अंतरराष्ट्रीय
-रियाज़ सुहैल
सोशल मीडिया पर पाकिस्तान के सिंध प्रांत का एक वीडियो रविवार को वायरल हो गया. सज्जाद चांडियो का जो वीडियो वायरल हुआ उसे बख़्तरबंद गाड़ी के अंदर रिकॉर्ड किया गया था और बाहर से लगातार गोलियों की आवाज़ आ रही थी.
डाकु 'धछको' से पुलिस पर निशाना लगा रहे थे. पाकिस्तान में स्थानीय भाषा में 12.5 और 12.7 एमएम की एंटी-एयरक्राफ़्ट गन को 'धछको' कहा जाता है.
वीडियो में सज्जाद चांडियो अपने वरिष्ठ अधिकारियों से उन्हें बचाने की गुहार लगा रहे थे और बता रहे थे कि उनके तीन साथी मारे जा चुके हैं जबकि दो अभी जीवित हैं.
इस दौरान उस बख़्तरबंद गाड़ी पर लगातार गोलियाँ लगने की आवाज़ें भी आती रहीं. वीडियो में उन्होंने लाशें भी दिखाईं और कहा कि ये उनका आख़िरी वीडियो है.
हालाँकि बाद में सज्जाद चांडियो और अन्य कर्मियों को दूसरी टीम ने पहुँचकर रेस्क्यू कर लिया था.
'बख़्तरबंद गाड़ी ताबूत बन गई'
सज्जाद चांडियो शिकारपुर के एक पुलिस अधिकारी हैं. वे उस बख़्तरबंद गाड़ी में सवार थे, जिसपर पिछले दिनों डाकुओं ने आधुनिक हथियारों से हमला किया था. इस हमले में दो पुलिसकर्मियों और एक फ़ोटोग्राफ़र की मौत हो गई थी.
बीबीसी से बात करते हुए सज्जाद ने कहा कि वे गढ़ी तिग़ानी कैंप में जमा हुए और फिर एक क़ाफ़िले के रूप में कच्चे के लिए रवाना हुए थे. वे बताते हैं कि टीम घेरा बनाकर आगे बढ़ रही थी लेकिन अभी 15 से 20 मिनट ही चले होंगे कि अचानक उनकी बख़्तरबंद गाड़ी पर फ़ायरिंग शुरू हो गई और अचानक एक गोली ड्राइवर के पैर को चीरती हुई गाड़ी के गियर लीवर में लगी जिसके बाद गाड़ी वहीं पर अटक गई. न वो आगे जा रही थी और न ही पीछे. अब वो पूरी तरह से बेबस हो चुके थे और उन पर लगातार फ़ायरिंग हो रही थी.
उन्होंने बताया कि हमले के दौरान बख़्तरबंद गाड़ी का शीशा भी टूट गया और एक रॉकेट गाड़ी के अंदर आ गिरा जिसकी वजह से उनके दो और साथियों की मौत हो गई.
अब्दुल ख़ालिक सूमरो
वीडियो बनाने का मक़सद
सज्जाद चांडियो ने बताया कि बख़्तरबंद में संपर्क करने के लिए वॉकी-टॉकी सिस्टम होता है, लेकिन वो भी काम नहीं कर रहा था और उस क्षेत्र में मोबाइल नेटवर्क भी कम थे.
"हमने सोचा कि ये ज़िंदगी का आख़िरी दिन है, इसलिए वीडियो बनाकर अपने पुलिस ग्रुप में भेज दी."
"सूचना मिलने पर पुलिस अधिकारी वापस आए और उन्होंने हमारी बख़्तरबंद गाड़ी से दूसरी बख़्तरबंद गाड़ियों को लगाकर दरवाज़ा खोलने की कोशिश की. जैसे ही दरवाज़ा खुलता फ़ायरिंग तेज़ हो जाती. इस तरह कोशिश करते रहे, तब जाकर उन्हें कामयाबी से रेस्क्यू किया जा सका और जो मर चुके थे, उन्हें वहीं छोड़ दिया गया."
उस घटना के बारे में क्या कहना है सज्जाद का?
वे कहते हैं, "मेरी आँखों के सामने उन साथियों के शरीर के टुकड़े उड़कर गिरे, जिनके साथ मैं पिछले 8-9 साल से काम कर रहा था. ऑपरेशन के दौरान, माँ, बाप या भाई, कोई साथ नहीं होता. पुलिस वाले साथी ही एक-दूसरे का ध्यान रखते हैं."
शिकारपुर एनकाउंटर में बाल-बाल बचे सज्जाद चांडियो पहले भी कच्चे में डाकुओं के ख़िलाफ़ ऑपरेशन में शामिल रहे हैं.
वे बताते हैं कि शिकारपुर में डाकुओं ने ज़मीन में गड्ढे बनाकर मोर्चा बना लिया था, जहाँ से वो फ़ायरिंग कर रहे थे.
बख़्तरबंद गाड़ियों की बनावट पर सवाल
जिन बख़्तरबंद गाड़ियों पर हमला किया गया था, वो गोलियों से छलनी हुई दिख रही हैं. इसमें एक गोली अंदर भी फँसी हुई है.
लेकिन यह पहली बार नही है जब किसी बख़्तरबंद गाड़ी पर हमला किया गया है. दो जून 2019 को शिकारपुर और सुक्कुर में कच्चा के शाह बेलो इलाक़े में इंस्पेक्टर ग़ुलाम मुस्तफ़ा मिरानी, एएसआई जुल्फ़िक़ार और एएसआई ग़ुलाम शाह की एक ऐसे ही हमले में मौत हो गई थी. ये तीनों भी एक बख़्तरबंद गाड़ी में सवार थे.
कुछ महीने बाद 22 अगस्त को गढ़ी तेग़ो में एक ऑपरेशन के दौरान हमला हुआ, जिसमें एक डीएसपी राव शफ़ीउल्लाह की मौत हो गई थी.
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, ये मौत भी बख़्तरबंद गाड़ी के अंदर ही हुई थी जबकि बाद में डीआईजी लड़काना इरफ़ान बलूच ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि डीएसपी की मौत बख़्तरबंद गाड़ी के बाहर हुई थी.
साल 2012 में कराची में लियारी ऑपरेशन के दौरान तीन बख़्तरबंद गाड़ियों पर हमला हुआ था जिनमें एक एसएचओ सहित लगभग एक दर्जन पुलिसकर्मियों की मौत हुई थी. उसके बाद, मीडिया में इन बख़्तरबंद गाड़ियों की बनावट पर कई सवाल उठाये थे.
सिंध पुलिस इन बख़्तरबंद गाड़ियों को हैवी इंडस्ट्री टैक्सला से ख़रीदती है.
हेवी इंडस्ट्रीज टैक्सला ने 2012 में लियारी की घटना के बाद इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा था कि सिंध पुलिस ने उन्हें 32 बख़्तरबंद गाड़ियों का आर्डर दिया है, जबकि ऑपरेशन के दौरान बी-7 बख़्तरबंद गाड़ियों को नुक़सान पहुँचा है.
बी-6 और बी-7 बख़्तरबंद गाड़ियाँ पाकिस्तान के रक्षा उत्पादन मंत्रालय की सहायक कंपनी में बनाई जाती हैं. सिंध पुलिस के पास पहले बी-6 बख़्तरबंद गाड़ियाँ थीं और आधुनिक बी-7 बाद में ली गई थीं.
डीआईजी और एसएसपी स्तर के कई अधिकारी जो उत्तरी सिंध में तैनात रहे हैं और कच्चे में ऑपरेशन में भी शामिल रहे, उनका कहना है कि बी-7 बख़्तरबंद में मोडिफ़िकेशन की ज़रूरत है क्योंकि इसमें केवल एक केंद्रीय मोर्चा है, जहाँ से फ़ायरिंग की जा सकती है. जबकि इससे पहले, बी-6 बख़्तरबंद में दो दाईं तरफ़, दो बाईं तरफ़ और एक केंद्रीय मोर्चा था जहाँ से दुश्मन से मुक़ाबला किया जा सकता था.
सज्जाद चांडियो
'धछको' के सामने पुलिस बेबस
शिकारपुर एनकाउंटर में बाल-बाल बचे सज्जाद चांडियो पहले भी कछ में डाकुओं के ख़िलाफ़ ऑपरेशन में शामिल रहे हैं.
उनका कहना है कि उन्होंने 'धछको' बंदूक़ के बारे में सुना था, मगर पहली बार इसका निशाना देखा. उनकी गाड़ी पर इसी से निशाना लगाया गया था.
कराची में पुलिस की स्पेशल ब्रांच के डीआईजी इरफ़ान बलूच, एसएसपी शिकारपुर और डीआईजी लड़काना भी रह चुके हैं.
उनका कहना है कि कोई भी बख़्तरबंद गाड़ी सुरक्षित नहीं रह सकती, अगर उसपर 12.5 और 12.7 एमएम की एंटी-एयरक्राफ्ट गन से फ़ायर किया जाए. इसके अलावा आर-75 रॉकेट लांचर से भी बख़्तरबंद गाड़ी क्षतिग्रस्त हो जाती है. इरफ़ान बलूच के मुताबिक़, बख़्तरबंद गाड़ियाँ कलाश्निकोव और जी-3 से रक्षा कर सकती हैं.
पाकिस्तान की स्थानीय भाषा में 12.5 और 12.7 एमएम की एंटी-एयरक्राफ़्ट गन को 'धछको' कहा जाता है.
12.7 एमएम एंटी-एयरक्राफ़्ट गन का आविष्कारक रूस है जो 700 से 800 राउंड प्रति मिनट फ़ायरिंग करने में सक्षम है और इसकी रेंज 1600 से 2000 मीटर तक होती है. इसका इस्तेमाल पहले रूसी सेना करती थी.
अब्दुल वरियो बुज़दारी
सिंध में भारी हथियार कहाँ से आते हैं?
सिंध सरकार के प्रवक्ता मुर्तज़ा वहाब ने कहा कि उत्तरी सिंध में हथियार बनाने की कोई फ़ैक्ट्री नहीं है. कछ में डाकुओं तक रॉकेट लॉन्चर या आधुनिक हथियार दूसरे प्रांतों से पहुँचते हैं.
डीआईजी स्पेशल ब्रांच क्वेटा, कप्तान परवेज़ चांडियो ने कहा कि हथियार अफ़ग़ानिस्तान के सीमावर्ती इलाक़े से झोब, लोरालई, दकी, कोहलू और डेरा बुगटी तक पहुँचते हैं, जहाँ से चरमपंथी और सिंध के डाकू इन्हें ख़रीदते हैं.
इसके अलावा कुछ ऐसे क़बीले हैं जो सर्दी के बाद मौसम ठीक होने पर अपने पशुओं के साथ पलायन करके डेरा बगटी की चरागाहों तक आते हैं.
यह अपरंपरागत रास्ता इस्तेमाल करते हैं और साथ में हथियार लाते हैं जिन्हें यहाँ बेचा जाता है.
एक अन्य डीआईजी (पुलिस अधिकारी) ने कहा कि नॉन कस्टम गाड़ियों और सामानों के साथ हथियारों की भी तस्करी होती है.
'धछको' तक पहुँच
उत्तरी सिंध में रह चुके सिंध पुलिस के एक डीआईजी बताते हैं कि उत्तरी सिंध के तीन ज़िलों में आधा दर्जन से ज़्यादा एंटी-एयरक्राफ़्ट गन या 'धछको' हैं.
पिछले दिनों इस क्षेत्र में एक क़बाइली संघर्ष में नौ लोगों की हत्या के बाद भी इस बंदूक़ के साथ अभियुक्तों की तस्वीरें सामने आई थीं.
शिकारपुर के एक पूर्व एसएसपी जो अब डीआईजी हैं, उन्होंने बीबीसी को बताया कि उन्हें पता चला कि बडानी क़बीले ने 12.7 एमएम गन हासिल की हैं. मुख़बिर से पूछने पर पता लगा कि उनके पास 1200 गोलियाँ हैं. उन्हें इस गन की रेंज का अंदाज़ा था, इसलिए उन्होंने चार बख़्तरबंद गाड़ियाँ तैयार करके घेराबंदी की. बख़्तरबंद गाड़ियों को आगे बढ़ने का आदेश दिया जाता, जैसे ही उस तरफ़ फ़ायरिंग होती तो दूसरी टीम दूसरी दिशा से आगे बढ़ती. इस तरह डाकुओं की गोलियाँ ख़त्म हो गईं, तो उन्होंने छापा मारकर ये गन बरामद कर ली. यह इतनी भारी थी कि इसे तीन या चार लोगों की मदद से नीचे उतारा गया था.
पुलिस पारंपरिक हथियारों से लैस
सिंध के कई पुलिस अधिकारियों का कहना है कि ऑपरेशन के लिए आधुनिक हथियार समय की ज़रूरत हैं.
उनके अनुसार, उनके पास इस समय 3-जी और कलाश्निकोव बंदूक़ें हैं, जबकि डाकुओं के पास लंबी दूरी के हथियार हैं. कई बार वो केवल हवाई फ़ायर करके दबाव डालने की कोशिश करते हैं क्योंकि मुक़ाबला करने में उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता है.
सिंध सरकार के प्रवक्ता मुर्तज़ा वहाब स्वीकार करते हैं कि कोई भी पुराना हथियार आधुनिक हथियारों का मुक़ाबला नहीं कर सकता, पुलिस को सभी घटनाओं से निपटने के लिए आधुनिक उपकरणों और हथियारों की ज़रूरत है. उनके अनुसार हथियार ख़रीदने के लिए पुलिस ने जब भी अनुरोध किया है सिंध सरकार ने इसका समर्थन किया है.
