संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ 8 अक्टूबर 2013 का संपादकीय : मुंबई से निकली एक नसीहत, लोगों की जिंदगी और बाजार पर हावी होना सरकार छोड़े...
19-Feb-2025 7:19 PM
‘छत्तीसगढ़’ 8 अक्टूबर 2013 का संपादकीय :  मुंबई से निकली एक नसीहत, लोगों की जिंदगी और बाजार  पर हावी होना सरकार छोड़े...

मुंबई में शिवसेना म्युनिसिपल पर राज कर रही है। राज्य में वह विपक्ष में है लेकिन महानगरपालिका पर उसके निर्वाचित लोग बहुमत से काबिज हैं। इसलिए जब शिवसेना के मुखिया उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे ने यह राय दी कि मुंबई को चौबीसों घंटे खुला रहने वाला शहर बनाया जाए, तो म्युनिसिपल ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। आदित्य ठाकरे ने सुझाव दिया था कि मुंबई में कैफे, रेस्टोरेंट, लाइब्रेरी, दंत चिकित्सक और जरूरी सामानों एक स्टोर चौबीसों घंटे खुले रहे ताकि काम से लौटने के बाद लोग कुछ अच्छा वक्त बिता सके। दुनिया के बड़े-बड़े शहरों के मुकाबले मुंबई उबाऊ है, यहां पर पब और बार रात एक बजे बंद हो जाते है, जबकि अंतरराष्ट्रीय शहरों में पब, सुपर मार्केट, स्पा, और जिम चौबीसों घंटे सातों दिन खुले रहते हैं। 

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हमारे पाठकों को याद होगा कि हम बरसों से छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के बारे में यह बात लिखते आ रहे हैं कि यहां पर रात में बाजारों को जबरिया बंद करवाना बंद होना चाहिए, और अधिक से अधिक दुकानों और बाकी संस्थानों को रात में खुलने के लिए बढ़ावा देना चाहिए। एक बड़ी दकियानूसी और पुरानी सोच यहां पर चली आ रही है कि रात में लोगों के बाहर निकलने से, कारोबार से, जुर्म बढ़ेंगे। जबकि रात से जुर्म का रिश्ता इससे ठीक उलटा है। रात में जुर्म अधिक इसलिए होते हैं कि शहर के बाजारों से लेकर मोहल्लों तक सुनसान रहते हैं, और सन्नाटे में मुजरिमों को मौका मिलता है। आज शहरों में लोगों की निजी जरूरत यह है कि उन्हें रात-दिन हर वक्त बाजार और कारोबार की मनचाही सहूलियत मिलनी चाहिए। दूसरी तरफ शहरों की जरूरत यह है कि दिन के ट्रैफिक जाम वाले घंटों की भीड़ दिन-रात के खाली वक्त की तरफ खिसके, ताकि सड़कें सबसे अधिक भरे हुए वक्त पर कुछ खाली हो सकें। 

इसे लेकर हमारी एक और सोच है कि आज पैसे वालों के लिए तो रात में कुछ खरीदना या खाना आसान है। वे शहर में कहीं से भी रेल्वे स्टेशन जा सकते हैं, जहां पर खाने को कुछ न कुछ मिल सकता है। दूसरी तरफ शहरों के सबसे महंगे जो सितारा होटल होते हैं, उनको अपने सितारा दर्जे के लिए चौबीसों घंटे कॉफी शॉप खुली रखनी पड़ती है। इसलिए पैसे वाला तबका तो अपनी गाडिय़ों से अपने घरों से दूर की ऐसी होटलों तक भी पहुंच सकता है। लेकिन दूसरी तरफ साइकिल पर चलने वाला, या मजदूरी करके देर रात लौटने वाला तबका रास्ते में एक कप चाय भी नहीं पी सकता। बेवकूफी का यह मौजूदा इंतजाम बदलना चाहिए, और सरकार को लोगों की, समाज की, और शहरों की जिंदगी में फिजूल का दखल खत्म करना चाहिए। कारोबार अपने हिसाब से रात-दिन कभी भी चले, सरकार का काम उनमें मजदूर कानूनों को लागू करवाने तक रहना चाहिए। यह सोच भी नासमझी की है कि रात में सड़कों पर जिंदगी बढऩे से पुलिस की जिम्मेदारी बढ़ जाएगी। सड़कों पर लोगों के अधिक रहने से जुर्म घटेगा, और पुलिस का बोझ भी घटेगा। दूसरी तरफ आज पूरे देश में इस बात को लेकर भारी फिक्र है कि महंगे और विदेशी पेट्रोल-डीजल की खपत को कैसे कम किया जाए। दिन में शहरी सड़़कों पर गाडिय़ों की लंबी कतारें लगी रहती हैं, जो विदेशी मुद्रा से आए हुए ईंधन को जलाती हैं। अगर बाजार में रात की जिंदगी  बढ़ती है, तो दिन में लोग बिना जरूरत, मजबूरी में सड़कों पर निकलने से बचेंगे, और देर रात की खरीददारी करेंगे, देर रात दूसरे काम निपटाएंगे। 

अब शहरों की जिंदगी सूरज को देखकर नहीं चलती। बहुत से लोगों के कारोबार शिफ्ट में चलते हैं, वे रात के किसी भी वक्त खाली समय पाते हैं, और दिन में काम करते हैं, या इसका ठीक उलटा भी होता है। आज सरकारों की सीमित समझ के चलते रात देर से खाली होने वाले लोगों को अपने परिवार सहित जाकर कुछ खाने-पीने तक का मौका नहीं मिलता क्योंकि सारा बाजार बंद करवा दिया जाता है। लोगों की जिंदगी में मनोरंजन, कामकाज, और तफरीह का वक्त कब होना चाहिए, इसे सरकार को काबू में नहीं करना चाहिए। मुंबई में बाजारों को लेकर जो सोच सामने आई है उस पर छत्तीसगढ़ जैसे दूसरे राज्यों को भी सोचना चाहिए जो कि छोटे राज्य माने जाते हैं, लेकिन जहां पर शहरों की जिंदगी दिनभर के ट्रैफिक जाम का शिकार है। हम बरसों से इस बात की वकालत करते आए हैं दिन के अधिक से अधिक कारोबार का विकल्प रात में भी होना चाहिए, और अब समय आ गया है कि जनता को मर्जी से जीने का हक दिया जाए, और सत्ता की कुर्सी पर बैठे लोग जिंदगी के तौर-तरीकों पर हावी होना बंद करें।
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