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राज्यपाल दोबारा पारित विधेयक राष्ट्रपति को कैसे भेजे सकते हैं: उच्चतम न्यायालय
10-Feb-2025 10:05 PM
राज्यपाल दोबारा पारित विधेयक राष्ट्रपति को कैसे भेजे सकते हैं: उच्चतम न्यायालय

नयी दिल्ली, 10 फरवरी। उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी रोकने से पहले राज्यपाल आर एन रवि की ‘‘चुप्पी’’ पर सोमवार को सवाल उठाया और आश्चर्य जताया कि वह ‘‘पुनः पारित विधेयकों’’ को राष्ट्रपति के पास कैसे भेज सकते हैं।

न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने राज्यपाल से सवाल पूछे, जिनका प्रतिनिधित्व अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी कर रहे थे। पीठ ने मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

पीठ ने कहा, ‘‘राज्यपाल वर्षों तक चुप्पी क्यों साधे रहे? उन्होंने सरकार से कोई संवाद क्यों नहीं किया? फिर उन्होंने अपनी मंजूरी रोक ली और विधेयकों को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रख लिया।’’

पीठ ने कहा, ‘‘वह पुनः पारित विधेयकों को राष्ट्रपति के पास कैसे भेज सकते हैं?’’ वेंकटरमणी ने कहा कि संविधान में ऐसा कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है जो राज्यपाल को पुनः पारित विधेयक को राष्ट्रपति के पास विचारार्थ भेजने से रोकता हो।

राज्यपाल द्वारा मंजूरी दिए जाने में देरी के कारण राज्य सरकार ने 2023 में शीर्ष अदालत का रुख किया था और दावा किया था कि 2020 के एक विधेयक सहित 12 विधेयक उनके पास लंबित हैं।

राज्यपाल ने 13 नवंबर, 2023 को घोषणा की कि 10 विधेयकों को उन्होंने रोक रखा है, जिसके बाद विधानसभा ने एक विशेष सत्र बुलाया और 18 नवंबर, 2023 को उन्हीं विधेयकों को पुनः पारित किया। राज्यपाल ने 28 नवंबर को कुछ विधेयक राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रख लिए थे।

सोमवार को शीर्ष अदालत ने विवादों के निपटारे के लिए कई अतिरिक्त प्रश्न तैयार किए और संविधान के अनुच्छेद 200 की व्याख्या पर सहायता मांगी, जो विधेयकों पर राज्यपाल की सहमति देने, सहमति रोकने और राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखने की शक्ति से संबंधित है।

पीठ ने अनुच्छेद 201 तथा अनुच्छेद 111 का भी विश्लेषण किया है।

अनुच्छेद 201 राष्ट्रपति की शक्ति से संबंधित है, जब राज्यपाल द्वारा विधेयकों को उनके विचार के लिए आरक्षित किया जाता है। अनुच्छेद 111, संसद द्वारा पारित विधेयकों को राष्ट्रपति की स्वीकृति देने की शक्ति से संबंधित है।

तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 200 और इसकी शर्तों की किसी अन्य व्याख्या का मतलब ‘‘साम्राज्यवादी युग’’ की वापसी होगा।

उन्होंने कहा कि 13 नवंबर, 2023 को राज्यपाल ने एक लाइन के संदेश के साथ विधेयकों को विधानसभा को वापस भेज दिया कि उन्होंने अपनी मंजूरी रोक ली है।

पीठ ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि जब राज्यपाल मंजूरी नहीं देंगे और विधेयक को सदन को वापस नहीं भेजेंगे तो क्या होगा। वेंकटरमणी ने जवाब दिया कि विधेयक गिर जाएगा।

इसके बाद न्यायमूर्ति पारदीवाला ने उनसे पूछा कि जो विधेयक गिर गए हैं उन्हें राष्ट्रपति के पास कैसे भेजा जा सकता है।

अनुच्छेद 111 का हवाला देते हुए द्विवेदी ने दलील दी कि जिस प्रकार राष्ट्रपति, जो केन्द्रीय मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करती हैं, संसद द्वारा पारित विधेयकों को रोक नहीं सकतीं, उसी प्रकार राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर अपनी स्वीकृति नहीं रोक सकते।

उन्होंने कहा कि राज्यपाल के पास राज्य मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने के अलावा कोई विवेकाधिकार नहीं है। द्विवेदी की दलील से सहमति जताते हुए पीठ ने वेंकटरमणी से कहा कि राज्यपाल दूसरी बार विधेयक को राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते, क्योंकि उन्होंने अपना विवेकाधिकार खो दिया।

वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि यदि राज्यपाल अपनी मंजूरी रोक लेते हैं और कारण बताए बिना या कारण बताकर विधेयकों को वापस कर देते हैं, जैसा कि तमिलनाडु के मामले में किया गया, तो विधानसभा को संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत विधेयकों को पुनः पारित करने का पूरा अधिकार है। (भाषा)

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