विचार / लेख

समलैंगिक मुसलमानों के लिए अभिव्यक्ति का जरिया बना सोशल मीडिया
23-Jan-2021 12:41 PM
समलैंगिक मुसलमानों के लिए अभिव्यक्ति का जरिया बना सोशल मीडिया

बांग्लादेश में खतरनाक है खुलकर कहना कि होमोसेक्सुअल हैं

अल्पसंख्यकों के साथ तो भेदभाव होता ही है, खुद अल्पसंख्यक समुदाय में भी मुख्यधारा के बाहर के लोगों के साथ भेदभाव होता है. मुस्लिम समलैंगिक अपने साथ होने वाले भेदभाव के खिलाफ सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं.

    डॉयचे वैले पर आकांक्षा सक्सेना का लिखा-

सोशल मीडिया पर एक समलैंगिक मुसलमान समुदाय अपने साथ होने वाले व्यापक भेदभाव और उत्पीड़न के खिलाफ सामाजिक चेतना जगा रहा है. और काफी कम समय में यह प्रोजेक्ट दक्षिण एशिया के प्रमुख देशों में समलैंगिक अधिकारों की अभिव्यक्ति की मिसाल बनकर सामने आया है. शहामत उद्दीन मुस्लिम बहुल बांग्लादेश में हाशिए पर रहने वाले समलैंगिक समुदाय का हिस्सा हैं. बांग्लादेश में एलजीबीटी समुदाय के साथ हो रही हिंसा और उत्पीड़न की कई घटनाओं ने शहामत को झकझोर दिया. हाल ही में वे सुरक्षा और बेहतर भविष्य की तलाश के लिए अमेरिका चले गए.

शुलहाज मन्नान की 2016 में हुई हत्या ने उनको सबसे ज्यादा परेशान किया. मन्नान और एक अन्य समलैंगिक कार्यकर्ता, महबूब रब्बी टोनॉय को कुछ चरमपंथियों ने कुल्हाड़ी से मौत के घाट उतार दिया था. बांग्लादेश में अल-कायदा ने इन हत्याओं की जिम्मेदारी ली थी. मन्नान बांग्लादेश की पहली और एकमात्र एलजीबीटी पत्रिका रूपबान के संस्थापक थे. बांग्लादेश के समलैंगिक समुदाय के कई सदस्यों का नाम धार्मिक चरमपंथी समूहों द्वारा अपनी "हिट लिस्ट" में प्रकाशित किया गया था और इस हमले के बाद वे विदेशों में छिपने या भागने के लिए मजबूर हो गए थे. कई कार्यकर्ताओं ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट भी बंद कर दिए. बांग्लादेशी कानून के तहत समलैंगिकता अवैध है.

'द क्वीयर मुस्लिम प्रोजेक्ट'
समलैंगिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले शुलहाज मन्नान ने शहामत को बहुत प्रेरित किया था. शहामत भी एक ऐसे मंच की तलाश में थे, जहां वह खुद को अभिव्यक्त कर सकें. आखिरकार वे दक्षिण एशिया के मुस्लिम समलैंगिकों के ऑनलाइन समुदाय 'द क्वीयर मुस्लिम प्रोजेक्ट' से जुड़े. शहामत के एक पोस्ट में लिखा गया, "क्वीयर होना एक राजनैतिक उपद्रवी होना है, मैं तुमसे प्यार करता हूं शुलहाज और तुम्हारी वजह से मुझे पता चला है कि ईश्वर ने हमें भूरा, मुसलमान, समलैंगिक, और राजनैतिक उपद्रवी क्यों बनाया? यह प्रोजेक्ट दक्षिण एशिया के समलैंगिक मुसलमानों के बयानों और अभिव्यक्ति को छापने वाली एक ऑनलाइन श्रृंखला है.

रफीउल अलोम रहमान ने 2017 में यह प्रोजेक्ट शुरू किया. रफीउल धर्म और सेक्सुअलिटी के बीच के संबंधों पर पीएचडी कर रहे थे. उन्हें लगा कि भारत में अभिव्यक्ति के लिए एक प्लेटफार्म की सख्त जरूरत है और वह पढाई छोड़कर वापस आ गए. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "मुख्य धारा के इस्लामिक दर्शन में समलैंगिक अधिकारों के बारे में बात करने के लिए बहुत सीमित स्थान है. मैं एक ऐसी जगह चाहता था जहां समलैंगिक मुसलमान एक साथ आ सकें और भरोसे के माहौल में विचारों का आदान-प्रदान कर सकें."

