संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अमरीकी वोटरों का चुना बिफरा सांड, धरती की कप-प्लेट दुकान में...
29-Jan-2025 5:14 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : अमरीकी वोटरों का चुना बिफरा सांड, धरती की कप-प्लेट दुकान में...

सयाने-समझदार लोग यह कहते हैं कि ताकत जिम्मेदारी के साथ ही आनी चाहिए। इन दिनों अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प को देखें तो उनके दूसरे कार्यकाल के पहले हफ्ते में ही उन्होंने दुनिया को हक्का-बक्का कर दिया है। ऐसा भी नहीं कि वे अपने पहले कार्यकाल में बहुत समझदारी के फैसले लिए हों, लेकिन वे जितनी बददिमागी के फैसले लेते थे, उससे अधिक बेदिमागी के बयान देते थे। पिछला चुनाव हारने के बाद भी उनका यही सिलसिला जारी रहा, और नतीजा यह हुआ था कि 6 जनवरी 2020 को उनके समर्थकों ने अमरीकी संसद पर हमला कर दिया था, और इस बार उनके राष्ट्रपति बनते ही पहले ही दिन उन सारे हिंसक हमलावरों को राष्ट्रपति के विशेषाधिकार से आम माफी दे दी गई। ऐसा शायद ही दुनिया के किसी लोकतंत्र में होता हो कि लोकतंत्र की सबसे बड़ी संस्था, संसद पर हिंसक हमला हो, और गुनहगार बख्श दिए जाएं। लेकिन ट्रम्प का दुनिया को चौंकाना पिछले हफ्ते भर में रोज जारी है, हर कुछ घंटों में वे और उनके सहायक दुनिया पर एक किस्म से हमला कर रहे हैं, और अमरीका की विदेश नीति के पूरे इतिहास को तहस-नहस कर दे रहे हैं।

अमरीका ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से अपने आपको पूरी दुनिया का रहनुमा बनाने के लिए बड़ी मेहनत की थी, खूब खर्च किया था, और फौजी ताकत से परे भी उसने पूरी दुनिया में रणनीतिक महत्व के रिश्ते और समझौते किए थे, और ठोस कूटनीति से परे जाकर भी दुनिया का मददगार बनकर लोगों का दिल जीता था, या संयुक्त राष्ट्र में उनके वोट जीते थे, या कई फौजी मोर्चे जीते थे। ट्रम्प ने देश के बाहर और देश के भीतर जरूरतमंदों की मदद की लंबी परंपरा को एक झटके में खत्म कर दिया है। दुनिया के देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को अमरीका से जो मदद मिलती थी, वह तो खत्म की ही जा रही है, उसके साथ-साथ खुद अमरीका के भीतर हजार किस्म के अलग-अलग सामाजिक कार्यक्रमों के लिए जिन संगठनों को मदद मिलती थी, उन सबको भी कम्युनिस्ट कहकर उसे एक साथ खत्म कर दिया जा रहा है। अमरीका ने पेरिस जलवायु समझौता तोड़ दिया है, उसने विश्व स्वास्थ्य संगठन को हजारों करोड़ डॉलर हर बरस की मदद को खत्म कर दिया है, उसने विश्व व्यापार संगठन के समझौते को तोडक़र दुनिया के अलग-अलग देशों पर अलग-अलग प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है, उसने इजराइल को वे भारी-भरकम बम सप्लाई करना फिर शुरू कर दिया है जो पिछले अमरीकी राष्ट्रपति ने रोक रखा था, और ट्रम्प ने फिलीस्तीनियों के अपने देश के हक को भी एक किस्म खारिज करने वाला बयान दिया है, और इजराइल के प्रधानमंत्री को सबसे पहले विदेशी नेता के रूप में अमरीका आमंत्रित भी किया है।

