उत्तरप्रदेश के संभल में एक स्थानीय अदालत के आदेश पर वहां की शाही जामा मस्जिद का सर्वेक्षण किया गया, और इस दौरान वहां हुए तनाव और हिंसा में कुछ मौतें हुई हैं। अब स्थानीय अदालत के ऐसे आदेश के बाद एक दिन के भीतर सर्वेक्षण करने, और उसे अचानक दो दिनों बाद फिर से दुहराने पर सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जाहिर की है। सर्वोच्च न्यायालय ने स्थानीय अदालत की कार्रवाई पर रोक लगा दी है, और प्रशासन को हिदायत दी है कि उसे तटस्थ रहना है। यह उत्तरप्रदेश के पुलिस और प्रशासन को सुप्रीम कोर्ट से बार-बार मिलने वाली हिदायतों के लंबे सिलसिले की ताजा कड़ी है। सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद कमेटी को हाईकोर्ट जाने कहा है, और हाईकोर्ट को कहा है कि वह इनकी याचिका पर तीन दिन में सुनवाई करे। सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि जिला अदालत के जज के आदेश पर उसे भी संदेह है, और आपत्ति है, लेकिन वह चाहती है कि मस्जिद कमेटी पहले हाईकोर्ट जाए, तब तक सुप्रीम कोर्ट इस मामले को अपने पास रख रही है, और मस्जिद का जो सर्वे जिला अदालत के आदेश पर हुआ है उस रिपोर्ट को बंद रखने को भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा है। इस मामले को अजमेर की एक स्थानीय अदालत के आदेश के साथ जोडक़र देखा जाना चाहिए जिसमें वहां की आठ सौ बरस पुरानी और विश्वविख्यात दरगाह के नीचे शिव मंदिर होने का दावा सुनवाई के लिए मंजूर किया गया है, और दरगाह सहित सभी पक्षों को नोटिस दिया गया है। इस मामले को देश के करीब डेढ़ दर्जन वरिष्ठ रिटायर्ड अफसरों द्वारा प्रधानमंत्री को लिखी गई एक चिट्ठी से भी जोडक़र देखना चाहिए जो देश में साम्प्रदायिकता खड़ी करने की कोशिशों के बारे में लिखी गई है।
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देश के सबसे प्रमुख कुछ ओहदों पर रहे हुए करीब डेढ़ दर्जन लोगों ने प्रधानमंत्री को लिखा है कि यह अकल्पनीय है कि एक स्थानीय अदालत सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की 12वीं सदी की दरगाह पर सर्वेक्षण का आदेश दे। यह भिक्षुक संत सूफी/भक्ति आंदोलन का अविभाज्य अंग था, और प्रधानमंत्री खुद हर बरस इस दरगाह के उर्स पर चादर भेजते आए हैं। इन लोगों ने प्रधानमंत्री से मिलने का समय मांगा है ताकि देश में साम्प्रदायिकता को घटाने के बारे में कुछ सोचा और किया जा सके।
अब हम भारत के पड़ोस के बांग्लादेश की बात करना चाहते हैं जहां पर कई हिन्दू मंदिरों के खिलाफ हिंसा की खबरें आ रही हैं, और इस्कॉन संगठन के एक प्रमुख स्वामी को वहां राजद्रोह के जुर्म में गिरफ्तार किया गया है। भारत सरकार ने इस पर बांग्लादेश की मौजूदा कार्यवाहक सरकार से विरोध दर्ज किया है, और इस पर ढाका का कहना है कि देशविरोधी गतिविधियों के कारण यह गिरफ्तारी हुई है। सडक़ों पर भी इस्कॉन को प्रतिबंधित करने के खिलाफ प्रदर्शन चल रहे हैं। शेख हसीना सरकार को जनाक्रोश से बेदखल करने के बाद अब वहां भारत विरोधी माहौल भी बना हुआ है, और भारत में मुस्लिमों के खिलाफ जो हिंसक माहौल चल रहा है, उसका भी असर शायद बांग्लादेश पर पड़ रहा हो।
