अंतरराष्ट्रीय
इस्लामाबाद, 10 दिसम्बर | पाकिस्तान की कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने पंजाब प्रांत में एक बड़े आतंकी हमले को नाकाम कर दिया और पांच आतंकवादियों को गिरफ्तार किया। आतंकवाद-रोधी विभाग (सीटीडी) ने गुरुवार को यह जानकारी दी। न्यूज एजेंसी सिन्हुआ ने प्रांतीय राजधानी लाहौर में सीटीडी के हवाले से बताया कि उपनगरीय इलाके में आतंकियों की उपस्थिति के बारे में पुलिस द्वारा बताए जाने के बाद उनके ठिकाने पर छापा मारा गया।
सीटीडी के एक अधिकारी ने कहा, "प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान से जुड़े पांच आतंकवादी ऑपरेशन के दौरान गिरफ्तार किए गए हैं।"
अधिकारी ने कहा कि आतंकवादियों ने लाहौर में नागरिक सचिवालय और अन्य प्रमुख इमारतों पर हमला करने की योजना बनाई थी।
छापेमारी के दौरान, पुलिस ने आतंकवादियों के पास से विस्फोटक सामग्री, हथियार और हथगोले जब्त किए।
आतंकवाद विरोधी विभाग के अनुसार, एक विदेशी खुफिया एजेंसी आतंकवादियों का आर्थिक रूप से समर्थन कर रही है और उनके बीच कुछ बैठकें हुई हैं।
गिरफ्तार आतंकवादियों को आगे की जांच के लिए एक अज्ञात स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया है।
--आईएएनएस
फ़्रांस की कैबिनेट ने 'कट्टर इस्लाम' को निशाना बनाते हुए एक बिल को मंज़ूरी दी है. हाल ही में अतिवादियों की ओर से किए गए कई हमलों को देखते हुए यह क़दम उठाया गया है.
फ़्रांस, 10 दिसंबर | इस बिल के ड्राफ्ट में होम-स्कूलिंग और हेट स्पीच पर लगाम लगाने की बात कही गई है.
फ्ऱांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों लंबे समय से फ्ऱांस में धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का बचाव करने में लगे हुए हैं.
हालांकि फ्ऱांस और दूसरे देशों के आलोचक इसकी आड़ में धर्म को निशाना बनाने का आरोप लगा रहे हैं.
लेकिन फ्ऱांस के प्रधानमंत्री जीन कैस्टेक्स ने इसे 'संरक्षण देने वाला क़ानून' बताया है जो मुसलमानों को अतिवादियों के चंगुल से दूर रखेगा.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा है कि ये क़ानून 'किसी भी धर्म ख़ासतौर पर मुसलमानों के ख़िलाफ़ बिल्कुल भी नहीं है.'
क्या है इस क़ानून में?
'लोकतांत्रिक सिद्धांतों का समर्थन करने वाले' इस बिल में ऑनलाइन हेट स्पीच पर लगाम कसने की बात कही गई है.
इसके अलावा किसी दूसरे इंसान की व्यक्तिगत जानकारियों को ग़लत भावना के साथ इंटरनेट के इस्तेमाल से उजागर करने पर प्रतिबंध लगाने की बात कही गई है.
इस नए क़ानून को अक्टूबर में सैमुअल पैटी की हत्या के प्रतिक्रिया के तौर पर देखा जा रहा है.
47 साल के शिक्षक सैमुअल पैटी की हत्या क्लास में छात्रों को पैग़ंबर मोहम्मद के कार्टून दिखाने के बाद हुई थी.
जाँच में पता चला है कि उनके ख़िलाफ़ ऑनलाइन कैंपेन चलाया गया था.
इस क़ानून के मुताबिक़ 'चोरी-छिपे चलने वाले स्कूलों' पर भी प्रतिबंध लगाने की बात कही गई है जो इस्लामी विचारधारा को बढ़ावा देते हैं. होम स्कूलिंग के नियमों को कठोर करने की भी बात इस बिल में कही गई है.
यह बहुविवाह पर लगे प्रतिबंध को और कठोर बनाने की बात करता है. इसमें बहुविवाह करने वालों को आवास की सुविधा नहीं देने की भी बात कही गई है. लड़कियों के कुंवारेपन की जाँच करने वाले डॉक्टरों पर जुर्माने की भी बात कही गई है.
मुसलमान संगठनों को लेकर आर्थिक पारदर्शिता बरतने के लिए नए नियम लागू किए जाएंगे. धार्मिक पोशाक पर प्रतिबंध का दायरा बढ़ाया गया है. इसे ट्रांसपोर्ट वर्कर्स और स्वीमिंग पूल और मार्केट में काम करने वाले स्टाफ़ पर भी लागू किया जाएगा.
इस क़ानून को क्यों लाया जा रहा है?
कुछ समय पहले से इस क़ानून को लाए जाने पर विचार-विमर्श चल रहा था लेकिन हाल ही में हुए इस्लामी हमले ने इसे प्राथमिक एजेंडा बना दिया है.
पैटी की हत्या उन तीन हमलों में से एक है जिसने फ़्रांस में आक्रोश पैदा कर दिया है.
पैटी वाले मामले के अलावा अक्टूबर में नीस के चर्च में तीन लोगों की हत्या कर दी गई थी. सितंबर में पेरिस में शार्ली एब्दो के पुराने दफ़्तर के नज़दीक दो लोगों को चाक़ू मारकर गंभीर रूप से घायल कर दिया गया था.
शार्ली एब्दो के पुराने दफ्तर पर 2015 में इस्लामी चरमपंथियों ने हमला किया था.
राष्ट्रपति मैक्रों फ़्रांस के लोकतांत्रिक मूल्यों को बचाए जाने के बड़े हिमायती हैं. धर्मनिरपेक्षता भी इन्हीं मूल्यों में से एक है.
वो इस्लाम को 'संकट में पड़ा' धर्म बता चुके हैं और शार्ली एब्दो के कार्टून छापने के अधिकार की भी उन्होंने हिमायत की है.
फ़्रांस में क़रीब 50 लाख मुसलमान रहते हैं. यूरोप में मुसलमानों की सबसे बड़ी आबादी फ़्रांस में ही रहती है.
प्रतिक्रिया
कई मुसलमान बहुल देशों ने मैक्रों की कड़ी आलोचना की है. तुर्की के साथ रिश्ते पहले से ही तनावपूर्ण हो रखे हैं. अब राष्ट्रपति अर्दोआन ने इस क़ानून को 'साफ़ तौर पर उकसाने वाला' बताया है.
उन्होंने मैक्रों को 'मानसिक रूप से बीमार' तक कह दिया है.
पाकिस्तान, बांग्लादेश और लेबनान में मैक्रों के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं.
धार्मिक स्वतंत्रता मामले के अमेरिकी दूत सैम ब्राउनबैक ने यह कहते हुए इस क़दम की आलोचना की है कि, "अगर आप इससे कड़ाई से निपटते हैं तो हालात और बिगड़ सकते हैं."
फ़्रांस के कई वामपंथी नेताओं ने इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि इससे मुसलमानों को हेय नज़र से देखा जाने लगेगा.
ला मोंडे अख़बार का कहना है कि इस क़ानून से वो दूसरे धर्मिक समूह भी नाराज़ हो सकते हैं जिनमें होम-स्कूलिंग का प्रचलन है.
लेकिन पेरिस में मौजूद बीबीसी की लुसी विलियमसन का कहना है कि राष्ट्रपति मैक्रों पर कार्रवाई करने को लेकर काफ़ी दबाव है.
वो आगे कहती हैं कि फ्रांसिसी धर्मनिरपेक्षतावाद के नाम पर इस्लामवादियों के प्रभाव से निपटने की कार्रवाई भले ही फ़्रांस के अंदर एक लोकप्रिय क़दम हो सकता है लेकिन यह अभी भी सरकार के लिए एक नाज़ुक मसला हो सकता है.(https://www.bbc.com/hindi)
भारत के सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे मंगलवार को एक हफ़्ते के लिए संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के दौरे पर रवाना हुए. पश्चिम एशिया के इन दोनों देशों में भारत के किसी भी सेना प्रमुख का यह पहला दौरा है. कहा जा रहा है कि सेना प्रमुख के इस दौरे से यूएई और सऊदी के भारत से रक्षा संबंध और गहरे होंगे.
जनरल नरवणे का यह तीसरा विदेशी दौरा है. इससे पहले वो अक्टूबर में भारत के विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला के साथ म्यांमार गए थे और पिछले महीने ही नेपाल के दौरे से लौटे थे.
भारतीय सेना ने अपने बयान में इस दौरे को ऐतिहासिक कहा है. जनरल नरवणे दोनों देशों के सेना प्रमुखों और सेना के सीनियर अधिकारियों से मुलाक़ात करेंगे. उनका दौरा 14 दिसंबर को ख़त्म होगा.
9-10 दिसंबर को यूएई के दौरे के बाद वो सऊदी अरब जाएँगे.
वहाँ वो रॉयल सऊदी फोर्स के मुख्यालय, जॉइंट फोर्स कमांड मुख्यालय और किंग अब्दुलअज़ीज़ वॉर कॉलेज जाएंगे. इसके अलावा वो सऊदी के नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी में छात्रों और अध्यापकों को संबोधित करेंगे.
इससे पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर 24 से 26 नवंबर के बीच बहरीन और यूएई के दौरे पर थे. मोदी सरकार ने पश्चिम एशिया को अपनी विदेश नीति में सबसे अहम जगह दी है.
जनरल नरवणे का दौरा
भारत के सेना प्रमुख के इस दौरे को उस इलाक़े के मीडिया ने भी जगह दी है. अल जज़ीरा ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''चीन, अमेरिका और जापान के बाद सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है. इसके अलावा सऊदी से भारत सबसे ज़्यादा तेल भी आयात करता है. हाल के वर्षों में नरेंद्र मोदी सरकार ने यूएई के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाने पर भी ध्यान केंद्रित किया है.''
अल जज़ीरा से जनरल नरवणे के सऊदी और यूएई दौरे की अहमियत पर जेएनयू में इंटरनेशनल स्टडीज के प्रोफ़ेसर हैपीमोन जैकब ने कहा है कि भारत इन दोनों देशों के साथ रक्षा साझेदारी बढ़ाना चाहता है. उन्होंने कहा कि सीडीएस जनरल रावत या एनएसए अजित डोभाल को न भेजकर आर्मी चीफ़ को भेजना किसी पहेली से कम नहीं लगता.
खाड़ी के देशों में भारत के 85 लाख कामगार रहते हैं. केवल सऊदी अरब में ही 27 लाख से ज़्यादा भारतीय कामगार हैं जबकि यूएई की कुल आबादी के 30 फ़ीसदी लोग भारतीय हैं.
हाल के वर्षों में यूएई और सऊदी अरब पाकिस्तान की तुलना में भारत के क़रीब आए हैं. दोनों देशों ने प्रधानमंत्री मोदी को सर्वोच्च नागरिक सम्मान भी दिया है. यूएई और सऊदी अरब दोनों मिलकर भारत के महाराष्ट्र में 42 अरब डॉलर के पेट्रोकेमिकल प्लांट बना रहे हैं. दोनों देशों को लगता है कि भारत ऊर्जा का सबसे बड़ा उपभोक्ता है.
यूएई और सऊदी कश्मीर के विशेष दर्जा ख़त्म करने को लेकर भी चुप रहे हैं जबकि पाकिस्तान का पूरा दबाव था कि दोनों देश कुछ बोलें. पिछले महीने यूएई ने कुल 13 देशों के नागरिकों को वर्क वीज़ा देना बंद कर दिया था. इन देशों में पाकिस्तान भी शामिल है.
मिडल ईस्ट आइ ने जनरल नरवणे के दौरे को प्रमुखता से जगह दी है. इसने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''भारत के सेना प्रमुख का सऊदी और यूएई दौरा तब हो रहा है जब पाकिस्तान से दोनों देशों के रिश्ते बहुत ही ख़राब दौर में हैं. पाकिस्तान सऊदी अरब का पारंपरिक सहयोगी रहा है. हाल ही में भारत ने सऊदी अरब के नेतृत्व वाले ओआईसी (ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन की आलोचना की थी. ओआईसी के विदेश मंत्रियों की बैठक के प्रस्ताव में कश्मीर का ज़िक्र किया गया था.''
