अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प का पहला हफ्ता अपने नाटकीय फैसलोंं का तो रहा, इसके साथ-साथ चीन की एक ऐसी कारोबारी कामयाबी का भी रहा जिसने अमरीका की सबसे कामयाब कम्प्यूटर कंपनियों को पल भर में धूल चटा दी। चीन की एक कंपनी ने इतनी कम लागत में ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का एक ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार किया है जिसकी लागत, और कामयाबी ने अमरीका को हक्का-बक्का कर दिया है। अमरीका की एक सबसे बड़ी कंपनी ने शेयर मार्केट में एक दिन में 52 लाख करोड़ रूपए खो दिए क्योंकि अमरीकी कंपनियों ने ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस विकसित करने में इस चीनी कंपनी के मुकाबले 25-50 गुना अधिक खर्च किए हैं। और डीपसीक नाम के इस प्लेटफॉर्म ने हफ्ते भर में ही दुनिया का दिल जीत लिया है। एक तरफ अमरीका की हफ्ते भर पहले तक की सबसे कामयाब और लोकप्रिय चैट-जीपीटी की सेवा भुगतान करके ली जा सकती थी, और चीनी डीपसीक न सिर्फ इससे तेज साबित हुआ है, बल्कि मुफ्त भी है। अब अमरीकी शेयर होल्डर यह सोच रहे हैं कि उनसे जुटाए गए पैसों से अमरीकी कंपनियां किस हद तक खर्च कर रही थीं, और क्या वह पूरा खर्च बर्बादी था जो कि ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस बनाने के नाम पर किया जा रहा था। ट्रम्प के लिए यह एक शर्मिंदगी की बात इसलिए भी है कि उन्होंने अपने पहले ही हफ्ते में लाखों करोड़ डॉलर का एक नया प्रोजेक्ट लाँच किया था, जिसका अधिकतर हिस्सा उस कंपनी को मिलना था जिसे चीनी कंपनी की धोबीपछाड़ ने शेयर मार्केट में पल भर में चारों खाने चित्त कर दिया है।
ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को लेकर दुनिया में अभी यह साफ नहीं है कि वह इंसानों और कारोबारों का क्या करेगा। यह भी तय नहीं है कि दुनिया के कौन से देश ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और उस पर आधारित प्रोडक्ट बनाने में सबसे आगे रहेंगे, और उस नाते वे दुनिया पर अपना दबदबा बनाकर रखेंगे। अब पिछले एक हफ्ते ने यह साबित किया है कि कम से कम एक प्लेटफॉर्म चीन ने ऐसा बना लिया है जिसका अमरीका के पास कोई जवाब नहीं है। इससे अमरीकी कंपनियों की साख भी चौपट हो रही है, और नई बन रही विश्व व्यवस्था में चीन ने एकाएक एक नई साख पा ली है। दुनिया के अलग-अलग देशों के दसियों लाख लोगों को अमरीका से निकाले जाने की घोषणा हुई है, और ऐसे में चीन से ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की यह नई कारोबारी कामयाबी सामने आई है, इन दोनों बातों को मिलाकर पता नहीं किस तरह देखा जाना चाहिए।
एक चीनी कंपनी ने इतने सस्ते में यह काम कर दिखाया है जिसके लिए अमरीकी कंपनियां अपने इतिहास का सबसे बड़ा खर्च कर रही हैं। असंभव सा लगने वाला बजट ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के लिए दिया जा रहा है, और मानो एक नया ईश्वर ही गढ़ा जा रहा है। दुनिया में सबसे सस्ते सामान बनाने के लिए बदनाम या मशहूर चीन ने इन सब अमरीकी कंपनियों को पछाडक़र जिस तरह यह प्लेटफॉर्म तैयार किया है, उससे अमरीकी सपने चकनाचूर हो गए हैं। और शर्मिंदगी झेलते हुए भी अमरीकी राष्ट्रपति को यह कहना पड़ा है कि अमरीकी कंपनियों को चीनी डीपसीक प्लेटफॉर्म के इस तरह अचानक आ जाने से जाग जाने की जरूरत है क्योंकि यह सस्ता, और तेज भी है। आज दुनिया के हजारों किस्म के कारोबार ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की तरफ देख रहे हैं, कैंसर के हर मरीज के लिए अलग-अलग दवा बनाना भी मुमकिन लग रहा है, और हर इंसान के लिए कैंसर की आशंका होते ही उससे बचाने का टीका भी ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से बन सकेगा ऐसा लग रहा है। ऐसे में जो कंपनी, देश, या सरकार दुनिया में अव्वल रहेगी, वह सौ किस्म के कारोबारों में सबसे आगे रह सकती है, और दुनिया पर राज कर सकती है। ऐसी नौबत में एकाएक चीन से जो सूरज निकला है, उसने काला चश्मा पहनने वाले अमरीकी कारोबारियों की आंखें भी चकाचौंध कर दी हैं।
लेकिन आज इस मुद्दे पर आज यहां लिखने का हमारा मकसद न तो ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर लिखने का है, और न ही अमरीकी-चीनी कारोबारी मुकाबले पर। हम तो महज यह याद दिलाना चाहते हैं कि बाकी देशों, और बाकी धंधों को भी यह समझ लेना चाहिए कि किस तरह कोई नया कारोबार एकाएक पूरे बाजार को इतना उथल-पुथल कर सकता है कि दुनिया के जमे-जमाए कारोबार तहस-नहस हो जाएं। आज जिस कामयाबी पर किसी उद्योग-व्यापार, या सरकार को फख्र होता है, कल को हो सकता है कि कोई नया स्टार्टअप उनके एकाधिकार को खत्म कर दे, और उन्हें बेरोजगार कर दे। अमरीकी कंपनी को इस चीनी स्टार्टअप ने एक दिन में जो झटका दिया है, वह भारत की एक सबसे बड़ी कंपनी टाटा की आधी दौलत से अधिक है। इससे छोटे-छोटे कारोबारियों को भी यह सबक लेना चाहिए कि किस तरह उनके इलाके में कोई बड़ी दुकान खुलने से उनका छोटा-छोटा धंधा खत्म हो सकता है। अब तो देश के खरबपति भी सब्जी-भाजी बेचने लगे हैं, और घर तक किराना पहुंचाने लगे हैं। अब दुनिया में धंधों के तौर-तरीके, उनकी संभावनाएं, इस तरह के भूकम्प का सामना कर सकते हैं कि रातोंरात कारोबार की चमकती इमारत खंडहर बन जाए। इसलिए लोगों को दूसरे देशों की ऐसी मिसालों से अपनी-अपनी जिंदगी में एक सबक लेना चाहिए। जो लोग किसी छोटे से कारोबार की आज की कमाई को देखकर कोई बड़ा पूंजीनिवेश कर दें, और कल को वह कारोबार ही बंद हो जाए, तो क्या होगा? लोगों को यह मानकर चलना चाहिए कि कारोबार में तमाम वक्त एक सा नहीं रहता, और कोई कारोबार जाने कब खत्म या बंद हो जाए। लोगों को याद रहना चाहिए कि 25-30 बरस पहले हिन्दुस्तान में किस तरह पेजर का चलन शुरू हुआ था, और उस पर आने वाले एसएमएस को लोग चमत्कार की तरह देखते थे, वह धंधा साल भर भी नहीं चला कि मोबाइल ने आकर उसे मटियामेट कर दिया। ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस में दुनिया में सबसे आगे चल रहे अमरीका को जिस तरह अचानक सदमा लगा है, वह पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा सबक है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)