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‘ट्रंप पुतिन की तरह सोचते हैं’-क्या ये उदारवादी वल्र्ड ऑर्डर का अंत है?
03-Mar-2025 10:35 PM
‘ट्रंप पुतिन की तरह सोचते हैं’-क्या ये उदारवादी वल्र्ड ऑर्डर का अंत है?

-ग्रिगोर अतानेसियन

यूक्रेन पर हमले के बाद तीन साल तक, अमेरिका और उसके सहयोगियों ने रूस का बहिष्कार किया और उसे अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन का दोषी माना।

अब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अलग रुख अपनाया है।

ट्रंप रूस के साथ अमेरिका के संबंधों को फिर से स्थापित कर रहे हैं। वो रूस को हमलावर कहने या यूक्रेन को युद्ध में पीडि़त घोषित करने से इंकार कर रहे हैं।

शुक्रवार को डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की की बैठक हुई। इस दौरान यूक्रेन में युद्ध और इसे समाप्त करने के तरीके के बारे में खुलकर बहस हुई।

व्हाइट हाउस में ट्रंप और ज़ेलेंस्की के बीच हुई तीखी नोकझोंक के बाद कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि अब ‘उदार विश्व व्यवस्था’ खत्म होने वाली है। इस बड़े दावे में कितनी वास्तविकता है?

उदारवादी नेतृत्व का दौर

‘लिबरल वर्ल्ड ऑर्डर’ प्रतिबद्धताओं, सिद्धांतों और मानदंडों पर बनाए गए अंतरराष्ट्रीय संबंधों की एक व्यवस्था है। इसके मूल में अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र की महासभा और सुरक्षा परिषद जैसी संस्थाएं हैं।

‘उदार विश्व व्यवस्था’ मुक्त व्यापार जैसे मूल्यों का भी प्रतिनिधित्व करती है, जिसे विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी संस्थाएं बरकरार रखती हैं।

इसमें सबसे बड़ी धारणा ये वैचारिक मान्यता है कि पश्चिमी उदार लोकतंत्र, सरकार के सर्वश्रेष्ठ मॉडल का प्रतिनिधित्व करता है। अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन को संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्तावों या अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसलों के जरिए आधिकारिक रूप से उठाया जा सकता है।

ऐसे में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद आर्थिक प्रतिबंध लगा सकती है या चरम मामलों में सैन्य कार्रवाई को अधिकृत कर सकती है।

हालांकि, अक्सर प्रतिबंध और सैन्य हस्तक्षेप संयुक्त राष्ट्र की मंजूरी के बिना अमल में लाए जाते हैं। रूस इसकी लंबे समय से आलोचना करता रहा है।

साल 2007 के म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में बोलते हुए, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने घोषणा की थी, ‘बल का इस्तेमाल केवल तभी वैध माना जा सकता है, जब संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसे मंज़ूरी दी गई हो। और हमें नेटो या यूरोपीय संघ को यूएन जैसी अहमियत देने की ज़रूरत नहीं है।’

यूक्रेन पर आक्रमण करके, रूस ने न केवल कई देशों की नजऱ में अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन किया, बल्कि वैश्विक मामलों के संचालन के तरीके को भी चुनौती दी।

साल 2014 से पुतिन ने खुद संयुक्त राष्ट्र की मंज़ूरी के बिना सैन्य बल का इस्तेमाल किया है। पश्चिमी दृष्टिकोण से, यूक्रेन के खिलाफ रूस की आक्रामकता शीत युद्ध के बाद से नियम-आधारित व्यवस्था का सबसे जबरदस्त उल्लंघन दिखाती है।

प्रिंसटन विश्वविद्यालय में राजनीति और अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर जी। जॉन इकेनबेरी ने फाइनेंशियल टाइम्स को बताया, ‘हमने इस व्यवस्था के तीन प्रकार के कट्टर सिद्धांतों का उल्लंघन देखा है।’

उन्होंने आगे कहा, ‘पहला सिद्धांत यह है कि आप क्षेत्रीय सीमाओं को बदलने के लिए बल का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। दूसरा, आप युद्ध में नागरिकों के खिलाफ हिंसा नहीं कर सकते हैं। और तीसरा, आप परमाणु हथियारों का उपयोग करने की धमकी नहीं दे सकते। पुतिन ने पहले दो काम किए हैं और तीसरे की धमकी दी है। इसलिए यह नियम-आधारित व्यवस्था के लिए एक वास्तविक संकट है।’

