क्रिकेट खिलाड़ी, राजनेता, और कॉमेडियन नवजोत सिंह सिद्धू ने अभी एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि उनकी पत्नी नवजोत कौर का कैंसर एक खास घरेलू डाईट से ठीक हुआ है। उन्होंने कहा था कि शक्कर, और दूध के सामानों से परहेज करने, और हल्दी और नीम के सेवन से उनकी पत्नी के कैंसर ठीक होने में कामयाबी मिली। सिद्धू ने कहा था कि नवजोत स्टेज-4 के कैंसर से जूझ रही थी, डॉक्टरों ने उनके बचने की उम्मीद सिर्फ पांच फीसदी बताई थी, लेकिन हल्दी, नीम का पानी, सेव का सिरका, और नींबू पानी के नियमित सेवन से, शक्कर और कार्बोहाइडे्रट से सख्त परहेज, और इंटरमिटेंट फॉस्टिंग की मदद से वे सिर्फ 40 दिनों में अस्पताल से डिस्चार्ज हो गईं।
इस पर देश के एक सबसे बड़े कैंसर अस्पताल टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के डायरेक्टर ने कहा है कि ऐसे दावों के पीछे कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। टाटा मेमोरियल के मौजूदा और भूतपूर्व 262 कैंसर विशेषज्ञों ने दस्तखत किया हुआ एक बयान जारी किया हुआ है कि इस तरह हल्दी और नीम वगैरह से कैंसर ठीक होने का कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं है, और इन डॉक्टरों ने कैंसर मरीजों से अपील की है कि ऐसी गंभीर बीमारी के मामले में वे ऐसे अप्रमाणित उपचार पर बिल्कुल भरोसा न करें। टाटा मेमोरियल के डायरेक्टर डॉ.सी.एस. प्रमेश ने डॉक्टरों का बयान एक्स पर पोस्ट करते हुए सिद्धू के वीडियो को भी पोस्ट किया है, और लिखा है- ऐसी बातें सुनकर किसी को मूर्ख नहीं बनना चाहिए, इस तरह के दावे गैरवैज्ञानिक, और निराधार होते हैं, नवजोत कौर की सर्जरी और कीमोथैरेपी हुई थी, यही कारण है कि आज उन्हें कैंसर से मुक्ति मिली है, इसमें हल्दी, नीम, या किसी भी गैरचिकित्सकीय चीज के मददगार होने का दावा गैरवैज्ञानिक है।
किसी एक व्यक्ति के ऐसे बयान और दावे पर सैकड़ों विशेषज्ञों के ऐसे खंडन की पहले की कभी कोई याद नहीं पड़ती। हाल के बरसों में अपने आपको स्वामी और योगी कहने वाला रामदेव नाम का एक भगवाधारी कारोबारी आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के खिलाफ अंतहीन नाजायज बकवास करते रहा, और उसे सुप्रीम कोर्ट में माफी मांगनी पड़ी, और माफी के ईश्तहार छपवाने पड़े। लेकिन तब तक कोरोना काल के प्रभावित हिन्दुस्तानी लोगों में से करोड़ों लोग इस कारोबारी के झांसे में आकर अपनी सेहत बर्बाद कर चुके रहे होंगे। अब हर किसी मामले में तो लोग सुप्रीम कोर्ट जा नहीं सकते, और अदालत हर किसी को कटघरे में ला नहीं सकती। इसलिए सिद्धू जैसे मशहूर इंसान के इस तरह के नाजायज दावे का भांडाफोड़ करने के लिए डॉक्टरों ने सामने आकर ठीक ही किया है। इस देश के 262 कैंसर विशेषज्ञ अगर एक साथ ऐसा बयान जारी करते हैं, तो देश के आम लोगों को नीमहकीमी सुझाने वाले लोगों की असलियत समझना चाहिए।