भारत की आपत्ति
सऊदी अरब ने अभी जी-20 शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की थी. इसके उपलक्ष्य में उसने एक बैंकनोट जारी किया था जिस पर सदस्य देशों नक्शा था. उस नक्शे में भारत से कश्मीर को अलग दिखाया गया था. इसे लेकर भी भारत ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने कुछ महीने पहले ही कश्मीर पर ओआईसी की बैठक नहीं बुलाने के लिए सऊदी अरब की आलोचना की थी. इसके बाद से सऊदी ने पाकिस्तान से क़र्ज़ चुकाने की मांग की थी और दोनों देशों के संबंध पटरी से उतर गए थे. बाद में पाकिस्तान के आर्मी चीफ़ जनरल क़मर जावेद बाजवा ने सऊदी अरब जाकर रिश्ते को सामान्य करने की कोशिश की थी.
मिडल ईस्ट आइ ने लिखा है कि बाजवा के इस दौरे में क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान नहीं मिले थे. फ़रवरी 2018 में फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (एफ़एटीएफ़) की संदिग्ध सूची में शामिल किए जाने पर सऊदी ने वीटो नहीं किया. इस मामले में भी पाकिस्तान को झटका लगा था. सऊदी ने यमन में अपने नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधन में पाकिस्तान से भी सैनिक भेजने का आग्रह किया था, लेकिन पाकिस्तान ने इस मांग को मानने से इनकार कर दिया था.
पीएम मोदी के लिए सऊदी अरब ख़ास
29 अक्टूबर 2019 को सऊदी दौरे पर गए पीएम मोदी ने अरब न्यूज़ को दिए इंटरव्यू में कहा था, ''पहली बार 2016 में मैं सऊदी अरब गया. इस दौरे में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में काफ़ी प्रगति हुई. क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से मेरी मुलाक़ात पाँच बार हुई है. क्राउन प्रिंस से पहले हुई गर्मजोशी भरी मुलाक़ातें मुझे याद हैं और इस दौरे में हम एक बार फिर से उसी जोश के साथ मिलने जा रहे हैं. मैं इसे लेकर आश्वस्त हूं कि किंग सलमान और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के नेतृत्व में दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध और मज़बूत होंगे.''
मोदी ने इस इंटरव्यू में कहा था, ''लगभग 27 लाख भारतीयों ने सऊदी अरब को अपना दूसरा घर बनाया है. यहां की प्रगति में ये भी अपना योगदान दे रहे हैं. बड़ी संख्या में भारतीय हर साल हज यात्रा पर और कारोबार को लेकर यहां आते हैं. मेरा इनके लिए संदेश है कि आपने सऊदी में जो जगह बनाई है उस पर भारत को गर्व है.''
''इनकी कड़ी मेहनत और प्रतिबद्धता के कारण सऊदी में भारत का सम्मान बढ़ा है और इससे दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध मज़बूत होने में मदद मिली है. हम इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि सऊदी अरब से आपका संबंध इसी तरह आगे बढ़ता रहेगा.''(https://www.bbc.com/hindi)
जर्मन संसद में चांसलर अंगेला मैर्केल का संभवतः अंतिम बजट भाषण ऐतिहासिक हो गया. डीडब्ल्यू के क्रिस्टोफ श्ट्राक कहते हैं कि यह भाषण मिसाल बन गया कि महामारी के दौरे में जिम्मेदारी कैसे ली जाती है.
डायचेवेले पर क्रिस्टोफ श्ट्राक का लिखा -
चांसलर मैर्केल बुधवार को 16वीं और अंतिम बार संसद के निचले सदन बुंडेस्टाग में आने वाले साल का संघीय बजट पेश करने और उस पर पूछे जाने वाले सवालों का जवाब देने के लिए खड़ी हुईं. लेकिन उनका सबसे ज्यादा जोर इस बात पर था कि कोरोना महामारी को रोकने के लिए देश में सख्त लॉकडाउन लगाया जाए. उन्होंने कहा, अगर लोग "क्रिसमस से ठीक पहले दूसरे लोगों के साथ बहुत ज्यादा समय बिताएंगे, तो यह दादा दादी के साथ त्योहार मनाने का आखिरी मौका होगा." उन्होंने कहा, "निश्चित रूप से इससे बड़ी गड़बड़ होगी. हमें ऐसा नहीं करना चाहिए."
मैर्केल ने कहा कि बुधवार को 24 घंटे के भीतर कोविड-19 से होने वाली 590 मौतें एक दुखदायी रिकॉर्ड हैं. उन्होंने कहा कि वह नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस लियोपोल्डीना और दूसरे सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की इन सिफारिशों से सहमत हैं कि क्रिसमस की छुट्टियों के दौरान जर्मनी में लॉकडाउन होना चाहिए. इनमें स्कूलों को बंद करना, सामाजिक संपर्कों को सीमित करना और अब तक जो देखा गया है उससे कहीं ज्यादा अनुशासन की वकालत की गई है.
जर्मनी में यह तय करने का अधिकार राज्यों के मुख्यमंत्रियों को है कि महामारी को रोकने के लिए किस तरह के कदम उठाए जाएं. लेकिन मैर्केल का भाषण उन लोगों के साथ एकजुटता की घोषणा थी जो इस महामारी के चलते सबसे ज्यादा खतरे में हैं. आम तौर पर बहुत संयमित रहने वाली चांसलर के भाषण में बहुत भावुकता थी. इससे जर्मन सांसद भी हैरान थे, जिन्होंने अब तक सैंकड़ों बार जर्मन चांसलर को इसी जगह पर खड़े होकर मंद और संतुलित से भाषण ही देते देखा था. भाषण के अंत में उन्हें तालियों की गड़गड़ाहट के साथ खूब सराहना मिली, खासकर उनकी अपनी पार्टी सीडीयू और उसकी सहयोगी क्रिस्चियन सोशल यूनियन के सांसदों की तरफ से. चांसलर के रूप में अपनी लंबी पारी के समापन से पहले मैर्केल के पास इस तरह भाषण देने के अब कुछ ही मौके बचे हैं.
जर्मनी का कोरोना वायरस बजट
बरसों से जीरो-ऋण एजेंडे को आगे बढ़ाने वाले मैर्केल के गठबंधन के पास इस बार कोई विकल्प नहीं है. संसदीय समूह के नेता राल्फ ब्रिंकहाउस ने मौजूदा बजट प्रस्ताव को "कोरोना वायरस बजट" का नाम दिया है.
यूरोपीय संघ, जो कि मैर्केल के दिल के बहुत करीब है, वह भी लड़खड़ा रहा है. जर्मनी के पास 2020 के अंत तक यूरोपीय संघ की अध्यक्षता है, जो बारी बारी से सदस्य देशों को मिलती है. ब्रेक्जिट पर लंबी खिंच रही वार्ताओं की तरफ इशारा करते हुए मैर्केल ने कहा, "अब तक लगभग कुछ भी तय नहीं है." यूरोपीय संघ के बजट को लेकर भी यही स्थिति है क्योंकि पोलैंड और हंगरी ने अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल किया है. यह विवाद यूरोपीय संघ को अंदर तक हिला सकता है.
66 साल की मैर्केल के लिए बुधवार एक अलग तरह का दिन भी हो सकता था. अगर महामारी नहीं होती तो वे अपने भाषण में संतुलित बजट कार्यक्रम की वकालत करतीं, देश में बढ़ते निवेश की बात करतीं, जो 2005 से बतौर चांसलर उनकी कोशिशों का नतीजा है. वह यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष के तौर पर जर्मनी के कार्यकाल की सकारात्मक समीक्षा करतीं. लेकिन यह साल कोरोना महामारी का साल है. हम तो यह भी नहीं जानते कि 2021 से कौन मैर्केल की पार्टी सीडीयू का नेतृत्व करेगा.
बुधवार को बुंडेस्टाग में मैर्केल के जोरदार भाषण से यह साफ हो गया कि वे जर्मनों के लिए लड़ रही हैं, सहानुभूति, भावनाओं और करुणा के साथ. वह कोरोना वायरस के फैलाव और महामारी के वित्तीय प्रभाव से लड़ रही हैं और वह उन हजारों लोगों की जिंदगियों के लिए लड़ रही हैं जो खतरे में पड़े हैं. वह जर्मनी के भविष्य के लिए लड़ रही हैं.
मैर्केल जर्मनी के 16 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को प्रभावित करने की कोशिश नहीं कर रही थीं. वह सीधे उन जर्मनों से बात कर रही थीं जो क्रिसमस के दौरान मिलने वाली गर्मागर्म वाइन के कपों के साथ सार्वजनिक जगहों पर जमा हो रहे हैं. और वह एक शक्तिशाली प्रभाव छोड़ पाईं.(dw.com)
यूरोपीय संघ और आसियान के बीच की दोस्ती दशकों पुरानी है. यूरोपीय संघ चीन के बाद आसियान का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है तो वहीं यूरोपीय संघ के लिए आसियान तीसरा सबसे बड़ा साझेदार है.
डायचेवेले पर राहुल मिश्र का लिखा -
यूरोपीय संघ के आलोचकों का मानना रहा है कि उसने चीन और अमेरिका के मुकाबले आसियान क्षेत्र में सामरिक स्तर पर कम दिलचस्पी दिखाई है. जर्मनी, फ्रांस और नीदरलैंड ने अपनी-अपनी इंडो-पैसिफिक नीतियों की घोषणा कर स्थिति बदलने में पहल की है.
यूरोपीय संघ और आसियान के विदेशमंत्रियों के बीच दिसंबर में हुई वर्चुअल बैठक में दोनों क्षेत्रीय संगठनों ने स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप पर दस्तखत किए. ऐसा नहीं है कि दोनों क्षेत्रीय संगठनों के रिश्तों में स्ट्रेटेजिक आयाम नहीं थे लेकिन इस समझौते ने औपचारिक तौर पर सहयोग के कई चैनल खोल दिए हैं. दोनों संगठनों के बीच इसके बारे में 2019 में ही सैद्धांतिक सहमति हो गई थी लेकिन इसके बावजूद इस समझौते को अमली जामा पहनाने में छः साल लग गए. आपसी सलाह–मशविरे के बाद दोनों पक्षों ने यह वादा किया है कि दोनों के बीच राष्ट्राध्यक्षों के स्तर की सालाना बैठकों के साथ-साथ कनेक्टिविटी, विकास, और आर्थिक सहयोग को भी बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा. इस फैसले का सबसे फौरी नतीजा यह है कि 9 और 10 दिसम्बर को आसियान के रक्षा मंत्रियों की मीटिंग एडीएमएम प्लस में आसियान के साथ चीन, जापान, कोरिया, रूस, भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, और न्यूजीलैंड के अलावा पहली बार यूरोपीय संघ के प्रतिनिधि भी हिस्सा ले रहे हैं.
हिस्से में एक चौथाई अर्थव्यवस्था
यूरोपीय संघ और आसियान की साझा ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दोनों क्षेत्रीय संगठन मिलकर दुनिया की एक चौथाई अर्थव्यवस्था पर अधिकार रखते हैं. अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बीसवीं शताब्दी के कई योगदानों में क्षेत्रवाद और क्षेत्रीय संगठनों का उदय बेशक एक बड़ा पहलू रहा है. राष्ट्र राज्यों की संकीर्ण राजनीति से बाहर निकल कर क्षेत्रीय स्तर पर एक ही इलाके के तमाम देशों को उनकी साझा समस्याओं से जूझने में मददगार होने के साथ ही एक बेहतर भविष्य की परिकल्पना और उसे मूर्तरूप देने में भी इसने बड़ा योगदान दिया है. यूरोपीय संघ इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.