डीआईजी स्पेशल ब्राँच कप्तान परवेज़ चांडियो का कहना है कि बलूचिस्तान में इस समय अफ़ग़ानिस्तान के साथ सीमा पर बाड़ लगाने का काम किया जा रहा है जो 60 से 70 प्रतिशत तक पूरा हो चुका है. बाक़ी काम आने वाले दिनों में पूरा हो जायेगा जिसके बाद वहाँ एफ़सी की चौकियाँ स्थापित की जाएंगी. इसके बाद यहाँ हथियार आना बंद हो जायेंगे, जो हथियार पहले से हैं, वो हैं और नहीं आएंगे, इससे स्थिति में सुधार होगा. (bbc.com)
तिरुवनंतपुरम, 27 मई| यहां गुरुवार को आयोजित एक वेबिनार में यूनेस्को के एक प्रतिनिधि ने भाग लिया। वेबिनार में फर्जी खबरों और दुष्प्रचार का मुद्दा उठाया गया, जो दुनियाभर के पत्रकारों के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बन गया है। सत्र का उद्देश्य प्रमुख पत्रकारिता शिक्षकों द्वारा बनाए गए संसाधनों और पाठ्यक्रम के बारे में जागरूकता पैदा करना था, जो विकासशील देशों के लिए यूनेस्को द्वारा प्रकाशित किए जाते हैं।
यूनेस्को के अर्जेंटीना कार्यालय के एलन फिनले ने चर्चा का संचालन किया और इसमें भाग लेने वाले एशिया और अफ्रीका के विशेषज्ञ और शिक्षक थे।
फिनले ने कहा, "यूनेस्को प्रेस स्वतंत्रता, लैंगिक समानता और जलवायु संचार के लिए नए संसाधन प्रकाशित कर रहा है। इन संसाधनों को संरचित शिक्षण और सीखने के लिए एशिया और अफ्रीका में स्कूल और उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम में एकीकृत किया जा सकता है।"
क्राइस्ट नगर कॉलेज के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की प्रमुख मंजू रोज मैथ्यूज ने कहा कि यह दुखद है कि पत्रकारिता दुष्प्रचार और गलत सूचनाओं के हिमस्खलन में डूब रही है।
उन्होंने कहा, "गलत सूचनाओं से लड़ना पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। नई पीढ़ी के मीडिया छात्रों के लिए फर्जी खबरों की पहचान करने और उन्हें सत्यापित करने के लिए पाठ्यचर्या के हस्तक्षेप की जरूरत है।"
उन्होंने कहा कि टीकाकरण के बारे में गलत सूचना महामारी के प्रसार को रोकने में एक और खतरे के रूप में विकसित हो रही है।
भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए 'जर्नलिज्म, फेक न्यूज और डिसइन्फॉर्मेशन' पर हैंडबुक लाने के लिए यूनेस्को की पहल का समन्वय करने वाली मंजू रोज मैथ्यूज ने कहा, वैक्सीन संशयवाद, टीकों के विशिष्ट ब्रांड को लक्षित करने वाली गलत सूचना, वैक्सीन राष्ट्रवाद, वैक्सीन प्रभावकारिता के बारे में भ्रम ने एक ऐसा परिदृश्य बनाया है, जहां लोग टीका लगाने से हिचकिचाते हैं।"
पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका (सीआईपीईएसए) में अंतर्राष्ट्रीय आईसीटी नीति पर सहयोग से पॉल किमुम्वे ने नकली समाचारों का मुकाबला करने के लिए मीडिया और सूचना साक्षरता के महत्व पर जोर दिया।
किमुम्वे ने कहा, "समाचार की सटीकता के लिए छोटे और बड़े मीडिया घरानों के भीतर सत्यापन डेस्क की आवश्यकता है।"
अनुच्छेद 19 के वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी रॉबर्ट वंजाला ने कहा कि कानून केवल मुक्त मीडिया को दबा सकता है।
वंजाला ने कहा, "हमें फर्जी खबरों को नियंत्रित करने के लिए गैर-आक्रामक तरीकों की जरूरत है। सरकारी नियंत्रण केवल प्रेस की स्वतंत्रता में बाधा डाल सकता है।"
फिलीपींस विश्वविद्यालय के यवोन चुआ और सह-संस्थापक वेराफाइल्स ने उल्लेख किया कि सोशल मीडिया योद्धा, ट्रोल और बॉट सत्तारूढ़ सरकारों को लाभ पहुंचाने के लिए चुनावों के दौरान सोशल मीडिया राय निर्माण को प्रभावित करते हैं।
चुआ ने कहा, "फर्जी खबरों के प्रसार को रोकने के लिए महामारी के चरण में तथ्य-जांच आवश्यक है। मीडिया शिक्षा के लिए एक पाठ्यक्रम के रूप में तथ्य-जांच के महत्व से मीडिया के छात्रों को फर्जी खबरों की जांच के लिए कौशल के साथ अच्छी तरह से प्रशिक्षित होने में मदद मिलेगी।" (आईएएनएस)
मॉस्को, 28 मई| रूस की एक स्थानीय अदालत ने गुरुवार को ट्विटर पर प्रतिबंधित सामग्री को हटाने में विफल रहने पर 1.9 करोड़ रूबल (लगभग 259,000 डॉलर) का जुर्माना लगाया, जिसमें अनधिकृत विरोध के लिए कॉल करना, कंपनी पर जुर्माना बढ़ाकर 2.79 करोड़ रूबल (380,000 डॉलर) करना शामिल है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल की शुरुआत में इसी अपराध के लिए ट्विटर पर 89 लाख रूबल (121,000 डॉलर) का जुर्माना लगाया गया था।
मंगलवार को मास्को की एक अदालत ने फेसबुक और गूगल पर इसी तरह के आरोप में जुर्माना लगाया। (आईएएनएस)
विंडहोक, 27 मई | नामीबिया के राष्ट्रपति हेज गिंगोब कोरोनवायरस से संक्रमित हो गये हैं, इसकी जानकारी उनके कार्यालय ने दी। डीपीए समाचार एजेंसी की रिपोर्ट, 79 वर्षीय नेता और उनकी पत्नी आइसोलेशन में हैं।
माइक्रो-ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म पर राष्ट्रपति ने कहा, "हमारे कोविड -19 पॉजिटिव होने के बाद शुभकामनाओं के लिए मैं आप सभी का धन्यवाद करता हूं। जब तक मेरी उंगली टाइपिंग से थक नहीं गई, तब तक मैंने आपको व्यक्तिगत रूप से धन्यवाद देने की कोशिश की।"
फर्स्ट लेडी को टैग करते हुए लिखा, "मैं और मेरी पत्नी ठीक हो रहे हैं और हमारे ठीक होने के लिए आपका समर्थन वास्तव में सराहनीय है। भगवान आपका भला करें।"
अभी तक, नामीबिया में कोविड के 53,603 पुष्ट मामलों और 789 मौतों को दर्ज किये हैं।(आईएएनएस)
रणजीत सिंह राज की कहानी हिंदी फिल्म सी लगती है. जयपुर की सड़कों पर संघर्ष करने से स्विट्जरलैंड के जेनेवा में बस जाने तक इस कहानी में बहुत से दिलचस्प मोड़ हैं. हर मोड़ पर एक चीज ने राज का साथ दिया, आगे बढ़ने का जज्बा.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट-
सरे बाजार जब कोई चांटा मार देता था तो राज को बहुत गुस्सा आता था. वह याद करते हैं, "काफी बार हुआ कि राह चलते लोग बेइज्जती कर देते थे, चांटा मार देते थे. तब बड़ी घिन आती थी. गरीब होना कोई क्राइम है क्या! मैं पहले ही गरीबी से जूझ रहा हूं और आप मुझे और नीचे गिरा रहे हो.”
जेनेवा में बस चुके राज अब इन बातों को याद करके सिर्फ मुस्कुरा देते हैं. वह कहते हैं कि जिंदगी को लेकर उनकी समझ अब थोड़ी बदल गई है. वह बताते हैं, "बचपन से ही मैं समाज से लड़ता रहा हूं. एक तो मैं गरीब था, काला था. तो काफी सुनने को मिलता था. तब गुस्सा भी आता था. अब तो जीवन के सत्य पता चल गए हैं तो अब शांत रहता हूं.”
रणजीत सिंह राज स्विट्जरलैंड के जेनेवा शहर में रहते हैं. एक रेस्तरां में काम करते हैं. अपना रेस्तरां शुरू करने का ख्वाब देखते हैं. और अपना एक यूट्यूब चैनल चलाते हैं जिस पर लोगों को अलग-अलग जगहों की सैर कराते रहते हैं. पर जिंदगी में यह ठहराव बहुत उथल-पुथल के बाद आया है.
ऑटो से हुई सफर की शुरुआत
रणजीत सिंह राज सिर्फ 16 साल के थे जब उन्होंने ऑटो चलाना शुरू किया. जयपुर में उन्होंने कई साल ऑटो चलाया. वह बताते हैं, "मैं दसवीं फेल हूं. पढ़ाई में अच्छा नहीं था लेकिन घरवाले स्कूल भेजते थे कि कुछ बन जाओगे. पर क्रिएटिविटी और इमेजिनेशन को कोई पूछता नहीं है. मैं कहता था कि ज्यादा बनकर क्या करना है.”
राज यह बात कह तो रहे थे लेकिन असल में उनके अंदर एक आंत्रप्रेन्योर छिपा हुआ था. उन्होंने ऑटो चलाते वक्त देखा कि जयपुर शहर के ऑटो वाले अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पैनिश जैसी कई विदेशी भाषाएं बोलते हैं. वह याद करते हैं, "मैं बड़ा प्रभावित हुआ. यह 2008 की बात है. तब सब लोग आईटी कर रहे थे. तो मुझे अंग्रेजी सीखनी थी. मैं एक लड़के के साथ लग गया और उसने मुझे अंग्रेजी सिखाई.”
उसके बाद राज ने टूरिज्म का काम शुरू किया. अपनी कंपनी बनाई. विदेशी टूरिस्टों को राजस्थान घुमाना शुरू किया. इसी तरह उनकी मुलाकात अपनी भावी पत्नी से हुई, जो एक बार फिर जिंदगी बदलने वाला मोड़ था. राज की पत्नी उनकी एक क्लाइंट थीं. वह फ्रांस से भारत घूमने गई थीं. राज ने उन्हें जयपुर घुमाया और अपना दिल भी दे बैठे. वह बताते हैं, "हम सिटी पैलेस में पहली बार मिले थे. वह अपनी एक दोस्त के साथ भारत घूमने आई थी. हम एक दूसरे को पसंद आए. बातें करने लगे. वह चली गई तो हम स्काइप पर बात करते थे. फिर प्यार हो गया.
प्यार के लिए एंबेसी पर धरना
जब प्यार हो गया तो मिलना जरूरी लगने लगा. राज फ्रांस जाना चाहते थे. उन्होंने वीसा अप्लाई किया तो अर्जी खारिज हो गई. जब कई बार कोशिशें कामयाब नहीं हुईं तो वह और उनकी प्रेमिका बेचैन हो गए. राज याद करते हैं, "वीसा रिफ्यूज हो गया तो हमें लगा कि लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप कैसे चल पाएगा. तब हम फ्रांस की एंबेसी के सामने जाकर धरने पर बैठ गए कि जब तक हमें एम्बैस्डर से नहीं मिलवाओगे, हम नहीं जाएंगे.
उन्होंने हमें एम्बैस्डर का ईमेल दिया. हमने ऐम्बैस्डर को ईमेल लिखा तो हमें मिलने का टाइम मिला. वहां हमें एक अफसर मिला. हमने बताया कि हम प्रेम करते हैं और मैं फ्रांस जाना चाहता हूं. उन्होंने कहा कि तुम्हारा तो काम ऐसा कुछ है नहीं, तुम तो ऑटो चलाते हो, हम कैसे विश्वास कर लें कि तुम वापस आ जाओगे. मैंने कहा कि मेरी वाइफ और उसकी मां भरोसा दे रहे हैं. तो उन्होंने मुझे तीन महीने का वीसा दिया और कहा लॉन्ग टर्म वीसा के लिए तो फ्रेंच सीखनी पड़ेगी. तब मैं तीन-तीन महीने का वीसा लेकर आता रहा.”
लेकिन ऐसा हमेशा नहीं चल सकता था. चला भी नहीं. 2014 में उन्होंने शादी कर ली. बच्चा भी हो गया. और तब साथ रहना जरूरी हो गया. राज ने एक बार फिर दूतावास को गुहार लगाई कि लॉन्ग टर्म वीसा मिल जाए. "तब उन लोगों ने कहा कि फ्रेंच सीखकर आओ. मैंने दिल्ली के अलायंस फ्राँसे में क्लास लीं और एग्जाम देकर सर्टिफिकेट लिया. तब मुझे लॉन्ग टर्म वीसा मिल गया.” इस तरह राज की जयपुर से फ्रांस पहुंचने की कोशिश और कहानी पूरी हुई.
सपने अब भी आते हैं
राज अब जेनेवा में रहते हैं लेकिन उनका दसवीं फेल उद्यमी मन कुलांचे भरता रहता है. हाल ही में उन्होंने यूट्यूब पर चैनल बनाकर लोगों को खाना बनाना सिखाना शुरू किया है. इसकी कहानी भी दिलचस्प है. वह सुनाते हैं, "जब मैं पहली बार फ्रांस आया था तो शॉक हो गया था. हम लोग तो दाल, चावल, रोटी, सब्जी खाते हैं. और यहां पर ब्रेड-चीज खाते हैं और रॉ मीट खाते हैं. तो मुझे खाना जमा नहीं. मुझे स्ट्रगल करना पड़ा. तो मुझे लगा कि मुझे खाना तो बनाना पड़ेगा ही. वैसे तो मेरे पापा ने मुझे थोड़ा बहुत सिखा रखा था. वह कहते थे कि खाना बनाना आना चाहिए, पता नहीं कहां कब जरूरत पड़ जाए. तब मैंने खाना बनाना शुरू किया. और अब मैं अच्छा खाना बना लेता हूं.”
अपने लिए खाना बना कर राज रुके नहीं हैं. अब वह अपना एक रेस्तरां शुरू करना चाहते हैं और उसी उधेड़-बुन में लगे हैं. लेकिन वह फख्र से कहते हैं कि दसवीं फेल होना कभी उनके सफल होने के आड़े नहीं आया. "मैं नहीं मानता कि दसवीं फेल या बीटेक पास होने से कुछ फर्क पड़ता है. मेरा मानना है कि आदमी को कम पता हो या ज्यादा पता हो, लेकिन उसका स्वभाव कैसा है ये मैटर करता है. मुझे लगता है कि आदमी सही दिशा में जाए, अपने इंटरेस्ट चूज करे औऱ उन पर मेहनत करे. पढ़ना अच्छा लगता है तो वो वो विषय पढ़े जो अच्छा लगता है. तो सफल होना कोई मुश्किल नहीं है. लेकिन किताबी ज्ञान जरूरी नहीं है.”
राज अपना शिक्षक घूमने को मानते हैं. वह कहते हैं कि घूमने ने ही उन्हें सब कुछ सिखाया है, "मुझे ट्रैवलिंग बहुत पसंद है. ट्रैवलिंग से ही मैंने अंग्रेजी और बाकी चीजें सीखी हैं. मैं हमेशा कहता हूं कि ट्रैवलिंग एजुकेशन है. घूमने से मन शांत हो जाता है.” (dw.com)
परमाणु हथियारों से लैस उत्तर कोरिया अंतर्राष्ट्रीय साइबर युद्ध में अगली पंक्ति में जगह बना रहा है. जानकारों का कहना है कि उत्तर कोरिया अरबों डॉलर चुरा रहा है जो उसके परमाणु कार्यक्रम से भी ज्यादा स्पष्ट खतरा है.
विश्लेषकों का कहना है कि एक तरफ जहां सारी दुनिया का कूटनीतिक ध्यान उत्तर कोरिया की परमाणु महत्वाकांक्षाओं पर है, वो देश चुपके चुपके अपनी साइबर क्षमताओं को लगातार बढ़ा रहा है. समीक्षकों का कहना है कि हजारों प्रशिक्षण प्राप्त हैकरों की उसकी सेना उसके परमाणु कार्यक्रम जितनी ही खतरनाक साबित हो रही है. सियोल के इंस्टीट्यूट फॉर नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटेजी के शोधकर्ता ओह इल-सेओक कहते हैं, "उत्तर कोरिया के परमाणु और सैन्य कार्यक्रम लंबी अवधि के खतरे हैं, लेकिन उसका साइबर खतरा करीब का और सजीव खतरा है."
प्योंगयांग की साइबर युद्ध की क्षमताएं सबसे पहले दुनिये की नजर में 2014 में आई जब उस पर सोनी पिक्चर्स एंटरटेनमेंट को हैक करने का आरोप लगा. माना जाता है कि ऐसा उसने देश के नेता किम जोंग उन का मजाक उड़ाने वाली फिल्म "द इंटरव्यू" का बदला लेने के लिए किया था. हमले के बाद सोनी की ऐसी कई फिल्में ऑनलाइन पोस्ट हो गई थीं जो अभी बाजार में आई भी नहीं थीं.