एक किस्म से ट्रम्प की घोषणाओं, उनके फैसलों, और उनके राष्ट्रपति की हैसियत वाले आदेशों की वजह से दुनिया की लंबे समय से चली आ रही व्यवस्था में भूकम्प की लहरें दौड़ पड़ी हैं, और अभी कांपती हुई धरती पूरी तरह से समझ और संभल नहीं पा रही है कि ट्रम्प नाम के इस सुनामी और भूकम्प की मिलीजुली मतदाता-निर्मित आपदा से वह कैसे निपटेगी। किसी एक देश के वोटरों का फैसला बाकी पूरी दुनिया को भी किस हद तक प्रभावित कर सकता है, इसकी एक मिसाल तो हिटलर था, और उसकी एक मिसाल आज के इस वक्त में ट्रम्प है। बेहिसाब ताकत, और शून्य जवाबदेही ने मिलकर ट्रम्प को एक ऐसा तानाशाह बना दिया है जो तय करता है कि कोई अमरीकी नागरिक ट्रांसजेंडर नहीं हैं, वे सिर्फ औरत या मर्द हैं। वह तय करता है कि देश में सरकारी मदद से किनको खाना मिलना है, किनको नहीं, वह तय करता है कि दसियों लाख सरकारी कामगार किस दिन से काम पर आना बंद कर दें, वह तय करता है कि दुनिया का सबसे रईस कारोबारी न सिर्फ अमरीकी सरकार में किफायत लाने का काम करे, बल्कि वह किस तरह दुनिया के बहुत से दूसरे देशों की घरेलू राजनीति को भी तय करे। एक नजर में ट्रम्प अमरीकी जनता का चुना गया, चीनी मिट्टी के बर्तनों की अमरीकी दुकान में जनता का अपना ऐसा बिफरा हुआ पालतू सांड है जो चारों तरफ सब कुछ चकनाचूर कर रहा है। हम दुनिया के बुरे से बुरे सांड को भी ट्रम्प की मिसाल से नवाजना नहीं चाहते, लेकिन बोलचाल की भाषा के इस्तेमाल में इस मुहावरे को यहां पर लिख रहे हैं।

ट्रम्प ने पनामा नहर को फौजी कार्रवाई से भी कब्जे में लेने की घोषणा की है, डेनमार्क से उसके एक हिस्से ग्रीनलैंड को खरीदने की पेशकश की है, और कनाडा को प्रस्ताव रखा है कि वह अमरीका का राज्य बन जाए। इसके अलावा ट्रम्प ने अमरीकी बाहुबल दिखाते हुए दुनिया के और बहुत से देशों की बांह मरोडऩे का सिलसिला शुरू कर दिया है। दुनिया भर से वहां कानूनी और गैरकानूनी तरीकों से पहुंचे, और बसे हुए लोगों को निकालने की उसकी घोषणा दुनिया के दर्जनों देशों में फिक्र खड़ी कर रही है, और जिन देशों को यह लग रहा है कि उनकी सेहत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा, उन्हें इस पर भी गौर करना चाहिए कि अमरीका में अवैध प्रवासियों पर कार्रवाई करते हुए धर्मस्थलों को अलग रखने की परंपरा कायम रखी थी, अभी ट्रम्प सरकार के अफसरों ने दो दिन पहले ही कई जगह गुरुद्वारों की जांच की है, और वे अवैध रूप से वहां रह रहे लोगों को ढूंढ रहे हैं। सरकार ने अप्रवासियों की जांच करने के लिए अफसरों को खुली छूट दी है। अमरीका में बसे सिक्खों ने ऐसी कार्रवाई पर बड़ी फिक्र जताई है, और इसका विरोध किया है, इसे अपने धर्म पर हमला बताया है। जितना हमला यह अमरीका के सिक्ख गुरुद्वारों पर है, उससे अधिक खतरनाक यह मिसाल दुनिया के कई देशों में वहां की सरकारों द्वारा इस्तेमाल की जाएगी।

ट्रम्प की घोषणा के मुताबिक अगर दसियों लाख लोगों को गिरफ्तार करके उनके देशों में वापिस भेजा जाएगा, तो उनके रोजगार और कारोबार दोनों किस हद तक बर्बाद होंगे, इस पर अभी उनके देश कुछ कह नहीं रहे हैं। बिफरे हुए सांड की ताकत आज दुनिया के किसी देश में नहीं है, और तमाम देश ट्रम्प के अगले हमले की आशंका में सो रहे हैं, जो कि महज फौजी ताकत से नहीं हो रहा है, कई शक्लों में हो रहा है। अमरीकी जनता देश के भीतर ही जिस दर्जे की उथल-पुथल झेल रही है, वह उसके लिए ही अकल्पनीय थी। लेकिन ट्रम्प अपने दूसरे कार्यकाल में एक बात के लिए बेफिक्र है कि उसके किसी जुर्म के बिना उसे कोई भी हटा नहीं सकते, और महाभियोग से परे उसका कार्यकाल बना रहेगा। दूसरी जिस बात के लिए वह बेफिक्र है वह यह कि अमरीकी राष्ट्रपति महज दो कार्यकाल पूरा कर सकते हैं, और इसके बाद ट्रम्प का वैसे भी कोई चुनावी भविष्य नहीं है। ऐसे में जबकि ट्रम्प का दांव पर कुछ भी नहीं लगा है, उसने अमरीका की तमाम बेहतर चीजों को दांव पर लगा दिया है, इससे अमरीकी इतिहास भी तबाह हो रहा है, और अमरीकी भविष्य का पता नहीं क्या होगा। लेकिन जैसी कि दुनिया की आशंका है, ट्रम्प दुनिया को इतना तबाह करके जा सकता है कि वह एक बार फिर चीन, रूस, या ईरान की तरफ देखने लगे।

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