आम तौर पर यह माना जाता है कि राष्ट्र राज्य अपनी सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों के परे नहीं देख पाते, लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के बाद फ्रांस ने ऐसा नहीं किया. जर्मनी के साथ कुछ ही वर्षों पहले हुए भयानक युद्ध के बावजूद फ्रांस ने एक पहल की और उसकी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया. 1952 में यूरोपीय स्टील एंड कोल कम्युनिटी की स्थापना हुई जिसने पांच दशकों के भीतर ही यूरोप के देशों को एक साथ एक मंच पर लाकर खड़ा किया, जहां सीमाओं की बाधा टूट गई, देशों में बंटे बाजार एक हो गए, जिनकी एक मुद्रा और एक जैसी आर्थिक सामरिक नीतियां भी निखर कर सामने आ गयीं. हालांकि दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान (एसोसिएशन आफ साउथईस्ट एशियन नेशंस) ने हू-ब-हू वैसा नहीं किया जैसे कदम यूरोपीय संघ ने क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाने में उठाए थे. लेकिन इसके बावजूद आसियान भी क्षेत्रीय सहयोग के एक बड़े मंच के तौर पर उभरा है और तीसरे विश्व के विकासशील देशों या ग्लोबल साउथ के बीच तो यह सबसे सफल संगठन तो है ही.
पांच दशक पुरानी दोस्ती
यूरोपीय संघ और आसियान के बीच की दोस्ती दशकों पुरानी है. एक भारत में जहां यूरोपीय संघ अपनी पहचान को लेकर संघर्ष कर रहा है, आसियान के साथ दोस्ती की शुरुआत 1972 में ही हो गई, जब यूरोपीय संघ आसियान का पहला डायलॉग पार्टनर बना. तब यूरोपीय संघ अपने आज वाले स्वरूप में नहीं था और इसे यूरोपीय आर्थिक समुदाय के नाम से जाना जाता था. सतत और समेकित विकास के मुद्दों पर यूरोप ने आसियान देशों की बड़ी मदद की और आर्थिक मोर्चे पर सदस्य देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग भी रहा. शीत युद्ध के दौरान ब्रिटेन और फ्रांस सैन्य स्तर पर भी इलाके में मौजूद रहे.
90 के दशक में दोनों गुटों के बीच मानवाधिकारों को लेकर कुछ खटपट भी हुई. जहां यूरोपीय संघ को बर्मा (म्यांमार) में सैन्य तानाशाही नागवार गुजरी तो वहीं इंडोनेशिया पुर्तगाल के पूर्वी तिमोर (तिमोर लेस्त) में दखल से नाराज था. बहरहाल यह तनातनी ज्यादा दिन नहीं चली और आपसी गिले-शिकवे भुला कर 1994 में संबंधों को मजबूत करने की एक बार फिर से कोशिश की गई. तिमोर लेस्त और म्यांमार, दोनों ही मुद्दों पर आसियान ने दखल देने से मना कर दिया और इंडोनेशिया और म्यांमार को यूरोपीय संघ से सीधे बात करने को कहा. इससे दोनों क्षेत्रीय संगठनों के आपसी रिश्ते मधुर बने रहे.
आपसी संबंधों को अगले स्तर तक ले जाने में न्यूरेमबर्ग घोषणा का खास महत्व है. 2007 में इस घोषणा के साथ ही यूरोपीय संघ-आसियान की साझेदारी बढ़ाने पर सहमति बनी और इसके कुछ ही महीनों के भीतर एक एक्शन प्लान की भी घोषणा हुई जिसका मकसद था न्यूरेमबर्ग घोषणा के तहत साझेदारी के समझौते को मूर्त रूप देना. 2011 में पहली आसियान–यूरोपीय संघ व्यापार शिखर बैठक से आर्थिक संबंधों को और मजबूती मिली. लगातार आर्थिक संबंधों को बेहतर बनाने के प्रयास जारी रहे और बंदर सेरी बेगावान एक्शन प्लान 2013-2017 के जरिए व्यापार, निवेश, जलवायु परिवर्तन, उच्च शिक्षा जैसे कई मसलों पर यूरोप ने आसियान का बहुत साथ दिया. बाद में यूरोपीय संघ-आसियान प्लान ऑफ एक्शन 2018-2022 से इसे आगे बढ़ाया गया. बात आर्थिक संबंधों की हो या राजनयिक सहयोग की, यूरोपीय संघ ने हमेशा ही आसियान में दिलचस्पी दिखाई है. यूरोपीय संघ चीन के बाद आसियान का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है तो वहीं यूरोपीय संघ के लिए आसियान तीसरा सबसे बड़ा साझेदार है. यहीं नहीं, यूरोपीय संघ आसियान क्षेत्र में सबसे बड़ा निवेशक है. जर्मनी के तो कहने ही क्या, यह आसियान देशों का सबसे बड़ा व्यापार सहयोगी है.
सहयोग के साथ मुश्किलें भी
स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप पर हस्ताक्षर के साथ इन दोनों क्षेत्रीय संगठनों के आपसी संबंध नई ऊंचाइयों को छुएंगे. चीन के साथ पश्चिमी देशों के बिगड़ते रिश्तों के बीच ईयू और आसियान के बीच सामरिक संबंधों का महत्व बढ़ गया है. एक ओर आर्थिक स्तर पर पश्चिमी देशों को चीन पर निर्भरता कम करने के लिए विकल्प खोजने की जरूरत है तो दूसरी ओर कम से कम आयात निर्यात को विस्तार देने की भी. लेकिन दोनों क्षेत्रीय संगठनों के बीच कई मुश्किलें भी हैं जिनमें पाम ऑयल से जुड़े सतत विकास के मुद्दे भी हैं और थाईलैंड, फिलीपींस, कंबोडिया और म्यांमार में बढ़ रही मानवाधिकार हनन की घटनाएं भी. दोनों के बीच फ्री ट्रेड समझौता बरसों से लटका पड़ा है. इन मुद्दों को सुलझाना यूरोपीय संघ और आसियान दोनों के लिए जरूरी है.
इलाके पर नजर रखने वाले प्रेक्षक यह भी कहते रहे हैं कि दोनों क्षेत्रीय संगठनों के रिश्ते अब और एकतरफा नहीं रह सकते. सामरिक सहयोग के नए मंसूबे बांधते आसियान देशों को यह भी ध्यान रखना होगा कि जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, महिला और बाल कल्याण और विकास जैसे पारस्परिक सहयोग के अहम मुद्दों से जरा भी ध्यान न हटे. सामरिक और सैन्य सहयोग तथा शिखर वार्ताओं के लिए आसियान के कई सहयोगी हैं लेकिन आसियान के देशों और वहां के लोगों के आर्थिक और टिकाऊ विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करने में सहयोग करने वाले यूरोपीय संघ जैसे पार्टनर कम ही हैं.(dw.com)
भारत में किसानों के आंदोलन का मुद्दा विदेश की संसद में उठ रहा है.
बुधवार को ब्रिटिश संसद में लेबर पार्टी के सिख सांसद तनमनजीत सिंह ने एक बार फिर से यह मुद्दा उठाया.
तनमनजीत सिंह ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से इसे लेकर सवाल पूछा. जॉनसन जब जवाब देने लगे तो पूरी तरह से मुद्दे को लेकर अनजान दिखे.
उन्हें लगा कि यह भारत-पाकिस्तान के बीच का कोई मुद्दा है और कहा कि दोनों देशों को द्विपक्षीय बातचीत के ज़रिए सुलझाना चाहिए.
भारत में किसान पिछले दो हफ़्तों से मोदी सरकार के नए कृषि क़ानून के ख़िलाफ़ सड़क पर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि सरकार के नए कृषि क़ानून से उनकी आजीविका बर्बाद हो जाएगी.
तनमनजीत सिंह ब्रिटेन में मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना को लेकर मुखर रहे हैं. उन्होंने नागरिकता संशोधन क़ानून यानी सीएए का मुद्दा भी ब्रिटिश संसद में उठाया था.
बुधवार को प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की मौजूदगी में पूछा, ''भारत के कई इलाक़ों और ख़ासकर पंजाब के किसान, जो कि शांतिपूर्वक विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं उन पर वाटर कैनन और आँसू गैस के इस्तेमाल का फुटेज परेशान करने वाला है. क्या ब्रिटिश पीएम भारतीय प्रधानमंत्री को हमारी चिंताओं से अवगत कराएंगे? हम उम्मीद करते हैं कि वर्तमान गतिरोध का कोई समाधान निकलेगा. उन्हें समझना चाहिए कि शांतिपूर्वक प्रदर्शन सबका मौलिक अधिकार होता है.''
जॉनसन जब जवाब देने लगे तो लगा जैसे वो बिल्कुल तैयार नहीं थे. उन्होंने कहा, ''ज़ाहिर है भारत और पाकिस्तान के बीच जो कुछ भी हो रहा है वो चिंताजनक है. यह एक विवादित मुद्दा है और दोनों सरकारों को मिलकर समाधान निकालना है.'' प्रधानमंत्री का जवाब सुनते हुए तनमनजीत सिंह अवाक रह गए.
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तनमनजीत सिंह भारत में किसानों के प्रदर्शन को लेकर ब्रिटेन में काफ़ी सक्रिय हैं. उन्होंने किसानों के समर्थन में 35 अन्य सासंदों से एक पत्र पर हस्ताक्षर भी करवाए हैं.
बोरिस जॉनसन के जवाब की उन्होंने ट्विटर पर आलोचना की है. तनमनजीत सिंह ने लिखा है, ''अगर हमारे प्रधानमंत्री को पता होता कि वो किस बारे में बात कर रहे हैं तो अच्छा होता.''
ब्रिटेन में एक सिख समूह के नेता गुरपतवंत सिंह ने ब्रिटिश अख़बार द गार्डियन से कहा है, ''हम इस बात से बहुत निराश हैं कि हमारे प्रधानमंत्री भारत में किसानों के आंदोलन और भारत-पाकिस्तान के बीच सीमा विवाद में कन्फ्यूज हैं. लोगों की ज़िंदगी जोखिम में है और प्रधानमंत्री को इस पर ध्यान देना चाहिए. पंजाब में हालात ठीक नहीं हैं. किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन को जबरन कुचला जा रहा है.''
ब्रिटेन सरकार ने भारत में चल रहे किसान आंदोलन को लेकर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया है. फॉरन कॉमनवेल्थ एंड डेवलपमेंट ऑफिस ने इसे आंतरिक मामला बताते हुए कहा है कि ये भारत सरकार का मसला है.
ब्रिटिश पीएम के जवाब की ख़बर वहां के अख़बारों में भी खूब छपी है. इससे पहले कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने किसान प्रदर्शनकारियों के साथ भारतीय सुरक्षा बलों के रवैए को लेकर चिंता जताई थी और कहा था कि उनकी सरकार हमेशा से शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन का समर्थक रही है.
ट्रुडो के बयान पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने कड़ी आपत्ति जताई थी. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने उनके बयान को अधकचरा और सच्चाई से परे बताया था. भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि कनाडा के प्रधानमंत्री का बयान ग़ैर-ज़रूरी और एक लोकतांत्रिक देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने जैसा कहा था.
ट्रूडो ने गुरु नानक देव की जयंती पर दिए ऑनलाइन संदेश में कहा था कि अगर वो भारत में चल रहे किसानों के प्रदर्शन को नोटिस नहीं करेंगे तो यह उनकी लापरवाही होगी. कनाडा में क़रीब पाँच लाख सिख रहते हैं. जस्टिन ट्रूडो ने कहा था, ''स्थिति चिंताजनक है. हम सभी प्रदर्शनकारियों के परिवार और दोस्तों को लेकर चिंतित हैं. मैं आपको याद दिलाना चाहूंगा कि कनाडा हमेशा से शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन के अधिकार को लेकर सजग रहा है. हम संवाद की अहमियत में भरोसा करते हैं. हमने भारत के अधिकारियों से इसे लेकर सीधे बात की है.''
ट्रूडो के बयान पर भारत में सोशल मीडिया पर काफ़ी बहस हुई थी. कई लोगों ने समर्थन किया था तो कई लोगों ने इसे दूसरे देश के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप बताया था. वरिष्ठ पत्रकार वीर सांघवी ने ट्रूडो के बयान की आलोचना की थी.
उन्होंने ट्वीट कर कहा था, ''किसानों के प्रदर्शन को लेकर मेरा विचार चाहे जो भी हो लेकिन मुझे ट्रूडो का बयान पसंद नहीं आया. जस्टिन ट्रूडो को पता है कि एक देश के नेता के तौर पर उनके बयान से वैश्विक स्तर पर कोई असर नहीं होगा. वो अपने सिख समर्थकों को ख़ुश कर रहे हैं.''
