-मोहम्मद काज़िम
क्वेटा, 12 जनवरी । औरतों के लिए यह अच्छी बात नहीं कि वह 20 किलो आटे की थैली के लिए कई दिन तक सड़कों पर बैठकर इंतज़ार करें. बड़ी संख्या में हम औरतें भी कई घंटे अलग-अलग जगहों पर आटे की ख़रीदारी के लिए बैठी रहती हैं. इस दौरान अगर किसी को पेशाब की ज़रूरत हो तो वो कहां जाएंगी? यह कोई इज़्ज़त की बात तो नहीं है न."
यह कहना है बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा में बरौरी रोड इलाके की 70 वर्षीय इमाम बीबी का जिन्हें सोमवार को क्वेटा रेलवे स्टेशन के सामने कई घंटे इंतज़ार के बावजूद सरकारी रेट पर मिलने वाली आटे की थैली नहीं मिल सकी.
पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों से बीते कई दिनों से सरकारी दरों पर आटा नहीं मिलने की ख़बरें मिल रही हैं.
बलूचिस्तान में बीते दो हफ़्तों से आटे का संकट गहरा गया है. इसकी वजह से राजधानी क्वेटा में 20 किलो के आटे की थैली की क़ीमत 2800 पाकिस्तानी रुपये हो गई है. वहीं राज्य के अन्य क्षेत्रों में इसकी कीमत 3,200 रुपये के सर्वाधिक स्तर तक पहुंच गई है.
जो लोग सरकारी दरों पर आटा ख़रीदना चाहते हैं उन्हें इसके लिए कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है इसके बारे में इमाम बीबी ने बताया कि वो पिछले दो हफ़्तों से अपने बच्चों के लिए सस्ता आटा ख़रीदने के लिए भाग-दौड़ कर रही हैं, लेकिन उन्हें लगातार नाकामी मिल रही है.
वे बताती हैं, "मेरे दो बच्चे विकलांग हैं और अन्य छोटे हैं. एक कमाने वाला है जो मज़दूरी करता है. मज़दूरी भी कभी मिलती है और कभी नहीं मिलती. मैं ख़ुद घरों में काम करती हूं.
पिछले 8 दिनों से बच्चे भूखे हैं और मैं ख़ुद मोहल्ले वालों से मांग कर बच्चों को थोड़ा बहुत खिला पा रही हूं क्योंकि दुकानों पर आटा महंगा है और सस्ता आटा आसानी से मिलता नहीं."
इमाम बीबी का कहना है कि वो काफ़ी दूर से पैदल आती हैं. सस्ते आटे की ख़रीदारी के लिए आने वालों से कभी कहा जाता है कि आटे की गाड़ी जॉइंट रोड पर आएगी, कभी कहते हैं चमन फाटक तो कभी रेलवे स्टेशन का पता बताया जाता है. लेकिन जब लोग दौड़कर वहां पहुंचते हैं तो कुछ भी नहीं मिलता.
उनके अनुसार, लंबे इंतज़ार के बाद आटा नहीं मिलता तो लोग मजबूरी में सड़क बंद कर देते हैं जिसके बाद पुलिस वाले आ जाते हैं.
"हमें विरोध प्रदर्शन से पुलिस वालों ने दो बार उठाया, लेकिन यक़ीन दिलाने के बावजूद सरकारी आटा नहीं मिला."
सरकारी आटा पाना बेहद मुश्किल हुआ
सरकारी दर पर आटा लेने की कोशिश में हो रही परेशानी अकेले इमाम बीबी की नहीं है, बल्कि उनके जैसे उम्रदराज़ या मेहनत मज़दूरी करके अपना परिवार चलाने वाले तमाम लोग इससे परेशान हैं.
उनमें से एक वृद्ध ख़ुदाए नज़र भी हैं जो क्वेटा से लगभग आठ किलोमीटर दूर पूर्वी बाइपास इलाक़े भूसा मंडी से ज़बर्दस्त सर्दी के बावजूद सुबह पांच बजे साइकिल से क्वेटा रेलवे स्टेशन पहुंचे हैं ताकि वहां लगने वाली लाइन के शुरू में उन्हें जगह मिल जाए.
सात घंटे के इंतज़ार के बावजूद जब वहां सस्ते आटे वाली गाड़ी के नहीं आने का एलान हुआ तो निराशा और नाराज़गी ख़ुदाए नज़र के चेहरे पर साफ़ झलक रही थी.
वो बताते हैं, "मैं अपने परिवार के 10 लोगों को खिलाने के लिए मेहनत मज़दूरी करता हूं. यहां आटे के इंतज़ार में बैठने की वजह से न मज़दूरी कर पा रहा हूं और न ही सस्ता आटा मिल रहा है जिसके लिए मज़दूरी छोड़ कर आता हूं."
वो कहते हैं, "लाइन के शुरू में जगह पाने के लिए इस कड़ाके की सर्दी में पांच बजे आया और सुबह की नमाज़ रेलवे स्टेशन की मस्जिद में अदा की. सस्ते आटे की एक थैली के लिए 10 दिन से आ रहा हूं, मगर मुझे आटा नहीं मिल रहा है."
