये राजनीतिक दलों को पासा पलटने का भरोसा है।
पूर्वी विदर्भ के गढ़चिरौली के अहेरी सीट में पिता-पुत्री एक-दूसरे के खिलाफ सियासी तलवार ताने हुए खड़े हैं। भाजपा ने इस सीट पर धरमराव बाबा आतराम को अधिकृत उम्मीदवार बनाया है तो शरद पवार की एनसीपी ने धरमराव की बेटी भाग्यश्री आतराम को खड़ा कर दिया है। इस सीट पर आतराम परिवार के दो और सदस्य अंबिश आतराम और दीपक आतराम भी अपना भाग्य आजमा रहे हैं। इसी तरह उद्धव ठाकरे के सरकार में गृहमंत्री रहे नागपुर से सटे काटोल सीट से अनिल देशमुख ने अपने बेटे शलील देशमुख को शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से उम्मीदवार बनाया है।
पहले अनिल देशमुख के नाम का ऐलान किया गया था, बाद में उन्होंने बेटे को चुनाव लड़ाने के इरादे से अपना नाम वापस ले लिया। इस सीट की खासियत यह है कि अजीत पवार की पार्टी ने भाजपा से गठबंधन होने के बावजूद अनिल देशमुख नामक एक नया चेहरा सामने ला दिया है। जिससे यहां की लड़ाई रोमांचक हो चली है। अजीत पवार की पार्टी से लड़ रहे अनिल देशमुख खेतीहर मजदूर हैं।
इस बीच नागपुर जिले के सावनेर सीट में भी काफी गहमा-गहमी के साथ राजनीतिक लड़ाई चल रही है। इस सीट पर पूर्व मंत्री सुनील केदार ने अपनी पत्नी अनुजा केदार को कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतारा है। बीजेपी से आशीष देशमुख चुनाव लड़ रहे हैं। वह कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रंजीत देशमुख के पुत्र हैं। विदर्भ के कुछ और ऐसे जिले हैं, जहां कई बड़े राजनीतिक महारथी अपना भाग्य आजमा रहे हैं।
चंद्रपुर से सुधीर मुनगटीवार भाजपा से छठवीं बार किस्मत आजमा रहे हैं। मुनगटीवार वर्तमान महाराष्ट्र सरकार में बतौर वन मंत्री हैं। उनका पहली बार चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के संतोष रावत से मुकाबला है।
इस बीच विदर्भ के दिग्गज नेता पूर्व सीएम देवेन्द्र फडऩवीस, महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना भाऊ पटोले और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनफूले भी चुनाव मैदान में हैं। फडऩवीस नागपुर के दक्षिण-पश्चिम सीट से किस्मत आजमा रहे हैं। इसी तरह साकोली विधानसभा से पटोले भी जीत की उम्मीद लेकर लड़ रहे हैं। पटोले को मुख्यमंत्री का चेहरे के तौर पर देखा जा रहा है। उसी तरह कामठी विधानसभा से चंद्रशेखर बावनफूले भी चुनाव लडक़र विधानसभा में जाने जोर लगा रहे हैं।
राजनांदगांव जिले की सीमा से सटे गोंदिया और आमगांव सीट में भी रोमांचक लड़ाई छिड़ी हुई है। गोंदिया सीट से भाजपा के विनोद अग्रवाल और कांग्रेस के गोपालदास अग्रवाल के बीच दिलचस्प लड़ाई नजर आ रही है। महाराष्ट्र के आखिरी छोर वाले आमगांव देवरी विधानसभा सीट आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित है। इस सीट पर भाजपा ने संजय पुराम को उम्मीदवार बनाया है। पुराम 2014 में भी विधायक रहे हैं। हालांकि विधानसभा 2019 के चुनाव में वह पराजित हुए थे। कांग्रेस के नए चेहरे के रूप में राजकुमार पुराम को उतारा है। चुनावी तैयारी और नतीजों को लेकर कई राजनीतिक पंडितों और पत्रकारों की नजर है।
नागपुर के एक प्रतिष्ठित अखबार के रिजनल एडिटर संजय देशमुख ने ‘छत्तीसगढ़’ को बताया कि चुनावी रण में पार्टियां मतदाताओं को लुभाने के लिए कई अहम योजनाओं के जरिये अपना प्रभाव जमाने की कोशिश कर रही है। जिसमें लाड़ली बहना योजना और किसानों को कर्ज माफी जैसे मुख्य योजना शामिल है। इसी तरह चंद्रपुर के वरिष्ठ पत्रकार संजय तुमराम ने ‘छत्तीसगढ़’ से कहा कि इस बार का चुनाव काफी रोमांचकारी हो चला है। वजह यह है कि मौजूदा सरकार के कामकाज के आंकलन के आधार पर जनता वोट कर सकती है। कांग्रेस और एनसीपी भी सत्ता वापसी में जोर लगा रही है।
खरसिया उपचुनाव के बाद अर्जुन सिंह ने बदली थी नीति
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट- शशांक तिवारी
रायपुर, 8 नवंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। सरकार तेन्दूपत्ता नीति में बड़ा बदलाव करने जा रही है। खबर है कि तेन्दूपत्ता के करीब 19 फीसदी हिस्से का सरकारीकरण किया जाएगा। यानी बस्तर की सवा सौ से अधिक समितियों में तेन्दूपत्ता संग्रहण का काम सीधे सरकार की एजेंसी लघु वनोपज संघ करेगी। चर्चा है कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश पर तेन्दूपत्ता नीति में बदलाव किया जा रहा है। खास बात यह है कि लघु वनोपज संघ उन इलाकों में तेन्दूपत्ता संग्रहण का काम करेगी, जो कि नक्सल प्रभाव से काफी हद तक मुक्त हैं। जबकि धुर नक्सल इलाकों में तेन्दूपत्ता संग्रहण का काम व्यापारियों के मार्फत होगा।
सरकार तेन्दूपत्ता नीति में करीब 20 साल बाद बदलाव करने जा रही है। इससे पहले अविभाजित मध्यप्रदेश में वर्ष-1988 से राज्य बनने तक तेन्दूपत्ता कारोबार का सरकारीकरण चलता रहा है। गौर करने लायक बात यह है कि अविभाजित मध्यप्रदेश में खरसिया उपचुनाव के बाद तेन्दूपत्ता के कारोबार में ठेकेदारी प्रथा को खत्म कर तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने तेन्दूपत्ता कारोबार का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। उस वक्त तेन्दूपत्ता के कारोबार से दिग्गज भाजपा नेता लखीराम अग्रवाल का परिवार सीधे जुड़ा था। यह माना जाता है कि भाजपा के तेन्दूपत्ता कारोबारियों को झटका देने के लिए सरकारीकरण किया गया था जो कि खरसिया उपचुनाव में अर्जुन सिंह के खिलाफ थे।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद जोगी शासनकाल में पहली बार तेन्दूपत्ता नीति में बदलाव किया गया था, और वर्ष-2003 में पहली बार अविभाजित दंतेवाड़ा जिला (बीजापुर, दंतेवाड़ा, और सुकमा) में तेन्दूपत्ता संग्रहण का काम व्यापारियों के लिए खोल दिया गया। बाद में भाजपा सरकार बनने के बाद तेन्दूपत्ता कारोबार की सरकारी व्यवस्था को बंद कर दिया गया, और संग्रहण का काम व्यापारियों के मार्फत होने लगा।
सरकार ने तेन्दूपत्ता संग्रहण के लिए नीति बनाई हुई है, और 55 सौ रूपए प्रति मानक बोरी की दर से संग्राहकों से तेन्दूपत्ता खरीदी होती है। अब सरकार इस व्यवस्था में बदलाव कर रही है। भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक वन विभाग, और लघु वनोपज संघ के आला अफसरों ने मिलकर नई नीति बनाई है। नई नीति के संदर्भ में अगस्त महीने में मुख्य सचिव अमिताभ जैन की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय बैठक हुई थी।
कहा जा रहा है कि गृह मंत्रालय के निर्देश पर बनाई गई है। केन्द्र सरकार राज्य के सहयोग से पूरे इलाके को नक्सलमुक्त करने के लिए व्यापक अभियान छेड़ा हुआ है। ऐसे में धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास से जुड़ी कई योजनाओं पर काम चल रहा है। इसकी केन्द्र सरकार सीधे मॉनिटरिंग कर रही है।
सूत्रों के मुताबिक नई तेन्दूपत्ता नीति में अग्रिम विक्रय (व्यापारियों के मार्फत संग्रहण) और विभागीय संग्रहण-गोदामीकरण, दोनों व्यवस्था रहेगी। तेन्दूपत्ता का संग्रहण लघु वनोपज सिर्फ बस्तर संभाग की 129 समितियों में करेगी। बाकी बस्तर और राज्य के बाकी संग्रहण इलाकों की 773 समितियों में अग्रिम व्यवस्था के अंतर्गत तेन्दूपत्ता का संग्रहण किया जाएगा। यानी यहां व्यापारियों के मार्फत संग्रहण की व्यवस्था यथावत रहेगी। खास बात यह है कि बस्तर के अलावा दुर्ग, बिलासपुर, सरगुजा व रायपुर संभाग के कई जिलों में तेन्दूपत्ता का संग्रहण होता है। संग्रहण कार्य से करीब 13 लाख आदिवासी परिवार जुड़े हुए हैं।
कहा जा रहा है कि लघु वनोपज संघ ने जिन 129 समितियों में संग्रहण के लिए बीड़ा उठाया है, उनमें बीजापुर की 5, दंतेवाड़ा की 3, जगदलपुर की 15, सुकमा की 12, कांकेर की 20, भानुप्रतापपुर की 28, दक्षिण भानुप्रतापपुर की 25, नारायणपुर की 5, कोंडागांव की 9, और केशकाल की 5 समितियां हैं। बस्तर में 216 प्राथमिक सहकारी समिति हैं, जिनमें से 129 में ही लघु वनोपज संघ की खरीदी होगी। इन समितियों में तेन्दूपत्ता संग्रहण का लक्ष्य 3 लाख 7 हजार 2 सौ मानक बोरा है जो कि कुल संग्रहण लक्ष्य 16 लाख 72 हजार मानक बोरा है। यानी 18.4 फीसदी की ही लघु वनोपज के माध्यम से संग्रहण किया जाएगा। तेन्दूपत्ता की नई नीति को कैबिनेट की बैठक में रखा जाएगा। कैबिनेट की मंजूरी के बाद लघु वनोपज संग्रहण के लिए प्रशासनिक तैयारी करेगा। तेन्दूपत्ता संग्रहण का कार्य मार्च से शुरू होकर जून तक चलता है। चर्चा तो यह भी है कि जिन इलाकों में संग्रहण के काम में दिक्कत आएगी, वहां व्यापारियों को दिया जा सकता है। बहरहाल, विभाग जल्द ही नई नीति का ऐलान करेगा।
5 साल में खुले 117 कैंप, 20 में से 6 हजार वर्ग किमी तक सिमटे नक्सली
‘छत्तीसगढ़’ से विशेष बातचीत- प्रदीप मेश्राम
रायपुर, 13 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। बस्तर रेंज आईजी सुंदरराज पी. यह मानकर चल रहे हैं कि नक्सल समस्या के खात्मे के लिए पुलिस सिर्फ मुठभेड़ पर भरोसा नहीं कर रही है। बार-बार नक्सलियों से समर्पण के जरिये मुख्यधारा में लौटने की अपील की जा रही है। आईजी का मत है कि जल-जंगल और जमीन पर आदिवासियों का नारा नक्सलियों का शिगूफ़ा मात्र रह गया है। वक्त के साथ बस्तर की फिजा बदल रही है। बस्तर के अंतिम छोर पर बसे लोग भी आगे बढऩा चाहते हैं।
0 - हाल ही में दंतेवाड़ा-नारायणपुर बार्डर में हुई अब तक की सबसे बड़ी मुठभेड़ पर आपका क्या कहना है ?
