सोशल मीडिया पर लोग अपने मन की अराजकता, और हिंसा खुलकर उजागर करते हैं। हम लगातार लोगों के मन की जातीय, या साम्प्रदायिक नफरत की मिसालों के खिलाफ लिखते हैं, जिसका कि सिलसिला खत्म ही नहीं होता है। लेकिन इसके अलावा राजस्थान के उपमुख्यमंत्री के बेटे सहित देश भर के बहुत से ताकतवर, और आम-मामूली लोग भी कभी अपना जन्मदिन मनाते हुए, तो कभी सडक़ों पर गाडिय़ों की कलाबाजी दिखाते हुए अपने वीडियो बनाते हैं, और पोस्ट करते हैं। बहुत से लोग सडक़ों पर अपने जन्मदिन का केक काटते हैं, और कुछ अधिक उत्साही लोग तलवार से केक काटते हुए, पिस्तौल-बंदूक से हर्ष-फायरिंग करते हुए वीडियो भी पोस्ट करते हैं। सोशल मीडिया ऐसे लोगों से भरा हुआ है जो कि असली या नकली चाकू-पिस्तौल लिए हुए अपनी फोटो और वीडियो पोस्ट करते हैं, और अभी पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर ऐसे लोगों की शिनाख्त करके उन्हें गिरफ्तार करके छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की पुलिस उनसे माफी के वीडियो बनवा रही है, और जारी कर रही है।
लेकिन यह सिलसिला आगे कैसे और क्यों बढ़ रहा है? एक प्रमुख वेबसाइट, द वायर, पर भारत में पनप रही गैंगस्टर संस्कृति और बच्चों पर उसके बुरे असर पर तैयार की गई एक रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह लगातार खबरों में आए हुए लॉरेंस बिश्नोई सरीखे गैंगस्टर देश के बहुत से बच्चों के लिए आदर्श बन रहे हैं, और ऑनलाईन शॉपिंग की बहुत सी वेबसाइटों पर ऐसे खतरनाक गैंगस्टर की फोटो और नाम वाले कपड़े और दीगर सामान बिकना शुरू होने पर मुम्बई की पुलिस ने इनके खिलाफ जुर्म भी दर्ज किया है। वायर की यह रिपोर्ट बताती है कि किस तरह इस गैंगस्टर की शोहरत को आगे बढ़ाने में संगीत वाली वेबसाइटें, और पॉडकास्ट भी मदद कर रहे हैं जहां इनकी ‘बहादुरी’ के गाने पटे हुए हैं, और लाखों लोग इन गानों को देख रहे हैं।
हमारा मानना है कि हिन्दुस्तान में जिस तरह लॉरेंस बिश्नोई को न सिर्फ बिश्नोई समाज के एक हीरो की तरह पेश किया जा रहा है, बल्कि उसे हिन्दू नौजवानों के नायक की तरह भी बताया जा रहा है जो कि एक मुस्लिम, सलमान खान को मार डालने में लगा हुआ है। देश की हवा में साम्प्रदायिकता का जो जहर है वह लॉरेंस बिश्नोई को एक गैंगस्टर के बजाय मुस्लिम को मारने की ताकत रखने वाला हिन्दू-नायक साबित कर रहा है। जब जुर्म और साम्प्रदायिकता मिलकर लोगों की धार्मिकता की जगह ले लेती हैं, तो फिर ऐसे भयानक मुजरिम भी नौजवानों के रोल मॉडल बन जाते हैं, और उनकी ‘वीरता’ के गुणगान में गीतकार, और गायक-संगीतकार चारण और भाट की तरह लग जाते हैं। लोगों को याद होगा कि एक वक्त हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा और खतरनाक गुंडा, दाऊद इब्राहिम, दुबई में अपनी सालगिरह का जश्न करता है, और उसमें फिल्म इंडस्ट्री के बहुत से गायक, संगीतकार, अभिनेता-अभिनेत्री नाचते-गाते हैं। लोगों को याद होगा कि किस तरह अनु मलिक जैसे गायक-संगीतकार ने दाऊद की दावत में नाच-नाचकर गाया था- अमीरों को किसने अमीरी सिखाई, गरीबों की जिसने कुटिया सजाई, घर अपना छोड़ा खुशियां गंवाईं, पूछो तो पूछो वो कौन है, सबका भाई दाऊद भाई।