"यक़ीन कीजिए मैं मार्केट से महंगा आटा ख़रीद ही नहीं सकता, इसलिए यहां सस्ता आटा ख़रीदने के लिए आ रहा हूं, लेकिन वह नहीं मिला. दस दिनों से हम चावल पर गुज़ारा कर रहे हैं, जो आटे के मुक़ाबले हम ग़रीबों के लिए बहुत ज़्यादा महंगा पड़ रहा है."
दो हफ़्ते में 20 किलो आटे की बोरी 700 रुपये महंगी
बलूचिस्तान में पिछले दो-तीन साल से आटे की कमी के कारण इसकी क़ीमत लगातार बढ़ रही है, लेकिन ख़ुद बलूचिस्तान सरकार और आटे के कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि इस बार स्थिति अधिक गंभीर है.
बलूचिस्तान आटा डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सैयद ख़ुदायदाद आग़ा ने बीबीसी को बताया कि सिर्फ़ एक सप्ताह के दौरान 20 किलो की थैली की क़ीमत में 500 रुपये, जबकि बीते डेढ़ से दो हफ़्ते में 700 रुपये से अधिक का इज़ाफ़ा हुआ है.
आटे के वर्तमान संकट के कारणों पर पाकिस्तान फ़्लोर मिल्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष बदरुद्दीन काकड़ ने बीबीसी को बताया, "बलूचिस्तान को अभी की आबादी के हिसाब से सौ किलोग्राम वाली डेढ़ करोड़ बोरियों की ज़रूरत है जबकि बलूचिस्तान में गेहूं की सालाना उपज एक करोड़ बोरी के लगभग है."
"हालांकि बलूचिस्तान में गेहूं की पैदावार बहुत कम तो नहीं, लेकिन यहां लोगों के पास उसे अधिक देर तक सुरक्षित रखने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है जिसके कारण उनकी यह कोशिश होती है कि उसे जल्द से जल्द बेच दें."
सरकारों से कहां ग़लती
''चालू साल में बलूचिस्तान सरकार ने गेहूं की ख़रीदारी में देर की. इसके अलावा सिंध सरकार की ओर से गेहूं की ख़रीदारी की जो क़ीमत तय की गई थी वह बलूचिस्तान की दर से अधिक थी जिसके कारण नसीराबाद डिवीज़न के किसानों ने अपना गेहूं सिंध में बेचा."
उनका कहना था कि चालू वित्त वर्ष में बलूचिस्तान सरकार चार महीनों के दौरान पांच लाख बोरी गेहूं ख़रीद सकी जो मांग के हिसाब से न के बराबर थी.
बलूचिस्तान के खाद्य विभाग के अधिकारी जाबिर बलोच ने बीबीसी को बताया कि डॉलर का रेट बढ़ने और रूस और यूक्रेन की जंग की वजह से सरकारी रेट की तुलना में ओपन मार्केट में गेहूं की क़ीमत बहुत ज़्यादा थी, इसलिए किसानों ने अपना गेहूं प्राइवेट लोगों को बेचा.
फ़्लोर मिल मालिक और आटा डीलर्स बलूचिस्तान में आटे की क़ीमत में बेतहाशा इज़ाफ़े की ज़िम्मेदारी सिंध और पंजाब के साथ बलूचिस्तान सरकार पर डाल रहे हैं.
बलूचिस्तान के खाद्य मंत्री इंजीनियर ज़मरुक ख़ान ने केंद्र सरकार के अलावा पंजाब और सिंध की सरकार को भी दोषी ठहराते हुए कहा कि केंद्र के साथ दोनों राज्य सरकारों ने भी बलूचिस्तान को गेहूं देने से इनकार किया है.
खाद्य मंत्री के अनुसार, बलूचिस्तान इस समय एक मुश्किल स्थिति से दो-चार है, इसलिए केंद्र सरकार के साथ ही पंजाब और सिंध की सरकार को उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहिए.
सरकार से अपील
खाद्य विभाग के डायरेक्टर जनरल ज़फरुल्लाह ने बीबीसी को बताया कि हालांकि बलूचिस्तान के नसीराबाद डिवीज़न में गेहूं की सालाना पैदावार एक करोड़ बोरी है, लेकिन इस साल नसीराबाद में ख़राब मौसम की वजह से गेहूं की फ़सल में 30 प्रतिशत की कमी आई है.
उन्होंने कहा कि इसके अलावा खाद्य विभाग को वित्त विभाग से पैसे जारी करने में देरी भी हुई.
वो कहते हैं, "हमें पैसे मिलेंगे तो हम ख़रीदारी कर सकेंगे. हमें पैसे अप्रैल के अंत में मिले. चूंकि किसानों को क़र्ज़ चुकाने के अलावा दूसरे ख़र्चे करने होते हैं, इसलिए वह अपनी फ़सल जल्दी बेच देते हैं."
उन्होंने प्रधानमंत्री, सिंध और पंजाब के मुख्यमंत्रियों से अपील करते हुए कहा कि वो इस मुश्किल घड़ी में बलूचिस्तान को अकेला न छोड़ें. (bbc.com/hindi)