00 - पुलिस हर मोर्चे पर पूरी ताकत लगाकर नक्सलियों का सामना कर रही है। दंतेवाड़ा-नारायणपुर बार्डर मुठभेड़ में मिली सफलता पुलिस के बढ़ते हौसले का परिणाम है। ऐसे आपरेशन आगे भी होते रहेंगे।
0 - आईजी के तौर पर आप बस्तर में किस तरह का बदलाव देखते हैं?
00- बीते पांच वर्षों में बस्तर के सातों जि़लों में व्यापक बदलाव हुए हैं। हमने कोर नक्सल इलाकों में सबसे पहले सडक़ों का जाल बिछाया। जिसमें बासागुड़ा-जगरगुंडा, बीजापुर से मिरतूर, सिलेगर से पूवर्ती, भेज्जी से चिंतागुफा, चिंताराम से किस्टाराम जैसे महत्वपूर्ण इलाकों में सडक़ें बनाई। पुलिस की मौजूदगी में कांकेर, नारायणपुर, कोंडागांव इलाकों में भी सडक़ें बनाई गई है। यह बदलाव का पहला चरण है।
0- सुरक्षा कैम्पों को लेकर नक्सली मुखर रहते हैं कि कैम्प आदिवासियों के हित में नहीं हैं, इस पर आप क्या कहेंगे।
00- सुरक्षा कैम्पों के कारण ही आज बस्तर में शांति व अमन कायम हो रहा है। नक्सली आदिवासियों को ढ़ाल बनाकर अपने मंसूबों को पूरा करते हैं। अब बस्तर का हर बाशिंदा नक्सलियों के चाल-चरित्र को समझ गया है।
0- जल-जंगल-जमीन की बस्तर में क्या स्थिति है। तेजी से औद्योगिकीकरण के खिलाफ नक्सली क्यों है?
00- जल-जंगल-जमीन नक्सलियों के लिए एक शिगूफा मात्र है। नक्सलियों की दोहरी नीति उनके सफाए के साथ खात्मे की ओर है। आदिवासियों को भी आगे बढऩे का मौका मिलना चाहिए। औद्योगिकीकरण का विरोध के पीछे नक्सलियों का स्वार्थ है।
0- भीतरी इलाकों में पुलिस की इमेज कैसी रह गई है?
00- बस्तर की जनता के साथ पुलिस का रिश्ता प्रगाढ़ होता चला जा रहा है। भीतरी इलाकों में पुलिस की साख अब बदल गई है। पुलिस मानवीय दृष्टिकोण के तहत पिछड़ेपन के शिकार गांवों को अपने जरिये बुनियादी सुविधाएं मुहैया करा रही है। पुलिस अपने कैम्पों में प्रसूति से लेकर अन्य चिकित्सकीय कार्यों में भी लोगों की मदद कर रही है।
0- लगातार मुठभेड़ों से नक्सली क्या बैकफुट पर हैं। क्या ऐसा लगता है कि यह समस्या चंद दिनों की है?
00- मैं कह सकता हूं कि पुलिस का वर्चस्व अब बस्तर के हर इलाके में है। पिछले 5 सालों में बस्तर के 7 जिलों के 20 हजार वर्ग किमी से नक्सली सिर्फ 6 हजार वर्ग किमी तक सिमटकर रह गए हैं। कोर एरिया कमेटी में सिलसिलेवार खुल रहे कैम्प से नक्सलियों में भगदड़ की स्थिति ही है। यह समस्या जल्द ही सुलझ जाएगी।
0- नक्सलग्रस्त बस्तर में विकास के रास्ते कैसे खुलेंगे?
00- नक्सलियों की स्थिति कमजोर होने के साथ समाप्ति की ओर भी बढ़ रही है। बस्तर एक खूबसूरत इलाका है। इसकी अपनी संस्कृति और वातावरण है, जो कि पर्यटन के लिहाज से पर्यटकों के लिए एक मुफीद वजह है। पर्यटन के साथ-साथ भीतरी इलाकों में बन रही सडक़ों से ट्रांसपोर्टिंग और मैनपावर बढ़ेंगे। एनएमडीसी का उद्योग बस्तर की आर्थिक ताकत को मजबूती देगा। यह तमाम बातें है जो विकास के द्वार खोलने के लिए काफी है।
0- नक्सलियों के लाल गलियारे पर आपका क्या कहना है?
00- नक्सलियों का लाल गलियारा अब एक सपना रह गया है। वजह यह है कि बस्तर में इनकी जड़ें कमजोर हो गई है। भर्तियां नहीं होने से नक्सली संगठन लडख़ड़ा रहा है। वहीं बस्तर के नक्सलियों के साथ तेलुगू कैडर के नक्सल नेताओं का सौतेला व्यवहार सर्वविदित है। पिछले कुछ सालों से नक्सलियों के तेलुगू कैडर के शीर्ष नक्सली अलग-अलग खत्म हो गए हैं। कुल मिलाकर लाल गलियारा तैयार करना दूर की सपना मात्र है।
0- बतौर आईजी आपकी ओर से जनता के लिए क्या संदेश है?
00- बस्तर की जनता बेहद भोली-भाली और शांतिप्रिय है। नक्सल विचार से उनका मोहभंग होने लगा है। जनता से लगातार हम बातचीत कर एक उन्मुक्त माहौल बनाकर मुख्यधारा में साथ चलने की अपील करते रहे हैं। निश्चिततौर पर नक्सलियों से जनता अब रिश्ता बनाने में रूचि नहीं है। आने वाला भविष्य बस्तर के लिए काफी उज्जवल है।
नारायणपुर के दुर्गम इलाकों में बढ़ रही पढ़ाई
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट- नारायणपुर से लौटकर प्रदीप मेश्राम
रायपुर 10 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। बस्तर के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र के नारायणपुर जिले में पढ़ाई बढ़ाने की प्रशासन की मुहिम को पुलिस की मदद से रफ्तार मिलने के बाद अपनी काबिलियत से अबूझमाड़ के एक छात्र ने विदेशी जमीं पर कदम रखा। पोटा केबिन से पढ़ाई शुरू करने वाले इस छात्र को विदेश भेजने में पुलिस और प्रशासन साझेदार रहे।
नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ के रहने वाले छात्र शबीर वड्डे का गांव टिकोनार नक्सलगढ़ के रूप में जाना जाता है। नक्सल डर के साए में रहने वाले इस गांव में महज 5 परिवार ही रहते हैं। तीस लोगों की आबादी वाले इस गांव से निकलकर शबीर ने नारायणपुर के पोटा केबिन में दाखिला लिया। विज्ञान में रूचि रखने की वजह से शबीर ने जापान के नोकोया विश्वविद्यालय में एक विज्ञान प्रदर्शनी में शामिल होने का मौका हासिल किया।
इस साल 16 जून से 22 जून को हुए विज्ञान प्रदर्शनी में शामिल होने वाले शबीर बस्तर रेंज से एकमात्र छात्र थे। शबीर के लिए यह चयन कई मायने में महत्वपूर्ण रहा। शबीर ने पहली बार हवाई सफर का अनुभव हासिल किया। वहीं पहली विदेश यात्रा की खुशी जापान के बुलेट ट्रेन की सवारी से दुगनी हो गई। वर्तमान में 12वीं में अध्ययनरत शबीर को जापान की सफल यात्रा के लिए पुलिस और प्रशासन ने आवश्यक दस्तावेज को तैयार करने में मदद की।
खास बात यह है कि शबीर का गांव पूर्ण रूप से निरक्षर है। नक्सल आतंक के चलते प्रशासनिक मशीनरी का गांव में दखल शून्य है। ऐसे में इस होनहार छात्र ने विदेशी जमीन पर अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में भाग लेकर अबूझमाड़ में एक नए उत्साह का माहौल बनाया है।
इधर नारायणपुर के रामकृष्ण मिशन स्कूल में अध्ययनरत अबूझमाड़ के कई छात्र-छात्राएं तालीम को लेकर काफी गंभीर है। धौड़ाई और ओरछा क्षेत्र के विद्यार्थी तकनीकी शिक्षा के साथ व्यावहारिक ज्ञान को विद्यार्थियों ने चुना है। अबूझमाड़ के विद्यार्थी खेल, संगीत, चिकित्सा, इंजीनियर और अन्य क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं। हालांकि नक्सलियों के आतंक के चलते विद्यार्थी अपना नाम छुपाने पर जोर देते हैं। नाम नहीं छापने की शर्त पर कुतुल, अतलानार, सोनपुर, ओरछा क्षेत्र के कई विद्यार्थी बताते हैं कि शिक्षा से ही वह तरक्की की ओर जा सकते हैं। तालीम लेने के बाद उनके जीवन में कई बदलाव आए हैं।
माना जाता है कि इन विद्यार्थियों ने परोक्ष या परोक्ष रूप से नक्सल दंश को झेला है। छात्राएं भी शिक्षा के रास्ते अपना सुनहरा भविष्य गढऩे के लिए पूरी शिद्दत के साथ पढ़ रही हैं। बताया जाता है कि अबूझमाड़ से निकले इन छात्रों को आगे बढ़ाने के लिए सभी तरह की सहूलियत भी दी जा रही है। बहरहाल अबूझमाड़ के गांवों में शिक्षा से बदलाव की बयार चलने लगी है।
शिक्षा से ही बदलाव संभव - आईजी
बस्तर रेंज आईजी सुंदरराज पी. ने नारायणपुर के भीतरी इलाकों में शिक्षा के बदौलत हो रहे परिवर्तन को लेकर कहा कि शिक्षा से ही बदलाव संभव है। उन्होंने कहा कि प्रशासन के साथ पुलिस संयुक्त रूप से शिक्षा को लेकर अभियान चला रही है। जिसके अपेक्षित नतीजे सामने आ रहे हैं। विद्यार्थियों की समझ और बौद्धिक क्षमता में बढ़ोत्तरी इस बात का द्योतक है कि भविष्य अबूझमाड़ के होनहार छात्रों का है।
पुलिस कैपों में प्रसूति और आपातकालीन चिकित्सा
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट- बड़ेसेट्टी कैंप से लौटकर प्रदीप मेश्राम
रायपुर, 8 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। बस्तर के अंदरूनी इलाकों में आमतौर पर खुलने वाले सुरक्षा कैंप अक्सर पुलिस-ग्रामीणों की नोंक-झोंक की वजह से सुर्खियां बंटोरते रहे है, लेकिन एक पहलू यह भी है कि पुलिस कैपों ने बीहड़ इलाकों में एक सुरक्षित माहौल तैयार कर दिया है। परिणामस्वरूप गांवों में पीडीएस, अस्पताल और स्कूल भवनें खड़ी होने लगी है।
सुकमा से लगभग 40 किमी दूर बड़ेसेट्टी में तकरीबन तीन साल पहले खुले कैंप नेे एक बड़े हिस्से से नक्सल प्रभाव को लगभग खत्म कर दिया है। फरवरी 2021 में इस कैंप का नक्सल दबाव में ग्रामीणों ने महीनों विरोध करते आंदोलन किया था। नक्सलियों की इस रणनीति का जवाब देने पुलिस ने ग्रामीणों से नजदीकियां बढ़ाकर कैंप खुलने के फायदे गिनाए।
