निरक्षरता बचाव का हथियार?
पूर्व आबकारी मंत्री और विधायक कवासी लखमा इस समय 2100 करोड़ रुपये के कथित शराब घोटाले में जेल में हैं। रायपुर सेंट्रल जेल में ईओडब्ल्यू उनसे लगातार पूछताछ कर रही है। लखमा का बचाव यही है कि वे पढ़े-लिखे नहीं हैं और अफसरों ने जहां दस्तखत करने के लिए कहा, उन्होंने वहां कर दिया।
हालांकि, अभी इस मामले की जांच जारी है। केस डायरी कोर्ट में पेश नहीं हुई है और सुनवाई के बाद ही फैसला आएगा। कैसा भी फैसला हो, उस फैसले के खिलाफ ऊपर की अदालतों में अपील की संभावनाएं भी रहेंगी। लेकिन कानूनी नजरिये से बड़ा सवाल यह है कि लखमा का यह बचाव कानून के धरातल पर कितना टिकेगा?
विधि के कुछ जानकारों का मानना है कि भारतीय कानून का एक सामान्य सिद्धांत यह है कि कानून की अज्ञानता कोई बहाना नहीं हो सकती। लेकिन यहां मामला सिर्फ कानूनी अज्ञानता का नहीं, बल्कि दस्तावेजों और तथ्यों की जानकारी न होने का है।
अदालत ऐसे मामले में जांच कर सकती है कि क्या वास्तव में आरोपी अशिक्षा के कारण घोटाले की जानकारी नहीं रखता था? क्या दस्तावेजों पर बिना समझे हस्ताक्षर किए गए, या फिर यह एक सोची-समझी भागीदारी थी? आरोपी को इस घोटाले से कोई आर्थिक या अन्य व्यक्तिगत लाभ हुआ या नहीं और क्या परिस्थितिजन्य साक्ष्य आरोपी के खिलाफ जाते हैं?
यदि अदालत को यह विश्वास हो जाता है कि लखमा अनजाने में किसी षड्यंत्र का हिस्सा बने और उन्हें कोई व्यक्तिगत लाभ नहीं हुआ, तो सजा कम हो सकती है या वे पूरी तरह बरी भी हो सकते हैं। लेकिन यदि उनकी संलिप्तता साबित होती है, तो खुद को अनपढ़ बताना बचाव के लिए पर्याप्त नहीं होगा।
1988 के भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1)(डी) के तहत, यह साबित करना जरूरी होता है कि आरोपी ने जानबूझकर अपने पद का दुरुपयोग किया। अदालतें कई मामलों में मान चुकी हैं कि अशिक्षा अपने आप में बचाव नहीं हो सकती। खासकर जब कोई व्यक्ति मंत्री जैसे उच्च पद पर हो, तो उसे अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों की बुनियादी समझ होती है।
न्यायिक फैसला साक्ष्यों, वकीलों की जिरह और अदालत के दृष्टिकोण पर निर्भर होगा। लेकिन यहां एक बात साफ हो रही है कि वैसे तो शिक्षा हमेशा ताकत होती है, मगर कुछ परिस्थितियों में निरक्षरता को भी बचाव के लिए हथियार बनाया जा सकता है।
लखमा ने पायलट से कहा
प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सचिन पायलट रायपुर आए, तो पार्टी में काफी हलचल रही। यहां आने के बाद वो नेता प्रतिपक्ष डॉ.चरणदास महंत, और प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के साथ सेंट्रल जेल में बंद पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा से मिलने पहुंचे।
बताते हैं कि पायलट से चर्चा के दौरान पूर्व आबकारी मंत्री लखमा मायूस थे। इसकी वजह यह भी थी कि पायलट से मुलाकात खत्म होने के बाद ईओडब्ल्यू-एसीबी की टीम उनसे पूछताछ के लिए पहुंचने वाली थी। कवासी ने पायलट को दुखड़ा सुनाया कि उनका प्रकरण से कोई लेना देना नहीं है। उन्हें फंसाया गया है। ईडी और ईओडब्ल्यू-एसीबी ने दोनों ने अलग-अलग प्रकरण दर्ज कर रखा है। एक प्रकरण में जमानत होती है, तो उसी प्रकरण में ईओडब्ल्यू-एसीबी गिरफ्तार कर लेती है।