दरअसल सोशल मीडिया पर हर किसी को लिखने की जिस किस्म की आजादी हासिल है, उसके चलते हुए बहुत से लोग बेसिर पैर के इलाज सुझाने लगते हैं। सोशल मीडिया पर किसी को भी किसी वैज्ञानिक स्रोत को देने की मजबूरी नहीं रहती है, और यह बात सिर्फ हिन्दुस्तान में नहीं, पश्चिम के पढ़े-लिखे और वैज्ञानिक रूप से विकसित देशों में भी धड़ल्ले से चलती है। नवजोत सिंह सिद्धू ने तो जो बात कही है वह घरेलू नुस्खों की बात है, लेकिन रामदेव जैसे लोगों ने कोरोना को रोकने के दावे के साथ अपनी कंपनी की बनाई हुई जिन दवाईयों का बाजार खड़ा किया, वह तो और भयानक था। फिर केन्द्र सरकार का हाथ रामदेव की पीठ पर था, और रामदेव की दवा लाँच करने के लिए केन्द्र सरकार के मंत्री मौजूद थे, और सरकार के बड़े-बड़े लोगों ने इस बेबुनियाद दवा को बढ़ावा देने का काम किया था। अगर सुप्रीम कोर्ट की दखल नहीं आई होती, तो अब तक रामदेव और भी बहुत सी बीमारियों को ठीक करने का दावा करते रहता, और देश की जनता का भरोसा ऐलोपैथी जैसी आधुनिक चिकित्सा से खत्म करता रहता।
लोगों को लिखने और बोलने की आजादी का ऐसा बेजा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए कि वे सोशल मीडिया पर बड़ी-बड़ी बीमारियों को ठीक करने के सरल और आसान इलाज के दावे करते रहें। कुछ लोग तो इससे भी आगे बढक़र अपने घर पर तैयार की हुई किसी तरह की तथाकथित दवाई बांटने में लगे रहते हैं, और यह मानकर चलते हैं कि वे समाजसेवा कर रहे हैं। ऐसे उत्साह, और ऐसी अवैज्ञानिक सनक पर कानूनी रोक भी लगनी चाहिए। देश में जगह-जगह किसी खास दिन पर अस्थमा ठीक करने के लिए कई लोग तरह-तरह की दवाई बांटते हैं, और इन दवाईयों में क्या है इसे एक रहस्य की तरह रखते हैं, उसकी कोई जानकारी किसी को नहीं देते, और लाईलाज लगती बीमारियों के ठीक हो जाने की उम्मीद के साथ अस्थमा के मरीज इन जगहों पर पहुंचते रहते हैं। देश में ऐलोपैथी के डॉक्टरों के ही ऐसे संगठन हैं जो कि अवैज्ञानिक दावों पर सवाल खड़े करते हैं, और ऐसे ही संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में रामदेव को उजागर किया था, और माफी छपवाने पर मजबूर किया था। हमारा ख्याल है कि सेहत से जुड़े हुए अवैज्ञानिक दावों के खिलाफ न सिर्फ डॉक्टरों को, बल्कि वैज्ञानिक चेतना रखने वाले नागरिकों को भी सरकार और अदालत तक जाना चाहिए। देश में शिक्षा की कमी है, वैज्ञानिक चेतना की कमी है, और इलाज की भी कमी है। ऐसे में न सिर्फ गरीब और बेबस लोग, बल्कि किसी भी तरह के सनसनीखेज दावों पर आसानी से भरोसा कर लेने वाले कमअक्ल लोग भी सोशल मीडिया पर सुझाए गए इलाज पर अमल करने लगते हैं। नतीजा यह होता है कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के इलाज में देर होती है, और वह बीमारी फैलते हुए जानलेवा हो जाती है। कायदे से तो केन्द्र और राज्य सरकारों की यह जिम्मेदारी है कि वे अवैज्ञानिक चिकित्सकीय दावे करने वाले लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करें, लेकिन चूंकि ऐसे लोगों के इर्द-गिर्द भीड़ जुटी रहती हैं, और तमाम भीड़ वोटरों की रहती है, इसलिए सत्ता चलाने वाले नेता ऐसे लोगों पर कार्रवाई नहीं करते हैं। हमारा ख्याल है कि समाज के जो लोग अपने आपको जिम्मेदार मानते हैं, उन लोगों को भी इलाज के नाम पर बकवास फैलाने से बचना चाहिए। सिद्धू जैसे लोगों को भी चिकित्सा विज्ञान की तरफ से आए इतने बड़े खंडन के बाद अब अक्ल आनी चाहिए, लेकिन लोकतंत्र में ऐसा कोई कानून भी नहीं है जो लोगों को अक्ल के इस्तेमाल पर मजबूर कर सके।