देर से सही बड़ेसेट्टी में अब पीड़ीएस भवन बनकर तैयार हो गया है। वहीं अस्पताल भवन निर्माणाधीन है। पीडीएस भवन में सप्ताह के एक दिन निश्चित तारीख में दूर-दराज से ग्रामीण सरकारी राशन ले रहे हैं। फूलबगड़ी थाना के अधीन बड़ेसेट्टी में कैंप खुलने से महज तीन साल पहले शीर्ष नक्सल नेताओं और कमांडरों का प्रभाव रहा। कैंप खुलने के करीब छह माह के भीतर बड़ेसेट्टी क्षेत्र के 22 सौ की जनसंख्या को नक्सल आतंक से जहां निजात मिली। वहीं आपातकालीन चिकित्सकीय सुविधा भी आसानी से मिलनेे लगी।
कैंप के प्लाटून कंमाडर देवेन्द्र धीवर ने ‘छत्तीसगढ़’ को बताया कि कैंप खुलने से अब वनवासी खुद को महफूज मान रहे हैं। कैंप में दवाई से लेकर आपात चिकित्सकीय सुविधा भी प्रदान की जाती है। गर्भवती महिलाओं को गंभीर स्थिति में कैम्पों की सहायता से वाहन उपलब्ध कराकर हायर सेंटर भेजा जा रहा है।
बताते हैं कि ग्रामीणों का अब कैपों को लेकर नजरिया भी बदला है। भले ही ग्रामीण खुलकर कैपों के हिमायती नहीं है, लेकिन गांवों में बुनियादी जरूरतों की परेशानी दूर होने से परिवर्तन दिख रहे हैं। कैंप खोलने के बाद अंदरूनी इलाकों में दौड़ रहे आटो और सवारी गाडिय़ों से मीलों पैदल चलने की मजबूरी से भी ग्रामीणों को छुटकारा मिला है।
बड़ेसट्टी में पढ़ाई को लेकर भी एक उन्मुक्त माहौल बन गया है। बोलचाल से हिचकने वाले ग्रामीण भी अब जवानों से बतियाते दिख जाते हैं। कैंपों की सुरक्षा में तैनात जवान भी ग्रामीणों के बदले रूख के बीच गांवों की पारंपरिक धार्मिक आयोजनों में शरीक हो रहे हैं। बहरहाल कैपों से भीतरी गांवों की बदलती आबो हवा के बीच बड़सेट्टी जैसे कुछ नए कैंप खोलने का पुलिस का अभियान बदस्तूर जारी है।
सुरक्षा कैंप ग्रामीणों के लिए - आईजी
बस्तर में कैंपों को लेकर आईजी सुंदरराज पी. ने कहा कि कैंप ग्रामीणों की सुरक्षा के लिए है। साथ ही बुनियादी सुविधाओं के लिए कैंप प्रशासन के साथ सहायक की भूमिका में है। निश्चित तौर पर बस्तर में कैपों के खुलने से सुरक्षा के लिए एक बेहतर परिस्थिति बनती दिख रही है।
नए शिक्षा सत्र से दाखिला, हर लोकसभा में एक
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 4 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। छत्तीसगढ़ में भले ही इंजीनियरिंग कॉलेजों की आधे से अधिक सीटें खाली रह गई हैं लेकिन सरकार आईआईटी की तर्ज पर नए इंजीनियरिंग कॉलेज खोलने की तैयारी कर रही है। सरकार ने नए शिक्षा सत्र से पांच लोकसभा क्षेत्र में सीजीआईटी (छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी) खोलने जा रही है।
तकनीकी शिक्षा सचिव एस भारतीदासन ने ‘छत्तीसगढ’ से चर्चा में कहा कि नए शिक्षा सत्र से रायपुर, कवर्धा, जगदलपुर, रायगढ़, और बस्तर में सीजीआईटी शुरू करने की तैयारी है। इसकी तैयारी चल रही है।
तकनीकी शिक्षा विभाग ने नए सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज खोलने की दिशा में कार्रवाई शुरू कर दी है। भाजपा ने अपने विधानसभा चुनाव के घोषणापत्र में आईआईटी की तर्ज पर हर लोकसभा क्षेत्र में एक सीजीआईटी खोलने का वादा किया था। नए सीजीआईटी खोलने के मसले पर सीएम विष्णुदेव साय के साथ तकनीकी शिक्षा विभाग के अफसरों की बैठक भी हो चुकी है। रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र में दो इंजीनियरिंग कॉलेज खोले जाएंगे। इनमें से एक जशपुर जिले में हो सकता है। अगले दो साल में प्रदेश के सभी लोकसभा क्षेत्रों में सीजीआईटी शुरू करने की सरकार की योजना है। कुल मिलाकर 11 लोकसभा क्षेत्र में 12 सीआईटी खोलने का प्रस्ताव है।
सूत्रों के मुताबिक पांच लोकसभा क्षेत्र में सीजीआईटी खोलने के प्रस्ताव को मंजूरी भी मिल गई है। यहां कॉलेज बिल्डिंग, और अन्य सुविधाएं जुटाने पर भी तेजी से काम चल रहा है। कहा जा रहा है कि पहले चरण में अस्थाई रूप से उस लोकसभा क्षेत्र के पॉलीटेक्निक कॉलेज की बिल्डिंग को लेकर सीजीआईटी शुरू किया जाएगा। नए शिक्षा सत्र यानी 2025 अप्रैल में यहां प्रवेश के लिए कार्रवाई भी की जाएगी।
बताया गया कि शिक्षकों की नियुक्ति, और ब्रांच आदि को लेकर विचार-विमर्श चल रहा है। कहा जा रहा है कि शिक्षकों की नियुक्ति अस्थाई तौर पर की जाएगी। इसके अलावा अन्य सुविधाएं जुटाने के लिए वित्तीय स्वीकृति ली जा रही है। सरकार के अफसरों का कहना है कि सीजीआईटी उच्च तकनीकी गुणवत्ता संस्थान के रूप में विकसित किया जाएगा। हालांकि प्रदेश में इंजीनियरिंग को लेकर विद्यार्थियों में रूझान कम देखने को मिला है।
प्रदेश में कुल 32 इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। इनमें से तीन इंजीनियरिंग कॉलेज रायपुर, बिलासपुर, और जगदलपुर में सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। बाकी तीन जगहों पर स्वशासी और 26 निजी इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। कुल मिलाकर 11 हजार 116 इंजीनियरिंग की सीटें हैं। इनमें से 3939 सीटें भर पाई है। बाकी सीटें खाली रह गई है।
पिछले कुछ सालों में आधा दर्जन से अधिक निजी इंजीनियरिंग कॉलेज बंद भी हो चुके हैं। इसके अलावा सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में भी शिक्षकों की कमी है। ऐसे में नए इंजीनियरिंग कॉलेज खुलने पर क्या स्थिति रहेगी, इस पर इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। मगर सरकार से जुड़े सूत्रों का दावा है कि ये सभी संस्थान उत्कृष्ट रहेंगे, और ऐसे में यहां प्रवेश के लिए विद्यार्थी आकृष्ट होंगे। यहां पीईटी के माध्यम से प्रवेश दिया जा सकेगा।
हिरौली कैंप और गंगालूर-नेलसनार रोड़ जवानों की शहादत की गवाह
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट : बीजापुर के गंगालूर से लौटकर-प्रदीप मेश्राम
रायपुर, 3 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। नक्सलियोंं के खिलाफ निर्णायक लड़ाई में बस्तर के दुर्गम इलाकों में सिलसिलेवार खुल रहे सुरक्षा कैंप और सडक़ों के फैलते जाल से नक्सलियों की जड़ें हिल रही हैं। कैंप खोलने और सडक़ बनाने पुलिस की रणनीति कारगर साबित हो रही है। बीजापुर जिले के गंगालूर से तकरीबन 15 किमी दूर हिरौली में पुलिस ने कैंप की शुरूआत कर नक्सलियों को चुनौती दी है। हिरौली कैंप खोलना पुलिस के लिए आसान नहीं रहा। कैंप खुलने के बाद विशेष केंद्रीय सहायता (एससीए) फंड से हिरोली-कांवडगांव के लगभग 1.53 किमी का सडक़ निर्माण किया गया। बीजापुर की जिला निर्माण समिति ने जान जोखिम में डालकर पहली बार इस इलाके के अंदरूनी गांव के लिए डामरयुक्त सडक़ 50 लाख की लागत से तैयार किया गया। इस कैंप में सीआरपीएफ को तैनात किया गया है। साथ ही युवा जवानों की कोबरा टीम नक्सलियों के लिए मुस्तैद है।
बताया जाता है कि कैंपों के जरिए पुलिस नक्सल समस्या का सफाया करने के लिए अलग-अलग तरीका अपना रही है। मसलन गांवों की बुनियादी समस्याओं का हल तलाश कर ग्रामीणों से नजदीकी बढ़ाने व नक्सल आतंक से मुक्त कराने पर जोर दे रही है। हिरौली कैंप की शुरूआत के खिलाफ नक्सलियों ने ग्रामीणों को ढाल बनाकर महीनों आंदोलन को हवा दी थी।
पुलिस का दावा है कि नक्सली कैंपों का विरोध कर अपनी साख को बनाए रखना चाहते हैं। कैंप खुलने के बाद अब कांवडग़ांव और आसपास के इलाकों में नक्सली गतिविधि कम हुई है। कंैप खुलने से आसमान से नजर रखने के लिए जवान हाई-डेफीनेशन के ड्रोन का उपयोग कर रही है। ड्रोन के उपयोग को लेकर भी नक्सली कई तरह के भ्रांति फैलाकर ग्रामीणों को बरगला रहे हैं। इसी तरह गंगालूर-नेलसनार जाने वाली मार्ग में पुलिस को कई जवानों की शहादत झेलनी पड़ी। इस मार्ग के निर्माण होने से नक्सलियों के ठिकाने अब सुरक्षित नहीं रह गए।
गंगालूर के बाद पुलिस अब सडक़ों को आधार बनाकर अंदरूनी इलाकों के पिछड़ेपन को दूर करने तेजी से आगे बढ़ रही है। बताया जाता है कि गंगालूर और नेलसनार के बीच रास्ता बनने से दंतेवाड़ा और बीजापुर की सरहद पर नक्सल घुसपैठ में कमी आने की संभावना है। इस सडक़ पर कई दफे मुठभेड़ के अलावा विस्फोट की घटनाएं हुए। सडक़ निर्माण के दौरान तैनात जवानों पर नक्सलियों ने जानलेवा हमला किया। कई जवानों की शहादत का गवाह बना यह मार्ग अब भी निमार्णाधीन है। इस मार्ग से करीब 5 किमी दूर स्थित हिरौली कैंप तक पहुंचना खतरे से खाली नहीं रहा। इसी तरह नेलसनार की ओर बढ़ते गंगालूर से शुरू हुए इस मार्ग में अब डामर बिछने से सडक़ चमचमाती दिख रही है।
