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'छत्तीसगढ़' संवाददाता
बिलासपुर, 4 जुलाई। छत्तीसगढ़ के छोटे बच्चों में एक गंभीर बीमारी एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) तेजी से फैल रही है। एक से 5 साल तक की उम्र के बच्चों में ये बीमारी जानलेवा साबित हो रही है। खासकर गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में इसका असर सबसे अधिक देखा गया है।
इस बीमारी को लेकर बिलासपुर स्थित सिम्स के डॉक्टरों ने चिंता जताई है और बचाव के उपाय तलाशने के लिए रिसर्च शुरू कर दी है।
एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम एक ऐसी गंभीर बीमारी है जिसमें दिमाग में सूजन आ जाती है। आमतौर पर इसका कारण वायरस, बैक्टीरिया, फंगल इंफेक्शन, गंदा पानी या कोई जहरीला पदार्थ हो सकता है। भारत में अक्सर इसका मुख्य कारण जापानी एन्सेफेलाइटिस माना जाता है। लक्षणों में तेज बुखार, सिरदर्द, गर्दन में अकड़न, दौरे, बेहोशी या कोमा तक की स्थिति देखी जाती है। कई मामलों में बच्चों की मौत भी हो जाती है। पिछले दो सालों में सिम्स के वेनेरोलॉजी विभाग में इस बीमारी के 133 मरीज सामने आए, जिनमें से 82 बच्चे 1 साल से छोटे थे, 29 बच्चे 1-5 साल के बीच और बाकी 22 बच्चे 5 साल से ऊपर के थे।
इनमें से 61 प्रतिशत मरीज केवल जीपीएम जिले से आए थे। बाकी मरीज बिलासपुर, मुंगेली, कोरबा, जांजगीर, बलौदाबाजार, शक्ति, रायपुर जैसे जिलों से थे।
डॉक्टरों के मुताबिक कई मामलों में बीमारी की असली वजह अब तक सामने नहीं आई है, जिसकी वजह से इलाज में परेशानी होती है। इतना ही नहीं, इस बीमारी से मौत का आंकड़ा 51 प्रतिशत तक पहुंच चुका है, जो कि बेहद डरावना है।
अब सिम्स के न्यूरोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी विभाग मिलकर इस बीमारी पर गहराई से रिसर्च करेंगे। रिसर्च का मकसद है, बीमारी के सही कारणों का पता लगाना, रोकथाम के उपाय और इलाज की पुख्ता व्यवस्था करना।
इस रिसर्च की निगरानी सिम्स के डीन डॉ. रमणेश मूर्ति च चिकित्सा अधीक्षक डॉ. लखन सिंह कर रहे हैं। टीम में शिशु रोग विभाग से डॉ. एकेश नहरेल, डॉ. समीर कुमार जैन, डॉ. वर्षा तिवारी, डॉ. पूनम आशवाल, डॉ. अभिषेक कालवा, डॉ. अंकिता चन्द्राकर, डॉ. अलीम खालको एवं डॉ. रेखा बारापात्रे, माइकोबानोलॉजी विभाग शामिल हैं।
अगर रिसर्च में बीमारी के सही कारण और इलाज का तरीका मिल गया, तो आने वाले समय में छोटे बच्चों की जान बचाना आसान हो जाएगा। यह रिसर्च प्रदेश ही नहीं, पूरे देश के लिए मददगार साबित हो सकता है।