यह गाना अनु मलिक ने ही लिखा था, और गाया था। इसका वीडियो चारों तरफ फैला था, और हिन्दुस्तानी जनता इतनी महान हैं कि ढाई सौ से अधिक लोगों को मुम्बई धमाकों में मार डालने का मुजरिम, दाऊद इब्राहिम, दुबई में जन्मदिन मनाता है, और उसमें नाचने-गाने वाले, बाकी नए गायकों को ले जाने वाले अनु मलिक को यह देश अब तक संगीत के रियलिटी शो में जज बने देखता है। देश की सामूहिक चेतना नाम का शब्द इस देश के चरित्र से ही गायब है। देश के सबसे बड़े कातिल और मुजरिम के भाट यहां सिर पर बिठाए जाते हैं, और वे बच्चों की गायिकी के जज बनकर बैठते हैं। ऐसे में कोई हैरानी नहीं है कि बच्चों की पीढ़ी से लेकर उनके मां-बाप की पीढ़ी तक मुजरिमों के जुर्म के प्रति संवेदनशील नहीं रह जातीं।
लोगों को याद होगा कि एक समय इस देश में खालिस्तान के लिए, सिक्ख धर्म की आड़ में भिंडरावाले ने सैकड़ों हत्याएं करवाई थीं, और उसकी तस्वीर छपे टी-शर्ट पहनने वाले भी बहुत नौजवान अभी हाल के बरसों तक दिखते थे, और कारों के पीछे उसके बड़े-बड़े स्टिकर चिपके रहते थे। जब लोगों के दिमाग में धर्म छाया रहता है, तो कातिल भी उसे हीरो लगने लगते हैं। आज भी हिन्दुस्तान में अलग-अलग प्रदेशों में दूसरे धर्म के लोगों का कत्ल करने वाले, दूसरे धर्म की बच्चियों से बलात्कार करने वाले लोगों को समाज के नायक बनाने वाले लोग कम नहीं हैं। जगह-जगह हत्यारों और बलात्कारियों का माला पहनाकर अभिनंदन होता है, और ऐसे हर अभिनंदन को देखने, और उसके बारे में सुनने वाली पीढ़ी के मन से मुजरिमों के लिए नापसंदगी खत्म होती जाती है। जिस देश में हिन्दू नौजवान पीढ़ी को लॉरेंस बिश्नोई इसलिए अच्छा लगने लगता है कि उसने एक मुस्लिम फिल्म स्टार को खत्म करने की कसम खाई हुई है, तो ऐसी पीढ़ी की चेतना की हत्या तो पहले ही हो चुकी है, सलमान की कभी हो पाए या नहीं।
एक समाज के रूप में हिन्दुस्तान आज परले दर्जे का गैरजिम्मेदार और मूढ़ समाज हो चुका है। इसे अपने व्यापक हित की समझ नहीं रह गई है, और यह अपनी साम्प्रदायिकता को, जातीय नफरत को अपनी ताकत मानकर बैठा है। जब देश के लोगों की वैज्ञानिक चेतना को, लोकतांत्रिक समझ और मानवीय मूल्यों को सिलसिलेवार और लगातार खत्म किया जाता है, तो फिर इससे होने वाली बर्बादी महज एक पीढ़ी में खत्म नहीं हो जाती। और अभी तो बर्बादी का यह सिलसिला जारी ही है, यह तो थमने के बाद जब समाज में सुधार होना चालू होगा तब जाकर इसमें बरसों लगेंगे, फिलहाल तो सभ्यता का उजडऩा जारी है, और ऐसे में एक मुस्लिम को मारने की कसम हिन्दू हृदय सम्राट बनने के लिए काफी मानी जा रही है, और नौजवान उसके छापे वाले टी-शर्ट पहनने पर आमादा हैं, और वह अनगिनत नौजवानों का रोल मॉडल बन ही चुका है। यह हिंसक सिलसिला समाज में जाने कब थमेगा, लोगों को अपनी पीढिय़ों की फिक्र करनी चाहिए, और अपने बच्चों को धर्म और जुर्म में फर्क करना सिखाना चाहिए, न कि धर्म के नाम पर जुर्म करना।