बताया जाता है कि नक्सलियों ने कच्चे मार्ग को पक्की सडक़ बनाने का पुरजोर विरोध किया था। निर्माण के दौरान सडक़ से टिफिन बम और आईईडी कई बार जवानों ने गश्त के दौरान बरामद किया। इसके बावजूद पुलिस ने रोड़ बनाने और कैंप खोलने की मुहिम को बरकरार रखा। हिरौली कैंप खोलकर पुलिस ने अपना इरादा जाहिर कर दिया है। साथ ही सडक़ बनाने को एक अभियान के रूप में लिया है।
प्रदेश की कमिश्नरी में 15 हजार प्रकरण लंबित
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 2 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। सीएम विष्णुदेव साय की फटकार के बाद राजस्व प्रकरणों के निराकरण में थोड़ी तेजी आई है। फिर भी बस्तर, और बिलासपुर कमिश्नरी में राजस्व प्रकरणों के निपटारे में देरी हो रही है। बस्तर में तो सितंबर माह में एक भी प्रकरण नहीं निपटे हैं। हाल यह है कि प्रदेश की कमिश्नरी में अब भी 15 हजार राजस्व प्रकरण लंबित हैं।
प्रदेश में राजस्व प्रकरणों की सुनवाई में देरी हो रही है। सीएम ने कलेक्टर कॉन्फ्रेंस में इस पर नाराजगी जताई थी, और समय सीमा के भीतर राजस्व प्रकरणों के निपटारे के निर्देश दिए थे। बावजूद इसके बिलासपुर, और बस्तर कमिश्नरी में राजस्व प्रकरण की सुनवाई समय पर नहीं हो रही है। बिलासपुर कमिश्नर नीलम नामदेव एक्का के हटने के बाद से रायपुर कमिश्नर महादेव कांवरे बिलासपुर के भी प्रभार में हैं।
बताया गया कि सितंबर माह में बस्तर में एक भी प्रकरण नहीं निपटे हैं। जबकि बिलासपुर में 9 प्रकरणों का निपटारा हुआ है। सबसे ज्यादा दुर्ग में 61 प्रकरण निपटे हैं। रायपुर कमिश्नरी में 47, और सरगुजा में 8 प्रकरण ही निपट पाए हैं। कुल मिलाकर 7 महीने में बस्तर में 26, बिलासपुर में 10, दुर्ग में 445, रायपुर में 116, और सरगुजा में 101 प्रकरणों का निराकरण हुआ है।
बताया गया है कि प्रदेश में सबसे ज्यादा 6089 प्रकरण सरगुजा संभाग में लंबित हैं। जबकि रायपुर में 3278, दुर्ग में 1072, बिलासपुर में 2924, और बस्तर में 1631 प्रकरण लंबित हैं। प्रदेश की कमिश्नरी में कुल मिलाकर 14994 प्रकरण लंबित हैं। कुल मिलाकर अभी भी राजस्व प्रकरणों का निपटारे की रफ्तार काफी धीमी है।
आजादी के बाद पहली बार बीजापुर के कांवडग़ांव में बच्चे पढ़ रहे
बीजापुर के कांवडग़ांव से लौटकर - प्रदीप मेश्राम
राजनांदगांव, 30 सितंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। दक्षिण बस्तर के दुर्गम जिले बीजापुर के नक्सल प्रभाव वाले कांवडग़ांव गांव में गोला-बारूद के बजाय स्कूल में बच्चों के ककहरे की आवाज गूंज रही है। आजादी के बाद पहली बार खुले प्राथमिक स्कूल में बच्चे अब प्राथमिक शिक्षा की बुनियाद समझ से रूबरू हो रहे हैं। अस्थाई रूप से बांस से निर्मित स्कूल में भले ही गिनती के बच्चे बुनियादी शिक्षा हासिल कर रहे हैं। हालांकि नक्सल खौफ से खुलकर कोई भी खुशी का इजहार नहीं कर रहा है। गांव में स्कूल का मुंह देखने के लिए ग्रामीणों को 70 बरस से ज्यादा का वक्त लग गया।
बीजापुर मुख्यालय से करीब 50 किमी दूर कांवडगांव में पुलिस की मदद से प्रशासन ने प्राथमिक स्कूल की नींव रखी। इस साल जुलाई में खुले स्कूल में कुल 35 बच्चे इमला सीख रहे हैं। कांवडग़ांव नक्सलियों के कब्जे में रहा है। 300 की जनसंख्या वाला यह गांव अब तक निरक्षर रहा है। गांव की मौजूदा पीढ़ी ने स्कूल का कभी रूख नहीं किया।
स्कूल का पट खुलते ही आंगनबाड़ी और प्राथमिक स्कूल के बच्चों को विश्राम सिंह प्रजापति और एक अनुदेशक तालीम दे रहे हैं। स्कूल के पहले सत्र की शुरूआत से पहले बस्तर पुलिस को बारूद से भरे कांवडग़ांव के कच्चे रास्ते को पक्की सडक़ में बदलने के लिए कई दफे नक्सलियों से भिडऩा पड़ा।
स्कूल के शिक्षक प्रजापति ने ‘छत्तीसगढ़’ को बताया कि आजादी के बाद पहली बार स्कूल खुलने से शिक्षा-दीक्षा के लिए बच्चों के हाथ कॉपी-पुस्तक देखकर सुखद माहौल बना है। कांवडग़ांव का इतिहास नक्सली आतंक के चलते काफी डरावना रहा है। नक्सलियों के कई बड़े कैडर कांवडग़ांव में आए दिन धमकते रहेे हंै, जिस जगह पुलिस की मदद से प्रशासन ने स्कूल का बांस से निर्मित ढांचा तैयार किया है। वहां नक्सलियों की बैठकें और फरमान जारी होता था। स्कूल के जगह को पत्थर के शिलालेख से घेरा गया है। शिलालेखों में हार्डकोर नक्सलियों की मौत की वजह और उनके नक्सल संगठन को दिए योगदान का जिक्र है।
बताया जाता है कि नक्सली मारे गए साथियों के योगदान को ग्रामीणों के लिए खुद को एक त्याग के रूप में पेश करते हंै, ताकि गांवों में बसे ग्रामीणों का संगठन से मोह भंग न हो। स्कूल प्रारंभ होने पहले बस्तर पुलिस की निगरानी में 8 किमी दूर कांवडगांव के कच्चे रास्ते पर पक्की सडक़ का निर्माण किया गया है।
एक ग्रामीण ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि गांव में दाखिल होने से पहले एक बेरियर में लोगों को सवाल-जवाब देना पड़ता था। यानी नक्सली नए चहेरों को सघन जांच के बाद ही गांव में प्रवेश की अनुमति देते थे। पुलिस ने स्कूल खोलने से पहले गांव में नक्सलियों के ठिकानों को ध्वस्त किया। कांवडगांव में अब पीडीएस भवन, जल-जीवन मिशन की पानी टंकी और आंगनबाड़ी का नया भवन निर्माणाधीन है। कांंवडगांव में स्कूल खोलने से शिक्षा का एक उन्मृक्त माहौल बनने से पुलिस अपनेे अभियान को अगले गांव की ओर ले जाने की तैयारी कर रही है।
नक्सलियों को जवाब देने शिक्षा अहम हथियार- आईजी
सुरक्षा के साथ शिक्षा को लेकर पुलिस का एक सकारात्मक अभियान चलाने को लेकर बस्तर रेंज आईजी सुंदरराज पी. का कहना है कि नक्सली नहीं चाहते कि बस्तर के लोग शिक्षित हो। नक्सली सिर्फ वनवासियों को ढ़ाल बनाकर अपने स्वार्थो की पूर्ति कर रहे हैं, इसलिए हमने नक्सलियों के हिंसक रवैये का जवाब देने के लिए शिक्षा को हथियार बनाया है। जिसके बेहतर नतीजे भी सामने आ रहे हैं। पुलिस का शिक्षा के प्रति अभियान आगे भी जारी रहेगा।
500 मिलें लग चुकीं, नई पर रोक लगाने मिलर्स का आग्रह
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 27 सितंबर (छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। प्रदेश में पिछले पांच बरस में करीब पांच सौ नई राइस मिलें खुलीं हैं। हाल यह है कि कई मिलर्स को 60 दिन मिलिंग के लायक धान नहीं मिल पा रहा है। इस पर राइस मिल एसोसिएशन ने सरकार से नई राइस मिल को अनुमति नहीं देने का आग्रह किया है। साथ ही राइस मिल खोलने के लिए सब्सिडी खत्म करने का आग्रह किया है।
प्रदेश में राइस मिलों की संख्या 27 सौ से अधिक हो चुकी है। इसमें से तो पांच सौ राइस मिल पिछले पांच साल में खुलीं हैं। भूपेश सरकार ने राइस मिल उद्योगों को प्रोत्साहित किया था। पिछड़े क्षेत्रों में मिल लगाने पर करीब 60 लाख तक सब्सिडी दे रही है।
सरकार की नई नीति के बाद अब और मिल लगाने के लिए आवेदन आ रहे हैं। इस राइस मिल एसोसिएशन ने चिंता जताई है, और उद्योग सचिव से मिलकर सब्सिडी खत्म करने का आग्रह किया है।
राइस मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष योगेश अग्रवाल ने ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में कहा कि राइस मिलर्स अब परेशान हो रहे हैं। नई मिलें बड़ी संख्या में लग चुकी हैं। इसकी वजह से कई मिलर्स को 60 दिन मिल चलाने लायक धान नहीं मिल पा रहा है। इन सबको देखते हुए सरकार से आग्रह किया गया है कि मिल लगाने के सरकारी सब्सिडी खत्म किया जाए, अथवा नई मिल लगाने की अनुमति नहीं दी जाए।
दूसरी तरफ, उद्योग विभाग के एक अफसर ने ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में कहा कि अभी सी और डी कैटेगरी वाले इलाकों में मिल लगाने पर 60 लाख तक सब्सिडी दी जाती है। हालांकि अभी नई मिल लगाने पर रोक, या फिर सब्सिडी खत्म करने कोई प्रस्ताव नहीं है। फिर भी मिलर्स की मांग पर विचार किया जा सकता है।
प्रदेश में इस बार 1 करोड़ 45 लाख मीट्रिक टन धान खरीद हुई थी। उस अनुपात में अभी 2 लाख मीट्रिक टन धान का उठाव होना बाकी है। जबकि मिलर्स ने धान के उठाव के एवज में अभी 24 लाख टन चावल जमा नहीं कराए हैं। इसके लिए उन्हें नोटिस जारी किया जा रहा है।
रोक हटी, 35 लाख टन चावल-ब्रोकन निर्यात होता है...