इसके अलावा बड़ी संख्या में कई गोपनीय कागजात भी ऑनलाइन प्रकाशित हो गए थे. तब से उत्तर कोरिया पर कई बड़े साइबर हमलों का आरोप लगा है, जिनमें बांग्लादेश केंद्रीय बैंक से 8.1 करोड़ डॉलर की चोरी और 2017 का वॉनाक्राई वैश्विक रैनसमवेयर हमला शामिल हैं. इस हमले में 150 देशों में करीब 3,00,000 कम्प्यूटरों पर असर पड़ा था. प्योंगयांग ने इन सभी मामलों में उसका हाथ होने से इनकार किया है और अमेरिका द्वारा लगाए गए वॉनाक्राई वाले आरोपों को "अनर्गल" बताया है.
क्या है ब्यूरो 121
उत्तर कोरिया के विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता का कहना था, "हमारा इन साइबर हमलों से कोई लेना देना नहीं है." लेकिन फरवरी में अमेरिका के विधि मंत्रालय ने उत्तर कोरिया के तीन लोगों को "कई विनाशकारी साइबर हमलों को करने के लिए रची गई एक व्यापक आपराधिक साजिश में भाग लेने" के आरोप लगाए. 2021 की अपनी वार्षिक खतरा मूल्यांकन रिपोर्ट में अमेरिका ने माना कि उत्तर कोरिया के पास अमेरिका में कहीं भी "संभवतः कुछ अति महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर नेटवर्कों में अस्थायी, सीमित गड़बड़ी करने की दक्षता है."
नेशनल इंटेलिजेंस सेवा के निदेशक के कार्यालय से जारी हुई रिपोर्ट में लिखा था कि प्योंगयांग का साइबर से "जासूसी, चोरी और हमलों" का खतरा बढ़ रहा है. रिपोर्ट ने उत्तर कोरिया पर आरोप लगाया कि उसने वित्तीय संस्थानों और क्रिप्टोकरेंसी के बाजारों से करोड़ों डॉलर चुराए हैं, "संभवतः सरकार की परमाणु और मिसाइल कार्यक्रमों जैसी प्राथमिकताओं के वित्त पोषण के लिए."
उत्तर कोरिया का साइबर कार्यक्रम कम से कम 1990 के दशक के मध्य में शुरू हुआ था, जब तत्कालीन नेता किम जोंग इल ने कहा था कि "भविष्य में सारे युद्ध कंप्यूटर युद्ध होंगे." आज प्योंगयांग के पास 6,000 लोगों की साइबर युद्ध का एक दस्ता है जिसे ब्यूरो 121 के नाम से जाना जाता है. 2020 में छपी अमेरिकी सेना की एक रिपोर्ट के मुताबिक यह दस्ता कई देशों से काम करता है, जिनमें बेलारूस, चीन, भारत, मलेशिया और रूस शामिल हैं.
बंदूकों की जगह कीबोर्ड से चोरी
साइबर सुरक्षा कंपनी क्राउडस्ट्राइक के स्कॉट जार्कोफ इस दस्ते को काफी असरदार मानते हैं. वो कहते हैं, "वो अत्यंत प्रभावशाली और समर्पित हैं और काफी उच्च श्रेणी के हमले करने में सक्षम हैं." 2007 में उत्तर कोरिया से बागी हो जाने वाले जांग से-यूल कहते हैं, "ब्यूरो 121 के सदस्यों को मिरिम विश्वविद्यालय जैसे विशेष संस्थानों में अलग अलग कोडिंग की भाषाओं और ऑपरेटिंग सिस्टमों का प्रशिक्षण दिया जाता है." इसे अब ऑटोमेशन विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है और यह हर साल देश में सबसे ज्यादा अंक लाने वाले बच्चों में से सिर्फ 100 मेधावी छात्रों को दाखिला देती है.
स्टिम्सन केंद्र के शोधकर्ता मार्टिन विलियम्स कहते हैं कि साइबर युद्ध उत्तर कोरिया जैसे छोटे, गरीब देशों के लिए विशेष रूप से आकर्षक है क्योंकि ये देश "जहाजों, टैंकों और दूसरे आधुनिक हथियारों के मामले में दूसरे देशों से पिछड़ जाते हैं." विलियम्स के मुताबिक, "हैकिंग के लिए सिर्फ एक कंप्यूटर और इंटरनेट कनेक्शन चाहिए." सरकारों द्वारा समर्थित अधिकतर हैकिंग समूहों का इस्तेमाल जासूसी के लिए किया जाता है, लेकिन जानकार कहते हैं कि उत्तर कोरिया अपनी साइबर क्षमताओं का वित्तीय फायदों के लिए इस्तेमाल करने में अनूठा है.
फरवरी में अमेरिका में उत्तर कोरिया के तीनों नागरिकों पर वित्तीय संस्थानों और कंपनियों से कुल 1.3 अरब डॉलर से भी ज्यादा मूल्य का धन और क्रिप्टोकरेंसी चुराने का आरोप लगा था. सहायक अटॉर्नी जनरल जॉन डेमेर्स ने नार्थ कोरिया के इन साइबर सिपाहियों को "दुनिया के अग्रणी बैंक चोर" बताया था और कहा था कि वो "बंदूकों की जगह कीबोर्ड का इस्तेमाल कर रुपयों की थैलियों की जगह क्रिप्टोकरेंसी के डिजिटल वॉलेट चुरा रहे थे." (dw.com)
सीके/एए (एएफपी)
कोरोना वायरस कहां से फैला, इस बात को लेकर अमेरिका और चीन एक बार फिर आमने-सामने आ गए हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इंटेलिजेंस एजेंसियों को 90 दिनों के अंदर यह पता लगाने का आदेश दिया है कि कोरोना वायरस कहां से फैला.
इससे पहले मंगलवार को अमेरिकी स्वास्थ्य मंत्री ज़ेवियर बेसेरा ने वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में चीन का नाम लिए बग़ैर विश्व स्वास्थ्य संगठन से कहा था कि कोरोना वायरस कहां से फैला, इसकी जाँच का अगला चरण 'पारदर्शी' होना चाहिए.
कोविड-19 का सबसे पहला केस दिसंबर 2019 में चीन के वुहान शहर में दर्ज किया गया था. चीनी प्रशासन ने शुरुआती मामलों का संबंध वुहान की एक सीफ़ूड मार्केट से पाया था. वैज्ञानिकों का मानना है कि यह वायरस जानवरों से इंसानों में पहुँचा है.
मगर हाल में अमेरिकी मीडिया में आई ख़बरों के मुताबिक़, कुछ ऐसे सबूत हैं जो इस ओर इशारा करते हैं कि यह वायरस चीन की एक प्रयोगशाला से लीक हुआ है.
'वॉल स्ट्रीट जर्नल' ने अमेरिकी इंटेलिजेंस रिपोर्ट के हवाले से दावा किया था कि इससे पहले ही नवंबर में वुहान लैब के तीन सदस्यों को कोविड जैसे लक्षणों वाली बीमारी के चलते अस्पताल जाना पड़ा था.
मगर चीन ने न सिर्फ़ ऐसी ख़बरों को झूठा बताया था बल्कि आरोप लगाया था कि हो सकता है कोरोना वायरस अमेरिका की किसी लैब से निकला हो.
इस वायरस के कारण फैली महामारी के कारण दुनिया भर में अब तक कम से कम 35 लाख लोगों की जान जा चुकी है और संक्रमण के 16 करोड़ 80 लाख से ज़्यादा मामले दर्ज किए जा चुके हैं.
बाइडन ने 90 दिनों की मोहलत दी
बुधवार को व्हाइट हाउस की ओर से जारी वक्तव्य में राष्ट्रपति बाइडन ने कहा कि उन्होंने पद संभालने के बाद ही रिपोर्ट माँगी थी कि यह वायरस कहां से फैला.
इसमें यह भी पता लगाया जाना था कि यह किसी संक्रमित जानवर से इंसानों में फैला या किसी प्रयोगशाला से. उन्होंने कहा कि इस महीने यह रिपोर्ट मिली है मगर अभी और जानकारियां जुटाने के लिए कहा गया है.
बाइडन ने कहा, "अमेरिका की इंटेलिजेंस एजेंसियां दो संभावनाओं के क़रीब पहुँची हैं मगर किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुँच पाई हैं. अभी हालत ये है कि इंटेलिजेंस कम्यूनिटी के दो हिस्सों का मानना है कि यह जानवर से इंसानों में आया जबकि एक हिस्से का मानना है कि लैब से फैला. लेकिन कोई भी अपनी बात को पूरे यक़ीन से नहीं कह रहा. ज़्यादातर का मानना है कि किसी नतीजे पर पहुँचने के लिए पर्याप्त सूचनाएं नहीं हैं."
अब राष्ट्रपति ने एंजेंसियों से कहा है कि अपनी कोशिशों को तेज़ करें और 90 दिनों के अंदर ऐसी जानकारी जुटाएं जिसके आधार पर किसी ठोस नतीजे के क़रीब पहुँचा जा सके.
आख़िर में उन्होंने कहा, "दुनिया भर में एक जैसी सोच रखने वाले सहयोगियों के साथ मिलकर चीन पर पूरी तरह पारदर्शी और साक्ष्य आधारित अंतरराष्ट्रीय जाँच में शामिल होने और सभी सबूतों को उपलब्ध करवाने के लिए दबाव डालते रहें."
मगर बुधवार वॉशिंगटन पोस्ट अख़बार में छपे एक कॉलम में बाइडन प्रशासन पर आरोप लगा है कि वह वायरस के मूल का पता लगाने को लेकर कांग्रेस की जाँच में अड़चनें टाल रहा है और ज़िम्मेदारी विश्व स्वास्थ्य संगठन के सिर डाल रहा है.
बाइडन का यह बयान उस समय आया है जब सीएनएन की एक रिपोर्ट में कहा गया कि बाइडन प्रशासन ने संसाधनों की बचत के नाम पर विदेश मंत्रालय की उस जाँच को बंद कर दिया, जिसमें यह पता लगाया जा रहा था कि वायरस कहीं वुहान लैब से तो लीक नहीं हुआ.
चीन का अमेरिका पर आरोप
अमेरिकी मीडिया की ख़बरों में की जा रही वुहान लैब से वायरस लीक होने की चर्चा को चीन ने पूरी तरह झूठ क़रार दिया है. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता चाओ लिजियान ने कहा है कि यह वायरस हो सकता है अमेरिका से फैला हो और इसके लिए अमेरिका को अपने यहां भी जाँच करवानी चाहिए.
लिजियान ने कहा, "महामारी फैलने के बाद चीन ने इसके मूल का पता लगाने के लिए डब्लूएचओ की बढ़-चढ़कर मदद की. इस साल 14 जनवरी से 10 फ़रवरी तक डब्लूएचओ की अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों वाली टीम ने चीनी विशेषज्ञों के साथ मिलकर लगभग एक महीने तक वुहान में गहन शोध किया.''
''दोनों पक्षों के विशेषज्ञों ने मिलकर जगहों का दौरा किया और बहुत सारे आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद एक रिपोर्ट जारी की जिसमें कई अहम निष्कर्ष हैं. इस संयुक्त अध्ययन ने वायरस के मूल का पता लगाने को बढ़ावा दिया."
चीनी सरकार के प्रवक्ता ने कहा, "अमेरिका में कुछ लोग 'तथ्यों' की बात करते हैं मगर असल में वे चीज़ों को राजनीतिक रूप से तोड़-मरोड़कर पेश करना चाहते हैं. जब कभी महामारी का विषय उठता है, वे चीन पर हमला करने लग जाते हैं. वे वायरस के मूल का पता लगाने की अपनी कोशिशों पर उठते सवालों और महामारी से निपटने में अपनी विफलता को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर देते हैं.''
''उन पर 'लैब से लीक होने' की थ्योरी की धुन सवार है. उन्होंने डब्लूएचओ के विशेषज्ञों की टीम की ओर से किए गए शोध और विज्ञान का अपमान किया है. साथ ही महामारी को ख़त्म करने के प्रयासों की भी उपेक्षा की है."
लिजियान ने कहा कि वह ज़ोर देकर कहना चाहते हैं कि 'अब तक आए सबूतों, रिपोर्टों और शोधों के मुताबिक़, कोविड-19 महामारी साल 2019 के दूसरे हिस्से से पहले ही दुनिया के कई हिस्सों में मौजूद थी.'
उन्होंने कहा, "चीन वायरस का पता लगाने के काम को गंभीरता और ज़िम्मेदारी से लेता है और इस काम में उसने योगदान भी दिया है. अगर अमेरिका पूरी तरह से पारदर्शी जाँच चाहता है तो उसे चीन के सबक़ लेते हुए डब्लूएचओ के विशेषज्ञों को अमेरिका बुलाना चाहिए और फ़ोर्ट डेट्रिक समेत दुनिया भर में मौजूद अपनी प्रयोगशालाओं की जाँच करवानी चाहिए.''
''साथ ही जुलाई 2019 में उत्तरी वर्जीनिया में साँस से जुड़ी अनसुलझी बीमारी फैलने और विस्कॉन्सिन में EVALI संक्रमण को लेकर पूरी जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए. हम अमेरिका और अन्य संबंधित देशों से अपील करते हैं कि वे वैज्ञानिक और पारदर्शी तरीक़े से खुलकर डब्लूएचो के साथ सहयोग करें."
क्या लैब से निकला था वायरस?
इस साल मार्च में डब्लूएचओ ने चीनी वैज्ञानिकों के साथ मिलकर लिखी एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें कहा गया था कि वायरस के किसी लैब से फैलने की आशंका 'बहुत ही कम' है. हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना था कि अभी और शोध की ज़रूरत है.
लेकिन वायरस के लैब से लीक होने को लेकर तब फिर सवाल उठे जब हाल ही में अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसियों के सूत्रों के हवाले से मीडिया में यह ख़बर आई कि वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरॉलजी के तीन सदस्य नवंबर में अस्पताल में भर्ती हुए थे. जबकि चीन ने अगले महीने डब्लूएचओ को बताया था कि वुहान शहर में निमोनिया के मामलों में तेज़ी आई है.
बाइडन के चीफ़ मेडिकल एडवाइज़ डॉक्टर एंथनी फ़ाउची कहते रहे थे कि उनके विचार से यह बीमारी जानवरों से इंसानों में फैली. मगर इस महीने उन्होंने भी कह दिया कि वह इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं.
पिछले साल पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि कोरोना वायरस वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरलॉजी से निकला है. उस समय कई अमेरिकी मीडिया संस्थानों ने इस दावे को निराधार या झूठ बताया था.
मंगलवार को ट्रंप ने न्यू यॉर्क पोस्ट को ईमेल के माध्यम से भेजे बयान में कहा, "मैं तो शुरू से यही कह रहा था मगर मेरी हमेशा की तरह बुरी तरह आलोचना की गई. और अब वो सब कह रहे हैं कि मैं सही बोल रहा था."
लैब से लीक होने वाली थ्योरी की चर्चा
उत्तरी अमेरिका के बीबीसी संवाददाता एंथनी ज़र्चर का विश्लेषण
इसे अमेरिकी सरकार में थोड़ी पारदर्शिता माना जा सकता है कि बाइडन प्रशासन स्वीकार कर रहा है कि अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसियां कोरोना वायरस के स्रोत को लेकर एक राय नहीं हैं. वायरस लैब से इंसानों में फैला या किसी जानवर से, इसे लेकर कोई आश्वस्त नहीं है.