यह स्पेस सोशल मीडिया तक सीमित नहीं है. यहां वर्कशॉप, परामर्श और बैठकें होती हैं जहां समुदाय के सदस्य अपने अनुभव साझा करते हैं. कोरोना महामारी से पहले कुछ वर्कशॉप दिल्ली में होती रहीं हैं, लेकिन अब वे ज्यादातर दुनिया भर से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर होती हैं. रफीउल अलोम रहमान कहते हैं, "यह एक आंखें खोलने वाला अनुभव रहा है. जब हमने लोगों पर हुए शोषण की आश्चर्यजनक और उदास कर देने वाली कहानियों को सुना, तो हमें महसूस हुआ कि मानसिक स्वास्थ्य हमारे समुदाय की जरुरत है."

'मेरी अभिव्यक्ति की जगह'
एक ऐसी ही बैठक ने कबीर (बदला हुआ नाम) का नजरिया बदल दिया. कबीर ने हमें बताया, "समलैंगिकता पाप है, बचपन से यही सुना था. जब मैं मस्जिद में जाता था और अन्य लड़कों की ओर आकर्षित होता था तो मेरे अंदर बहुत अंतरविरोध चलते थे. मुझे बहुत अपराधबोध होता था और मुझे अकेलापन महसूस होता था." उन्होंने कहा कि उनका संघर्ष और अकेलापन उन पर भारी पड़ता था. वह गुमसुम, उदास और अकेले रहने लगे.

कबीर ने डॉयचे वेले से कहा, "मैं रमजान के दौरान मुस्लिम समलैंगिक समुदाय के एक इवेंट में गया था. मैं बहुत घबराया हुआ और डरा हुआ था, लेकिन किसी तरह इसमें शामिल होने की ख्वाहिश मन में थी. वहां जाकर अच्छा लगा, ऐसा लगा कि यह मेरी अभिव्यक्ति की जगह थी." समलैंगिक समुदाय के समर्थन की वजह से ही कबीर ने अपने माता-पिता को अपने समलैंगिक होने की बात बताई. उन्होंने कहा, "जब मैंने अपनी मां को बताया तो मुझे बहुत प्रतिकूल प्रतिक्रिया की आशंका थी. मेरे लिए उन्हें समझाना बहुत मुश्किल था और मैं रो पड़ा. लेकिन मेरी मां ने मुझे सीने से लगाया और अपना लिया. मुझे स्वीकार किए जाने से मैं खुश हूं."

अल्पसंख्यकों में भी अल्पसंख्यक
रफीउल कहते हैं, "हमें सोशल मीडिया पर अभद्र टिप्पणियों के साथ ट्रोल किया जाता है. हाल ही में, एक रूढ़िवादी मुस्लिम समूह ने हमें होमोफोबिक तरीके से सार्वजनिक रूप से अपमानित किया. कुछ लोग हमें धर्म पर लगा काला धब्बा बोलते हैं. यह उन लोगों की सामान्य प्रतिक्रिया है जो हमें समझने के लिए कोई पहल नहीं करते हैं."

मुस्लिम समलैंगिक अल्पसंख्यकों को लेकर अन्य समलैंगिक लोगों में भी वैचारिक मतभेद हैं. रफीउल कहते हैं, "वे कहते हैं कि हम समलैंगिक समुदाय को विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं. कभी-कभी ये टिप्पणियां इस्लाम विरोधी भी होती हैं. हमें बताया जाता है कि इस्लाम एक रुढ़िवादी धर्म है और हम मुस्लिम दक्षिणपंथियों को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं. हमें रूढ़िवादी और उग्रपंथी समझा जाता है."

आशा और उम्मीद
सालेहा अयान सलाम एक ट्रांस महिला हैं और उन्होंने एक खूबसूरत गुलाबी साड़ी में और बिंदी लगाए एक तस्वीर के साथ यह पोस्ट लिखा है. "मैं हथकरघे से बनी इस साड़ी के माध्यम से अपने जेंडर की पहचान और सांस्कृतिक पहचान सबके सामने रखना चाहती हूं." सालेहा कहती हैं, "मुझे उम्मीद है कि मेरे अनुभवों को साझा करने से ट्रांस लोगों और समलैंगिक लोगों के लिए समाज की समझ में बदलाव आएगा."

रफीउल को भी उम्मीद है कि अधिक लोग उन्हें स्वीकार करने में सक्षम होंगे. लेकिन इस जटिल पहचान को उजागर करना एक दोधारी तलवार है. वह कहते हैं, "हमारी बातचीत बड़े पैमाने पर अंग्रेजी में ही हो रही है और शहरों तक सीमित है. हम लोगों को जोखिम में डालना और उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते हैं. कई समलैंगिक लोग हमसे पाकिस्तान, मलेशिया, इंडोनेशिया, इराक और बांग्लादेश से जुड़े हैं लेकिन हमें अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है."
(dw.com)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news