केन्द्र सरकार ने चावल के निर्यात पर रोक को हटा दिया है। साथ ही उसना चावल के निर्यात पर ड्यूटी 20 से घटाकर 10 फीसदी कर दी है। छत्तीसगढ़ से हर साल करीब 35 लाख टन चावल-ब्रोकन का निर्यात होता है।
सरकार के इस फैसले से राईस मिलरों ने खुशी जताई है। पिछले तीन साल से अरवा चावल के निर्यात पर बैन लगी हुई थी। अब बैन को हटाने से निर्यात पहले की तरह सामान्य हो पाएगा।
बृजमोहन के तीखे तेवर
कंपनी पर एफआईआर होगी-जायसवाल
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 1 सितंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। यह एक ऐसा मामला है जिसमें डीकेएस सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में लाखों फूंकने के बाद भी गंभीर मरीजों को बेड तक ऑक्सीजन सुविधा मुहैया नहीं कराई जा सक रही है। हुआ यूं कि ऑक्सीजन टैंक तो बनकर तैयार है, लेकिन पिछले तीन साल से कंपनी ने आगे का काम रोक दिया है। अब सांसद बृजमोहन अग्रवाल की नाराजगी के बाद स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने पूरे मामले को संज्ञान में लिया है। जायसवाल ने कंपनी के खिलाफ एफआईआर की चेतावनी दी है।
स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में कहा कि गंभीर मरीजों की सुविधा के लिए पाइपलाइन बिछाकर ऑक्सीजन उपलब्ध कराने की योजना थी। मगर कंपनी ने आगे काम बंद कर दिया है। उन्होंने कहा कि विभागीय अफसरों को कहा गया है कि कंपनी को बुलाकर अधूरे काम को पूरा करा समय सीमा के भीतर ऑक्सीजन सुविधा उपलब्ध कराई जाए। अन्यथा कंपनी के खिलाफ एफआईआर कराई जाएगी।
बताया गया कि पिछली सरकार में डीकेएस सुपरस्पेशलिटी अस्पताल में स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाने के लिए कुछ नई योजनाएं शुरू की गई थी। इसमें गंभीर मरीजों के लिए बेड तक पाइपलाइन के जरिए ऑक्सीजन पहुंचाने का भी योजना थी। स्वास्थ्य विभाग ने सीजीएमसी के जरिए टेंडर बुलाया था, और हैदराबाद की कंपनी को काम भी दिया था। कंपनी ने वहां ऑक्सीजन टेंक भी बना दिया है, लेकिन आगे का काम रोक दिया है। यह काम पिछले तीन साल से अधूरा पड़ा है। कंपनी को करीब 59 लाख का भुगतान भी हो चुका है।
अस्पताल में बेड तक ऑक्सीजन नहीं पहुंचने का काम पूरा नहीं हो पाने के मामले पर पिछले दिनों रायपुर मेडिकल कॉलेज स्वशासी परिषद की बैठक में काफी चर्चा हुई। सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने इस पूरे मामले पर तीखे तेवर दिखाए, और आधे अधूरे काम करने पर कंपनी के खिलाफ एफआईआर करने के लिए कहा। बैठक में स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल भी मौजूद थे। उन्होंने भी इस पूरे मामले पर नाराजगी जताई, और विभागीय अफसरों से सवाल-जवाब किए।
सीजीएमसी से जुड़े सूत्रों ने बताया कि कंपनी ने यह कहकर आगे का काम करने से मना कर दिया है कि पाइप लाइन बिछाने का काम टेंडर की शर्तों में नहीं था। उन्होंने बकाया राशि के साथ-साथ पाइप लाइन बिछाने के लिए अतिरिक्त राशि देने की मांग की है। स्वास्थ्य मंत्री के सख्त रूख के बाद टेंडर की शर्तों का परीक्षण किया जा रहा है, और पाइप लाइन बिछाने का काम जल्द से जल्द काम शुरू करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।
कुछ सूत्रों का यह भी कहना है कि पिछली सरकार में भी तत्कालीन सचिव ने कंपनी पर दबाव भी बनाया था, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। यह भी चर्चा है कि डीकेएस प्रबंधन से जुड़े कुछ लोग कंपनी के पक्ष में रहे हैं। यही वजह है कि काम के लिए दबाव नहीं बन पाया है। बहरहाल, आने वाले दिनों में मामला तूल पकड़ सकता है।
जांच रिपोर्ट में खुलासा, 50 करोड़ के ट्रांसफार्मर हुए थे खाक
8 अफसर-कर्मियों को नोटिस
शशांक तिवारी की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 27 जुलाई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। गुढिय़ारी में पॉवर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी के क्षेत्रीय भंडार गृह चार महीने पहले आगजनी की जांच रिपोर्ट में कई चौकाने वाले खुलासे हुए हैं। रिपोर्ट में साफ-साफ कहा गया कि भंडार गृह के अफसर, और कर्मचारियों की लापरवाही की वजह से आग लगी। यह भी कहा गया कि आग बुझाने के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं किए गए। इसलिए बड़ी घटना घटित हुई। जांच रिपोर्ट के आधार पर आठ अफसर, और कर्मियों को नोटिस जारी किया गया है।
गुढिय़ारी में पॉवर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी के क्षेत्रीय भंडार गृह में विगत पांच अप्रैल 2024 को आग लगी थी। आग से 7251 ट्रांसफार्मर, और स्क्रैप के सामान जल गए। इससे 50 करोड़ 22 लाख का नुकसान हुआ। आग इतनी भयंकर थी कि गुढिय़ारी इलाका आग की चपेट में आ सकता था, और पूरे शहर की बिजली व्यवस्था चौपट हो सकती थी। मगर दो दिन तक आग बुझाने के लिए चलाए गए प्रयासों से जनहानि आदि को टाला जा सका।
सीएम विष्णुदेव साय ने घटना की उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए थे। जांच में सीनियर अफसरों को रखा गया था। इनमें मौजूदा एमडी (तत्कालीन ईडी) भीम सिंह कंवर, ईडी संदीप वर्मा, एडिशनल सीई यशवंत शिलेदार, एजीएम गोपाल मूर्ति, मुख्य सुरक्षा अधिकारी एश्रीनिवास राव और एसई डीडी चौधरी जांच कमेटी के सदस्य थे।
जांच कमेटी को पांच बिन्दुओं पर रिपोर्ट देने के लिए कहा गया था। इनमें आग लगने के कारण, दुर्घटना के लिए जिम्मेदार अधिकारी, कर्मचारी-एजेंसी, कंपनी को वित्तीय हानि और भंडार गृह के संचालन के लिए वैकल्पिक व्यवस्था, और अन्य दुर्घटनाओं के लिए सुझाव मांगे गए थे।
जांच कमेटी ने गुढिय़ारी पुलिस से सीसीटीवी के फुटेज लिए, और इसकी बारीक पड़ताल की। यह बताया गया कि आग संभवत: 33 केवी के एलआईसी फीडर में हुए फाल्ट से एलटी पोल में उत्पन्न स्पार्किंग में गिरी चिंगारी से लगी, जो कि एलटी खंभें के नजदीक की सूखी, और हरी घास, झाडिय़ों से प्रारंभ हुई, और ऑयली जमीन व स्टोर परिसर में रखे केबल ड्रमों, पुराने और नए ट्रांसफॉर्मर में तेजी से फैली।
सीसीटीवी में स्पष्ट तौर पर स्पार्किंग होने के एक से दो मिनट के बाद एलटी पोल के पास जमीन से धुंआ उठते दिखा, जो कि कुछ समय बाद आग की ज्वाला में तब्दील हो गया। फिर आग धीरे-धीरे बाउंड्रीवाल, और रोड साइड की बाउंड्रीवाल की तरफ बढ़ी, और तेजी से फैलने लगी।
दुर्घटना के लिए जिम्मेदार अफसर-कर्मी...