ब्रिटेन की संसद में भारत के किसान आंदोलन का मुद्दा उठने के अलावा सड़क पर भी उठ चुका है. इसी हफ़्ते सिख प्रदर्शनकारियों ने लंदन में भारतीय दूतावास के सामने प्रदर्शन किया था. इसे लेकर भारतीय दूतावास ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी.
ब्रिटेन में अलग-अलग पार्टियों के कुल 36 सांसदों ने वहां के विदेश मंत्री डॉमिनिक राब से कहा है कि वो भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से बात करें और उन्हें बताएं कि भारत में कृषि क़ानून के ख़िलाफ़ चल रहे प्रदर्शन से ब्रिटिश पंजाबी प्रभावित हो रहे हैं.
पिछले शु्क्रवार को इन सांसदों की तरफ़ से एक पत्र जारी किया गया है. इस पत्र को लेबर पार्टी के ब्रिटिश सिख सांसद तनमनजीत सिंह ढेसी ने ट्विटर पर पोस्ट किया था.
इस पत्र पर अन्य भारतीय मूल के सांसदों के भी हस्ताक्षर थे. हस्ताक्षर करने वालों में वीरेंद्र शर्मा, सीमा मल्होत्रा और पूर्व लेबर नेता जर्मी कोर्बिन भी शामिल थे. ब्रितानी सांसदों ने ख़त में विदेश मंत्री डोमिनिक राब से गुज़ारिश की थी कि वो "पंजाब में बिगड़ते हालात" पर जल्द से जल्द भारतीय विदेश मंत्री से बात करें.
खत में ये भी पूछा गया था कि क्या फॉरन, कॉमनवेल्थ एंड डिवेलपमेन्ट ऑफ़िस (एफ़सीडीओ) को इस मुद्दे पर भारत से कोई पत्र मिला है.
पत्र में लिखा था, "ये एक साझा पत्र है जिसमें आपसे गुज़ारिश की जा रही है कि आप भारतीय विदेश मंत्री से मुलाक़ात करें और कृषि क़ानूनों के विरोध में हो रहे विरोध प्रदर्शनों का जो असर ब्रितानी पंजाबियों और सिखों पर पड़ रहा है उसे लेकर उनसे बात करें."
"ब्रिटेन में बसे सिखों और पंजाब से जुड़े लोगों के लिए ये बेहद अहम मुद्दा है. कई ब्रितानी सिख और पंजाबी इन मुद्दों को लेकर अपने सांसदों से बात कर रहे हैं और उनका कहना है कि पंजाब में उनके परिजन हैं, उनकी पुश्तैनी ज़मीनें हैं और विरोध का असर उन पर पड़ रहा है."
काबुल, 10 दिसंबर | अफगानिस्तान के नांगरहार प्रांत में गुरुवार को अज्ञात बंदूकधारियों ने एक महिला पत्रकार की गोली मारकर हत्या कर दी। इसकी पुष्टि एक अधिकारी ने की है। यह घटना इस प्रांत की राजधानी जलालाबाद में हुई। समाचार एजेंसी सिन्हुआ को अधिकारी ने बताया, "एक निजी रेडियो टीवी स्टेशन में काम करने वाली महिला पत्रकार मालालाई मिवंद को जलालाबाद में आज सुबह के व्यवस्ततम घंटों में अज्ञात हथियारबंद लोगों ने गोलियों से भून दिया।"
उन्होंने कहा कि अपराधियों को न्याय के दायरे में लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। अस्पताल के सूत्रों ने बताया कि हमले में मिवंद का ड्राइवर भी मारा गया है।
किसी भी समूह ने अभी तक हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है।
अफगानिस्तान में नवंबर के मध्य से 2 पत्रकारों की हत्या की जा चुकी है। मिवंद से पहले 12 नवंबर को हेलमंद प्रांत में बम विस्फोट में एक अन्य पत्रकार एलिस डेई की मौत हो गई थी। (आईएएनएस)
ओटावा, 10 दिसंबर | कनाडा इस वक्त कोरोनावायरस महामारी की दूसरी लहर का सामना कर रहा है और इसी बीच देश ने फाइजर-बायोएनटेक कोविड-19 की वैक्सीन के इस्तेमाल को हरी झंडी दे दी है। सिन्हुआ समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री जस्टिन टड्रो ने यह कहा था कि इस साल के अंत तक लोगों में टीके का वितरण करने के लिए उन्हें वैक्सीन की 249,000 खुराकें मुहैया कराई जाएंगी और अब बुधवार को वैक्सीन को सहमति दिए जाने की बात सामने आई है।
फाइजर वैक्सीन की पहली खुराक के अगले हफ्ते तक कनाडा में पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है और जिसके एक या दो दिन के भीतर कनाडा के 14 प्रमुख शहरों में इन्हें भेजे जाने की योजना है। सबसे पहले प्राथमिकता की सूची में आने वाले लोगों को वैक्सीन दी जाएगी।
यहां की सरकार का कहना है कि उनका लक्ष्य साल 2021 के सितंबर तक अधिक से अधिक लोगों तक वैक्सीन पहुंचाने का है(आईएएनएस)
वाशिंगटन, 10 दिसंबर | अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित जो बाइडेन के बेटे हंटर बाइडेन ने घोषणा की है कि उनके टैक्स के मामलों की जांच चल रही है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, बुधवार को हंटर बाइडेन ने एक बयान जारी कर कहा कि उन्हें एक दिन पहले ही पता चला कि उनके टैक्स मामलों की जांच चल रही है। अमेरिकी अटॉर्नी के कार्यालय ने डेलावेयर में अपने कानूनी वकील को सलाह दी कि वे उनके टैक्स मामलों की जांच कर रहे हैं। मैंने इस मामले को बहुत गंभीरता से लिया है।
हंटर ने आगे कहा, "मुझे विश्वास है कि इन मामलों की एक पेशेवर और उद्देश्यपूर्ण समीक्षा बताएगी कि मैंने अपने मामलों को कानूनी और उचित रूप से नियंत्रित किया है, इसमें पेशेवर कर सलाहकारों के लाभ भी शामिल हैं।"
इस बयान पर जो बाइडेन ने कहा कि उन्हें अपने बेटे पर गर्व है, जिसने "हाल के महीनों में शातिर व्यक्तिगत हमलों समेत कई कठिन चुनौतियों का सामना किया है, जिसने उसे और मजबूत बनाया है।"
50 वर्षीय हंटर बाइडेन, जो बाइडेन के दूसरे बेटे हैं। सीएनएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि जांचकर्ता कई वित्तीय मुद्दों की जांच कर रहे हैं, जिसमें हंटर बाइडेन और उनके सहयोगियों ने चीन सहित अन्य देशों में व्यापार सौदे में कर और धन शोधन कानूनों का उल्लंघन किया है। सूत्रों ने बताया कि यह जांच 2018 में शुरू हुई थी।(आईएएनएस)
स्पेस एक्स का एक रॉकेट परीक्षण उड़ान पूरी करने के बाद लैंडिंग के दौरान विस्फोट के बाद शोलों में तब्दील हो गया. इलॉन मस्क ने इस कोशिश को सफल बताया है. यह रॉकेट मानवरहित था.
मशहूर उद्योगपति और स्पेस एक्स के मालिक इलॉन मस्क ने स्टारशिप रॉकेट की उड़ान के पहले ट्वीट किया "मंगल ग्रह, हम आ रहे हैं." स्टारशिप रॉकेट के जरिए कंपनी भविष्य में लोगों को मंगल गृह पर ले जाने की योजना बना रही है. बुधवार को परीक्षण उड़ान के बाद स्टारशिप रॉकेट लैंडिंग के दौरान आग के गोले में तब्दील हो गया और विस्फोट के बाद रॉकेट पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया. कंपनी ने ट्वीट कर लैंडिंग का वीडियो भी साझा किया है. जिसमें साफ तौर पर देखा जा सकता है कि रॉकेट जब धरती की ओर आ रहा था तो उसमें आग लगती है और उसके बाद विस्फोट होता है.
परीक्षण उड़ान करीब साढ़े छह मिनट चली और उड़ान के दौरान स्टारशिप कई मीलों तक ऊपर गई और लैंडिंग से पहले लौटते समय रॉकेट ने गुलाटी मारी. स्टारशिप के इंजन को लैंडिंग से कुछ सेकंड पहले ही फिर से शुरू किया गया ताकि रॉकेट की गति को धीमा किया जा सके. हालांकि ऐसा हुआ नहीं और रॉकेट आग के शोलों में बदल गया. भविष्य में स्टारशिप इंसानों और माल को मंगल गृह तक पहुंचाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा.
इलॉन मस्क ने कहा है कि तेल टैंक में कम दबाव के कारण टचडाउन के वक्त गति बहुत अधिक थी लेकिन उनकी टीम ने वह सभी आंकड़े हासिल कर लिए हैं जिसकी उन्हें जरूरत थी. रॉकेट ने करीब 13 किलोमीटर की ऊंचाई तक उड़ान भरी जो कि पहले की कोशिश से करीब 100 गुना अधिक है.
टेक्सास के बोका चिका में इससे पहले मंगलवार को परीक्षण उड़ान आखिरी पल में रद्द कर दी गई थी. यह रॉकेट 160 फीट ऊंचा था और इसमें तीन रैप्टर इंजन लगे हुए थे. विस्फोट के बाद रॉकेट का मलबा लैंडिंग पैड के आसपास बिखर गया.
मस्क कह चुके हैं कि उन्हें उम्मीद है कि मंगल गृह पर इंसान को अगले छह वर्षों में उनकी कंपनी उतार देगी.
