संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कोरोना पॉजिटिव लोगों के नाम उजागर किए जाएं...
04-Sep-2020 7:12 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कोरोना पॉजिटिव लोगों के  नाम उजागर किए जाएं...

हिन्दुस्तान के कुछ दूसरे हिस्सों की तरह छत्तीसगढ़ में कोरोना पॉजिटिव रफ्तार से बढ़ रहे हैं। शुरुआती महीनों में छत्तीसगढ़ में रफ्तार कुछ कम रही लेकिन अब इस तेजी से बढ़ रही है कि लोगों को अपने घर पहुंचते हुए कई रास्ते बदलकर जाना पड़ता है क्योंकि जहां ज्यादा कोरोना पॉजिटिव निकल गए हैं वहां रास्ते बंद कर दिए गए हैं। जिन घरों में कोरोना पॉजिटिव हैं वहां दरवाजों पर प्रशासन नोटिस चिपका रहा है, और उन घरों के सामने पुलिस के रोड स्टॉपर लगाकर लोगों की आवाजाही रोक दी जा रही है। अब सरकार की कोई सावधानी, अगर है भी तो, वह किसी काम की नहीं रह गई है क्योंकि लॉकडाऊन खुल गया है, लोग बाजारों में घूम-घूमकर खेलों और रेस्त्रां में खाते दिख रहे हैं, दुकानों में धक्का-मुक्की चल रही है, दारू के कारोबार में देह का देह से भाईचारा अभूतपूर्व प्यार-मोहब्बत का दिख रहा है। 

अब ऐसी नौबत में सरकार दुबारा लॉकडाऊन करती है, तो बहुत से लोगों की जिंदगी मुश्किल हो जाना तय है। हम घिसी-पिटी जुबान में यह तो नहीं कहेंगे कि लोग भूखे मर जाएंगे, क्योंकि केन्द्र और राज्य सरकार की जितने किस्म की मुफ्त-अनाज योजनाएं हैं, उनके चलते देश में किसी का भूखा मरना अब तकरीबन नामुमकिन रह गया है। लेकिन जिंदा रहने लायक अनाज पेट में जाए, उससे अधिक भी कई खर्च जरूरी रहते हैं, और वहां पर लॉकडाऊन लोगों की कमर तोड़ चुका है। इसलिए अब वह कोई विकल्प नहीं दिख रहा है। यह भी समझने की जरूरत है कि केन्द्र सरकार ने लॉकडाऊन में ढील के जो ताजा हुक्म दिए हैं, उनमें यह कहा गया है कि केन्द्र से इजाजत लिए बिना राज्य अपने स्तर पर कोई और प्रतिबंध लागू नहीं करेंगे। यह बात आदेश में लिखी जरूर है, लेकिन हमें यह राज्य के अधिकार क्षेत्र में केन्द्र की एक नाजायज दखल लगती है क्योंकि कोई भी राज्य अपने जिले के स्तर पर किसी भी तरह का प्रतिबंध लगाने के लिए आजाद है, अगर वह व्यापक जनजीवन से जुड़ा हुआ कोई मुद्दा है। लेकिन आज यहां चर्चा का मुद्दा केन्द्र और राज्य के बीच की तनातनी के लायक एक और मुद्दे को उठाना नहीं है, बल्कि यह चर्चा करना है कि देश के किसी भी राज्य में कोरोना के फैलाव को रोकने के लिए क्या-क्या किया जा सकता है? 