जांच रिपोर्ट में बताया गया कि आग एलटी खंभें के नजदीक की सूखी और हरी घास, झाडिय़ों से शुरू हुई, और ऑयली जमीन व स्टोर परिसर में रखे केबल ड्रमों, पुराने व नए ट्रांसफार्मरों में तेजी से फैली। सीसीटीवी के फुटेज में यह स्पष्ट हुआ है कि उस वक्त तेजी से हवा चल रही थी। जिसके कारण आग फैलने लगी। उसने स्टोर परिसर में रखे कंडक्टर ड्रमों, शेड में रखे मीटरों और अन्य सामानों को अपने चपेट में ले लिया।
आग लगने के समय स्टोर का कोई भी नियमित कर्मचारी उपस्थित नहीं था। यह बताया गया कि घटना के दिन सुबह 6 बजे से 2 बजे तक ही शिफ्ट ड्यूटी में नियमित कर्मचारी अभिषेक अवधिया की ड्यूटी थी, लेकिन वह भी किसी को सूचित किए बिना अनुपस्थित हो गया। अफसरों-कर्मियों के बयानों से पता चलता है कि स्टोर परिसर में उगी हुई घास, झाडिय़ों की नियमित कटाई और कटी हुई घास-झाडिय़ों का निस्तारण नहीं होने के कारण दुर्घटना घटी।
रिपोर्ट में बताया गया कि सुरक्षा सैनिकों को प्रारंभिक समय में सजक रहते हुए आग बुझाने के लिए उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करना चाहिए था, लेकिन उनके द्वारा कोई सारथक प्रयास नहीं किया गया। यह कहा गया कि आग लगने के प्रारंभिक समय पर आग बुझाने के उचित प्रयास नहीं होने से आग फैली, और आग बुझाने के लिए उपलब्ध संसाधनों का तुरंत उपयोग नहीं करने पर आग अनियंत्रित हो गई। कार्यपालन यंत्री स्टोर, स्टोर कीपर, नियमित कर्मचारी अवधिया के अलावा सुरक्षा सैनिक व सुरक्षा एजेंसी घटना के जिम्मेदार हैं।
जांच रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि कार्यपालन यंत्री नगर संभाग उत्तर द्वारा मांगी गई जानकारी न देकर अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर न होने का बतलाया गया। जो कि पॉवर कंपनी के प्रक्रिया के विपरीत है। इस तरह एलटी लाइन के रखरखाव में कार्यपालन यंत्री, सहायक यंत्री एसटी मेनटेंस, सहायक यंत्री गुढिय़ारी, और कनिष्ठ यंत्री द्वारा लापरवाही बरती गई। जिसके फलस्वरूप दुर्घटना घटी। जिसके लिए उपरोक्त अफसर जिम्मेदार हैं।
इन अफसर-कर्मियोंं को नोटिस
जिन अफसरों को नोटिस जारी की गई है। उनमें कार्यपालन यंत्री अजय कुमार गुप्ता, स्टोर कीपर, बंसत कुमार देवांगन, परिचायक अभिषेक अवधिया, कार्यपालन यंत्री अमित कुमार, सहायक यंत्री दिनेश कुमार सेन, कनिष्ठ यंत्री अभिषेक गहरवार, सहायक यंत्री नवीन एक्का, कनिष्ठ यंत्री नरेश बघमार हैं।
सुझाव
जांच समिति ने भंडार गृह संचालन के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने का भी सुझाव दिया है। यह कहा है कि स्टोर के पुर्नसंचालन किसी फायर प्रोटेक्शन विशेषज्ञ, एजेंसी से ड्राइंग डिजाइन और फायर प्रोटेक्शन प्रणाली संबंधी सलाह और अनुशंसा के आधार पर किया जाना चाहिए।
स्टोर परिसर के भीतर से जा रही डबल सर्किट 33 केवी लाइन और अन्य सभी ओवर हेडलाइनों को परिसर के बाहर शिफ्ट किया जाना चाहिए।
0 आकाशीय बिजली से सुरक्षा के लिए समुचित रेंज के मेटल ऑक्साइट लाइटिंग अरेस्टर लगाया जाए।
0 क्षेत्रीय भंडार गृह निश्चित अवधि के अंतराल में फायर आडिट कराया जाना चाहिए।
0 क्षेत्रीय भंडारों में बहुमूल्य सामाग्रियों और उपकरणों के फायर अथवा चोरी का इंश्योरेंस भी होना चाहिए।
0 जांच समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि डिपो स्टोरों को अधीक्षण यंत्री स्टोर, और कार्यपालन यंत्रियों और अन्य स्टाफ पूर्णत: मुख्य अभियंता के प्रशासनिक नियंत्रण में होना चाहिए।
ग्रामीणों ने कहा पहाड़ में जगह-जगह पड़ रही है दरार
अभिनय साहू की विशेष रिपोर्ट
अम्बिकापुर/उदयपुर, 27 जुलाई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। सरगुजा जिले के उदयपुर ब्लॉक अंतर्गत विश्व की सबसे प्राचीनतम नाट्यशाला रामगढ़ एवं पहाड़ के ऊपरी हिस्से पर भगवान राम का काफी पुराना मंदिर है। कहा जाता है कि महाकवि कालिदास के मेघदूत में वर्णित रामगिरि पर्वत यही है, जहाँ उन्होंने बैठकर अपनी कृति मेघदूत की रचना की थी। यहाँ पर विश्व की प्राचीनतम गुफा नाट्य शाला स्थित है। इसे रामगढ़ नाट्य शाला के नाम से भी जाना जाता है। स्थानीय मान्यता है कि 14 बरस वनवास के दौरान एक लंबा समय राम, लक्ष्मण, सीता का यहां व्यतीत हुआ था।
ग्रामीणों ने बताया कि अब विश्व की यह प्राचीनतम नाट्यशाला आस-पास के कोल माइंस के लिए किए जा रहे विस्फोट के कारण खतरे में पड़ गया है,जगह-जगह दरारें पड़ रही है। जानकारी के मुताबिक़ पुरातत्व,धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से देश भर में प्रसिद्ध रामगढ़ से महज 5 से 7 किलोमीटर की दूरी पर परसा ईस्ट एवं केते बासेन की खुली कोल खदान है। खदान में कोयला निकालने हेतु बारूद का उपयोग किया जाता है और बड़ी चट्टानों को तोडऩे के लिए बड़ी मात्रा में यहां बड़े विस्फोट होते हैं। रामगढ़ पहाड़ी के आसपास के लोगो ने बताया कि जब बड़े विस्फोट होते हैं तो रामगढ़ की पहाड़ी पर हल्की कंपन्न उत्तपन्न होती है। इन विस्फोटों से रामगढ़ की पहाड़ी को लगातार क्षति हो रहा है।जबकि प्रबन्धन यह मानने को तैयार ही नहीं है कि उनके कोल उत्पादन हेतु किये जा रहे बारूद विस्फोट का प्रभाव अगल-बगल के क्षेत्रों में पड़ रहा है।
बदातुर्रा के आधा दर्जन से अधिक पहाड़ी कोरवा की बस्ती में कभी भी हो सकता है गंभीर हादसा
हसदेव बचाओ आंदोलन से जुड़े रामलाल ने बताया कि रामगढ़ पहाड़ी पर कई हिस्से इस स्थिति में धीरे-धीरे पहुंच रहे हैं कि कभी भी कोई गंभीर हादसा हो सकता है। कई पत्थर बीच से टूट रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर कोल खनन हेतु किये जाने वाले विस्फोट के प्रभाव से जब धरती के अंदरूनी क्षेत्र में हलचल होती है तो उसके प्रभाव से कई हिस्से नीचे की ओर दब रहे हैं। जिसे समय के साथ भूस्खलन एवं प्राकृतिक प्रभाव बता कर स्थानीय वन विभाग के अधिकारी भी मौन साध लेते हैं।
उन्होंने कहा कि बदातुर्रा एक मुहल्ला है जहां पर कुछ पहाड़ी कोरवा परिवार रहते हैं और वहां सोलर सिस्टम भी लगाये गए हैं। इसके ऊपरी हिस्से पर रामगढ़ का एक हिस्सा लगातार क्षतिग्रस्त हो रहा जो यहां कभी भी गिर सकता है। इससे न सिर्फ सोलर सिस्टम क्षतिग्रस्त होगा बल्कि 7-8 लोगों की यह बस्ती भी प्रभावित होगी। कभी भी कोई गंभीर हादसा हो सकता है।
स्थानीय निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता क्रांति कुमार रावत कहते हैं-मैंने इसकी मौखिक शिकायत कई बार वन विभाग को की है लेकिन उस ओर उनका कोई ध्यान नहीं है। यदि कोई गंभीर घटना-दुर्घटना हुई तो जवाबदेही कौन लेगा। आगे क्रांति बताते हैं बड़े विस्फोट से रामगढ़ के ऊपर आने के लिए स्थानीय लोगों द्वारा बनाया गया पैदल रास्ता जिससे जानकार स्थानीय ही अधिकतर आते हैं वह भी किसी भी दिन बंद हो जाएगा। लगातार उसे क्षति पहुंच रही है। अब सवाल तो यह भी उठता है कि किसी प्रसिद्ध पुरातात्विक स्थल के नजदीक कोल खदान को पर्यावरणीय स्वीकृति कैसे मिल गई?
आंदोलन से जुड़े आनंद कुसरो कहते हैं ऐसा होने से एक गांव जो घाटबर्रा नाम का है उसका पूरा अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। भविष्य में वह गांव रहेगा ही नहीं। इससे आमजनमानस में नाराजग़ी है यदि इतने क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई शुरू हुई और कोल उत्पादन शुरू हुआ तो इस पुरातात्विक स्थल रामगढ़ के आसपास के क्षेत्र लगातार प्रभावित होंगे।
क्षेत्र में खदान नहीं खुलने देने को लेकर लगातार आंदोलन कर रहे स्थानीय लोगों में वहां के युवा काफी जागरूक हैं। युवा कहते हैं फिलहाल गांव, बस्ती, घर, जंगल के बाद अब लोगों की बड़ी चिंता यह है कि अब रामगढ़ का अस्तित्व भी संकट में है।खैर स्थानीय लोग वर्षों से आंदोलनरत हैं और लगातार आवाज़ उठा रहे हैं।
मैं मौके पर जाकर जांच करता हूं-एसडीएम
रामगढ़ पहाड़ी में आ रही दरार को लेकर छत्तीसगढ़ द्वारा उदयपुर एसडीएम बन सिंह नेताम सिंह से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि मैं तहसीलदार के साथ स्वयं मौके पर जाकर देखता हूं और जहां मीईनिंग के लिए ब्लास्ट हो रहा है उसकी डिस्टेंस कितनी है इसकी भी जांच करवाता हूं।साथ ही एसडीएम ने कहा कि पहाड़ के नीचे जहां पहाड़ी कोरवा लोग रह रहे है मैं वहां भी जाऊंगा।
दिनेश आकुला की विशेष रिपोर्ट
आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) का संभावित इंडिया गठबंधन में शामिल होना भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम हो सकता है। यह कदम विशेष रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए राज्यसभा में चुनौतियाँ पैदा कर सकता है।
वाईएसआरसीपी की मांग और संकेत
वाईएसआरसीपी ने हाल ही में लोकसभा के डिप्टी स्पीकर पद को विपक्षी इंडिया गठबंधन को आवंटित करने की मांग उठाई। पार्टी के महासचिव और राज्यसभा के नेता वी विजय साई रेड्डी ने एक सर्वदलीय बैठक में इस मांग को उठाते हुए कहा कि यह लोकतांत्रिक भावना को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। रेड्डी ने इस बात पर जोर दिया कि परंपरा के अनुसार, डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को दिया जाना चाहिए। यह पद काफी समय से खाली है और इसे विपक्ष के एक आम उम्मीदवार को दिया जाना चाहिए।
इंडिया गठबंधन के समर्थन के संकेत
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने हाल ही में दिल्ली के धरना स्थल पर वाईएसआरसीपी के साथ एकजुटता व्यक्त की। यादव ने वाईएसआरसीपी कार्यकर्ताओं पर हुए कथित हमलों की निंदा की और कहा कि वह इंडिया गठबंधन की ओर से जगन के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए वहां मौजूद थे। इसके अतिरिक्त, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने भी वाईएसआरसीपी को अपना समर्थन व्यक्त किया।
इंडिया गठबंधन में शामिल होने का संभावित प्रभाव
वाईएसआरसीपी के इंडिया गठबंधन में शामिल होने से राज्यसभा में विपक्ष की संख्या बढ़ जाएगी। वाईएसआरसीपी के पास राज्यसभा में 11 सांसद और लोकसभा में 4 सांसद हैं। यदि वाईएसआरसीपी इंडिया गठबंधन में शामिल होती है, तो राज्यसभा में विपक्ष की संख्या बढक़र 98 हो जाएगी, जो मोदी सरकार के लिए किसी भी बिल को पास करना मुश्किल बना सकती है।
बीजेपी के लिए संभावित चुनौतियाँ
राज्यसभा में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के पास बहुमत से 13 सीटें कम हैं। फिलहाल एनडीए के पास कुल 101 सांसद हैं, जबकि विपक्ष के पास 87 सांसद हैं। ऐसे में यदि वाईएसआरसीपी इंडिया गठबंधन में शामिल होती है, तो विपक्ष की संख्या बढक़र 98 हो जाएगी, जिससे राज्यसभा में भाजपा के लिए स्थिति कठिन हो जाएगी।
वाईएस जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआरसीपी का इंडिया गठबंधन में शामिल होना भाजपा के लिए राज्यसभा में एक महत्वपूर्ण चुनौती साबित हो सकता है। यह कदम भाजपा के लिए बिल पास करने में कठिनाई पैदा कर सकता है और विपक्ष को मजबूत बना सकता है। हालांकि, जगन मोहन रेड्डी ने अभी तक इस बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की है, लेकिन वर्तमान संकेत और घटनाक्रम इस दिशा में इशारा कर रहे हैं।
पंद्रह दिनों पहले कलेक्टर ने कहा-जल्दी ही भिजवाने की कोशिश करता हूं
उत्तरा विदानी की विशेष रिपोर्ट
महासमुंद, 24 जुलाई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। महासमुंद जिला प्रशासन की लापरवाही देखिये कि लोकसभा चुनाव के दौरान मतगणना के लिए स्कूलों में बच्चों के बैैठने के लिए रखी गई सैकड़ों कुर्सियां-टेबलों और कई स्कूलों से प्रधान पाठक तक के बैठने की रिवाल्विंग कुर्सियां उठा तक ले गए और मतगणना निपटने बाद उन्हें स्कूलों तक लौटाना भूल गए।
जानकारी अनुसार मतगणना के बाद स्कूलों के प्राचार्य और शिक्षक जिला प्रशासन से लगातार कुर्सी टेबलों को वापस करने की मांग करते रहे, पत्र व्यवहार भी किया। लेकिन किसी ने भी इस पर कोई पहल नहीं। स्कूल खुलने के बाद भी किसी का ध्यान इस ओर नहीं रहा। अब हालात यह है कि बारिश जारी है और बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं। इस बारिश में बच्चों के जमीन पर बैठने का श्रेय जिला प्रशासन को जाता है।
इस मामले की खबर ‘छत्तीसगढ़’ को पंद्रह दिनों पहले लगी थी। ‘छत्तीसगढ़’ ने खबर मिलते ही पहले कलेक्टर प्रभात मलिक को इसकी जानकारी दी और कुर्सी टेबलों को स्कूलों तक पहुंचाने की मांग की। इस पर कलेक्टर ने कहा कि जल्दी ही विभागीय अफसरों से इस बारे में बात करता हूं। इसके तुरंत बाद ‘छत्तीसगढ़’ ने जिला शिक्षा अधिकारी मोहन राव से बात की तो उन्होंने कहा था-मैं बाहर हूं आप हमारे विभाग के अफसर नंदकुमार सिन्हा जी से बात कर लीजिएगा।
अत: ‘छत्तीसगढ़’ ने शिक्षा विभाग के अधिकारी नंदकुमार सिन्हा से बात की तो उन्होंने कहा कि मुझे पता नहीं है फिर भी कोशिश करता हूं। एक अधिकारी ने तो यह भी कहा कि स्कूलों तक टेबल कुर्सियां पहुंच जाएंगी, आप इसे अखबार में प्रकाशित मत कीजिए, बेकार बात का बतंगड़ बनेगा। इतना कहने के बाद कलेक्टर से लेकर अधिाकरी तक सभी अपने वादे भी भूल गए। फोन पर ऐसी बात हुए पंद्रह दिन बीत गये हैं, लेकिन अधिकारियों के वादे तो वादे होते हैं, वादों का क्या?