जवाब में, रूस के विदेश मंत्री, सर्गेई लावरोव ने तर्क दिया है कि पश्चिमी दृष्टिकोण में अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं के प्रति कोई सम्मान नहीं है।

रूस अक्सर 1999 में यूगोस्लाविया पर नेटो की बमबारी, 2003 में इराक पर अमेरिका के नेतृत्व में आक्रमण और 2008 में कोसोवो की स्वतंत्रता को मान्यता देने को, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मंजूरी के बिना की गई पश्चिमी कार्रवाइयों की मिसाल के तौर पर गिनाता है।

रूस का तर्क है कि इस तरह की कार्रवाई संयुक्त राष्ट्र चार्टर में निहित सिद्धांतों का उल्लंघन है।

उदार विश्व व्यवस्था सबसे महत्वपूर्ण आज़माइशों में एक इसराइल-हमास पर अमेरिका का एक अलग रुख था।

कई देशों ने इसराइल को सैन्य समर्थन देने के लिए बाइडन प्रशासन की तीखी आलोचना की। अमेरिका पर हजारों फिलस्तीनियों की मौत के प्रति उदासीन होने का आरोप लगाया गया।

वॉशिंगटन पोस्ट को दिए एक इंटरव्यू में तुर्की की संसद के अध्यक्ष नुमान कुर्तुलमस ने कहा, ‘यह बहुत स्पष्ट रूप से पाखंड है, दोहरा मापदंड है। यह एक तरह का नस्लवाद है, क्योंकि अगर आप फिलस्तीनी पीडि़तों को यूक्रेनी पीडि़तों के बराबर नहीं मानते हैं, तो इसका मतलब है कि आप मानवता के भीतर एक तरह का वर्गीकरण लाना चाहते हैं। यह अस्वीकार्य है।’

इकेनबेरी मानते हैं कि ‘उदार विश्व व्यवस्था’ संयुक्त राज्य अमेरिका, अमेरिकी डॉलर, अमेरिकी अर्थव्यवस्था से बहुत अधिक जुड़ी हुई थी। यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से कहीं अधिक नेटो और गठबंधनों से जुड़ी थी।

संक्षेप में, वे कहते हैं, इसे अमेरिका के ‘उदार आधिपत्य’ के रूप में भी समझा जा सकता है।

ट्रम्प की कूटनीतिक पर अमेरिका के लोग क्या सोचते हैं?

मौजूदा अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को चुनौती देने की कोशिश करने वाले देशों को पारंपरिक रूप से ‘संशोधनवादी शक्तियां’ कहा जाता है।

अमेरिकी विश्लेषक और नीति निर्माता चीन और रूस को इस शब्द से जोडक़र देखते हैं। वह मानते हैं कि यह दोनों देश अमेरिका के वैश्विक प्रभाव को कम करना चाहते हैं।

प्रोफेसर इकेनबेरी कहते हैं कि हाल के महीनों में अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा संशोधनवादी शक्ति बन गया है। ट्रंप प्रशासन व्यापार, मानवाधिकार सुरक्षा और गठबंधन से लेकर लोकतांत्रिक एकजुटता तक ‘उदार विश्व व्यवस्था के लगभग हर पहलू’ को नष्ट करने का काम कर रहा है।

ट्रंप ने हाल ही में कहा था, ‘मेरा प्रशासन पिछले प्रशासन की विदेश नीति की विफलताओं और अतीत की विफलताओं को निर्णायक रूप से तोड़ रहा है।’

ट्रंप टीम के इन आमूल-चूल बदलावों को रोकना कांग्रेस और न्यायपालिका के लिए कठिन होगा। विदेश नीति पूरी तरह से राष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र में आती है।

इसे अमेरिकी हितों के अनुसार तैयार करके ही ट्रंप प्रशासन ने रूस के साथ मेल-मिलाप की दिशा में उठाए गए कदम को उचित ठहराया है।

अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘हमारा मानना है कि जारी संघर्ष रूस के लिए बुरा है, यूक्रेन के लिए बुरा है और यूरोप के लिए बुरा है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए भी बुरा है।’