लैब थ्योरी को लेकर पिछले साल मीडिया और राजनीति में हुए शोर-शराबे की तुलना में इसे बड़े बदलाव के तौर पर देखा जा सकता है. पिछले साल ट्रंप, विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो, सीनेटर टॉम कॉटम समेत कई लोगों ने इस बात का प्रचार किया कि वायरस लैब से निकला.
ट्रंप और पॉम्पियो के पास ऐसा कोई ठोस आधार नहीं था कि वे कह सकें कि उन्हें ऐसा क्यों लगता है. उनकी थ्योरी उन अविश्वसनीय से दावों से मेल खाती थीं जिनमें कहा जा रहा था कि इस वायरस को चीन की लैब में तैयार किया गया था. अभी भी इस बात की संभावनाएं बहुत कम हैं कि वाक़ई यह वायरस लैब में बना हो.
वायरस कहां से फैला, हो सकता है कि आम लोग कभी इस बारे में पूरा सच न जान पाएं. ख़ासकर तब, जब चीन का रवैया ऐसा ही असहयोग वाला रहेगा.
बाइडन जड़ तक जाँच करने का दावा तो कर रहे हैं लेकिन अगर अमेरिका को पक्का सबूत मिल जाता है कि यह वायरस लैब से फैला तो इसका मतलब होगा कि कई सारी बड़ी हस्तियों को अपनी ग़लती माननी होगी और किसी निष्कर्ष पर तुरंत यक़ीन कर लेने की आदत पर फिर से विचार करना होगा.
इससे अमेरिका और चीन के रिश्तों पर भी आने वाले कई सालों के लिए गहरी चोट लग सकती है. (bbc.com)
-मोहम्मद ज़ुबैर ख़ान
पाकिस्तान में संसद के उच्च सदन को संबोधित करते हुए, वहाँ के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने सदस्यों को आश्वासन दिया कि अमेरिका को अफ़ग़ानिस्तान की धरती पर ड्रोन ऑपरेशंस के लिए पाकिस्तान कोई सैन्य अड्डा या एयर बेस नहीं दे रहा है.
मंगलवार को फ़लस्तीनी-इसराइल संघर्ष पर चल रही बहस के बाद अपने नीतिगत बयान में, विदेश मंत्री ने अतीत में अमेरिका को दिए गए एयरबेस का ज़िक्र करते हुए सीनेटरों से कहा कि "अतीत को भूल जाएँ."
उन्होंने कहा, "ये सदन और पाकिस्तान की जनता मेरी गवाही याद रखे कि पीएम इमरान ख़ान के नेतृत्व में इस देश में अमेरिका को कोई सैन्य अड्डा नहीं दिया जाएगा."
इसी तरह, पिछले दिनों पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने भी पाकिस्तान की तरफ़ से अमेरिका को कोई नया एयरबेस देने से संबंधित दावों का ज़ोरदार खंडन करते हुए कहा था कि पाकिस्तान और अमेरिका के बीच साल 2001 में एयर लाइन ऑफ़ कम्युनिकेशन (एएलओसी) और ग्राउंड लाइन ऑफ़ कम्युनिकेशन (जीएलओसी) समझौते हुए थे. इन समझौतों के अनुसार दोनों देश मिलकर काम करते हैं.
ये स्पष्टीकरण ऐसे समय में आया है, जब समाचार एजेंसी एएफ़पी की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के रक्षा मंत्रालय ने दावा किया है कि अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सेना की मदद के लिए पाकिस्तान ने अपनी हवाई और ज़मीनी सीमाओं को इस्तेमाल करने की इजाज़त दे दी है.
बीबीसी से बात करते हुए, पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ज़ाहिद हफीज़ चौधरी ने कहा कि विदेश मंत्रालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से अपना पक्ष बता दिया है और वह इस पर और कुछ नहीं कह सकते.
लेकिन सवाल यह है कि साल 2001 में अमेरिका और पाकिस्तान के बीच होने वाले एएलओसी और जीएलओसी समझौते क्या हैं, जिसके तहत दोनों देश एक दूसरे का सहयोग करते हैं?
इन समझौतों के बारे में पूर्व राजनयिक ज़मीर अकरम ने कहा कि 9/11 की घटना के बाद, इन समझौतों के तहत अमेरिका को पाकिस्तान में अपने हवाई अड्डे स्थापित करने की अनुमति मिली थी, लेकिन इन हवाई अड्डों को 2011 में बंद कर दिया गया था.
एएलओसी और जीएलओसी क्या हैं?
ज़मीर अकरम के अनुसार, 9/11 के बाद, अमेरिका को अफ़ग़ानिस्तान में आतंकवादियों पर हमलों के लिए हवाई और ज़मीनी मदद की ज़रूरत थी, जिसके लिए पाकिस्तान और अमेरिका के बीच दो समझौते हुए थे.
इन समझौतों के अनुसार, एएलओसी के तहत अमेरिका को हवाई अड्डे और जीएलओसी के तहत ज़मीनी रास्ते इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई थी.
सेवानिवृत्त लेफ़्टिनेंट जनरल अमजद शोएब के अनुसार, ये समझौते आतंकवाद के ख़िलाफ़ वैश्विक जंग के दौरान हुए थे और इस दौरान अमेरिका बलूचिस्तान में ख़ासदार के पास वाशक क्षेत्र में स्थित शम्सी एयर बेस और सिंध के जैकोबाबाद में स्थित शहबाज़ एयर बेस का इस्तेमाल कर रहा था.
इन दोनों हवाई अड्डों से अमेरिकी विमान उड़ते थे, जबकि शम्सी एयर बेस का इस्तेमाल अमेरिकी ड्रोन हमलों के लिए भी किया जाता था.
सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल अमजद शोएब के अनुसार, शाहबाज़ एयरबेस को साल 2011 से पहले ही बंद कर दिया गया था, लेकिन शम्सी एयर बेस अमेरिका की तरफ से महमंद एजेंसी में सलालाह हमले के बाद नवंबर 2011 में बंद कर दिया गया था.
इसके बाद अमेरिका पर पाकिस्तान के हवाई और ज़मीनी रास्तों के इस्तेमाल करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था.
अमजद शोएब ने कहा कि कुछ समय के लिए, अमेरिका को अफ़ग़ानिस्तान तक अपनी रसद पहुँचाने की भी अनुमति नहीं दी जा रही थी, लेकिन बाद में अमेरिका को ज़मीनी रास्ते की अनुमति दे दी गई थी और शम्सी एयरबेस को अमेरिका से ख़ाली करा लिया गया था.
हालिया ख़बरों के बारे में बात करते हुए सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल अमजद शोएब ने कहा कि हो सकता है अब अमेरिका को ज़मीन और हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल करने की इजाज़त दी जाए, लेकिन जंगी हवाई अड्डे इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं होगी.
उनका कहना था कि संभावित तौर पर अफ़ग़ानिस्तान में गृहयुद्ध का ख़तरा महसूस किया जा रहा है.
उन्होंने कहा, "अल्लाह करे ऐसा न हो, लेकिन अगर ऐसा होता है, तो फिर संभावित तौर पर अफ़ग़ानिस्तान की सरकार और नागरिकों को ज़मीनी रास्ते से मदद मुहैया की जा सकती है. अमेरिका अपनी वापसी के लिए भी ज़मीनी और हवाई मार्गों का उपयोग कर सकेगा."
साउथ एशियन स्ट्रेटेजिक स्टेबिलिटी इंस्टीट्यूट की डायरेक्टर जनरल और रक्षा विश्लेषक डॉक्टर मारिया सुल्तान के अनुसार, आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध में सहयोगी होने के नतीजे मे गंभीर वित्तीय नुक़सान के अलावा पाकिस्तान सीधे तौर पर ख़ुद आतंकवाद का शिकार बन गया था.
वो कहती हैं, "अमेरिका ने इस दौरान भारत के साथ भी संबंध बढ़ा लिए थे, जिसके बाद पाकिस्तान ने इन दो समझौतों की समीक्षा की थी."
ज़मीर अकरम ने कहा कि यह स्पष्ट है कि अमेरिका को पाकिस्तान से किसी भी तरह के हमले करने की इजाज़त नहीं होगी.
वो कहते हैं, "इसका मतलब यह है कि वह पाकिस्तान में कोई हवाई या ज़मीनी जंगी अड्डे नहीं बना सकेगा. अमेरिका ज़मीनी रास्तों को केवल अपनी वापसी के लिए इस्तेमाल कर सकेगा."
अमेरिका को एयर बेस न देने की वजह
सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल अमजद शोएब ने कहा कि साल 2001 में हवाई अड्डे देने के कारण अलग थे.
वो कहते हैं, "उस समय, पाकिस्तान आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक वैश्विक अभियान का हिस्सा था, लेकिन अब स्थिति अलग है. कोई भी सरकार संसद की अनुमति के बिना अमेरिका को ऐसी अनुमति नहीं दे सकती है, और अगर ऐसी अनुमति दी जाती है, तो सरकारों को अवाम की गंभीर प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ सकता है."
उन्होंने कहा कि अमेरिका ने पाकिस्तान के बाद अपने हवाई अड्डे बनाने के लिए रूस से अलग हुए मध्य एशियाई देशों से संपर्क किया था, लेकिन वहाँ अमेरिका को रूस की बढ़ती भागीदारी के कारण अनुमति नहीं मिल सकी थी.
वहीं डॉक्टर मारिया सुल्तान ने कहा कि अमेरिका चाहता है कि वह अफ़ग़ानिस्तान से निकल कर पाकिस्तान में बैठ कर अपने हथियार इस्तेमाल करे.
वो कहती हैं, "यानी अफ़ग़ानिस्तान की जंग पाकिस्तान में बैठ कर लड़ी जाए, लेकिन इस समय पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान में शांति चाहता है. पाकिस्तान ने आतंकवाद पर कुछ हद तक काबू पा लिया है और पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान की जंग से बाहर निकलना चाहता है."
डॉक्टर मारिया का कहना है कि अमेरिका के पास न केवल अफ़ग़ानिस्तान में कई हवाई अड्डे हैं, बल्कि इसके अलावा उसके भारत के साथ कई रक्षा समझौते भी हैं और अरब सागर में भी उनका जंगी बेड़ा मौजूद है.
वो कहती हैं, "इन परिस्थितियों में, नहीं लगता कि पाकिस्तान भी अमेरिका को हवाई अड्डे देगा."
अमजद शोएब के मुताबिक़ पाकिस्तान की अमेरिका को एयरबेस न देने की एक और बड़ी वजह चीन है.
वो कहते हैं, "पाकिस्तान और चीन समान हितों वाले दो अच्छे दोस्त हैं. ऐसी स्थिति में जब अमेरिका वैश्विक स्तर पर चीन का खुलकर विरोध कर रहा है, पाकिस्तान अपने सबसे क़रीबी दोस्त को नाराज़ करते हुए अमेरिका को हवाई अड्डा इस्तेमाल करने नहीं दे सकता है."
डॉक्टर मारिया सुल्तान ने भी इस बात का समर्थन करते हुए कहा कि पाकिस्तान कभी भी चीन के मुक़ाबले में अमेरिका को तरजीह नहीं देगा. (bbc.com)
कोरोना के दौरान भारत में बहुत से लोगों की मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई क्योंकि वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं थे. कैसा हो अगर वेंटिलेटर की जरूरत ही ना पड़े? वैज्ञानिक ऐसा तरीका खोजने में लगे हैं जिससे गुदाद्वार से ऑक्सीजन दी जा सके.
डॉयचे वैले पर शकूर राथर की रिपोर्ट
जापानी शोधकर्ताओं का कहना है कि स्तनधारी जीव अपनी अंतड़ियों से भी सांस ले सकते हैं. शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने सूअर और चूहों को उनकी ऑक्सीजन का स्तर घटाकर उन्हें जानलेवा परिस्थितियों में डाला तो पाया कि श्वसन तंत्र को फेल होने से बचाने के लिए उन्होंने गुदा से सांस लेना शुरू कर दिया.पत्रिका मेड में छपी यह रिसर्च फेफड़ों के काम करना बंद करने की स्थिति में शरीर में ऑक्सीजन का स्तर बनाए रखने का हल खोजने के लिए किए जा रहे प्रयासों की दिशा में नए रास्ते खोल सकती है.
टोक्यो मेडिकल एंड डेंटल यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले मुख्य शोधकर्ता ताकानोरी ताकेबे सेल प्रेस में छपे एक लेख में लिखते हैं, "निमोनिया या श्वसन तंत्र की अन्य खतरनाक बीमारियों की सूरत में आर्टिफिशियल रेस्पिरेटरी सपोर्ट की भूमिका इलाज में अहम हो जाती है. लेकिन हमारा तरीका ऐसे खतरनाक रोगों से ग्रस्त मरीजों को मदद पहुंचाने की दिशा में नया रास्ता खोल सकता है. लेकिन इसका इन्सानों पर असर और सुरक्षा का गहन आकलन जरूरी है."
ताकेबे ने कहा कि उन्हें इस खोज की प्रेरणा कुछ जलीय जीवों से मिली जो सांस लेने के लिए उदर का प्रयोग करते हैं. शोधकर्ता पता लगाना चाहते थे कि क्या सूअर और चूहे भी ऐसा ही कर सकते हैं. आमतौर पर इंसानों के लिए किसी खोज का पहले इन्हीं जीवों पर प्रयोग किया जाता है.
इंजेक्शन से ऑक्सीजन
डॉ. ताकेबे कहते हैं कि हम यह भी जानते हैं कि गुदा के कुछ हिस्से दवा या पोषण का अवशोषण अच्छे से कर सकते हैं. गुदाद्वार से दवा या द्रव भी शरीर में पहुंचाए जा सकते हैं, जहां से ये रक्त में मिल जाते हैं और शरीर के बाकी हिस्सों तक पहुंच जाते हैं. शोधकर्ताओं ने ऑक्सीजन की कमी से बेहोश चूहों को गुदाद्वार से इंजेक्शन के जरिए ऑक्सीजन दी. अध्ययन के दौरान बहुत ही कम ऑक्सीजन स्तर के कारण 11 मिनट में ही चूहे की मौत हो गई. लेकिन जब उन्हें गुदा से ऑक्सीजन दी गई तो खतरनाक स्तर तक प्राणवायु कम किए जाने के बावजूद 75 प्रतिशत चूहे 50 मिनट तक जिंदा रहे.
शोधकर्ता स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि यह स्थायी हल नहीं है और इसे अंतरिम हल के तौर पर 20 से 60 मिनट की जरूरत के लिए ही प्रयोग किया जा सकता है. इस तरीके के सही इस्तेमाल के लिए उन्हें अंतड़ियों की परत भी खुरचनी पड़ी. यानी गंभीर रूप से बीमार मरीजों में इसका उपयोग बहुत संभव नहीं हो पाएगा. अन्य विशेषज्ञ भी ऐसा ही मानते हैं. नई दिल्ली में आकाश हेल्थकेयर सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के डॉ. अशोक बुद्धराजा कहते हैं, "अंतड़ियों को पतला करने के लिए उसे खुरचा गया ताकि पतली झिल्लियां ऑक्सीजन सोख सकें. तब ऑक्सीजन का स्तर बढ़ा. लेकिन मानव शरीर की जटिल संरचना को देखते हुए किसी बीमार की अंतड़ियों या अन्य किसी अंग की परत को खुरचने के लिहाज से तो इंसानों पर यह विचार अव्यवहारिक लगात है." हालांकि डॉ. बु्द्धराजा शोध का हिस्सा नहीं थे.