यह तस्वीर जिला मुख्यालय के पास ही छह किलोमीटर दूर स्थित सोरिद स्कूल की तस्वीर है। आज ‘छत्तीसगढ़’ वहां पहुंचा, तो टेबलकुर्सी के अभाव में सातवीं कक्षा के बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ाई कर रहे थे। वहीं स्टेशन पारा स्कूल के प्राचार्य टेबल पर बैठकर अपना काम निपटा रहे थे।
मतगणना के वक्त जिला प्रशासन ने शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला सोरिद से 60, बम्हनी हायर सेकंड्री स्कूल से 60, लाफिन खुर्द हाई स्कूल से 30, मिडिल स्कूल लाफिन खुर्द से 33, शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला स्टेशनपारा से 39 कुर्सी-टेबल की व्यवस्था की थी। बच्चों की इन कुर्सियों के भरोसे जिला प्रशासन ने मतगणना भी करा दी और कुर्सी टेबलों को स्कूलों में पहुंचाने की कोशिश तक नहीं की।
तमाम स्कूल के शिक्षकों ने बातचीत में कहा कि 4 जून को मतगणना के बाद से कुर्सी टेबल को स्कूूलों तक पहुंचाने की मांग की जा रही है। लेकिन अधिकारियों की लापरवाही देखिये कि मतगणना के बाद 16 जून स्कूल खुलने के वक्त तक उनके पास पूरे 12 दिन थे कुर्सियों को स्कूलों तक पहुंचाने के लिए।
ठीक है कि गर्मी की छुट्टी के बाद स्कूल खुल गए। लेकिन बारिश शुरू हुई, तब भी अधिकारियों को बच्चों की हालत पर तरस नहीं आई।
आज 24 जुलाई है और अब तक कुर्सियों को स्कूलों तक नहीं पहुंचाया गया है। उन्हें इस खबर को किसी अखबार में छप जाने की चिंता भी नहीं है। खबर प्रकाशन के बाद शायद उनकी तंद्रा टूूटे और बच्चों को कुर्सी टेबल नसीब हो सके। बहरहाल देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चे गीली जमीन पर बैठकर पढ़ाई करने मजबूर हैं।
वन विभाग ने प्रस्ताव तैयार किया
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 3 जुलाई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। बस्तर के जलप्रपात तीरथगढ़ में सरकार कांच का पुल बनाने जा रही है। वन विभाग ने इसकी योजना तैयार की है। कांच का पुल करीब सौ मीटर लंबा होगा। विभागीय अफसरों का मानना है कि कांच का पुल बनने से पर्यटकों की संख्या में काफी इजाफा होगा।
बताया गया कि बिहार के नालंदा जिले के राजगीर शहर में कांच का पहला पुल बना है। यह पुल चीन के हांगझोऊ ब्रिज की तर्ज पर बनाया गया है। कांच के पुल की वजह से पर्यटन में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। कुछ इसी तरह तीरथगढ़ जल प्रपात में कांच का पुल बनाने की योजना तैयार की गई है।
तीरथगढ़ जल प्रपात को देखने के लिए बड़े पैमाने पर पर्यटक आते हैं। कांच का पुल बनने से पर्यटकों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हो सकती है। पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) सुधीर अग्रवाल ने बताया कि कांच के पुल के साइड सलेक्शन कर लिया गया है। पुल करीब 5 सौ मीटर की ऊंचाई पर होगा।
बताया गया कि राजगीर का पुल करीब 2 सौ मीटर पर है। कांच का पुल काफी सुरक्षित भी है, और एक समय में 50 से अधिक लोग आ-जा सकते हैं। तीरथगढ़ के पुल को यू-शेप में बनाने की योजना है। इस पर करीब 3 करोड़ का खर्च अनुमानित है। प्रस्ताव को मंजूरी मिलते ही पुल तैयार करने के लिए वर्क ऑर्डर जारी किया जाएगा।
80 फीसदी दिव्यांग, राशन कार्ड है, मतदाता भी
विशेष रिपोर्ट : उत्तरा विदानी
महासमुंद, 16 जून (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता )। जिले के भलेसर गांव में एक परिवार रहता है। इस परिवार के सदस्यों का राशन कार्ड है। मतदान भी करने जाते हैं लेकिन सर्वे सूची में नाम नहीं होने के कारण इस परिवार को प्रधानमंत्री आवास समेत कई योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है।
इस घर का एकमात्र कमाऊ युवक 80 फीसदी दिव्यांग है। सामने बरसात का मौसम है। कच्चे मकान के छप्पर में कवेलू कम छेद ज्यादा है। दीवारों में जगह जगह दरारें हैं, ऐसे में अपने मासूम बच्चों के साथ अनहोनी के डर से उक्त युवक ने यू-ट्यूब के जरिए प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से गुहार लगाई है। पंचायत से, जनपद से, जिला प्रशासन से गुहार लगा चुके शिव को मुख्यमंत्री से उम्मीद है कि किसी न किसी तरह से उनके रहने के लिए ठिकाना जरूर बनाएंगे।
वायरल यू ट्यूब वाली वीडियो की हकीकत जानने आज ‘छत्तीसगढ़’ शिव के घर पहुंचा। भलेसर गांव महासमुंद जिला मुख्यालय से लगा हुआ लगभग तीन किलोमीटर दूरी पर है। यहां पुराना पारा और नयापारा को मिलाकर लगभग दो हजार की आबादी है। गांव में अनुसूचित जाति के लोगों के लिए अलग बस्ती है नयापारा। शिव का परिवार इसी नयापारा बस्ती में रहता है। इनकी पत्नी और दो छोटे बच्चे हैं। परिवार में माता-पिता और छोटे भाई-बहन हैं। भाई-बहनों की शादी हो चुकी है। शिव अपने परिवार का सबसे बड़ा बेटा है।
बारहवीं कक्षा तक पढ़ा शिव पक्के मकानों में रंग रोंगन का काम करता था। आठ साल पहले देर शाम महासमुंद से काम करके घर लौट रहा था कि रास्ते में ही सडक़ दुर्घटना में वह गंभीर रूप से घायल हो गया। काफी इलाज के बाद भी शिव के कमर से नीचे का हिस्सा बेजान ही रहा।
अंतत: शिव ने इसे ही अपनी किस्मत मान समाज कल्याण विभाग से मिले मोटराइज्ड ट्राइसाइकिल के सहारे चौक चौराहों पर नगाड़ा, खिलौने आदि बेचने लगा। पत्नी किसी तरह शिव को जमीन से उठाकर ट्राइसाइकिल में बिठाती है और शिव बच्चों के रोटी की जुगाड़ में निकल जाता है।
शिव को एक ही चिंता है कि बारिश में उसका कच्चा मकान साथ नहीं देगा, ऐसे में परिवार का क्या होगा? ऐसा नहीं है कि गरीब, विकलांग और अनुसूचित जाति को मिलने वाली सरकरी योजनाओं की जानकारी शिव को नहीं है। वह पढ़ा लिखा है और इस हालत में वह दफ्तरों के चक्कर लगाता है। सभी जगह एक ही जवाब मिलता है कि सर्वे सूची में नाम नहीं है, इसलिए उसे प्रधानमंत्री आवास समेत किसी भी योजना का लाभ नहीं मिला है।
शिव ने मुख्यमंत्री श्री साय से जो निवेदन किया है वह इस तरह है..
मुख्यमंत्री महोदय, मैं आपका वोटर हूं। आपके प्रदेश के महासमुंद जिले में भलेसर गांव है, वहीं रहता हूं तीन चार पीढियों से। सर्वे सूची में पता नहीं क्यों मेरे परिवार का नाम नहीं है? मैं इतना जानता हूं बहुत कोशिशों के बाद मैं जिंदा हूं और अचल होकर भी परिवार का पालन पोषण करता हूं। मेरे हालात अपने आप मेरी कहानी कहता है। मैं दर-दर भटकता हूं। मुझे विकलांग पेंशन तक नहीं मिलता। आपके अधिकारियों को और क्या सबूत दूं?