राज्य सरकार के पास रोज लिस्ट तैयार होती है कि कौन-कौन व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव निकले हैं। उनका पता, उनके फोन नंबर भी सरकार के पास रहते हैं। इसके बाद उनके घर पर पोस्टर चिपकाया जाता है, आसपास चारों तरफ दवा छिडक़ी जाती है, और बैरियर लगाया जाता है। कुल मिलाकर जिस परिवार में कोई पॉजिटिव है, उसके बारे में लोगों को सतर्क किया जाता है कि वे उस घर में न जाएं, उस घर के लोगों से न मिलें, और उस घर के लोगों से भी कहा जाता है कि वे बाहर न निकलें। अब यहां हमारे मन में एक सवाल यह आता है कि क्या सरकार को कोरोना पॉजिटिव निकले हुए लोगों के नाम सार्वजनिक रूप से उजागर करना चाहिए? बहुत से प्रमुख लोग जो सरकार या राजनीति में बड़े ओहदों में हैं, या सामाजिक रूप से चर्चित और मशहूर हैं, वे तो कोरोना पॉजिटिव आते ही सोशल मीडिया पर तुरंत यह बात पोस्ट कर देते हैं, और अपने संपर्क में आए हुए लोगों को सावधान रहने भी कह देते हैं। लेकिन जो ऐसे चर्चित नहीं हैं, और जो खुद होकर सोशल मीडिया पर यह बात नहीं लिखते हैं, उनके संपर्क में हाल ही में आए हुए लोगों का क्या? किसी दुकान से सामान खरीदकर जाने वाले को अगले दिन यह कैसे पता लगेगा कि वह दुकानदार कोरोना पॉजिटिव निकला है? कैसे उसके संपर्क में आने वाले लोग बाकी परिवार के साथ संपर्क में सावधानी बरत सकेंगे?
यहां पर निजता का सवाल उठता है, और चिकित्सा विज्ञान के नीति-सिद्धांतों का भी। चिकित्सा विज्ञान किसी मरीज की जानकारी को उजागर करने के खिलाफ है। यही वजह है कि टीबी या एचआईवी जैसी गंभीर बीमारियों वाले लोगों के नाम भी उजागर नहीं किए जाते हैं, जबकि ऐसे मरीजों के संपर्क में आने से दूसरे लोगों को भी संक्रमण का खतरा हो सकता है। अभी कोरोना को पूरी दुनिया में महामारी का दर्जा देकर महामारी के लिए बने हुए अलग कड़े कानून पर अमल किया जा रहा है। जनता को संक्रमण से बचाने के लिए अगर सरकार चाहे तो वह तमाम कोरोना पॉजिटिव लोगों के नाम उजागर कर सकती है। उनके परिवार, उनके कारोबार तो वैसे भी उजागर हो जाते हैं क्योंकि वहां पर सरकारी नोटिस चिपका दिया जाता है, घेरेबंदी कर दी जाती है। लेकिन सरकार के पास नाम रहते हुए भी सरकार इन नामों को उजागर नहीं करती है, तो उनके संपर्क के लोगों को सावधान होने का मौका नहीं मिल सकता, और महज घर-दुकान में लगे नोटिस देखने वाले लोग ही सावधान हो सकते हैं। 

हमारा मानना है कि सेक्स-संबंधों से आमतौर पर होने वाले एचआईवी जैसे संक्रमण से परे अभी का कोरोना तो बिना किसी सामाजिक बदनामी वाला ऐसा संक्रमण है जो कि किसी को भी हो सकता है, बहुत सावधान रहने वाले लोगों को भी हो सकता है। इसलिए सरकार को और समाज में निजता की रखवाली करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी इस बारे में सोचना चाहिए कि क्या कोरोना पॉजिटिव लोगों के नाम-पते उजागर करना बाकी समाज की जिंदगी को बचाने के लिए एक बेहतर फैसला होगा, या इसका नुकसान अधिक होगा। हमारा निजी मानना यह है कि यह किसी किस्म की बदनामी वाली बात नहीं है कि कोई कोरोना पॉजिटिव निकले हैं, यह महज सावधानी की बात है कि बाकी तमाम लोगों को यह बात पता लग जाए और लोग उनसे संपर्क करना बंद कर दें। यह भी सोचना चाहिए कि आज अगर किसी को नाम उजागर होने से चार दिन की असुविधा भी होती है, तो भी पहले के चार दिनों में उनके संपर्क में आने वाले लोगों को यह सावधानी बरतने की चेतावनी मिल जाएगी कि वे अपने आपको अपने परिवार के बीच, अपने कारोबार के बीच कुछ अलग-थलग रखें। सरकारों को अपने राज्य में दस-बीस हजार, या कुछ लाख लोगों की नाराजगी की फिक्र किए बिना बाकी करोड़ों लोगों की सेहत की फिक्र करनी चाहिए। महामारी कानून के तहत सरकार को अंधाधुंध अधिकार इसीलिए दिए गए हैं कि सरकार निजता जैसे मुद्दों को कुछ देर के लिए अलग रखे, और लोगों को सावधान करने, लोगों के सावधान रहने का इंतजाम करे। 