लखमा ने कहा कि जमानत के लिए निचली अदालत से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक जाना होता है। ऐसे में तुरंत राहत मिलना मुश्किल है। पायलट ने उन्हें दिलासा दिया, और भरोसा दिया कि पूरी पार्टी उनके साथ है।
चैम्बर चुनाव का भविष्य
छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े व्यापारिक संगठन चैम्बर ऑफ कॉमर्स के चुनाव चल रहे हैं। दशकों बाद यह पहला मौका है जब अध्यक्ष, महासचिव और कोषाध्यक्ष पद पर निर्विरोध निर्वाचन के आसार दिख रहे हैं।
शुरूआती दौर में दिवंगत महावीर अग्रवाल जैसे बड़े व्यापारी नेता थे, जो निर्विरोध अध्यक्ष बन जाते थे। बाद में व्यापारियों की सदस्य संख्या बढ़ती गई, और अब 27 हजार से अधिक व्यापारी चैम्बर के सदस्य बन चुके हैं। चैम्बर चुनाव में कांग्रेस और भाजपा की भी दिलचस्पी रही है।
राज्य बनने के बाद चैम्बर में तत्कालीन सीएम अजीत जोगी ने भी दखल देने की कोशिश की, लेकिन वो सफल नहीं हो पाए। बिलासपुर में चैम्बर का एक नया संगठन खड़ा हो गया। मगर मौजूदा चैम्बर की ताकत में कमी नहीं आई। ये अलग बात है कि चैम्बर में अग्रवाल व्यापारियों की जगह सिंधी व्यापारी ताकतवर हो चुके हैं। हालांकि निवर्तमान अध्यक्ष अमर पारवानी ऐसे सिंधी व्यापारी नेता हैं जिन्होंने अग्रवाल समाज को भी साधकर रखा है।
पारवानी से पहले पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी का चैम्बर में दबदबा रहा है, लेकिन अब परिस्थिति काफी बदल गई है। और अब जब दोनों साथ आ गए हैं, तो निर्विरोध निर्वाचन की स्थिति बनती दिख रही है। बड़े व्यापारी सतीश थौरानी का अध्यक्ष, महासचिव पद पर अजय भसीन व कोषाध्यक्ष पद पर निकेश बरडिय़ा का निर्विरोध निर्वाचन तय दिख रहा है।
अध्यक्ष पद के लिए ललित जैसिंघ ने दावेदारी ठोकी थी, लेकिन वो बाद में समझाइश देने पर पीछे हट गए। रायगढ़ जैसे कुछ जगहों पर विवाद की स्थिति बनी है, लेकिन वहां भी निर्विरोध निर्वाचन के लिए प्रयास हो रहे हैं। कुल मिलाकर महावीर अग्रवाल वाला दौर आता दिख रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
दुर्लभ कैराकल की चर्चा
इस समय सोशल मीडिया पर भारत की सबसे दुर्लभ जंगली बिल्लियों में से एक ‘कैराकल’ की चर्चा हो रही है। यह पहली बार राजस्थान के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में कैमरा ट्रैप में देखी गई है। राजस्थान के वन मंत्री संजय शर्मा ने इसकी एक तस्वीर सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट की है। कैराकल एक रहस्यमयी और नाइट विजन वाली छोटी जंगली बिल्ली है, जिसकी सबसे खास पहचान उसके काले गुच्छेदार लंबे कान होते हैं। ‘कैराकल’ नाम तुर्की के ‘करकुलक’ शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘काले कान’। यह इतनी तेज होती है कि उड़ते हुए पक्षियों को भी झपट कर पकड़ सकती है! इतिहास में इसे शाही शिकारी बिल्ली माना जाता था, जिसका जिक़्र ‘शाहनामा’ और ‘तूतीनामा’ जैसे ग्रंथों में भी है। भारत में अब 50 से भी कम कैराकल बचे हैं, और ये केवल राजस्थान और गुजरात के कुछ इलाकों में पाए जाते हैं।