नया नहीं है विचार
गुदाद्वार से ऑक्सीजन देने का विचार नया नहीं है. पिछले साल स्पेन में छोटे स्तर पर एक अध्ययन हुआ था जिसमें ऐसा ही प्रयोग किया गया था. एसएन कॉम्प्रिहेंसिव क्लिनिकल मेडिसन में छपे उस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कोविड-19 के कारण गंभीर निमोनिया से पीड़ित चार मरीजों में गुदाद्वार से ओजोन शरीर में पहुंचाई थी. उस शोध में पाया गया कि इस तरीके से रक्त में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ा और जलन कम हुई. ओजोन गैस ऑक्सीजन के तीन एटम से बनी होती है. तब शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि गुदा से ओजोन दिया जाना एक प्रभावशाली, सस्ता, सुरक्षित और साधारण विकल्प हो सकता है.
जापानी वैज्ञानिक अपने प्रयोग की प्रि-क्लिनिकल ट्रायल शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं और अगले दो साल में इंसानों पर प्रोयग करना चाहेंगे. ताकेबे कहते हैं कि उनके खोजे तरीका अगर इतना विकसित हो जाता है कि इंसानों पर प्रयोग किया जा सके तो ऐसे मरीजों पर भी इस्तेमाल हो सकेगा जिनके श्वसन तंत्र कोविड-19 के कारण फेल हो गए हों. हालांकि डॉ. बुद्धाराजा कहते हैं कि उस जगह पहुंचने के लिए अभी लंबा सफर तय करना होगा. वह ध्यान दिलाते हैं कि अंतड़ियों में गैस इधर से उधर भेजने की क्षमता ज्यादा नहीं होती है. (dw.com)
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का कहना है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियां इस बात को लेकर अनिश्चित हैं कि कोरोना वायरस किसी जानवर से फैला या लैब से लीक हुआ था.
राष्ट्रपति बाइडेन ने बुधवार को खुफिया एजेंसियों से कहा कि वे कोरोना वायरस की उत्पत्ति की जांच को लेकर कोशिशें तेज करें. उन्होंने एजेंसियों से वायरस की उत्पत्ति की गहराइयों से जांच करने को कहा है. एक बयान में उन्होंने कहा कि अमेरिकी खुफिया समुदाय के अधिकांश लोग दो संभावित परिदृश्यों के आसपास "जुड़े" हुए थे: कि वायरस एक संक्रमित जानवर के संपर्क के माध्यम से इंसानों तक फैला या यह एक प्रयोगशाला में हुई दुर्घटना से लीक हुआ. बाइडेन ने कहा एक बात के दूसरी की तुलना में सही होने का आकलन करने के लिए पर्याप्त जानकारी नहीं है.
उन्होंने कहा कि 18 में से दो खुफिया एजेंसियां जानवर से जुड़ी कड़ी की तरफ झुकती हैं और एक प्रयोगशाला वाली संभावना की ओर इशारा करती है, "प्रत्येक कम या मध्यम आत्मविश्वास के साथ." बाइडेन ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं को जांच में मदद करनी चाहिए और चीन से अंतरराष्ट्रीय जांच में सहयोग करने का आह्वान किया. उन्होंने 90 दिनों के भीतर जांच नतीजों की उम्मीद जताई है.
चीन को घेरने की कोशिश!
बाइडेन ने कहा, "अमेरिका दुनिया भर में समान विचारधारा वाले साझेदारों के साथ काम करता रहेगा ताकि चीन पर पारदर्शी, सबूत आधारित अंतरराष्ट्रीय जांच में शामिल होने और सभी प्रासंगिक डेटा और साक्ष्य तक पहुंच देने के लिए दबाव डाला जा सके." अमेरिकी प्रशासन के कुछ अधिकारियों ने लैब से लीक होने की थ्योरी के बारे में गंभीर संदेह जताया है. व्हाइट हाउस के प्रमुख मेडिकल सलाहकार डॉ. एंथनी फाउची ने बुधवार को कहा कि उनका और अन्य वैज्ञानिकों का मानना है कि "सबसे अधिक संभावना यह है कि वायरस का फैलना एक प्राकृतिक घटना थी, लेकिन निश्चित रूप से सौ फीसदी कोई नहीं जानता है."
सेनेट में सुनवाई के दौरान फाउची ने कहा, "चूंकि बहुत चिंता है, बहुत सारी अटकलें हैं और किसी को सटीक जानकारी नहीं है, मुझे लगता है कि हमें इस तरह की जांच के लिए पारदर्शिता की जरूरत होती है." वायरस पर बाइडेन के वरिष्ठ सलाहकार एंडी स्लाविट ने मंगलवार को कहा था, "हमें चीन से एक पारदर्शी प्रक्रिया की जरूरत है. हमें इस मामले में विश्व स्वास्थ्य संगठन की मदद की भी आवश्यकता है. हमें नहीं लगता कि हमारे पास इस समय ऐसा कुछ है." जांच के लिए राष्ट्रपति बाइडेन का आदेश ऐसे समय में आया है जब कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि महामारी की शुरुआत के एक महीने पहले वुहान की प्रयोगशाला में काम करने वाले कुछ शोधकर्ता बीमार पड़ गए थे.
चीन ने "लैब लीक" की तीखी आलोचना की
बाइडेन की टिप्पणी के तुरंत बाद, अमेरिका में चीनी राजदूत ने एक बयान जारी कर लैब लीक सिद्धांत को "षड्यंत्र सिद्धांत" बताया. बयान में अमेरिका का नाम नहीं लिया गया, लेकिन कहा गया कि "कुछ राजनीतिक ताकतें वायरस के स्रोत और उसके शुरुआत को दोष देने का खेल खेल रही हैं. वे गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार कर रही हैं." चीन का कहना है कि वायरस की उत्पत्ति का राजनीतिकरण करने से इससे निपटने की वैश्विक कोशिशें खतरे में पड़ सकती हैं और वह इस मामले की व्यापक जांच में पहले ही सहयोग कर चुका है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस साल की शुरुआत में वायरस की उत्पत्ति की जांच शुरू की थी और एक जांच दल को वुहान भेजा गया था. लेकिन दल जानवर के स्रोत को निर्धारित नहीं कर सका. ऐसी चिंताएं थीं कि चीन जांच में उतना सहयोग नहीं कर रहा था जितना कि वह कर सकता था. लेकिन डब्ल्यूएचओ की टीम ने जांच के बाद निर्धारित किया कि लैब से वायरस का प्रसार "बेहद नामुमकिन" है.
एए/वीके (एपी, रॉयटर्स)
इस्लामाबाद में सेना की आलोचना करने के लिए जाने जाने वाले पत्रकार असद अली टूर पर बंदूक लिए तीन लोगों ने हमला कर दिया. यह दो महीनों में पत्रकारों पर हमले की दूसरी घटना है.
असद अली टूर पाकिस्तानी टीवी चैनल 'आज टीवी' के एक लोकप्रिय कार्यक्रम के प्रोड्यूसर हैं और यूट्यूब पर "असद अली टूर अनसेंसर्ड" नाम से अपना चैनल भी चलाते हैं. उन्होंने पुलिस को एक बयान में बताया कि कम से कम तीन अज्ञात बंदूकधारी मंगलवार रात इस्लामाबाद में उनके घर में घुस आए. हमलावरों ने अली का मुंह बंद कर दिया, हाथ-पांव बांध दिए, उन्हें मारा पीटा और फिर घायल छोड़ कर चले गए. अली का अभी एक अस्पताल में इलाज चल रहा है. बताया जा रहा है कि उनकी हालत स्थिर है.
टूर अपने वीडियो कार्यक्रमों में ऐसे मुद्दों पर खबरें और चर्चा ले कर आते हैं जिनसे पाकिस्तान में मुख्यधारा की मीडिया बच कर रहती है. माना जाता है कि पाकिस्तान की सेना एक कड़ी सेंसरशिप नीति की मदद से मुख्यधारा की मीडिया पर अपना नियंत्रण बनाए रखती है. टूर पर हुआ हमला 2018 में प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार बनने के बाद से पत्रकारों पर लगातार हो रहे हमलों की श्रृंखला का एक हिस्सा है. सेना पर उन चुनावों में भी हस्तक्षेप करने का आरोप है.
पिछले महीने इस्लामाबाद में ही बंदूकधारियों ने एक और पत्रकार अबसार आलम पर उसके घर के बाहर गोली चला कर उसे घायल कर दिया. यह पत्रकार भी सेना की बेबाक आलोचना के लिए मशहूर हैं. पिछले साल टूर और दो और पत्रकारों के खिलाफ सेना को बदनाम करने के लिए एक आपराधिक मामला दर्ज किया गया था, लेकिन इस्लामाबाद के एक हाई कोर्ट ने इन आरोपों को खारिज करने के आदेश दे दिए थे.
पिछले साल जुलाई में पत्रकार मतिउल्ला जान का इस्लामाबाद से अपहरण कर लिया गया था. उन्हें किसी अज्ञात ठिकाने पर घंटों यातनाएं दी गईं और उसके बाद एक सुनसान सड़क पर छोड़ दिया गया. बीते सालों में देश में कई पत्रकारों पर हमले हुए हैं लेकिन कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की मांगों के बावजूद कभी भी किसी मामले में ना तो जांच पूरी हुई और ना किसी को हिरासत में लिया गया.
सीके/एए (डीपीए)
इस्लामाबाद (रॉयटर्स)। तालिबान ने अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों को सीधे तौर पर धमकी दी है कि यदि उन्होंने अमेरिकी फौज को ऑपरेट करने के लिए अपनी जमीन के इस्तेमाल की इजाजत दी तो ये उनकी सबसे बड़ी गलती होगी। तालिबान ने एक बयान जारी कर अफगानिस्तान के सभी पड़ोसी देशों को ऐसा कोई भी फैसला न करने के लिए चेतावनी भी दी है। तालिबान ने साफ कर दिया है कि ऐसा कोई भी कदम खतरनाक हो सकता है। साथ ही तालिबान ने कहा है कि यदि ऐसा हुआ तो वो भी चुप नहीं बैठने वाले हैं।
तालिबान की तरफ से ये बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिका अफगानिस्तान से अपनी फौज को पूरी तरह से वापस ले जाने की कवायद में जुटा है। अमेरिका पहले की ये साफ कर चुका है कि वो अमेरिका पर हुए सबसे बड़े आतंकी हमले (9/11) की बरसी से पहले सभी जवानों को वापस ले जाएगा। इसको लेकर अमेरिका लगातार अफगानिस्तान के सहयोगी और करीबी देशों के संपर्क में भी है। अमेरिका चाहता है कि अफगानिस्तान में तालिबान की मौजूदगी के बावजूद कोई ऐसा समाधान निकाला जाए जो सभी के लिए सही हो। वहीं भारत जैसे देश तालिबान की मौजूदगी को लेकर आशंकित हैं। अफगानिस्तान की मौजूदा सरकार भी इसको लेकर आशंकित है। वहीं अमेरिका के यहां से बाहर जाने की खबरों के बीच तालिबान अफगानिस्तान में एक बार फिर से अपना दायरा बढ़ा रहा है।
तालिबान का ये बयान इसलिए भी बेहद खास है क्योंकि हाल ही में अमेरिका ने कहा था कि पाकिस्तान ने उसकी फौज का बेस बनाने और उसके एयर स्पेस का इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी है। साथ ही ये भी कहा गया था कि पाकिस्तान अमेरिकी फौज को ग्राउंड सपोर्ट भी करेगा। इस बयान के अलगे ही दिन पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की तरफ से कहा गया था कि अमेरिका की तरफ से दिया गया ये बयान पूरी तरह से बेबुनियाद है और झूठा है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का कहना था कि उनकी सरकार के पास इस तरह का कोई मसौदा नहीं आया है और न ही इसको लेकर अमेरिका के साथ कोई वार्ता हो रही है।
वहीं बुधवार को ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने दो टूक ये बात कही थी कि पाकिस्तान अमेरिकी फौज को अपनी जमीन का इस्तेमाल करने की इजाजत किसी भी सूरत में नहीं देगा। उन्होंने ये भी कहा था कि पाकिस्तान किसी भी हाल में अमेरिका को ड्रोन हमले की भी इजाजत नहीं देगा। उन्होंने भी इस बात की पुष्टि की थी कि इस बारे में दोनों देशों के बीच किसी तरह की कोई वार्ता नहीं चल रही है। वहीं बुधवार को ही अमेरिका की तरफ से कहा गया था कि वो अमेरिकी मिलिट्री बेस के लिए अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों के संपर्क में है। अमेरिका का कहना था कि अमेरिका ऐसा इसलिए चाहता है कि जरूरत पड़ने पर अफगानिस्तान की मदद की जा सके।
आपको बता दें कि पिछले सप्ताह अफगानिस्तान के मौजूदा और पूर्व राष्ट्रपतियों ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि अफगानिस्तान की दुर्गति के पीछे पाकिस्तान का हाथ है। उन्होंने आरोप लगाया था कि पाकिस्तान तालिबान को हर संभव मदद देता है। उनके लड़ाके पाकिस्तान में ट्रेनिंग लेते हैं। उनकी भर्ती से लेकर तालिबान को होने वाली फंडिंग में पाकिस्तान एक अहम भूमिका निभाता है। पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने तो यहां तक कहा था कि पाकिस्तान चाहता है कि उनका देश भारत से सभी संबंध तोड़ ले और पाकिस्तान तालिबान के जरिए यहां पर अपना राजनीतिक और रणनीतिक प्रभाव बढ़ा ले, जो कि कभी नहीं होगा। (jagran.com)
कोलंबो, 27 मई| महामारी की तीसरी लहर के बीच, श्रीलंका सरकार को चीनी सरकार द्वारा अनुदान के रूप में दिए गए कोविड-19 के खिलाफ सिनोफार्मा टीकों का एक और बैच मिला है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, मंगलवार रात बीजिंग से बंदरानाइक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचे टीकों को श्रीलंका में चीनी राजदूत क्यूई जेनहोंग ने प्राप्त किया और स्वास्थ्य मंत्री पवित्रा वन्नियाराची को सौंप दिया।
टीकों की यह खेप श्रीलंका पहुंचने वाली दूसरी खेप थी।
पहला बैच मार्च में द्वीप राष्ट्र पहुंचा था।
श्रीलंका का टीकाकरण कार्यक्रम वर्तमान में मुख्य रूप से पश्चिमी प्रांत के सबसे गंभीर रूप से प्रभावित जिलों जैसे कोलंबो, गमपाहा और कलुतारा में चल रहा है।
स्वास्थ्य मंत्रालय से मिली जानकारी के मुताबिक 16 मई तक 13.15 लाख से ज्यादा लोगों का टीकाकरण किया जा चुका है।
इनमें से 3,75,000 को सिनोफार्म वैक्सीन दी गई थी।
श्रीलंका पिछले एक महीने में कोविड-19 के मामलों में तेजी से वृद्धि का सामना कर रहा है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि सभी जिलों में कोरोनावायरस का एक नया रूप तेजी से फैल रहा है।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, द्वीप राष्ट्र में वायरस के पुनरुत्थान के बीच पिछले एक महीने में 50,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं।