आज समझदार लोग खुद होकर अपने बारे में लोगों को मैसेज भी कर रहे हैं कि वे कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं, और पिछले दिनों उनके संपर्क में आने वाले लोग सतर्क हो जाएं। ऐसी सतर्कता से लोग अगर संक्रमण हो चुका है, तो उससे तो नहीं बच सकते, लेकिन अपने आसपास के और लोगों के अधिक संपर्क में आने से परहेज जरूर कर सकते हैं। आज निजता का मुद्दा महत्वपूर्ण नहीं है। जब असाधारण परिस्थितियां रहती हैं, तो असाधारण फैसले भी लेने पड़ते हैं, असाधारण सावधानी भी बरतनी पड़ती है। ऐसे में कई साधारण अधिकार कुछ वक्त के लिए निलंबित किए जा सकते हैं। और हमने महामारी के कानून के बारे में और कोरोना संक्रमण से लोगों को बचाने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे तरीकों के बारे में जितना पढ़ा और समझा है, उससे यही बात लगती है कि घर-दफ्तर के बाहर पोस्टर चिपकाने के बाद अब और कोई निजता नहीं बचती है, और सरकार को खुलकर कोरोना पॉजिटिव लोगों के नाम उजागर करने चाहिए ताकि उनके संपर्क में आए बहुत से और लोग अपने को एक सीमित दायरे में रखें, संक्रमण को आगे बढ़ाने से बचें। 

इस बारे में सोशल मीडिया पर अब तक हमें कहीं चर्चा नहीं दिखी है, इसलिए आने वाले दिनों में इसके पहले कि कोरोना संक्रमण पूरी तरह बेकाबू हो जाए, सरकार और समाज को खुद होकर निजता छोडऩी चाहिए, और इस संक्रमण के होने पर नाम उजागर करना चाहिए। अगर कोई बचाव हो सकता है, तो वह संक्रमित लोगों के अधिक संपर्क से बचकर ही हो सकता है, और महज पड़ोस को बचाकर पिछले दिनों के संपर्कों का बचाव नहीं हो सकता। कोरोना पॉजिटिव होना किसी कलंक की बात नहीं है, और इस बारे में लोगों को भी खुलकर हौसला दिखाना चाहिए, सोशल मीडिया पर सक्रिय लोग दिखा भी रहे हैं, लेकिन संक्रमित आम जनता तो सोशल मीडिया पर नहीं है इसलिए कोई भी व्यापक काम तो सरकार के किए हुए ही हो सकता है, सरकार के बिना नहीं। और कोरोना जांच आंकड़े और लोगों की जानकारी भी सिर्फ सरकार के ही पास है, उसे ही महामारी कानून के तहत इसे उजागर करने का हक है, और हमारा मानना है कि आज मुफ्त में हासिल इंटरनेट और सोशल मीडिया से सरकार को तुरंत ही यह काम शुरू करना चाहिए, ताकि और लोगों को बचाया जा सके। वरना वह वक्त दूर नहीं है जब यह फैलाव पूरी तरह बेकाबू हो जाए। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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