थक हारकर आपसे गुजारिश कर रहा हूं कि कम से कम मेरे परिवार के लिए आवास और मेरे लिए विकलांग पेंशन की व्यवस्था कर दीजिए, वरना मिट्टी का जर्जर मकान मेरे परिवार को कभी भी खत्म कर देगा। मेरी बात आप सुन सकते हैं तो कहना चाहूंगा कि सर्वे सूची में नाम नहीं होने से किसी को मृत समझ लेना अन्याय है। मेरे जिंदा होने का सबूत है कि मैं अपने परिवार के साथ मतदान करने जरूर जाता हूं।
शिवकुमार टाण्डेकर के पिता विजय टांडेकर बताते हैं कि शिव के रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के कारण वह अचल है। इसके बाद से उसकी पत्नी, बच्चों और परिवार की हालत खराब है। जैसे तैसे जीवन यापन हो रहा है। अब कच्चा मकान भी जर्जर हालत में है। सर्वे सूची में नाम नहीं है, इसलिए आवास योजना और विकलांग पेंशन योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा हैं। प्रत्येक चुनाव में हम मतदान करते हैं।
लोकसभा चुनाव
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट : शशांक तिवारी
रायपुर, 6 जून (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। केंद्र में सरकार चाहे किसी की भी हो, राज्य गठन के बाद के अब तक के लोकसभा चुनाव में जनता का मिजाज खालिस भाजपा समर्थक का रहा है। इस बार भी भाजपा ने अपना दबदबा बरकरार रख 10 सीटें जीती है। जबकि कांग्रेस को एकमात्र कोरबा सीट पर ही जीत मिल पाई। खास बात यह है कि कांग्रेस का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन पिछले लोकसभा चुनाव में रहा, जब पार्टी दो सीट जीतने में कामयाब रही।
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद वर्ष-2004 में लोकसभा के चुनाव हुए। उस वक्त प्रदेश में भाजपा की सरकार थी, और डॉ. रमन सिंह मुख्यमंत्री थे। राज्य में विधानसभा चुनाव के छह महीने के बाद ही लोकसभा के चुनाव होते हैं। चूंकि राज्य गठन में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की भूमिका थी। इसका फायदा पहले चुनाव में मिला।
भाजपा प्रदेश की 11 लोकसभा सीटों में से 10 सीट जीतने में कामयाब रही। ये अलग बात है कि छत्तीसगढ़ की जनता के भरपूर समर्थन के बाद भी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की वापसी नहीं हो पाई, और केन्द्र में सत्ता परिवर्तन हो गया। उस वक्त प्रदेश में लोकसभा चुनाव से पहले काफी उठा पटक हुआ था।
भाजपा विधायक खरीद-फरोख्त की कोशिश में तत्कालीन सीएम अजीत जोगी को कांग्रेस ने निलंबित कर दिया था। इसकी सीबीआई जांच हुई थी। उनकी लोकसभा चुनाव के ठीक पहले वापसी हुई, और कांग्रेस ने महासमुंद सीट से प्रत्याशी बनाया। महासमुंद में पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में थे। चुनाव प्रचार के बीच जोगी का एक्सीडेंट हो गया। इससे उपजी सहानुभूति के चलते जोगी को बड़ी जीत हासिल हुई।
राज्य गठन के पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता डॉ. चरणदास महंत जांजगीर लोकसभा सीट से हार गए। हारने वालों में अविभाजित मप्र कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष परसराम भारद्वाज, रायपुर से पूर्व सीएम श्यामाचरण शुक्ल, बस्तर से महेंद्र कर्मा प्रमुख थे। अकेले अजीत जोगी प्रदेश से लोकसभा के सदस्य रहे।
वर्ष-2009 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा को सफलता मिली थी, और डॉ. रमन सिंह फिर मुख्यमंत्री बने। केन्द्र में उस वक्त डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार थी। मनमोहन सिंह सरकार ने मनरेगा जैसी योजनाएं लाकर लोकप्रियता हासिल की थी। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने विपक्ष में रहकर जोर शोर केंद्र की उपलब्धियों को प्रचारित भी किया था। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 38 सीटें मिली थी। लेकिन छत्तीसगढ़ में केन्द्र सरकार की उपलब्धियों का कोई खास फायदा नहीं हुआ। लोकसभा चुनाव में एकमात्र कोरबा सीट से डॉ. चरणदास महंत ही जीत पाए। बाकी सभी सीटों पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। जनता ने भाजपा को भरपूर समर्थन दिया।
हारने वालों में कांग्रेस नेताओं में बिलासपुर से डॉ. रेणु जोगी, भूपेश बघेल रायपुर से, देवव्रत सिंह प्रमुख थे। जबकि भाजपा से रमेश बैस, दिलीप सिंह जुदेव, सरोज पाण्डेय, बलीराम कश्यप आदि नेताओं ने अच्छी जीत हासिल की थी। इससे परे वर्ष-2014 के लोकसभा चुनाव में यूपीए सरकार के खिलाफ माहौल था, और नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने लहर थी।
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले विधानसभा के चुनाव में फिर भाजपा ने सरकार बनाई, और रमन सिंह के नेतृत्व में तीसरी बार सरकार बनी। मगर कांग्रेस का प्रदर्शन भी बेहतर रहा, और 39 सीटें जीतने में कामयाब रहीं। लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन एकदम फीका रहा, और एकमात्र दुर्ग सीट से ताम्रध्वज साहू चुनाव जीतने में सफल रहे। हारने वाले कांग्रेस नेताओं में अजीत जोगी महासमुंद से, रायपुर से सत्यनारायण शर्मा और कोरबा से डॉ. चरणदास महंत प्रमुख थे। उस वक्त डॉ. महंत केन्द्रीय मंत्री थे। भाजपा से सरोज पाण्डेय हारने वाली एकमात्र प्रत्याशी थीं।
वर्ष-2019 के चुनाव में अलग ही तरह का माहौल था। प्रदेश में 15 साल की भाजपा सरकार की बुरी हार हुई थी, और भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। कांग्रेस को कुल 90 सीटों में से 68 विधानसभा सीटों पर सफलता हासिल हुई थी। मगर 6 महीने के बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा।
कांग्रेस के कोरबा से ज्योत्सना महंत, और बस्तर से दीपक बैज ही चुनाव जीतने में कामयाब रहे। भाजपा ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस, अभिषेक सिंह सहित सभी 10 सांसदों की टिकट काटकर नए चेहरे को प्रत्याशी बनाया गया। भाजपा की यह रणनीति कामयाब रही, और 9 सीटें जीतने में कामयाब रही। भाजपा से जीतने वालों में दुर्ग से विजय बघेल, रेणुका सिंह, और अरुण साव प्रमुख थे। खुद भूपेश बघेल सीएम रहते उनके लोकसभा क्षेत्र दुर्ग में कांग्रेस की सबसे बड़ी हार हुई। भूपेश अपने विधानसभा क्षेत्र पाटन से भी कांग्रेस को बढ़त नहीं दिला पाए।
प्रदेश में इस बार यानी 2024 के चुनाव नतीजों में भाजपा का दबदबा कायम रहा।
ये अलग बात है कि देश के कई राज्यों में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। जनता ने भाजपा का समर्थन किया, और कोरबा संसदीय सीट को छोडक़र बाकी सभी लोकसभा सीटों पर चुनाव जीतने में कामयाब रही। हारने वालों में पूर्व सीएम भूपेश बघेल भी हैं। भाजपा से पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पाण्डेय को कोरबा सीट से हार झेलनी पड़ी है। यानी इस बार भी जनता का भरपूर समर्थन मिला है, और विधानसभा चुनाव से ज्यादा समर्थन दिया है।
सात सीट में कांग्रेस को नहीं मिली सफलता
राज्य बनने के बाद से अब तक के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 7 लोकसभा सीट नहीं जीत सकी है। इनमें रायपुर, बिलासपुर, कांकेर, रायगढ़, नांदगांव, जांजगीर-चांपा, और सरगुजा सीट है। हालांकि इनमें राजनांदगांव सीट में वर्ष-2004 के आम चुनाव में कांग्रेस हारी थी, लेकिन दो साल बाद सांसद प्रदीप गांधी की बर्खास्तगी के बाद उपचुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। लेकिन वर्ष-2009 के आम चुनाव में भाजपा यह सीट जीतने में कामयाब रही।
कांग्रेस को वर्ष-2004 में महासमुंद, दुर्ग, बस्तर और कोरबा सीट पर ही सफलता मिली है। इनमें से कोरबा सीट परिसीमन के बाद 2009 में अस्तित्व में आई, और अब तक के चार चुनाव में 3 बार कांग्रेस का कब्जा रहा है। कोरबा में पहले डॉ. चरणदास महंत, और पिछले दो चुनाव से उनकी पत्नी ज्योत्सना महंत चुनाव जीत रही है।
साय-बैस तीन बार जीते, भूपेश हारे
राज्य बनने के बाद सीएम विष्णुदेव साय और पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस तीन बार लोकसभा का चुनाव लड़े, और तीनों बार उन्हें भारी वोटों से जीत मिली। विष्णुदेव साय एक बार राज्य बनने से पहले और तीन बार बाद में रायगढ़ से सांसद रहे। इससे परे पूर्व सीएम भूपेश बघेल तीन बार लोकसभा का चुनाव लड़े, और तीनों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
भूपेश बघेल वर्ष-2004 में दुर्ग सीट से लड़े थे। उन्हें भाजपा के ताराचंद साहू ने हराया। इसके बाद वर्ष-2009 में रायपुर सीट से चुनाव लड़े, और पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस ने उन्हें हराया। इस बार पूर्व सीएम बघेल राजनांदगांव सीट से चुनाव मैदान में थे। जहां विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया था। मगर यहां भी भूपेश को भाजपा के संतोष पांडेय ने 44 हजार से अधिक वोटों से हराया।
नहीं पहुंच पाए शुक्ल बंधु संसद
पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल 9 बार लोकसभा के सदस्य रहे। इनमें से 7 बार महासमुंद, और दो बार रायपुर से सांसद बने। इसी तरह अविभाजित मप्र के पूर्व सीएम श्यामाचरण शुक्ल राज्य बनने के पहले महासमुंद से सांसद रहे, लेकिन इसके बाद पहले चुनाव में वर्ष-2004 में वो रायपुर से चुनाव लड़े, और उन्हें पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस ने बुरी तरह हरा दिया। इसी चुनाव के ठीक पहले पूर्व केन्द्रीय मंत्री शुक्ल भाजपा में शामिल हो गए, और भाजपा ने उन्हें महासमुंद सीट से प्रत्याशी बनाया। लेकिन उन्हें पूर्व सीएम अजीत जोगी से हार का सामना करना पड़ा।
महंत दंपत्ति तीन बार जीते
पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. चरणदास महंत तीन बार सांसद रहे। एक बार उन्हें वर्ष-2004 में जांजगीर-चांपा सीट से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद वर्ष-2009 में कोरबा लोकसभा सीट से जीते, और केंद्र में मंत्री भी बने। मगर 2014 के मोदी लहर में वो 41 सौ वोटों से हार गए। इससे परे उनकी पत्नी ज्योत्सना महंत दो बार लोकसभा का चुनाव लड़ी, और उन्हें जीत हासिल हुई। ज्योत्सना को पिछले चुनाव में ज्यादा वोटों से जीत हासिल हुई है।
वीरेश, खेलसाय दोनों बार हारे
कांकेर से कांग्रेस प्रत्याशी वीरेश ठाकुर को लगातार दो चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। दोनों बार नजदीकी मुकाबले में हारे हैं। वर्ष-2019 में साढ़े 6 हजार वोटों से पीछे थे, तो इस बार 1884 वोटों से हार गए।