हालांकि, ट्रंप की कूटनीतिक क्रांति अमेरिकियों को रास नहीं आई है। हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि अमेरिकी उनकी आप्रवासन नीतियों का सबसे अधिक समर्थन करते हैं। वहीं रूस-यूक्रेन युद्ध और इसराइल-फ़लस्तीन संघर्ष पर ट्रंप के रुख़ को सबसे कम समर्थन मिला।

इस बीच, दो तिहाई से अधिक अमेरिकी यूक्रेन को अपना सहयोगी मानते हैं। इनमें से आधे लोग यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की के पक्ष में राय रखते हैं।

ट्रंप की कूटनीतिक उथल-पुथल

ऑक्सर्ड़ विश्वविद्यालय में रूस और यूरेशियाई मामलों की रिसर्च फेलो डॉ. जूली न्यूटन कहती हैं, ‘फरवरी 2025 तक, यह अमेरिका ही है जो इस नियम-आधारित व्यवस्था को खत्म करने की धमकी दे रहा है।’

सबूत के तौर पर, डॉ. जूली न्यूटन ने ट्रंप की यूक्रेन के प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण की मांग, उनकी ओर से रूस के साथ संबंध सामान्य करने की बात, ज़ेलेंस्की पर सार्वजनिक हमले और यूरोप के धुर दक्षिणपंथी पार्टिर्यों के लिए ट्रंप के सहयोगियों के समर्थन की तरफ इशारा किया।

24 फरवरी को यूक्रेन पर रूसी हमले की तीसरी वर्षगांठ थी।

इस मौके पर अमेरिका ने रूसी आक्रामकता और यूक्रेनी क्षेत्र पर उसके कब्जे की निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया।

अमेरिकी राजनयिकों ने 'रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान हुई दु:खद जनहानि' पर शोक व्यक्त करते हुए एक साधारण बयान पेश किया। इस बीच ट्रंप ने घोषणा कर दी कि वह वॉशिंगटन और मॉस्को के बीच आर्थिक संबंधों को बहाल करने के लिए पुतिन के साथ बातचीत कर रहे हैं।

डॉ. जूली न्यूटन कहती हैं, ‘ट्रंप की कूटनीतिक क्रांति हेलसिंकी चार्टर के सिद्धांतों को तार-तार कर रही है और अमेरिका को अपने ही सहयोगियों की नजर में प्रतिद्वंद्वी बना रही है।’

हेलसिंकी समझौता अमेरिका, सोवियत संघ और यूरोप के देशों के बीच हुए थे। इसका उद्देश्य क्षेत्रीय अखंडता, सीमाई हिंसा को रोकना और एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में गैर-हस्तक्षेप के सिद्धांतों को मजबूत करना था।

जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी में रूस मामलों के विशेषज्ञ सर्गेई रैडचेंको कहते हें, ‘ट्रंप पुतिन की तरह सोचते हैं, 19वीं सदी के साम्राज्यवादी शासक की तरह।’

रैडचेंको कहते हैं,‘रूस पर दबाव बनाने के लिए यूरोप के पास पर्याप्त आर्थिक ताकत और वित्तीय हथियार हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि ट्रंप पुतिन के साथ अपनी बातचीत को कितना आगे ले जाते हैं। यह कल्पना कठिन है कि यूरोपीय देश समानांतर रूप से रूस के साथ संबंध सामान्य कर रहे हैं।’

अटलांटिक काउंसिल के यूरेशिया सेंटर के शेल्बी मैगिड के अनुसार, ‘उदार विश्व व्यवस्था’ के अंत की घोषणा करना जल्दबाजी होगी। रूस पर अभी भी अमेरिकी प्रतिबंध लागू हैं और ट्रंप प्रशासन ने कहा है कि उन्हें तभी हटाया जाएगा, जब रूस यूक्रेन में युद्ध खत्म कर देगा।

मैगिड कहते हैं, ‘मैं इससे सहमत हूं कि समय से पहले और खतरनाक सामान्यीकरण का जोखिम है, लेकिन हम अभी तक पूरी तरह से वहां नहीं पहुंचे हैं। विश्व व्यवस्था का अंतिम परिणाम और स्थायी प्रभाव इस बात पर अधिक निर्भर करेगा कि युद्ध कैसे समाप्त होता है और शांति कैसे लागू की जाती है।’ (bbc.com/hindi)

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