देश में अब तक कुल 172,277 कोविड 19 मामले और 1,298 मौतें दर्ज की गई हैं। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 27 मई| कोरोना के वैश्विक मामले बढ़कर 16.81 करोड़ हो गए हैं, जबकि इससे होने वाली मौतों की संख्या बढ़कर 34.9 लाख हो गई है। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने यह जानकार साझा की। गुरुवार की सुबह अपने नवीनतम अपडेट में, यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने खुलासा किया कि वर्तमान वैश्विक मामले और इससे होने वाली मौतों की संख्या बढ़कर क्रमश: 168,181,146 और 3,494,001 हो गई है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया के सबसे अधिक मामलों और मौतों की संख्या क्रमश: 33,190,016 और 591,947 के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
संक्रमण के मामले में भारत 27,157,795 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
30 लाख से अधिक मामलों वाले अन्य सबसे प्रभावित देश ब्राजील (16,274,695), फ्रांस (5,683,143), तुर्की (5,212,123), रूस (4,968,421), यूके (4,486,168), इटली (4,201,827), जर्मनी (3,667,041), स्पेन (3,657,886), अर्जेंटीना (3,622,135) और कोलंबिया (3,294,101) हैं।
मौतों के मामले में ब्राजील 454,429 मौतों के साथ दूसरे नंबर पर है।
भारत (311,388), मैक्सिको (221,963), यूके (128,010), इटली (125,622), रूस (117,595) और फ्रांस (109,185) में 100,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई है। (आईएएनएस)
बर्लिन, 27 मई| फेडरल क्रिमिनल पुलिस ऑफिस (बीकेए) ने बुधवार को घोषणा की कि जर्मनी ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी के वितरण और उत्पादन में सालाना आधार पर 53 फीसदी की वृद्धि दर्ज की है, क्योंकि पिछले साल अधिकारियों द्वारा लगभग 19,000 मामले दर्ज किए गए थे। बीकेए के अध्यक्ष होल्गर मुएनच ने कहा, बच्चों के खिलाफ सबसे गंभीर अपराध, जैसे यौन शोषण या दुर्व्यवहार, आमतौर पर बंद दरवाजों के पीछे होते हैं, इसलिए हम सभी से सतर्क रहने और जिम्मेदारी लेने का आह्वान करते हैं।
पिछले वर्ष 40 प्रतिशत से अधिक मामलों में, बाल पोर्नोग्राफी के वितरण या उत्पादन के लिए कम उम्र के नाबालिग जिम्मेदार थे। पिछले वर्ष की तुलना में नाबालिगों द्वारा किए गए चाइल्ड पोर्नोग्राफी से संबंधित लगभग पांच गुना अपराध थे, एक तेज वृद्धि जिसे बीकेए ने चिंताजनक माना।
बीकेए के अनुसार, बच्चे और युवा अक्सर इस बात से अनजान थे कि वे अश्लील फाइलों को प्रसारित करके अपराध कर रहे हैं, कभी-कभी हिम्मत के खेल के रूप में। इसके अलावा, जर्मनी में कई नाबालिगों में विषय के प्रति संवेदनशीलता की कमी थी।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, मुएन्च ने बच्चों को इंटरनेट का उपयोग करते समय सुरक्षा के प्रति सचेत रहने के लिए सिखाने के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, यौन शोषण के कुछ रूप, जैसे कि साइबर ग्रूमिंग, ऑनलाइन होते हैं। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 27 मई | अमेरिकी राज्य कैलिफोर्निया के सैन जोस में वैली ट्रांसपोर्टेशन अथॉरिटी (वीटीए) लाइट रेल यार्ड में बुधवार तड़के एक सामूहिक गोलीबारी में संदिग्ध समेत नौ लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने कहा कि जिस अज्ञात व्यक्ति का शव मिला है, वह वीटीए का कर्मचारी हो सकता है।(आईएएनएस)
रियाद. सऊदी अरब ने मंगलवार को अचानक इजरायली उड़ानों के लिए अपना हवाई क्षेत्र बंद कर दिया. इसकी वजह से दुबई के लिए रवाना होने से पहले बेन गुरियन हवाई अड्डे पर इजरायल एयरलाइंस की उड़ान में पांच घंटे की देरी हुई. फिलहाल सऊदी अरब ने इसकी कोई वजह नहीं बताई है. इजरायल की उड़ान स्थानीय समयानुसार सुबह 9 बजे उड़ान भरने वाली थी. लेकिन सऊदी अरब ने आवश्यक परमिट देने से इनकार कर दिया. बाद में अल इजरायल की फ्लाइट मंगलवार दोपहर को सऊदी हवाई क्षेत्र से उड़ान भरने की अनुमति के साथ दुबई के लिए रवाना हुई थी. सऊदी अरब ने परमिट क्यों नहीं दिया, इसकी वजह पता नहीं चल पाई है.
बहरहाल, नवंबर में, सऊदी अरब ने कहा था कि वो इजरायल की उड़ानों को दुबई के रास्ते में अपने हवाई क्षेत्र का उपयोग करने की अनुमति देंगे. लेकिन मंगलवार को तेल अवीव से दुबई की पहली उड़ान भरने के कुछ घंटे पहले यह फैसला किया गया. सऊदी अरब के ऊपर से उड़ान भरने की अनुमति के बिना तेल अवीव-दुबई मार्ग इजरायल से संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के उड़ानों के लिए मुफीद नहीं होता है. अगर सऊदी अरब के बजाय दूसरा रास्ता चुना जाए तो इजरायल से दुबई पहुंचने में तीन के बजाय आठ घंटे से अधिक का समय लगता है. इजरायल और यूएई के बीच वाणिज्यिक उड़ानें अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर करने के तुरंत बाद शुरू हुई थीं. इस समझौता के चलते इजरायल और यूएई के बीच रिश्ते सामान्य हो गए थे. बाद में मोरक्को और सूडान के साथ बहरीन भी ऐतिहासिक सौदे में शामिल हो गया था. इजरायल के साथ अरब देशों यूएई, मोरक्को, सूडान और बहरीन ने पिछले साल 15 सितंबर को अब्राहम समझौता किया था. हालांकि इस समझौते में सऊदी अरब शामिल नहीं था.
फिलीस्तीन-इजरायल संघर्ष
सऊदी अरब ने अपने एयरस्पेस के इस्तेमाल करने की अनुमति न देने का यह फैसला ऐसे समय किया है जब फिलिस्तीन-इजरायल के बीच 11 दिनों के संघर्ष के बाद सीजफायर का ऐलान किया गया है. सीजफायर के ऐलान के साथ ही इजरायल के लिए अंतरराष्ट्रीय उड़ानें शुरू हो गईं. ऐसा पहली बार हुआ था जब हमास के रॉकेट हमलों के बाद तेल अवीव से अंतरराष्ट्रीय उड़ानें बंद करनी पड़ी थीं. इस बीच, अमेरिका की एयरलाइन कंपनियों यूनाइडेट, डेल्टा और अमेरिकन ने कहा कि इजरायल-हमास के बीच युद्धविराम पर सहमति बनने के बाद वे तेल अवीव तक अपनी उड़ान सेवाओं को फिर से शुरू कर रहे हैं. इजरायल और फिलिस्तीन के चरमपंथी गुट हमास के बीच हुए संघर्ष में तेल अवीव स्थित बेन गुरियन अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर भी रॉकेट दागे गए थे.
इजरायल जाने वाली उड़ानों को रोका
यूनाइटेड ने अमेरिका के तीन शहरों से इजरायल जाने वाली अपनी उड़ानों को 12 मई को रोक दिया था. वहीं, अमेरिकन एयरलाइंस ने कहा कि वह न्यूयॉर्क से तेल अवीव के बीच उड़ान सेवा फिर से शुरू करने की योजना बना रही है. यरुशल स्थित अल-अक्सा मस्जिद में झड़प के बाद इजरायल और फिलिस्तीन में 11 दिन संघर्ष चला. इस दौरान फिलिस्तीन के चरमपंथी गुट हमास ने रॉकेट दागे तो इजरायल ने जवाबी कार्रवाई में गाजा पट्टी पर हवाई हमले किए. इससे गाजा पट्टी में काफी नुकसान हुआ जबकि 200 से ज्यादा लोग मारे गए. इजरायल में भी 12 लोगों की जान चली गई.
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अमेरिका, जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों ने सीरिया के "छलपूर्ण चुनाव" को मौजूदा राष्ट्रपति बशर अल असद की तरफ से रचा एक दिखावा बताया है.
अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और इटली ने बुधवार को सीरिया के चुनाव को न तो "स्वतंत्र और न ही निष्पक्ष" बताते हुए एक बयान जारी किया है. पश्चिमी देशों का दावा है कि चुनाव मौजूदा राष्ट्रपति बशर अल असद द्वारा धोखाधड़ी है और चुनाव में उनकी जीत पक्की है. मंगलवार को जारी संयुक्त बयान में पश्चिमी देशों के विदेश मंत्रियों ने कहा, "हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2254 में निर्धारित ढांचे के बाहर चुनाव कराने के असद सरकार के फैसले की निंदा करते हैं. हम नागरिक समाज संगठनों, सीरियाई विपक्षी दल और सभी सीरियाई लोगों की आवाज का समर्थन करते हैं. विपक्षी दलों ने चुनाव प्रक्रिया को नाजायज बताते हुए इसकी निंदा की है."
इन देशों का कहना है कि वैश्विक स्तर पर "उच्च स्तर की पारदर्शिता और जवाबदेही तय करने के लिए जरूरी है कि ये चुनाव संयुक्त राष्ट्र की देखरेख में हों." संयुक्त बयान में कहा गया है कि सीरिया के बाहर रहने वाले सीरियाई शरणार्थियों समेत सभी लोगों को मतदान प्रक्रिया में भाग लेना चाहिए था.
अभी सीरियाई कानून के तहत विदेश में रहने वाले सिर्फ वही सीरियाई मतदान कर सकते हैं जो आधिकारिक मुहर लगे स्वीकृत सीरियाई पासपोर्ट पर देश से बाहर गए हैं. इसके तहत गृहयुद्ध के कारण देश छोड़कर भागे सीरियाई लोगों को वोट देने का अधिकार नहीं है. संयुक्त बयान में कहा गया, "इन तत्वों के बिना, ये छलपूर्ण चुनाव राजनीतिक समाधान की दिशा में प्रगति का प्रतिनिधित्व नहीं करते. हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मानवाधिकारों के हनन को खत्म करने के असद शासन के प्रयासों को बिना शर्त खारिज करने का आह्वान करते हैं."
चुनाव में अन्य उम्मीदवार कौन हैं?
राष्ट्रपति बशर अल असद के अलावा, अरब ऑर्गनाइजेशन फॉर ह्यूमन राइट्स के प्रमुख मुहम्मद अहमद मैरी और पूर्व मंत्री अब्दुल्ला सलौम अब्दुल्ला राष्ट्रपति पद के लिए मैदान में हैं. राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को जन्म से सीरियाई नागरिक होना चाहिए और कम से कम 40 साल का होना चाहिए. उम्मीदवारों को दोहरी नागरिकता के साथ-साथ विदेशी पार्टनर रखने की अनुमति नहीं है. एक शर्त यह भी है कि उम्मीदवार चुनाव से पहले तक दस साल सीरिया में रहा हो.
सीरियाई विपक्षी समूहों ने चुनाव को अवैध बताते हुए इसकी कड़ी आलोचना की है. विपक्ष की सीरियाई संवैधानिक समिति के नेता हादी अल-बहारा ने जर्मन समाचार एजेंसी डीपीए को बताया कि चुनाव अवैध हैं. उन्होंने कहा, "वर्तमान में, कोई भी सुरक्षित और तटस्थ वातावरण नहीं है जो सभी सीरियाई लोगों को मतदान के अपने अधिकार का इस्तेमाल करने में सक्षम बनाता हो." तुर्की में एक अन्य सीरियाई विपक्षी समूह द सीरियन नेशनल काउंसिल ने भी चुनाव को खारिज कर दिया है. समूह ने कहा, "सीरिया में एकमात्र स्वीकार्य चुनाव वह होगा जिसमें युद्ध अपराधी बशर अल असद नहीं होंगे."
सीरिया 2011 के बाद से गृहयुद्ध में उलझा हुआ है. लोकतंत्र समर्थक समूहों के अरब वसंत के बाद से असद की सेना जेहादी संगठनों से लड़ाई लड़ रही है. शुरू में तो विद्रोही समूहों ने होम्स शहर और अलेप्पो जैसे बड़े क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था. लेकिन रूसी सेना की मदद से असद की सेना ने अधिकांश इलाके पर फिर से कब्जा जमा लिया. हिंसा और लड़ाई में अब तक हजारों सीरियाई मारे गए हैं, जबकि दसियों लाख विस्थापित हुए हैं. (dw.com)
एए/वीके (रॉयटर्स, एएफपी, डीपीए)
दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर रिकॉर्ड 25 बार चढ़ने वाले नेपाल के एक शेरपा का कहना है कि पहाड़ की देवी ने उन्हें 26वीं बार के लिए चेतावनी दी है.
51 साल के कामी रीता शेरपा ने 7 मई को एवरेस्ट पर 25वीं बार चढ़ाई की. यह एक नया विश्व रिकॉर्ड है. उनके साथ 11 और शेरपा भी थे जो रस्सी ठीक करने की टीम का हिस्सा थे.लेकिन अगली बार चढ़ने को लेकर कामी सशंकित हैं. 25वीं चढ़ाई के बाद नेपाल की राजधानी काठमांडू लौटे कामी शेरपा ने कहा कि वह अगली बार की चढ़ाई को लेकर बहुत आशवस्त नहीं हैं. उन्होंने कहा कि जब वह अपने नए ग्राहकों के साथ पश्चिम क्वाम घाटी में 26वीं बार चढ़ाई की तैयारी कर रहे थे तो उन्हें एक सपना आया. कामी ने यह तो नहीं बताया कि सपना क्या था लेकिन इतना कहा कि उन्हें लगता है देवी नहीं चाहती कि वह एक बार फिर इस चोटी की चढ़ाई करें.
कामी ने मीडिया से बातचीत में कहा, "ये अच्छा सपना नहीं था. मुझे लगा कि देवी मुझे बता रही हैं कि अब इस बार के लिए बहुत हो गया है. इसलिए मैं लौट आया."
कोरोना महामारी से प्रभावित हुई चढ़ाई
नेपाली शेरपा अपने पर्वतारोहण कौशल के लिए जाने जाते हैं. वे शेरपा माउंट एवरेस्ट को देवी मानकर पूजते हैं. ये शेरपा विदेशों से आए पर्वतारोहियों को लेकर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर जाते हैं. और ट्रेकिंग अभियानों में भी गाइड के तौर पर साथ जाते हैं. हर साल चढ़ाई शुरू करने से पहले वह एक पूजा करते हैं और देवी से पहाड़ी पर कदम रखने के लिए माफी मांगते हैं. पहली बार माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाले न्यूजीलैंड के सर एडमंड हिलेरी के साथ 1953 में तेनजिंग नोरगे शेरपा भी थे. कामी ने कहा कि वह अगले साल पर्वतारोहण के लिए जाएंगे.