एए/सीके (एए, रॉयटर्स)
सुमी खान
ढाका, 10 दिसंबर| बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 2050 तक 'कार्बन तटस्थता की ओर प्रभावी ढंग से बढ़ने के लिए' सकारात्मक और मजबूत 'अंतर्राष्ट्रीय जलवायु गठबंधन' बनाने का आह्वान किया है।
हसीना ने बुधवार को वर्चुअल थिम्पू एम्बिशन समिट: मोमेंटम फॉर ए 1.5 ओसी वल्र्ड में पेरिस जलवायु सौदे की पांचवीं वर्षगांठ के मौके पर यह आह्वान किया। अपने रिकॉर्डेड भाषण में उन्होंने लाखों लोगों के शरणार्थी बनने के लिए जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को जिम्मेदार बताया। उन्होंने कहा कि कोरोनावायरस महामारी ने दुनिया को सिखाया है कि "वैश्विक संकट से निपटने का एकमात्र तरीका मजबूती से सामूहिक प्रतिक्रिया देना ही है।"
यूएन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) में एलडीसी समूह के अध्यक्ष भूटान द्वारा यह शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था। इसके वक्ताओं में भूटान के प्रधानमंत्री लोटे त्शेरिंग, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस, सीओपी26 के अध्यक्ष आलोक शर्मा और यूएनएफसीसीसी के कार्यकारी सचिव पेट्रीसिया एस्पिनोसा शामिल थे।
हसीना ने आग्रह किया कि बहु-पक्षीय बैंकों और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों को रियायती वित्त और ऋण राहतों के जरिए जलवायु वित्तपोषण के अधिक प्रभावी प्रावधान करने चाहिए। सभी को इसके लिए जरूरी टेक्नॉलॉजी तक पहुंच सुनिश्चित करना चाहिए।
उन्होंने कहा, "विश्व के नेताओं ने पेरिस में सीओपी-21 जलवायु शिखर सम्मेलन के दौरान वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि को बनाए रखने के लक्ष्य पर सहमति जताई थी। हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि उस लक्ष्य को प्राप्त करने के हमारे मौजूदा प्रयास नाकाफी हैं। हमें एक शक्तिशाली योजना बनाने की जरूरत है।"
प्रीमियर ने दक्षिण एशिया को जलवायु-प्रेरित प्राकृतिक आपदाओं के लिए सबसे संवेदनशील क्षेत्र बताया। उन्होंने कहा कि अगर समुद्र में एक मीटर की ऊंचाई बढ़ जाती है, तो तटीय और छोटे द्वीप देशों में लाखों लोग शरणार्थी बनने पर मजबूर हो जाएंगे।
हसीना ने कहा कि ग्लेशियल झील के फटने से, बादल फटने से या भारी बारिश से हिमालयी देशों जैसे भूटान, नेपाल और भारत के कुछ हिस्सों में भारी तबाही होगी।
उन्होंने कहा कि हालांकि बांग्लादेश का ग्लोबल वामिर्ंग में कोई योगदान नहीं है। फिर भी बांग्लादेश सरकार इसके लिए काफी प्रयास कर रही है। इसके लिए उन्होंने बांग्लादेश की जलवायु का लचीलापन बढ़ाने के लिए उनकी सरकार द्वारा किए गए प्रयासों के बारे में बताया। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 10 दिसंबर| जैसे ही अमेरिकी सरकार ने फेसबुक को तोड़ने की अपनी योजना को आगे बढ़ाते हुए मुकदमा किया, तुरंत ही सोशल नेटवकिर्ंग कंपनी फेसबुक ने यह कहते हुए पलटवार किया कि यह केवल इतिहास को नए तरीके से इंटरपेट्र करना नहीं है, बलिक्य ये भी देखना है कि यह कानून कैसे काम करे। फेसबुक के वाइस प्रेसिडेंट और जनरल काउंसिल जेनिफर न्यूस्टेड ने बुधवार की देर रात कहा कि कंपनी अदालत में अपने दिन का इंतजार कर रही है, "जब हम विश्वास के साथ यह सबूत दिखाएंगे कि फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप एक साथ हैं और वह अपनी योग्यता के आधार पर महान उत्पादों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।"
अमेरिकी संघीय व्यापार आयोग (एफटीसी) और राज्य के अटॉर्नी जनरल ने फेसबुक के उन 2 अधिग्रहणों पर हमला किया है जो फेसबुक ने 2012 में इंस्टाग्राम को और 2014 में व्हाट्सएप को अधिग्रहीत करके किए थे।
फेसबुक के अनुसार, इन दोनों अधिग्रहणों की समीक्षा उस समय के प्रासंगिक एंटीट्रस्ट रेगुलेटर्स ने की थी। उन्होंने जोर देते हुए कहा, "कई साल बीत चुके हैं। उन सुलझे हुए कानून या नवाचार और निवेश के परिणामों के बारे में कोई सम्मान नहीं है। अब एजेंसी कह रही है कि यह गलत है और वह इसमें संशोधन चाहती है। यह इतिहास में बदलाव करने के अलावा और कुछ नहीं है।"
द्विदलीय समर्थन द्वारा सुर्खियों में आने वाली एक ऐतिहासिक कार्रवाई में अमेरिका की संघीय सरकार और 48 राज्यों ने फेसबुक पर लैंडमार्क एंटीट्रस्ट अधिनियम के तहत मुकदमा दायर किया है। इसमें फेसबुक पर बाजार की प्रतिस्पर्धा को खत्म करने के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया गया है।
अमेरिका फेसबुक के स्वामित्व वाले इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप के स्पिनऑफ के लिए जोर दे रहा है, यानि कि वह इन दो सब्सिडियरी कंपनियों का बिजनेस पैरेंट कंपनी से अलग करने के लिए कह रहा है।
फेसबुक ने कहा, "जब हमने इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप का अधिग्रहण किया, तो हमें विश्वास था कि ये कंपनियां हमारे फेसबुक उपयोगकर्ताओं के लिए बहुत लाभकारी होंगी और हम उन्हें कुछ बेहतर तरीके से बदलाव करने में मदद कर सकते हैं और हमने ऐसा किया। यह मुकदमा अमेरिकी सरकार की अपनी विलय समीक्षा प्रक्रिया के बारे में संदेह और अनिश्चितता का जोखिम लाता है कि क्या अधिग्रहण करने वाले बिजनेस वास्तव में कानूनी प्रक्रिया के परिणामों पर भरोसा कर सकते हैं।"
बता दें कि फेसबुक ने 2012 में इंस्टाग्राम को 1 बिलियन डॉलर और 2014 में व्हाट्सएप को 19 बिलियन डॉलर में खरीदा था। जब फेसबुक ने इंस्टाग्राम को खरीदा था, तब उसके पास आज के कुल उपयोगकर्ताओं के लगभग 2 प्रतिशत उपयोगकर्ता ही थे और सिर्फ 13 कर्मचारी थे। ना कोई राजस्व था और ना कोई वास्तविक बुनियादी ढांचा था।
आज इंस्टाग्राम के एक अरब से ज्यादा मासिक सक्रिय उपयोगकर्ता हैं। पूरे विश्व में व्हाट्सएप के दो अरब से अधिक उपयोगकर्ता हैं, भारत में ही 40 करोड़ से अधिक उपयोगकर्ता हैं।
कंपनी ने कानूनी लड़ाई के लिए तैयार होने की बात कहते हुए कहा, "इंस्टाग्राम को फेसबुक का हिस्सा बनाने से उपभोक्ताओं और व्यवसायों को जबरदस्त लाभ हुआ है। इंस्टाग्राम अधिक विश्वसनीय हो गया और उन तकलीफों से बच गया, जिसके कारण अन्य तेजी से बढ़ते स्टार्टअप पटरी से उतर गए। इसी तरह व्हाट्सएप को भी फेसबुक का हिस्से बनाने से उपभोक्ताओं को लाभ हुआ। हमने दुनिया भर के उपभोक्ताओं को एसएमएस के बदले एक मुफ्त मैसेजिंग विकल्प की पेशकश की थी और मोबाइल ऑपरेटर इसके लिए शुल्क ले रहे थे।" (आईएएनएस)
संयुक्त राष्ट्र, 10 दिसंबर | संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने पुष्टि की है कि जब वैक्सीन उनके लिए उपलब्ध हो जाएगा तो वह सार्वजनिक रूप से कोविड-19 वैक्सीन लेंगे। बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह पूछे जाने पर कि क्या वह वैक्सीन लेंगे तो गुटेरेस ने कहा, "जब भी मेरे लिए वैक्सीन उपलब्ध हो जाएगी मैं निश्चित रूप से इसे लेना चाहूंगा। जाहिर है मुझे इसे सार्वजनिक रूप से करने में कोई संदेह नहीं होगा।"
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक गुटेरेस ने सभी को टीकाकरण कराने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा, "मैं हर किसी को प्रोत्साहित करता हूं कि जैसे ही वैक्सीन उन तक पहुंच जाता है, वे टीका लगवाएं, क्योंकि यह एक सेवा है। हम में से हर एक को टीका लगाया जाना पूरे समुदाय की सेवा करना है, ताकि बीमारी के फैलने का कोई खतरा न रहे। इसलिए मेरे लिए टीकाकरण एक नैतिक दायित्व की तरह है।"
उन्होंने अफ्रीकी देशों के लिए ऋण राहत प्रयासों पर एक बोल्ड और समन्वित अंतर्राष्ट्रीय पहुंच की अपनी अपील को दोहराया, जिसमें उनके ऋण रद्द करने की बात भी शामिल है। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने कहा कि अधिकांश अफ्रीकी देशों के पास कोविड-19 संकट के निपटने के लिए वित्तपोषण की कमी है, क्योंकि उनके पास उपलब्ध चीजों के निर्यात की मांग और कीमतों में गिरावट आई है।(आईएएनएस)
रूसी अनुसंधान संस्थान, दुश्मन के ड्रोन विमानों को डिटेक्ट, ट्रैक और कैप्चर करने के लिए एक नए ड्रोन "नेट" को पेटेंट करने पर काम कर रहा है
विशेष प्रकार के इस नेट को ड्रोन विमानों का शिकार करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
यह एक दिलचस्प घटनाक्रम है, इस अभूतपूर्व अविष्कार के ज़रिए रूसी सेना को ड्रोन हथियारों का मुक़ाबला करने के लिए एक अनोखा हथियार प्राप्त हो जाएगा।
एक नेट (जाल) की तरह प्रतीत होता है, जिसका उद्देश्य हमलावर ड्रोन विमानों को क़ाबू में करना और उन्हें कैप्चर करना है। रूसी समाचार एजेंसी तास ने इस नए हथियार के बारे में विस्तृत जानकारी दी है।
तास की रिपोर्ट के मुताबिक़, इंटरसेप्टर ड्रोन में कम से कम दो इंजन होते हैं, जो विभिन्न दिशाओं में गर्दिश करता है, इस ड्रोन की एक विशिष्टता यह है कि एक एयरोडाइनामिक संरचना, एक पकड़ने वाले जाल पर आधारित होती है।
विरोधी ड्रोन विमानों का शिकार करने वाला यह ड्रोन, रूस की सरकारी कंपनी रोस्टेक कॉरपोरेशन द्वारा बनाया जा रहा है, जो ड्रोन डिफ़ेंस, किलर-इंटरसेप्टर ड्रोन और इलेक्ट्रॉनिक वारफ़ेयर सिस्टम का एक भाग है। लेकिन यह नया अविष्कार, निश्चित रूप से दुश्मन के ड्रोन को पकड़ने और फंसाने के लिए है।
नेट का साइज़ और उसका खिंचाव, शिकार को पकड़ने और उसे दबोचे रखने की क्षमता रखता है। इसी तरह से यह ड्रोन डिफेंस सिस्टम, जासूसी करने का भी अवसर प्रदान करता है। इससे वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को जांच के लिए बिना क्षतिग्रस्त हुए तथा ऑपरेशन की हालत में ड्रोन को पकड़ने सहायता मिलेगी। इससे नए ड्रोनों के निर्माण के लिए भी मार्ग प्रशस्त होगा।
मौजूदा इलेक्ट्रॉनिक युद्ध तकनीक हमलावर ड्रोन के उड़ान मार्ग को जाम करने, उसे मार गिराने, अक्षम करने या यहां तक कि उसे "टेक ओवर" करने पर आधारित है।
एक हमलावर ड्रोन को हैक करने या फिर कैप्चर करने के लिए यह फ़ायरिंग नेट उपयोगी साबित हो सकता है, लेकिन उसे पहले दुनिया भर के उन्नत ड्रोन विमानों के मुक़ाबले में अपनी क्षमता का प्रदर्शन करना होगा। (parstoday.com)
न्यूयॉर्क, 10 दिसंबर | द्विदलीय समर्थन द्वारा सुर्खियों में आने वाली एक ऐतिहासिक कार्रवाई में अमेरिका की संघीय सरकार और 48 राज्यों ने फेसबुक पर लैंडमार्क एंटीट्रस्ट अधिनियम के तहत मुकदमा दायर किया है। इसमें फेसबुक पर बाजार की प्रतिस्पर्धा को खत्म करने के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया लगाया गया है।
अमेरिका फेसबुक के स्वामित्व वाले इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप के स्पिनऑफ के लिए जोर दे रहा है, यानि कि वह इन दो सब्सिडियरी कंपनियों का बिजनेस पैरेंट कंपनी से अलग करने के लिए कह रहा है।
यह विवाद मार्क जकरबर्ग के फेसबुक शुरू करने के 16 साल बाद आया है। उस समय के बाद से अब तक फेसबुक 2.7 करोड़ उपयोगकर्ताओं के साथ दुनिया का सबसे बड़ा सोशल नेटवर्क बन गया है और इसकी मार्केट वैल्यू लगभग 800 बिलियन डॉलर की है, वहीं जकरबर्ग दुनिया के पांचवें सबसे अमीर व्यक्ति बन गए हैं।
किसी बड़ी टेक कंपनी के खिलाफ अमेरिकी सरकार की अगुवाई में यह साल का दूसरा ऐसा बड़ा आरोप है। इससे पहले अमेरिकी न्याय विभाग ने अमेरिकी चुनावों से ठीक पहले अक्टूबर में गूगल पर मुकदमा दायर किया था। इसमें कंपनी पर पूरे ऑनलाइन सर्च और विज्ञापन बाजार पर कब्जा करने का आरोप लगाया था।
फेसबुक के खिलाफ इस मुकदमे की घोषणा फेडरल ट्रेड कमीशन और न्यूयॉर्क अटॉर्नी जनरल लेटिटिया जेम्स ने की। जेम्स ने बुधवार को एक ब्रीफिंग में कहा, "यह वास्तव में महत्वपूर्ण है कि हम कंपनियों के इस तरह के अधिग्रहण को रोकें और बाजार में विश्वास बहाल करें।"
वहीं एफटीसी के ब्यूरो ऑफ कॉम्पिटिशन के निदेशक इयान कोनर ने कहा, "निजी सोशल नेटवर्किं ग लाखों अमेरिकियों के जीवन का अहम हिस्सा है। फेसबुक ने अपने व्यापारिक रवैये से अपने एकाधिकार को बनाए रखने और इसके लिए उपभोक्ताओं को प्रतिस्पर्धा के लाभों से वंचित रखा है। हमारा उद्देश्य फेसबुक के ऐसे आचरण को खत्म करके प्रतिस्पर्धा बहाल करना है ताकि नवाचार हो और नि: शुल्क प्रतिस्पर्धा बहाल हो सके।"
--आईएएनएस
नैरोबी, 10 दिसंबर | कोविड-19 महामारी ने केन्या में डिजिटल वित्तीय लेनदेन को तेज कर दिया है, जो कि स्वचालित टेलर मशीनों (एटीएम) के लिए एक झटका है। यहां एटीएम के कारोबार में पिछले आठ महीनों में तेजी से गिरावट आई है। ये बात यहां के सेंट्रल बैंक के एक नए आंकड़े से पता चली है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने बताया कि अक्टूबर के अंत में इस पूर्वी अफ्रीकी देश में 2,409 एटीएम थे, जबकि जनवरी में 2,459 थे।
यह लगभग 10 महीनों में 50 मशीनों की गिरावट है। सबसे ज्यादा गिरावट दूसरी और तीसरी तिमाही में दर्ज की गई। अब ये कुल संख्या के सात साल के निचले स्तर तक पहुंच गई।
एटीएम की संख्या गिरने से महामारी के दौरान मोबाइल मनी का उपयोग केन्या में 528.9 बिलियन शिलिंग (लगभग 4.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर) हो गया है, जो अब तक का रिकॉर्ड है।
--आईएएनएस
अमीर देश कोविड वैक्सीन की जमाख़ोरी कर रहे हैं और इसकी वजह से ग़रीब देशों के लोगों को यह वैक्सीन मिलने में दिक़्क़त होना तय है. कुछ आंदोलनकारी संस्थाओं के एक गठबंधन ने ये चेतावनी दी है.