भारत में 787 जिले हैं, इनमें से तकरीबन हर किसी में अदालतें हैं। और आज देश का जैसा माहौल है, उसमें किसी भी किस्म के ओहदों पर बैठे हुए लोगों के बीच भी साम्प्रदायिकता उसी तरह घुसपैठ कर गई है जिस तरह समाज के दूसरे तबकों में। वरना सुप्रीम कोर्ट को यूपी के संभल के प्रशासन को यह हिदायत क्यों देनी पड़ती कि उसे निष्पक्ष रहना है, और कल ही यूपी की पुलिस को एक दूसरे मामले में चेतावनी देनी पड़ी कि अगर उसने अदालती आदेश के खिलाफ काम किया, तो उसे ऐसी सजा दी जाएगी कि सब याद रखेंगे। यूपी में मुस्लिमों के मकान-दुकान पर बुलडोजर चलाने को लेकर कितनी ही अदालती चेतावनियां आ चुकी हैं, और देश के कुछ दूसरे प्रदेशों में भी अदालतों को सरकार को ऐसी चेतावनी देनी पड़ी है। हमने बांग्लादेश में हिन्दुओं और बाकी भारतीयों के खिलाफ सत्ता पलट के तुरंत बाद हिंसा के वक्त बांग्लादेशियों को यह याद दिलाया था कि ऐसी घटनाओं की प्रतिक्रिया भारत में उन लाखों बांग्लादेशियों के खिलाफ हो सकती है जो कि भारत में वैध या अवैध रूप से बसे हुए, और जिन्हें भारत ने 1971 की जंग के दौरान शरण दी थी। ठीक वैसी ही सलाह हम दुनिया के उन तमाम देशों में बसे लोगों को देना चाहते हैं कि वे वहां दूसरे समुदाय के साथ जैसा बर्ताव करेंगे, वह दुनिया के किसी दूसरे कोने में उनके समुदाय के दूसरे लोगों के साथ कोई और करेंगे। साल भर से अधिक से इजराइल फिलीस्तीनियों पर जो कहर ढा रहा है, उसी का नतीजा है कि अभी योरप में एमस्टरडम में इजराइलियों और यहूदियों पर एक फुटबॉल टूर्नामेंट के बाद हमला हुआ। योरप के एक विशेषज्ञ-जानकार के मुताबिक फिलीस्तीन पर इजराइली हमले शुरू होने के बाद से पूरी दुनिया में जगह-जगह यहूदी विरोधी हिंसा या हमले की नौबत आ रही हैं। कई जगहों पर जहां हिंसा तो नहीं होती, वहां भी सामाजिक बहिष्कार होता है, और उसकी गिनती पुलिस के आंकड़ों में नहीं हो पाती।
भारत में आज चारों तरफ जिस तरह एक मुस्लिम लहर पैदा की जा रही है, और उसे बढ़ाया जा रहा है, उसके नतीजे न तो देश के भीतर अच्छे होंगे, और न देश के बाहर उन देशों में जहां पर कि भारतवंशी बसे हुए हैं। जिन लोगों ने दुनिया देखी नहीं है, सिर्फ वही लोग यह मानकर चल सकते हैं कि वे अपने देश में जिससे जैसा चाहे बर्ताव करें, और उसकी दुनिया में कोई प्रतिक्रिया नहीं होगी। अब यह ताजा प्रतिक्रिया तो बांग्लादेश में ही देखने मिल रही है। हर देश में किसी न किसी धर्म या जाति के लोग अल्पसंख्यक हो सकते हैं, जैसे कि बांग्लादेश में हिन्दू हैं।
देश के जिन प्रमुख, और जागरूक भूतपूर्व अफसरों ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है, उसे गंभीरता से लेने की जरूरत है। हालांकि इस चिट्ठी में ही उन्होंने यह लिखा है कि उन्हें इस बात में कोई संदेह नहीं है कि प्रधानमंत्री मौजूदा परिस्थितियों से अच्छी तरह वाकिफ हैं। भारत में अगर कुछ मुस्लिमों को बरसों तक बिना सुनवाई, बिना जमानत जेलों में बंद रखा गया है, देश की सुप्रीम कोर्ट भी न उनका मामला एक इंच आगे बढ़वा पाई, न उन्हें जमानत दे पाई, तो किसी के ऐसे पांच बरस दुनिया के बाकी लोग भी देखते हैं, और ऐसी बातों का भी असर भारत के बाहर बसे हिन्दू और हिन्दुस्तानियों को झेलना पड़ता है। आज भारत की कुछ जिला अदालतों के छोटे-छोटे जज जिस अंदाज में इस देश के उपासना स्थलों को लेकर बने कानून की अनदेखी कर रहे हैं, वह हैरान कर देने वाली बात है। दो दिन पहले ही हमने अपने यूट्यूब चैनल पर यह कहा था कि अगर हर पूजा स्थल की खुदाई करके मौजूदा धर्म के कब्जे को खारिज करना, और पिछले कब्जे को स्थापित करना है, तो फिर इस देश में हजारों हिन्दू मंदिरों के नीचे से बौद्ध मठ निकल आएंगे, और धर्मान्ध-साम्प्रदायिक लोग खुदाई करते-करते गुफा मानव तक पहुंच जाएंगे, और तब तक देश इस लायक ही रह जाएगा कि वह चकमक पत्थर से आग जलाएगा। कुछ उसी किस्म की बात कल भूतपूर्व अफसरों की चिट्ठी में भी है। देखते हैं प्रधानमंत्री क्या करते हैं।