कोविड महामारी के कारण 2020 में एवरेस्ट पर चढ़ाई बंद रही थी. लेकिन इस साल सैकड़ों पर्वतारोही एवरेस्ट बेसकैंप पहुंचे हैं और बीते दो महीने में सैकड़ों लोग चढ़ाई कर चुके हैं. किसी भी समय पर नेपाल की ओर बने बेस कैंप में एक हजार से ज्यादा लोग होते हैं. नेपाल से एवरेस्ट आरोहण का परमिट लेने की फीस 11 हजार अमेरिकी डॉलर्स यानी करीब आठ लाख रुपये है. इसके अलावा पर्वतारोही 40 हजार डॉलर यानी करीब 30 लाख रुपये एक अभियान के लिए खर्च करते हैं.
वीके/एए (रॉयटर्स)
मेक्सिको में लड़कियां कम उम्र में बतौर दुल्हन बेच दी जाती हैं. माता-पिता बच्चियों को दो हजार से लेकर 18 डॉलर के बीच बेच देते हैं. अब कई लोग इस परंपरा का विरोध कर रहे हैं और इसके खिलाफ आगे आए हैं.
14 साल की एलोइना फेलिसियानो ने अपनी मां से गुहार लगाई कि उनकी शादी न करवाई जाए लेकिन उनकी विनती बेकार गई. दक्षिण मेक्सिको में स्वदेशी समुदाय में सदियों से ऐसी परंपरा चली आ रही है. ग्युरेरो राज्य के पहाड़ों पर स्थित अपने घर पर फेलिसियानो याद करती हैं कि उन्होंने अपनी मां से गुजारिश की थी कि "उन्हें बेचा नहीं जाना चाहिए." फेलिसियानो कहती हैं, "हम जानवर नहीं हैं. जानवरों को ही बेचा जाता है."
फेलिसियानो अब 23 साल की हो गई हैं. वह मेक्सिको की सबसे गरीब नगर पालिका मेटलाटोनोक में रहती हैं. वह अपने मिक्सटेक समुदाय की कई लड़कियों में से एक हैं जो इस परंपरा से बंध गई हैं, जिस पर आलोचकों का कहना है कि महिलाओं को दुर्व्यवहार में फंसाया जाता है और दूल्हे के परिवार को गरीबी के दलदल में धकेल दिया जाता है.
कम उम्र में शादी का बोझ
आज भी ग्युरेरो में दर्जनों समुदायों में इस तरह के समझौते किए जाते हैं, लेकिन बेटियों को बेचने की प्रथा को खत्म करने के लिए आवाज उठाई जा रही है. वहां के लोगों ने बताया कि दुल्हन के माता-पिता द्वारा दो हजार डॉलर से 18 हजार डॉलर तक मांगे जाते हैं. त्लाचिनोलन सेंटर ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑफ द माउंटेन के निदेशक एबेल बैरेरा कहते हैं, "लड़कियां पूरी तरह से असुरक्षित हैं. उनका नया परिवार उन्हें घरेलू और कृषि कार्यों के साथ गुलाम बनाता है. कभी-कभी ससुराल वाले उनका यौन शोषण करते हैं."
ससुराल में घरेलू हिंसा और यौन शोषण भी झेलना पड़ता है
उनके मुताबिक इन समुदायों में बढ़ती अनिश्चितता के कारण "अपने पहले मासिक धर्म से दहेज के बदले में युवतियों को देने का स्वदेशी पुश्तैनी रीति कहीं खो गई है और अब लड़कियां वस्तु बन गई है." आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, मेक्सिको की 12.6 करोड़ की आबादी के लगभग 10 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व आदिवासी लोग करते हैं और लगभग 70 प्रतिशत गरीबी में रहते हैं. राष्ट्रीय सांख्यिकी संस्थान आईएनईजीआई के मुताबाकि मेटलाटोनोक के 19 हजार निवासियों में से 94 प्रतिशत से अधिक के पास अपने घरों में बुनियादी सेवाएं नहीं हैं और लगभग 59 प्रतिशत को पेट पालने में मुश्किल होती है.
परंपरा खत्म करने की उठ रही मांग
61 वर्षीय मौरिलिया जूलियो को भी कम उम्र में बेच दिया गया था और उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनकी अपनी बेटियां उसी भाग्य से बचें. वह कहती हैं, "वे लड़की को खरीदने के साधारण तथ्य के लिए उसे सताते हैं." जूलियो कहती हैं, "कई महिलाएं कहती हैं, मैं अपनी बेटी को 5,500 डॉलर-6,000 डॉलर में बेच रही हूं क्योंकि मुझे पैसे चाहिए, लेकिन यह सुनकर मुझे बहुत दुख होता है क्योंकि वे तो उनके ही बच्चे हैं."
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक ग्युरेरो में नौ से 17 साल की उम्र के बीच की 3,000 से अधिक लड़कियों ने बच्चों को जन्म दिया, उनमें से कुछ को शादी के लिए बेचा गया था. 29 साल के विक्टर मोरेनो कहते हैं, "हम चाहते हैं कि यह बदल जाए लेकिन लोग कहते हैं, 'मैं जो चाहता हूं वही करूंगा क्योंकि मेरी बेटी है और कोई भी मुझे यह नहीं बताएगा कि क्या करना है." मोरेनो की शादी इसी तरह से हुई थी, हालांकि वे अपनी पत्नी के साथ दुर्व्यवहार नहीं करते हैं. वे इस परंपरा का विरोध करते हैं. समुदाय के एक नेता का कहना है कि अब तक इलाके के 300 लोगों ने इस परंपरा को खत्म करनी पर सहमति जाहिर की है. (dw.com)
एए/वीके (एएफपी)
अमेरिका ने गजा के पुनर्निर्माण के लिए अतिरिक्त आर्थिक मदद देने का वादा किया है. अमेरिकी विदेश मंत्री ऐंटनी ब्लिंकन ने यरूशलम में अमेरिकी उच्चायोग को फिर से खोलने की भी बात कही.
इस्लामिक संगठन हमास और इस्राएल के बीच युद्ध विराम को मजबूत और स्थायी बनाने के इरादे से मध्य पूर्व पहुंचे ब्लिंकन ने वेस्ट बैंक के शहर रमल्लाह में फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास के बगल में खड़े होकर कहा कि अमेरिका इस साल इस्राएल के पड़ोसी को साढ़े सात करोड़ डॉलर यानी लगभग साढ़े पांच अरब रुपये देगा.
इसके अलावा करीब 40 करोड़ रुपये गजा में आपदा राहत के लिए और लगभग ढाई अरब रुपये गजा फलस्तीन स्थित संयुक्त राष्ट्र की सहायता एजेंसी को दिए जाएंगे. ब्लिंकन ने कहा, "हम जानते हैं कि दोबारा हिंसा होने से रोकने के लिए हमें जो मौका मिला है उसका इस्तेमाल मूलभूत मुद्दों और चुनौतियों को हल करने के लिए करना है. और उसकी शुरुआत गजा में पैदा हुए गंभीर मानवीय संकट को हल करने से होती है.”
अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि उनका देश सुनिश्चित करना चाहता है कि उसकी आर्थिक मदद का लाभ हमास को न पहुंचे. अमेरिका हमास को एक आतंकवादी संगठन मानता है, जिसकी गजा में मजबूत पकड़ है. ब्लिंकन ने कहा कि अगर मदद सही तरह से बंटी तो यह असल में हमास का प्रभाव कम कर सकती है जो, लोगों की "निराशा, दुख, परेशानी और अवसरों की कमी” से फलता-फूलता है.
येरूशलम को लेकर बड़ा वादा
अमेरिकी विदेश मंत्री ने अपने दौरे की शुरुआत येरूशलम से की जहां उन्होंने इस्राएल के प्रधानमंत्री बेन्याममिन नेतनयाहू से मुलाकात की. ब्लिंकन की मौजूदगी में इस्राएली नेता ने मीडिया से कहा कि अगर हमास ने रॉकेट हमले फिर शुरू किए तो उसे "बहुत जोरदार जवाब” मिलेगा. ब्लिंकन ने कहा कि येरूशलम में अमेरिकी उच्चायोग को फिर से खोलना फलस्तीनी लोगों से संपर्क बढ़ाने और मदद पहुंचाने में अहम साबित होगा. हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि उच्चायोग कब खोला जाएगा.
ट्रंप सरकार ने 2019 में उच्चायोग को अमेरिकी दूतावास का हिस्सा बना दिया था. 2017 में इस्राएल ने अपनी राजधानी तेल अवीव से येरूशलम कर दी थी जिसके बाद अमेरिका ने भी येरूशलम में अपना दूतावास खोल लिया था. यह अमेरिका की लंबे समय से चली आ रही नीति के उलट था और फलस्तीन ने इसका विरोध किया था. फलस्तीन पूर्वी येरूशलम को अपनी राजधानी बनाना चाहता है. लेकिन 1967 से ही पूरे येरूशलम पर इस्राएल का कब्जा है.
हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की येरूशलम स्थित दूतावास को हटाने की कोई योजना नहीं है लेकिन वह फलस्तीनियों का भरोसा फिर से जीतने की कोशिश कर रहे हैं. अप्रैल में उन्होंने ट्रंप सरकार द्वारा बंद की गई फलस्तीन की अरबों रुपये की मदद फिर से शुरू की थी.
दोनों पक्षों को चेतावनी
ब्लिंकन ने इस्राएल और फलस्तीनियों को ऐसे काम करने के खिलाफ भी चेतावनी दी जो तनाव बढ़ाएं और दो राष्ट्रों के सिद्धांत को कमजोर करें. अमेरिका दो राष्ट्र के सिद्धांत को लेकर आज भी प्रतिबद्ध है. ब्लिंकन ने जिन गतिविधियों के खिलाफ चेतावनी दी उनमें फलस्तीनी इलाके में इस्राएल के बस्तियां बसाने, पूर्वी येरूशलम से फलस्तीनियों को निकाले जाने या फलस्तीन की ओर से उग्रवादी हिंसा शामिल थे.
इस्राएल और हमासे के बीच 11 दिन तक लड़ाई के बाद मिस्र की मध्यस्थता से बीते शुक्रवार ही युद्ध विराम हुआ है. 11 दिन की लड़ाई में गजा में 254 लोगों की मौत हुई और 1900 से ज्यादा घायल हुए. इस्राएल की ओर से 13 लोगों की मौत की सूचना है जबकि सैकड़ों लोग घायल बताए गए हैं.
वीके/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)
भारत में कोविड के बढ़ते मामलों ने अफगान नागरिकों की चिकित्सकीय सुविधाओं पर भी लगाम लगा दी है क्योंकि वे स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में भारत पर भरोसा करते हैं. अफगान मरीजों के लिए एक-एक दिन भारी पड़ रहा है.
डॉयचे वैले पर मसूद सैफुल्लाह की रिपोर्ट
70 वर्षीय अफगान नागरिक सदरुद्दीन साल 2016 में बीमार पड़ने से पहले काबुल में अच्छा जीवन बिता रहे थे. सदरुद्दीन की 25 वर्षीया बेटी मरियम बेहेश्ता डीडब्ल्यू से बातचीत में कहती हैं, "साल 2016 की शुरुआत में मेरे पिता को लगातार खांसी आनी शुरू हुई. काबुल में डॉक्टर उनके मर्ज को पहचान नहीं पाए.” अगले कुछ महीनों में सदरुद्दीन का स्वास्थ्य बिगड़ता गया क्योंकि अफगानिस्तान में डॉक्टर उनका इलाज करने में सक्षम नहीं थे.
युद्ध-प्रभावित इस देश में जन स्वास्थ्य सेवाएं गंभीर मरीजों का उपचार करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. इसी वजह से ज्यादातर अफगानी भारत आते हैं. बेहेश्ता ने भी अपने पिता को इलाज के लिए भारत ले जाने का फैसला किया. बेहेश्ता कहती हैं, "मैं साल 2018 में पहली बार अपने पिता को भारत ले आई. वहां डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें कैंसर है. लेकिन यहां एक उम्मीद थी क्योंकि भारतीय डॉक्टरों ने जो दवाइयां दी थीं और जिस तरह से उनका इलाज चल रहा था, उससे मेरे पिता को काफी आराम मिल रहा था.”
महामारी की शुरुआत
भारत में परीक्षण के बाद सदरुद्दीन और बेहेश्ता इलाज के लिए हर तीसरे महीने भारत आते रहे जब तक कि साल 2020 में कोविड महामारी ने यहां अपने पांव नहीं पसारे थे. लेकिन कोविड संक्रमण की वजह से लागू हुए लॉकडाउन और अंतरराष्ट्रीय यात्राओं पर लगे प्रतिबंध ने सदरुद्दीन के लिए बेहद जरूरी उपचार को असंभव बना दिया.
बेहेश्ता कहती हैं, "स्थिति अब और ज्यादा बिगड़ गई है क्योंकि भारत में कोविड संक्रमण की दूसरी लहर काफी खतरनाक हो गई है. अब मैं भारत में उन अस्पतालों से संपर्क भी नहीं कर पा रही हूं जहां मेरे पिता का इलाज वीडियो कॉल्स के जरिए चल रहा था. दूसरी लहर आने से पहले तक कम से कम यह सुविधा तो मिली हुई थी. भारत में अस्पताल स्थानीय नागरिकों से ही भरे पड़े हैं. मैंने अस्पताल को कई बार फोन किया लेकिन मदद के लिए किसी भी डॉक्टर से बात नहीं हो सकी.”
सीमित विकल्प
हालांकि पिछले कुछ वर्षों में अफगानिस्तान ने जन स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज से काफी प्रगति की है लेकिन सुविधाओं की गुणवत्ता अभी भी बेहद खराब है. इसकी वजह ये है कि डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ पूरी तरह से प्रशिक्षित नहीं हैं और दूसरी ओर पैसे और चिकित्सा उपकरणों की बेहद कमी है. बहुत से अफगानी नागरिक कैंसर या फिर अन्य गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए भारत, ईरान या फिर पाकिस्तान जाने को प्राथमिकता देते हैं.
इनमें भी ज्यादातर लोग भारत आना पसंद करते हैं क्योंकि यहां की स्वास्थ्य सुविधाएं अपेक्षाकृत बेहतर होने के साथ ही यहां इलाज भी सस्ता है और वीजा भी आसानी से मिल जाता है. लेकिन भारतीय अस्पताल इस समय खुद ही कोविड मरीजों की वजह से भरे पड़े हैं और उनके यहां क्षमता से ज्यादा मरीजों का इलाज हो रहा है. इस स्थिति में पड़ोसी देशों के लोगों का इलाज करना उनकी प्राथमिकता में नहीं है.
अफगानी लोगों के लिए आपदा
काबुल स्थित भारतीय दूतावास अफगानी छात्रों, मरीजों और व्यापारिक वजहों से भारत जाने वालों के लिए अभी भी वीजा जारी कर रहा है लेकिन वीजा के लिए जरूरी शर्तें कोविड आपदा की वजह से काफी कड़ी कर दी गई हैं. हालांकि अफगानी नागरिक भी ऐसे समय में भारत जाने से डर रहे हैं जबकि कोविड संक्रमण अपने शीर्ष पर है. गंभीर बीमारियों से ग्रस्त मरीजों के लिए वायरस संक्रमण और घातक हो सकता है. सदरुद्दीन और बेहेश्ता को भी भारत में स्थिति सामान्य होने का इंतजार है लेकिन दुर्भाग्य से उनके पास ज्यादा समय नहीं है. बेहेश्ता कहती हैं, "मेरे पिता हर वक्त खांसते रहते हैं. हमारे पास ऐसी दवाइयां खत्म हो गई हैं जो कि भारत में मिलती हैं.”