पीपुल्स वैक्सीन अलायंस का कहना है कि कम आमदनी वाले क़रीब 70 देशों में हर 10 लोगों में से महज़ एक शख़्स को ही यह वैक्सीन मिल पाएगी.
ये हालात तब हैं जबकि ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राजेनेका ने इस बात का वादा किया है कि उनकी वैक्सीन की 64 फ़ीसद ख़ुराक विकासशील देशों को दी जाएगी.
इस बात की कोशिश की जा रही है कि इस वैक्सीन को सारी दुनिया में बिना भेदभाव के बाँटा जाए.
इसके लिए उनसे संकल्प लिया गया है कि कोवैक्स नाम की इस वैक्सीन को लेने के लिए क़रार करने वाले 92 देशों में वैक्सीन की 70 करोड़ डोज़ वितरित की जाएगी.
लेकिन, एमनेस्टी इंटरनेशनल, ऑक्सफ़ैम और ग्लोबल जस्टिस नाउ जैसे संगठनों का कहना है कि इस योजना के लागू कर भी दिया जाए तो भी यह पर्याप्त उपाय नहीं होगा.
इन संगठनों का कहना है कि दवा कंपनियों को अपनी टेक्नोलॉजी को साझा करना चाहिए ताकि बड़ी तादाद में वैक्सीन तैयार की जा सके.
अमीर देशों ने आबादी से तीन गुना डोज़ का इंतज़ाम किया
इन संगठनों के विश्लेषणों में कहा गया है कि अमीर देशों ने अपनी पूरी आबादी को वैक्सीन की डोज़ देने के लिए पर्याप्त डोज़ इकट्ठी कर ली हैं.
इनका कहना है कि अगर सभी वैक्सीन मंज़ूर हो जाती है तो इन अमीर देशों के पास अपनी पूरी आबादी से तीन गुना ज्यादा डोज़ होंगी.
मिसाल के लिए, इसमें दावा किया गया है कि कनाडा ने अपने हर नागरिक को लगाने के लिए पाँच गुने से ज्यादा डोज़ के ऑर्डर दे दिए हैं.
यहां तक कि भले ही अमीर देशों की आबादी दुनिया की कुल आबादी का महज़ 14 फ़ीसद है, लेकिन ये देश सभी भरोसेमंद वैक्सीन का 53 फ़ीसद हिस्सा ख़रीद चुके हैं.
ऑक्सफ़ैम की हेल्थ पॉलिसी मैनेजर अन्ना मैरियट कहती हैं, "किसी को भी जीवन बचाने वाली वैक्सीन हासिल करने से उसके रहने वाले देश या उसके पास मौजूद रक़म की वजह से रोका नहीं जाना चाहिए."
वे कहती हैं, "लेकिन, जब तक चीज़ों में कोई बड़ा बदलाव न हो, दुनियाभर के अरबों लोगों को आने वाले कई वर्षों तक कोविड-19 की कोई सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन मिल पाना मुमकिन नहीं होगा."
टेक्नोलॉजी साझा करें फ़ार्मा कंपनियां
पीपुल्स वैक्सीन अलायंस कोविड-19 वैक्सीन्स पर काम कर रही सभी फ़ार्मा कंपनियों का आह्वान कर रही है कि वे खुलकर अपनी टेक्नोलॉजी और इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी को साझा करें ताकि इस दवाई की अरबों डोज़ तैयार की जा सकें और इन्हें हर ज़रूरतमंद तक पहुंचाया जा सके.
संगठन का कहना है कि ऐसा विश्व स्वास्थ्य संगठन की मदद से किया जा सकता है.
ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन को बनाने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका ने प्रतिबद्धता जाहिर की है कि वह विकासशील देशों को इसे बिना मुनाफ़ा लिए मुहैया कराएगी.
यह दूसरी वैक्सीन्स के मुक़ाबले सस्ती है और इसे फ्रिज के तापमान पर स्टोर किया जा सकता है. इस वजह से इसे पूरी दुनिया में वितरित करना आसान हो जाएगा.
लेकिन, आंदोलनकारियों का कहना है कि केवल एक कंपनी अपने बूते दुनियाभर में वैक्सीन की पर्याप्त सप्लाई नहीं कर पाएगी.
फ़ाइज़र-बायोनटेक वैक्सीन को ब्रिटेन में मंज़ूरी मिल चुकी है और इसी हफ्ते से सबसे ज्यादा जोखिम में मौजूद लोगों को इसकी वैक्सीन लगाई जाने लगी है.
इसे जल्द ही अमेरिका और यूरोप में मंज़ूरी मिल सकती है. मॉडर्ना और ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की दो अन्य वैक्सीन्स कई देशों में मंज़ूरी मिलने का इंतजार कर रही हैं.
रूसी वैक्सीन स्पुतनिक ने भी सकारात्मक ट्रायल्स नतीजों का ऐलान किया है और चार अन्य वैक्सीन्स आखिरी चरण के क्लीनिकल ट्रायल्स के दौर में हैं. (bbc)
अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन के बेटे हंटर बाइडन ने कहा है कि उनके टैक्स मामलों की जांच चल रही है.
उनकी ये जांच अमेरिका के डेलावेयर राज्य में चल रही है.
हंटर बाइडन ने कहा कि वो मामले को "बहुत गंभीरता" से ले रहे हैं लेकिन उन्हें भरोसा है कि जांच में सामने आ जाएगा कि उन्होंने अपने टैक्स मामलों को "क़ानूनी और सही ढंग" से हैंडल किया है.
बाइडन-हैरिस की ट्रांसिशन टीम ने कहा है कि नव निर्वाचित राष्ट्रपति को "अपने बेटे पर बहुत गर्व है."
टीम ने एक बयान में कहा है कि हंटर "मुश्किल चुनौतियों से लड़े हैं, जिसमें हाल के महीनों में उनपर हुए विद्वेषपूर्ण व्यक्तिगत हमले भी शामिल हैं."
हंटर ने कहा कि उन्हें जांच के बारे में मंगलवार को पता चला. उन्होंने इससे ज़्यादा कोई जानकारी साझा नहीं की.
2020 के चुनाव अभियान में हंटर रिपब्लिकन पार्टी के निशाने पर थे.
इस साल की शुरुआत में जब डोनाल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ महाभियोग का मुकदमा चलाया गया तो ये बात भी छानबीन के दायरे में आई थी कि पिता के उप राष्ट्रपति रहते हुए हंटर बाइडन एक यूक्रेनी ऊर्जा कंपनी के बोर्ड में शामिल थे.
ट्रंप पर आरोप लगे थे कि उन्होंने यूक्रेन पर हंटर बाइडन की जांच करने के लिए दबाव बनाया और ऐसा नहीं करने पर सैन्य मदद रोकने की चेतावनी दी. डेमोक्रेटिक पार्टी के बहुमत वाले सदन ने ट्रंप पर महाभियोग चलाया था, लेकिन रिपब्लिकन के बहुमत वाले सिनेट में वो बच गए.
हंटर के टैक्स मामलों की जांच की ख़बर ऐसे वक़्त में आई है जब नव निर्वाचित राष्ट्रपति अपनी कैबिनेट के लिए नामों का चुनाव कर रहे हैं.
बाइडन के बेटे हंटर टैक्स मामलों को लेकर जांच के दायरे में
राष्ट्रपति चुनाव ख़त्म हो गए हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि चुनाव अभियान के दौरान रिपब्लिकन के निशाने पर रहे नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन के बेटे हंटर ख़बरों में बने रहेंगे.
हंटर के टैक्स मामलों की जांच की ख़बर पूरी तरह हैरान नहीं करती है. महीनों से ऐसी जांच होने के संकेत मिल रहे थे. अब ये मामला नवनिर्वाचित राष्ट्रपति के लिए राजनीतिक सरदर्द की वजह बन सकता है.
अगर अमेरिका की सिनेट में रिपब्लिकन्स का नियंत्रण बना रहता है तो हंटर के वित्तीय मामलों और इससे राष्ट्रपति बाइडन के किसी भी तरह से संबंध होने को लेकर सुनवाई होना पहले से तय है. और अगर जांच औपचारिक आरोपों में बदल जाती है, तो बाइडन परिवार के लिए ये राजनीतिक चिंताएं क़ानूनी मुश्किलों में बदल सकती हैं.
डोनाल्ड ट्रंप के आलोचक आरोप लगाएंगे कि इस निवर्तमान राष्ट्रपति ने राजनीतिक बदले के लिए जांच शुरू करवाई होगी, लेकिन इसके पीछे अमेरिकी अटॉर्नी - डेलावेयर के डेविड वीस हैं, जो एक अनुभवी अभियोजक हैं. हालांकि उनकी नियुक्ति मौजूदा राष्ट्रपति ने की थी, लेकिन उन्होंने डेमोक्रेट बराक ओबामा के राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान डिप्टी के तौर पर भी काम किया है और अंतरिम अमेरिकी अटॉर्नी भी रहे हैं.
