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‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 4 जुलाई। गैरकानूनी रिश्ते से जन्मे नवजात की हत्या कर उसे छिपाने वाली महिला को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से कोई राहत नहीं मिली। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने महिला की उम्रकैद की सजा के खिलाफ दायर अपील खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि महिला ने गांववालों के सामने खुद यह बात स्वीकार की थी, और यह स्वेच्छा से दिया गया कबूलनामा है, जिसे सबूत माना जा सकता है।
यह मामला रायपुर जिले का है। 22 अक्टूबर 2018 को एक व्यक्ति ने पुलिस को सूचना दी कि उसकी विधवा बहू ने अपने दो दिन के बेटे की हत्या कर दी है। उसने बताया कि बच्चे के सिर और गले पर चोट पहुंचाकर उसे मारा गया और फिर शव को एक बोरे में भरकर नाले में फेंक दिया गया।
पुलिस ने जांच कर शव का पोस्टमॉर्टम कराया। रिपोर्ट में मौत का कारण सिर और गले पर आई चोटें पाई गईं। इसके बाद जनवरी 2019 में अपराध दर्ज कर महिला और एक अन्य युवक (सह-आरोपी) के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट पेश की गई।
मामले की सुनवाई के दौरान पता चला कि गांव में समाज की बैठक हुई थी, जिसमें महिला ने खुद स्वीकार किया कि वह और सह-आरोपी के बीच संबंध थे, जिससे बच्चा पैदा हुआ। जब सह-आरोपी से बच्चे को अपनाने को कहा गया, तो उसने मना कर दिया। बदनामी के डर से महिला ने बच्चे को मार डाला।
सेशंस कोर्ट ने महिला को धारा 302 (हत्या) के तहत उम्रकैद, धारा 201 (सबूत मिटाना) के तहत 5 साल और धारा 318 (अवैध जन्म को छिपाने के लिए शव छिपाना) के तहत 2 साल की सजा सुनाई। सह-आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया।
महिला ने हाईकोर्ट में अपील की और कहा कि उसे झूठा फंसाया गया है, उसके ससुर ने भी अदालत में बयान बदल दिया और एफआईआर में काफी देरी हुई है। लेकिन कोर्ट ने इन दलीलों को नहीं माना।
डीएनए रिपोर्ट में पुष्टि हुई कि महिला ही बच्चे की जैविक मां है, जबकि सह-आरोपी जैविक पिता नहीं निकला। कोर्ट ने कहा कि महिला का गांव के सामने किया गया कबूलनामा स्वेच्छा से और बिना किसी दबाव के था, जिसे कानूनन सबूत माना जा सकता है। मौखिक और दस्तावेजी सबूत, विशेषकर पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट भी हत्या की पुष्टि करते हैं। इस आधार पर हाईकोर्ट ने सेशंस कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए उम्रकैद की सजा बरकरार रखी।