बेहेश्ता काबुल में डॉक्टरों से सलाह ले रही हैं लेकिन उन डॉक्टरों के पास बेहेश्ता के पिता के कैंसर के इलाज की सुविधाएं नहीं हैं. वो कहती हैं, "यदि यात्रा प्रतिबंधों को जल्दी ही वापस नहीं लिया जाता और यदि भारत में जल्दी ही वायरस पर नियंत्रण नहीं पाया जाता, मुझे डर है कि मेरे पिता का जीवन संकट में रहेगा. मेरे पिता बहुत कष्ट झेल चुके हैं. हमने भारत में उनके इलाज और आने-जाने में काफी पैसे खर्च कर दिए हैं.” बेहेश्ता यह भी कहती हैं कि भारत में आई कोविड महामारी अफगानी लोगों के लिए भी आपदा बनकर आई है. (dw.com)
अमेरिका, जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों ने सीरिया के "छलपूर्ण चुनाव" को मौजूदा राष्ट्रपति बशर अल असद की तरफ से रचा एक दिखावा बताया है.
अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और इटली ने बुधवार को सीरिया के चुनाव को न तो "स्वतंत्र और न ही निष्पक्ष" बताते हुए एक बयान जारी किया है. पश्चिमी देशों का दावा है कि चुनाव मौजूदा राष्ट्रपति बशर अल असद द्वारा धोखाधड़ी है और चुनाव में उनकी जीत पक्की है. मंगलवार को जारी संयुक्त बयान में पश्चिमी देशों के विदेश मंत्रियों ने कहा, "हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2254 में निर्धारित ढांचे के बाहर चुनाव कराने के असद सरकार के फैसले की निंदा करते हैं. हम नागरिक समाज संगठनों, सीरियाई विपक्षी दल और सभी सीरियाई लोगों की आवाज का समर्थन करते हैं. विपक्षी दलों ने चुनाव प्रक्रिया को नाजायज बताते हुए इसकी निंदा की है."
इन देशों का कहना है कि वैश्विक स्तर पर "उच्च स्तर की पारदर्शिता और जवाबदेही तय करने के लिए जरूरी है कि ये चुनाव संयुक्त राष्ट्र की देखरेख में हों." संयुक्त बयान में कहा गया है कि सीरिया के बाहर रहने वाले सीरियाई शरणार्थियों समेत सभी लोगों को मतदान प्रक्रिया में भाग लेना चाहिए था.
अभी सीरियाई कानून के तहत विदेश में रहने वाले सिर्फ वही सीरियाई मतदान कर सकते हैं जो आधिकारिक मुहर लगे स्वीकृत सीरियाई पासपोर्ट पर देश से बाहर गए हैं. इसके तहत गृहयुद्ध के कारण देश छोड़कर भागे सीरियाई लोगों को वोट देने का अधिकार नहीं है. संयुक्त बयान में कहा गया, "इन तत्वों के बिना, ये छलपूर्ण चुनाव राजनीतिक समाधान की दिशा में प्रगति का प्रतिनिधित्व नहीं करते. हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मानवाधिकारों के हनन को खत्म करने के असद शासन के प्रयासों को बिना शर्त खारिज करने का आह्वान करते हैं."
चुनाव में अन्य उम्मीदवार कौन हैं?
राष्ट्रपति बशर अल असद के अलावा, अरब ऑर्गनाइजेशन फॉर ह्यूमन राइट्स के प्रमुख मुहम्मद अहमद मैरी और पूर्व मंत्री अब्दुल्ला सलौम अब्दुल्ला राष्ट्रपति पद के लिए मैदान में हैं. राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को जन्म से सीरियाई नागरिक होना चाहिए और कम से कम 40 साल का होना चाहिए. उम्मीदवारों को दोहरी नागरिकता के साथ-साथ विदेशी पार्टनर रखने की अनुमति नहीं है. एक शर्त यह भी है कि उम्मीदवार चुनाव से पहले तक दस साल सीरिया में रहा हो.
सीरियाई विपक्षी समूहों ने चुनाव को अवैध बताते हुए इसकी कड़ी आलोचना की है. विपक्ष की सीरियाई संवैधानिक समिति के नेता हादी अल-बहारा ने जर्मन समाचार एजेंसी डीपीए को बताया कि चुनाव अवैध हैं. उन्होंने कहा, "वर्तमान में, कोई भी सुरक्षित और तटस्थ वातावरण नहीं है जो सभी सीरियाई लोगों को मतदान के अपने अधिकार का इस्तेमाल करने में सक्षम बनाता हो." तुर्की में एक अन्य सीरियाई विपक्षी समूह द सीरियन नेशनल काउंसिल ने भी चुनाव को खारिज कर दिया है. समूह ने कहा, "सीरिया में एकमात्र स्वीकार्य चुनाव वह होगा जिसमें युद्ध अपराधी बशर अल असद नहीं होंगे."
सीरिया 2011 के बाद से गृहयुद्ध में उलझा हुआ है. लोकतंत्र समर्थक समूहों के अरब वसंत के बाद से असद की सेना जेहादी संगठनों से लड़ाई लड़ रही है. शुरू में तो विद्रोही समूहों ने होम्स शहर और अलेप्पो जैसे बड़े क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था. लेकिन रूसी सेना की मदद से असद की सेना ने अधिकांश इलाके पर फिर से कब्जा जमा लिया. हिंसा और लड़ाई में अब तक हजारों सीरियाई मारे गए हैं, जबकि दसियों लाख विस्थापित हुए हैं.
एए/वीके (रॉयटर्स, एएफपी, डीपीए)
टोक्यो, 26 मई | यहां होक्काइडो के उत्तरी द्वीप पर बुधवार को एक रूसी जहाज के जापानी मछली पकड़ने वाली नौका से टकराने के बाद चालक दल के तीन सदस्यों की मौत हो गई। क्योडो न्यूज ने स्थानीय अधिकारियों का हवाला देते हुए बताया कि 9.7 टन के केकड़े-मछली पकड़ने वाली नाव में चालक दल के पांच सदस्य सवार थे, जब यह 662 टन के रूसी एएमयूआर जहाज से टकराया और पलट गया।
क्योडो ने कहा कि एक बचाव अभियान में सभी पांचों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया, लेकिन एक 64 वर्षीय मुख्य अभियंता और चालक दल के दो सदस्यों की बाद में मौत की पुष्टि हुई और एक अन्य सदस्य घायल हो गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह घटना होक्काइडो पर मोनबेट्सु पोर्ट से लगभग 23 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में सुबह करीब 6 बजे हुई।
जापान कोस्ट गार्ड घटना की वजह की जांच कर रहा है।(आईएएनएस)
ब्रिटेन में एक स्वतंत्र रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने बुर्क़े को लेकर जो टिप्पणियाँ की थीं, उनसे ऐसा लगता है कि उनकी पार्टी मुसलमानों को लेकर संवेदनशील नहीं है.
ये रिपोर्ट प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के ही निर्देश पर आई है, जब 2019 में उन्होंने इस बात की स्वतंत्र जाँच करने के लिए कहा था कि उनकी पार्टी भेदभाव के आरोपों का सामना कैसे करती है.
रिपोर्ट में पाया गया कि पार्टी के स्थानीय स्तर और व्यक्तिगत स्तर पर मुस्लिम-विरोधी भावना है.
हालाँकि पार्टी के भीतर संस्थागत नस्लभेद होने के दावों को साबित नहीं किया जा सका, क्योंकि पार्टी के भीतर शिकायतों पर कार्रवाई की प्रक्रिया दुरुस्त नहीं थी.
इस स्वतंत्र जाँच की रिपोर्ट तैयार करने वाले प्रोफ़ेसर स्वर्ण सिंह ने कहा कि इस बात के "स्पष्ट प्रमाण" हैं कि कंज़र्वेटिव पार्टी की शिकायत प्रक्रिया को "बदले जाने की" ज़रूरत है.
प्रोफ़ेसर सिंह ने चेतावनी दी कि ये रिपोर्ट पार्टी के लिए असहज करने वाली हो सकती है.
प्रोफ़ेसर स्वर्ण सिंह ने कहा, "वो लोग जो 44,000 शब्दों को नहीं पढ़ना चाहते, उनके लिए इस रिपोर्ट का सार ये है - हमें भेदभाव के प्रमाण मिले हैं, और हालाँकि ये समस्या संस्थागत नहीं है, लेकिन पार्टी को इसे ख़त्म करने के लिए सक्रिय होना पड़ेगा."
पार्टी ने माँगी माफ़ी, जारी करेगी रिपोर्ट
रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया करते हुए कंज़र्वेटिव पार्टी की सह-अध्यक्ष अमांडा मिलिंग ने हर उस शख़्स से माफ़ी माँगी "जिन्हें दूसरों के व्यवहार की वजह से ठेस लगी है या जिन्हें हमारी व्यवस्था से निराशा हुई है."
उन्होंने कहा कि पार्टी ने इस रिपोर्ट में सुझाई गई सिफ़ारिशों को स्वीकार किया है और वो छह हफ़्ते के भीतर उन्हें लागू करने के बारे में एक योजना सामने रखेंगे.
ब्रिटेन के पूर्व वित्त मंत्री और कंज़र्वेटिव नेता साजिद जाविद ने कहा कि इस रिपोर्ट में "मुस्लिम-विरोधी भावनाओं के परेशान करने वाले उदाहरण" दिए गए हैं, लेकिन उन्होंने ज़ोर दिया कि बोरिस जॉनसन इस्लामोफ़ोबिक नहीं हैं और वो किसी भी "पृष्ठभूमि या किसी भी समुदाय के शख़्स का सम्मान करते हैं."
कंज़र्वेटिव पार्टी की एक और पूर्व कैबिनेट मंत्री और इस्लामोफ़ोबिया को लेकर पार्टी की आलोचना करती रहीं बैरोनेस सईदा वारसी ने टीवी चैनल स्काई न्यूज़ से कहा कि ये रिपोर्ट दर्शाती है कि "पार्टी संस्थागत रूप से नस्लभेदी है" और समानता व मानवाधिकार आयोग को इसकी जाँच करनी चाहिए.
उन्होंने प्रधानमंत्री जॉनसन की माफ़ी को बस "ज़ुबानी बात" क़रार दिया, लेकिन साथ ही कहा कि "उन्होंने ये माना कि उन्होंने जो कहा वो ग़लत था".
ब्रिटेन की विपक्षी लेबर पार्टी की समानता मामलों की शैडो सेक्रेटरी मार्शा ड कार्डोवा ने कहा कि ये रिपोर्ट कंज़र्वेटिव पार्टी में भेदभाव की बातों की पुष्टि करती है और ये सिरा सीधे प्रधानमंत्री तक जाता है.
उन्होंने प्रधानमंत्री से बुर्क़े पर अपने बयान के लिए पूर्ण और समुचित माफ़ी माँगने का अनुरोध करते हुए कहा कि उन्होंने इससे मुस्लिम समुदाय को आहत और दुखी किया है.
ब्रिटेन में मुसलमानों की संस्था मुस्लिम काउंसिल ऑफ़ ब्रिटेन ने रिपोर्ट का "सतर्क होकर स्वागत" किया है, लेकिन कहा है कि इससे पार्टी में "इस्लामोफ़ोबिया की संस्थागत प्रकृति" पर कोई बात नहीं की गई है.
बोरिस जॉनसन ने बुर्क़े पर क्या कहा था?
बोरिस जॉनसन की जिस टिप्पणी को लेकर हंगामा मचा, वो उन्होंने 2018 में टेलीग्राफ़ अख़बार में अपने कॉलम में की थी.
बोरिस ने उस कॉलम में लिखा था कि बुर्क़ा पहनी हुई महिलाएँ "लेटर बॉक्स" या "बैंक लुटेरों" जैसी लगती हैं.
बाद में कंज़र्वेटिव पार्टी के कुछ सदस्यों और प्रतिनिधियों पर मुस्लिम विरोधी होने के और भी आरोपों के सामने आता देख स्वयं प्रधानमंत्री ने दिसंबर 2019 में एक रिपोर्ट तैयार करने का आदेश दिया.
रिपोर्ट में कहा गया कि "ऐसे मामलों से ये छवि बनती है कि पार्टी का एक वर्ग और कुछ नेता मुस्लिम समुदाय को लेकर असंवेदनशील हैं."
जाँच के दौरान प्रधानमंत्री जॉनसन भी पेश हुए और उन्होंने वहाँ कहा, "किसी भी ग़लती के लिए मैं स्पष्ट रूप से माफ़ी माँगता हूँ". उन्होंने साथ ही कहा कि "अपने पिछले लेखों में इस्तेमाल हुई आपत्तिजन भाषा को वो अब इस्तेमाल नहीं करेंगे."
रिपोर्ट में 2016 में लंदन के मेयर चुनाव के समय कंज़र्वेटिव पार्टी के प्रत्याशी ज़ाक गोल्डस्मिथ पर लगे आरोपों की भी जाँच की गई जो लेबर पार्टी के उम्मीदवार और वर्तमान मेयर सादिक़ ख़ान को चुनौती दे रहे थे.
रिपोर्ट में कहा गया कि ज़ाक गोल्डस्मिथ ने भी माना कि "चुनाव अभियान जैसा हुआ उसमें उन्होंने कमज़ोर फ़ैसले लिए", लेकिन उन्होंने इस बात से "इनकार किया कि उन्होंने राजनीतिक लाभ के लिए मुस्लिम-विरोधी भावनाओं को बढ़ावा दिया."
कंज़र्वेटिव पार्टी और इस्लामोफ़ोबिया
कंज़र्वेटिव पार्टी पर इस बात के आरोप कई सालों से लग रहे थे कि पार्टी ने इस्लामोफ़ोबिया, यानी मुस्लिम विरोधी भावना को रोकने में नाकाम रही है.
2018 में पार्टी की मुस्लिम इकाई के तत्कालीन अध्यक्ष मोहम्मद अमीन ने आरोप लगाया कि इस्लामोफ़ोबिया से निपटने में कोई "निर्णायक क़दम" उठाने की जगह "चुनाव की चिंता" को ज़्यादा तरजीह देती है.
पार्टी की पहली मुस्लिम महिला कैबिनेट मंत्री सईदा वारसी बहुत पहले से इस मुद्दे को लेकर पार्टी पर सवाल उठाती रही हैं और उनका आरोप था कि पार्टी ने इस मुद्दे पर अपनी आँखें मूँद ली हैं.
2019 में कंज़र्वेटिव पार्टी के नेता पद के लिए दावेदारी की रेस में तत्कालीन गृह मंत्री साजिद जाविद ने बोरिस जॉनसन समेत सभी प्रतिद्वंद्वियों को इन आरोपों की बाहर से जाँच करवाने की चुनौती दी थी.
पार्टी के नेता पद के चुनाव में बोरिस जॉनसन विजयी रहे और फिर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने.
नई रिपोर्ट में कहा गया है कि 2015 से लेकर 2020 तक पार्टी के केंद्रीय डेटाबेस ने 1,418 शिकायतें दर्ज की जिनमें 727 घटनाएँ कथित भेदभाव की थीं. (bbc.com)