हंटर बाइडन ने एक बयान में कहा है कि उन्होंने "क़ानूनी और सही तरीक़े" से काम किया है. अगर ऐसा है तो ये मामला ज़्यादा दिन नहीं टिकेगा. (bbc)
बीजिंग, 9 दिसंबर | कोविड-19 महामारी फैलने के बाद ब्रिक्स देश एक दूसरे की सहायता कर रहे हैं। चीन, ब्राजील, रूस, भारत और दक्षिण अफ्रीका के मुख्य मीडिया संस्थाओं ने महामारी के जुड़े बहुत सारी रिपोर्टें कीं, जिससे महामारी को खत्म करने का ²ढ़ संकल्प दिखाया गया है। हाल में ब्रिक्स मीडिया फोरम के अध्यक्ष मंडल की पांचवीं बैठक ऑनलाइन आयोजित हुई। इन पांच देशों के मुख्य मीडिया संस्थाओं के जिम्मेदार व्यक्तियों ने वचन दिया कि एकजुट होकर फोरम का विकास और सुधार किया जाएगा। इसके साथ महामारी के बाद के युग में ब्रिक्स देशों के मीडिया संस्थाओं में आदान-प्रदान और सहयोग मजबूत किया जाएगा।
ब्रिक्स सहयोग दूसरे दशक में प्रवेश कर चुका है। ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग व्यापक रूप से जारी हैं और उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल हुई हैं। यह पांच देशों के मीडिया संस्थाओं की भूमिका से अलग नहीं हो सकता। कुछ समय पहले ब्रिक्स देशों का 12वां शिखर सम्मेलन वीडियो के माध्यम से आयोजित हुआ। पांच देशों के नेताओं ने महामारी के खिलाफ सहयोग पर चर्चा की, ब्रिक्स के विकास की योजना बनायी और ब्रिक्स सहयोग व वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय स्थिति पर गहन रूप से विचार-विमर्श किया और व्यापक सहमति बनायी।
इस स्थिति में मीडिया संस्थाओं को ब्रिक्स देशों की शक्ति दिखानी चाहिए। ब्रिक्स देशों का प्रतिनिधित्व वाले विकासशील देशों की भावना का प्रचार करना चाहिए, ताकि ब्रिक्स देशों के लिए बेहतर अंतर्राष्ट्रीय वातावरण तैयार हो सके।
वैश्वीकरण विरोधी की विचारधारा, संरक्षणवाद और शीतयुद्ध की विचारधारा सक्रिय होने के मद्देनजर कुछ देशों और मीडिया संस्थाओं ने क्रमश: विकासशील देशों पर कालिख पोती। इस स्थिति में ब्रिक्स देशों के मीडिया संस्थाओं को बहुपक्षवाद पर कायम रहते हुए विकासशील देशों के बोलने का अधिकार बनाए रखना और उन्नत करना चाहिए और ब्रिक्स देशों के लोगों के बीच समझ और समर्थन मजबूत करना चाहिए।
आशा है कि विभिन्न पक्षों के समान प्रयास से ब्रिक्स देशों के मीडिया संस्थाओं के बीच सहयोग में अवश्य ही और अधिक उपलब्धियां हासिल होंगी और दुनिया को ब्रिक्स की जोरदार आवाज सुनाई जाएगी।
(साभार---चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग) (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 9 दिसंबर | सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई को पांच साल पहले पब्लिक बॉडी घोषित किया था। वेस्टइंडीज क्रिकेट ने भारतीय कोर्ट के फैसले को देखते हुए अपने आप को भी पब्लिक बॉडी घोषित किया है।
डॉन वेहबी की चैयरमैनशिप में गठित की गई टास्क फोर्स ने अपनी रिपोर्ट में भारतीय कोर्ट के आदेश का जिक्र किया है। इस टास्क फोर्स का गठन सीडब्ल्यूआई में कॉर्पोरेट गवर्नेस फ्रेमवर्क को रिव्यू करने, हितधारकों के भरोसे को बढ़ाने के लिए बदलावों की सिफारिश और ज्यादा पारदर्शिता, जवाबदेही लाने के लिए किया गया था।
वेहवी कि रिपोर्ट में बताया गया है, "बीते दशक की रणनीति में सीडब्ल्यूआई ने अपने प्रशासनिक ढांचे में हितधारकों को शामिल किया। यह इस बात को साबित करता है कि क्रिकेट इस क्षेत्र में जनतहित की बेहतरी के लिए है और यह की सीडब्ल्यूआई आम जिम्मेदारी का निर्वाहन करती है।"
रिपोर्ट में कहा गया है, "हमें इसे काफी ज्यादा तवज्जो देते हैं और इसलिए हम भारतीय सुप्रीम कोर्ट की उस बात का लिखते हैं जो क्रिकेट वेस्टइंडीज के लिए ठीक बैठती है, भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भारत में क्रिकेट जनहित के लिए है।"
रिपोर्ट में कहा गया है, "भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने जैसा कहा है कि क्रिकेट जनहित के लिए है और इसलिए उनका प्रबंधन और नियंत्रण एक सार्वजनिक काम है। सीडब्ल्यूआई को क्षेत्र के लोगों की तरफ से लोगों की बेहतरी के लिए यह लागू करना चाहिए।"
रिपोर्ट में बताया गया है कि सीडब्ल्यूआई आलोचनाओं का शिकार हो रही है और उसे लोगों के तरफ से समर्थन, विश्वास नहीं मिल रहा है, साथ ही हितधारकों से भी।
--आईएएनएस
यूएन, 09 दिसंबर | साल 2019 के अंत तक सात करोड़ 95 लाख लोग विस्थापित हो चुके थे जिनमें करीब तीन करोड़ शरणार्थी शामिल थे और यह विश्व आबादी का लगभग एक फीसदी है. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (यूएनएचसीआर) के मुताबिक प्रांरभिक आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 में और अधिक लोगों को पलायन करने के लिए मजबूर किया गया है, जिसके बाद विस्थापित होने वाले लोगों की संख्या आठ करोड़ को पार कर जाती है.
यूएनएचसीआर के प्रमुख फिलिपो ग्रैन्डी के मुताबिक, "हम अब एक और निराशाजनक मील के पत्थर को पार कर रहे हैं. यह तब तक बढ़ता रहेगा जब तक कि विश्व के नेता युद्ध नहीं रोकते हैं." युद्ध, यातना, संघर्ष और हिंसा से बचने के लिए लोग जान बचाकर घर छोड़ देते हैं, उन्हें अक्सर शिविरों में बहुत ही कठिन भरी जिंदगी बितानी पड़ती है. इसी साल मार्च महीने में संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने कोरोना महामारी के बीच वैश्विक युद्ध विराम की अपील की थी. इस महामारी के कारण अब तक 15 लाख से अधिक लोग जान गंवा चुके हैं.
बढ़ता विस्थापन
लेकिन जबकि कुछ गुटों ने इस अपील पर ध्यान दिया वहीं यूएनएचसीआर का कहना है कि 2020 की पहली छमाही के प्रारंभिक आंकड़ों से पता चला है कि सीरिया, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, मोजाम्बिक, सोमालिया और यमन में युद्ध और हिंसा के कारण ताजा विस्थापन हुआ है. अफ्रीका के केंद्रीय साहेल क्षेत्र में भी ताजा विस्थापन देखने को मिला है. वहां क्रूर हिंसा, बलात्कार और हत्याएं बढ़ीं हैं, जिससे लोग घर छोड़ कर भाग रहे हैं. ग्रैन्डी के मुताबिक, "जबरन विस्थापन की संख्या पिछले एक दशक में करीब दोगुनी हो चुकी है, वहीं अंतरराष्ट्रीय समुदाय शांति सुनिश्चित करने में विफल हो रहा है."
यूएन की एजेंसी का कहना है कि संघर्ष को शांत करने के बजाय कोरोना वायरस संकट ने "मानव जीवन के हर पहलू को बाधित किया है, जबरन विस्थापित और बिना देश वाले लोगों के लिए मौजूदा चुनौती और गंभीर हो गई है."
एजेंसी का कहना है कि कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए कुछ उपायों के कारण शरणार्थियों के सुरक्षित जगहों पर पहुंचना और कठिन बन गया है. कोरोना वायरस की पहली लहर के दौरान अप्रैल में 168 देशों ने पूरी तरह से या आंशिक रूप से अपनी सीमाएं सील कर दी थीं. यूएनएचसीआर का कहना है कि अब तक 111 देश ने शरण प्रक्रिया काम करती रहे इसके लिए "व्यावहारिक समाधान" खोज निकाला है. इसके बावजूद 2019 में इसी अवधि की तुलना में इस साल की पहली छमाही के दौरान नई शरण अर्जियों में एक तिहाई की गिरावट आई है |
फ्रांस, 09 दिसंबर | इरफान ठक्कर और उमर अहमद पेरिस के पास सेंट-प्री में रहते हैं और अहमदिया मुसलमान समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. 30 साल के ठक्कर इमाम हैं और स्थानीय मस्जिद में नियमित रूप से इमामत करते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में ठक्कर कहते हैं, "मैं फ्रेंच हूं.. और फिर भी मुझे यहां गैर मुसलमान को यह बात बार बार समझानी पड़ती है. बहुत से लोग सोचते हैं कि इस्लाम फ्रांस से मेल नहीं खाता, लेकिन यह सच नहीं है."
पास ही बैठे अहमद भी ठक्कर की बात से सहमति जताते हैं. वह कहते हैं, "हमारे साथ ऐसा बर्ताव होता है जैसे कि हम किसी और देश के नागरिक हैं, किसी और नस्ल के लोग हैं. इसकी वजह यह है कि मीडिया इस्लाम के बारे में तभी बात करता है जब कहीं पर कोई आतंकवादी हमला होता है."
इन दोनों को हाल में दिए गए फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों के उस भाषण पर एतराज है जिसमें उन्होंने कहा था कि इस्लाम संकट में है और साथ ही उन्होंने "कट्टरपंथी इस्लामी अलगाववाद" की बात भी की. ठक्कर कहते हैं, "वह ऐसा कैसे कह सकते हैं. यह तो बहुत ज्यादा कलंकित करने वाली बात है."
अहमद और ठक्कर का कहना है कि फ्रांस की सरकार जो नए कदम उठाने जा रही है उनसे समाज में मुसलमानों का अलगाव और बढ़ेगा.
मस्जिदों की निगरानी
फ्रांस में हाल में पेरिस और नीस के आसपास तीन आतंकवादी हमले हुए जिनमें कुल चार लोग मारे गए और दो लोग गंभीर रूप से घायल हो गए. इसके बाद ही फ्रांस की सरकार ने कट्टरपंथ की रोकथाम के लिए नए उपायों के बारे में सोचा है. सरकार ने लगभग 50 मुस्लिम संगठनों और 75 मस्जिदों की निगरानी बढ़ा दी है. फ्रांस का इरादा ऐसे लगभग 200 कट्टरपंथियों को देश से बाहर निकलाने का भी है जो फ्रांस के नागरिक नहीं हैं.
बुधवार को फ्रांस की कैबिनेट में पेश होने वाले बिल के तहत देश में सभी मस्जिदों की निगरानी बढ़ाई जाएगी. उन्हें मिलने वाली वित्तीय मदद और इमामों की ट्रेनिंग पर भी नजर रखी जाएगी. इसके साथ ही इंटरनेट पर नफरत फैलाने वाली सामग्री पोस्ट करने के खिलाफ भी नियम बनेंगे और सरकारी अधिकारियों को धार्मिक आधार पर डराने धमकाने पर जेल की सजा का प्रावधान भी होगा. यह बिल 2021 के शुरू में संसद में पहुंच सकता है जिसके कुछ महीनों बाद इसे कानून की शक्ल दी जा सकती है.
ठक्कर और अहमद मस्जिदों और संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त इमामों की निगरानी के खिलाफ नहीं हैं. अहमद कहते हैं, "यह हमारे भी हित में है कि इन कट्टरपंथी लोगों के खिलाफ कुछ किया जाए, जिनका इस्लाम को लेकर हमारी सोच से कोई वास्ता नहीं है. हमें भी अपने परिवारों को उनसे बचाना है."
मुसलमानों पर कंलक
आसिफ आरिफ एक वकील हैं और उनका संबंध भी अहमदिया समुदाय से है. उन्होंने एक किताब भी लिखी है जिसका शीर्षक है: फ्रांस में मुसलमान होने का मतलब. वह कहते हैं, "अब आतंकवादियों को मस्जिदों में कट्टरपंथी नहीं बनाया जाता, बल्कि यह काम इंटरनेट और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्कों के जरिए होता है."
आरिफ का कहना है कि फ्रांस की सरकार के कदमों से मुसलमानों की छवि को और नुकसान होगा. उनकी राय है, "आतंकवाद से लड़ने के लिए हमारे पास पहले ही पर्याप्त कानून हैं, जिन्हें आप दुनिया के सबसे सख्त आतंकवाद रोधी कानूनों में से एक मान सकते हैं." वह कहते हैं, "हमारी आजादी पर और पाबंदी लगाने वाले नए कानून लाने की बजाय सरकार को मौजूदा कानूनों को ही ठीक से लागू करना चाहिए."
दूसरी तरफ फ्रांस की सरकार इससे इनकार करती है कि वह इस्लाम को निशाना बना रही है. फ्रांस के राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता ने एक हालिया प्रेस कांफ्रेंस में डीडब्ल्यू को बताया, "हम इस्लाम से भयभीत नहीं हैं." उन्होंने कहा, "हम सिर्फ अपने गणतंत्र के मूल्यों को लागू करने की कोशिश कर रहे हैं." प्रवक्ता का कहना है कि कुछ मस्जिदें इंटरनेट पर नफरत भरी वाली सामग्री फैला रही हैं और उन्होंने इस बारे में पेरिस के पास स्थित ग्रांड मॉस्क ऑफ पेंटिन का जिक्र किया. इस मस्जिद ने एक वीडियो पोस्ट किया था जिसमें इतिहास पढ़ाने वाले सैमुएल पेटी की निंदा की गई थी. अपनी क्लास में पैगंबर मोहम्मद के कार्टून दिखाने के लिए हाल में पेटी की गला काट कर हत्या कर दी गई थी. 18 साल के एक चेचन मुसलमान ने अक्टूबर में पेटी का हत्या की.
वोटों की राजनीति
फ्रांस के शहर मार्से में इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च एंड स्टडीज ऑन अरब एंड मुस्लिम वर्ल्ड में राजनीति विज्ञानी फ्रांसुआ बुरगा कहते हैं कि जब बात धर्म की आती है तो सरकार तटस्थ नहीं रह पाती. वह फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों को निशाना बनाते हुए कहते हैं, "वह दक्षिणपंथियों और धुर दक्षिणपंथियों को खुश करने के लिए जरूरी कदम उठा रहे हैं क्योंकि उन्हें 2022 के राष्ट्रपति चुनाव में इन लोगों के वोट चाहिए."
बुरगा कहते हैं कि माक्रों को यह बात स्वीकार करनी ही होगी कि कट्टरपंथ फैलने में कुछ हिस्सेदारी तो देश की भी है. वह बताते हैं, "जब बात नौकरी की आती है तो मुसलमानों के साथ भेदभाव होता है और वे इस देश में खुद को अलग थलग पाते हैं." बुरगा कहते हैं कि ऐसे हालत में कुछ लोग कट्टरपंथ की तरफ चले जाते हैं. वह कहते हैं, "इस तरह की समस्याओं को मानने से हमारे इस देश में कट्टरपंथ से निपटने में मदद मिलेगी."
लंदन, 9 दिसम्बर | ब्रिटेन ने अपने सबसे बड़े टीकाकरण अभियान में से एक शुरू किया है। इस अभियान के तहत 81 वर्षीय विलियम शेक्सपियर पश्चिम के ऐसे दूसरे व्यक्ति बन गए हैं, जिन्हें फाइजर-बायोएनटेक की ओर से निर्मित कोरोनावायरस वैक्सीन दी गई है। शेक्सपियर को कैमरों के सामने टीका (वैक्सीन) लगाया गया। उन्होंने कहा कि उन्हें तो सुई लगाने का आभास तक नहीं हुआ। शेक्सपियर ने कहा कि उन्हें खुशी हो रही है कि वह इसमें योगदान दे रहे हैं।
ब्रिटेन में 90 साल की मार्गरेट कीनन को फाइजर-बायोएनटेक कोरोनावायरस वैक्सीन का पहला डोज मिलने के बाद विलियम शेक्सपियर नाम का वैक्सीनेशन किया गया है।
उत्तरी आयरलैंड की 90 साल की एक महिला कोविड-19 से बचाव के लिए फाइजर-बायोएनटेक द्वारा निर्मित टीका लगवाने वाली दुनिया की पहली शख्स बन गई हैं। मार्गरेट कीनन को टीका लगाए जाने के साथ ही ब्रिटेन के इतिहास के सबसे बड़े टीकाकरण कार्यक्रम की शुरूआत भी हो गई है।
चूंकि वैक्सीन पाने वाले दूसरे शख्स का नाम विलियम शेक्सपियर है, इसलिए जाहिर है सोशल मीडिया पर जब लोगों को यह पता लगा तो वे साहित्य के इतिहास की सबसे महान और चर्चित हस्तियों में से एक नाटककार विलियम शेक्सपियर को याद करने लगे। लोगों ने सोशल मीडिया पर कई दिलचप्स टिप्पणी भी की।
शनिवार को रूस ने अपनी स्पुतनिक-वी वैक्सीन के साथ टीकाकरण शुरू किया। चीन ने भी अपने स्वयं के घरेलू रूप से बनाए गए शॉट्स के साथ आम जनता को टीका लगाना शुरू कर दिया है। हालांकि इन दोनों कार्यक्रमों के अभी अंतिम चरण के ट्रायल बाकी हैं।
--आईएएनएस
बेटा यूरोप पहुंचकर फुटबॉलर बन जाए, बस. लेकिन सफर के दौरान बेटा मारा गया और तस्करों ने उसे समंदर में फेंक दिया. सेनेगल की अदालत ने अब बच्चे के पिता को सजा सुनाई है.
पश्चिम अफ्रीकी देश सेनेगल में अपने बेटों को यूरोप भेजने वाले तीन पिताओं को जेल की सजा सुनाई गई है. करीब दो साल की सुनवाई के बाद अदालत ने तीनों पिताओं को दो-दो साल जेल की सजा सुनाई. तीनों को "दूसरों का जीवन खतरे में डालने" का दोषी करार दिया गया.
अदालत ने माना कि तीनों पिताओं को पता था कि बच्चों को अंटलांटिक महासागर के जरिए यूरोप भेजने में जोखिम था, फिर भी उन्होंने ऐसा किया. पिताओं ने बच्चों को यूरोप ले जाने के लिए तस्करों को पैसा भी दिया. मामले का पता 15 साल के बच्चे डोडो की मौत के बाद चला.
2018 में नाव के जरिए अटलांटिक महासागर पार करने की कोशिश के दौरान डोडो की तबियत बिगड़ गई. उसे कोई इलाज नहीं मिला और उसकी मौत हो गई. तस्करों ने डोडो का शव समंदर में फेंक दिया.
गरीबी से निकलने की छटपटाहट
जांच में पता चला कि डोडो के पिता ने एक तस्कर को 380 यूरो दिए थे. तस्कर ने डोडो को स्पेन की फुटबॉल ट्रेनिंग एकेडमी पहुंचाने के वादा किया था. डोडो के साथ और परिवारों के बेटे भी थे. उनसे भी तस्करों ने एक बच्चे को इटली के फुटबॉल ट्रेनिंग सेंटर में भर्ती करवाने का वादा किया था. तीनों पिता मछुआरे हैं.
कैनरी द्वीप पर घुसने की नाकाम कोशिशों के बाद दो बच्चे लौट आए और उन्होंने डोडो की दर्दनाक कहानी बताई. इसके बाद डोडो के समर्थन में सेनेगल में प्रदर्शन हुए. गरीबी और किसी तरह यूरोप पहुंचने के दबाव को लेकर अभियान छिड़ गए.
अदालती सुनवाई के दौरान डोडो के पिता ने कोर्ट से कहा, "मैं उसके लिए सफलता के दरवाजे खोलना चाहता था. मैं दुआ के लिए उसे ओझाओं के पास भी लेकर गया. अगर मुझे पता होता कि वह कभी नहीं लौटेगा तो मैं ऐसा जोखिम हरगिज नहीं लेता."
बेटे की मौत से टूटे पिता ने अदालत में गिड़गिड़ाते हुए कहा, "मैं आपके सामने हूं लेकिन मेरी आत्मा मुझे पहले ही छोड़ चुकी है."
कई शव तैरते हुए तटों तक पहुंचते हैं
अफ्रीका और यूरोप के बीच जानलेवा समंदर
सेनेगल के तट से 100 किलोमीटर से ज्यादा दूरी पर स्पेन के कैनरी द्वीप हैं. यूरोप आने की चाहत रखने वाले कई अफ्रीकी किसी तरह इन द्वीपों तक पहुंचना चाहते हैं. तस्कर उन्हें खचाखच भरी कच्ची पक्की नावों में सवार करते हैं और अंधेरे में कैनेरी द्वीप के तटों पर उतरने के लिए मजबूर करते हैं.
यूएन के इंटरनेशनल ऑफिस फॉर माइग्रेशन के मुताबिक 2020 में इस कोशिश में 500 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. पिछले साल यह संख्या 210 थी. वहीं दूसरी तरफ शरणार्थियों की बढ़ती संख्या की वजह से यूरोप में दक्षिणपंथी राजनीति तेज हुई है. अब यूरोपीय देश आप्रवासियों को अपने तटों से दूर रखने की भरसक कोशिशें कर रहे हैं.
ओएसजे/एके (एएफपी)
पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर कोरोना वैक्सीन देने की योजना है लेकिन वहां टीका अभियानों को लेकर पहले से ही कॉन्सपिरेसी थ्योरी मौजूद है. देश में चीनी वैक्सीन देने की योजना है लेकिन साजिश के सिद्धांत कई बार जानलेवा होते हैं.
डॉ. मोहसिन अली ने भावी वॉलंटियरों से सभी तरह के सवाल सुने हैं, जिनमें कुछ सवाल ऐसे हैं-"क्या यह मेरी प्रजनन क्षमता को खत्म कर देगा? क्या इससे मेरी मौत हो जाएगी और क्या इसमें कोई 5जी चिप है और क्या यह लोगों को एकसाथ नियंत्रित करने की साजिश है?" इस्लामाबाद के शिफा अस्पताल में काम करने वाले डॉ. मोहसिन अली ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि वे इस तरह के कई सवालों का सामना कर चुके हैं.
डॉ. अली कहते हैं, "मैं उन्हें तर्क के साथ जवाब देने की कोशिश करता हूं, कुछ उसके बाद भी इनकार कर देते हैं." पाकिस्तान में कुछ और अस्पताल के अलावा चीनी कंपनी कैनसिनो द्वारा बनाई गई वैक्सीन का तीसरे चरण का ट्रायल इस अस्पताल में भी चल रहा है. सरकार ने पिछले हफ्ते घोषणा की थी कि वह वैक्सीन प्राप्त करने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है लेकिन उसने यह साफ नहीं किया है कि वह कैनसिनो से ही वैक्सीन खरीदेगी या किसी अन्य कंपनी से.
पिछले महीने हुए गैलप सर्वे के मुताबिक देश में एक बार टीका उपलब्ध हो जाता है तो 37 फीसदी आबादी को वह मिल पाएगा. गैलप के एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर बिलाल गिलानी के मुताबिक, "टीका के प्रतिरोध के इतिहास को देखते हुए यह ना केवल पाकिस्तान बल्कि दुनिया के लिए चिंताजनक है क्योंकि वायरस को रोकने के लिए पूरी दुनिया में टीकाकरण निर्भर करता है."
पाकिस्तान में पोलियो अभियान कई बार निशाने पर आ चुके हैं.
पूरी दुनिया में टीका विरोधी भावनाओं का मुकाबला एक बड़ी समस्या है लेकिन पाकिस्तान किसी और देश के मुकाबले कहीं ज्यादा खतरनाक है. पोलिया अभियान के दौरान दर्जनों लोग हमलों में मारे जा चुके हैं. पोलियो अभियान में शामिल टीमों पर हमले होना आम बात है, ऐसा ही कुछ हाल पड़ोसी देश अफगानिस्तान का है.
भरोसे की कमी
पोलियो के खतरे को लेकर दशकों से सभी लोग अच्छे तरीके से परिचित हैं लेकिन कोविड-19 एक नई बीमारी है और अधिकारी इसके बारे में तत्काल संदेश देने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. पाकिस्तान में टीके के प्रभावशीलता का अध्ययन करने वाले सऊदी अरब की अल-जाफ यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर तौकीर हुसैन मलही कहते हैं, "कई लोग अब भी मानते हैं कि यह असली बीमारी नहीं है."
मौलवी किबला अयाज जो कि देश के सर्वोच्च धार्मिक परिषद के अध्यक्ष हैं और सरकार को सामाजिक और न्यायिक मुद्दों पर राय देते हैं, कहते हैं कि कोविड-19 से जुड़ी कई तरह की अफवाह पश्चिम से फैल रही है और इसका प्रसार सोशल मीडिया से हो रहा है. अयाज कहते हैं, "अभी तक कई विद्वानों ने टीका और इलाज को महत्वपूर्ण बताया है लेकिन हमेशा कट्टर लोग होते हैं, जैसा कि पोलियो अभियान के दौरान देखा गया है."
एए/सीके (रॉयटर्स)