संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : नौसिखिये छात्र बन गए नशे के कारखानेदार!
25-Oct-2024 2:48 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : नौसिखिये छात्र बन गए नशे के कारखानेदार!

तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में अभी पुलिस ने केमिस्ट्री और इंजीनियरिंग के सात ऐसे छात्रों को गिरफ्तार किया है जो बाजार से रसायन खरीदकर घर पर प्रयोगशाला बनाकर दुनिया का एक घातक रासायनिक नशा तैयार कर रहे थे। उन्होंने मेथ कहा जाने वाला (मेथाम्फेटामाईन) 250 ग्राम तैयार भी कर लिया था। 20-22 बरस के ये सात छात्र इनमें से जिसके घर पर यह काम कर रहे थे वहां उन्होंने घर के लोगों को बताया था कि वे कॉलेज का प्रयोग कर रहे हैं। इसकी खबरों में इस घटना को एक वेबसिरीज, ब्रेकिंग बैड, को याद दिलाने वाली कहा गया है जिसमें इसी तरह से नशा तैयार किया जाता है। अब पुलिस यह पता लगा रही है कि क्या इन नौजवान छात्रों ने कुछ और जगहों पर इसकी मार्केटिंग भी की है? इन्होंने ये रसायन और इसके लिए जरूरी उपकरण आसानी से जुटा लिए थे। अब अगर दुनिया के सबसे खतरनाक नशों में से एक, मेथ, साधारण छात्र इतनी आसानी से बना रहे हैं, तो सीधे दिमाग पर असर करने वाले ऐसे नशे के भविष्य के बारे में आसानी से सोचा जा सकता है।

इसके साथ-साथ हम दो और घटनाओं को जोडक़र देखना चाहते हैं कि किस तरह कल छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक नाबालिग लडक़े से दस किलो गांजा पकड़ाया है, और यह अपने आपमें कोई नई घटना नहीं है क्योंकि गांजे का गलियारा बन गए इस प्रदेश में लगातार नाबालिगों को इसकी तस्करी में शामिल पाया जा रहा है। एक तरफ तो शराब, गांजे, और दूसरे हर किस्म के नशे के कारोबार में, तस्करी में, नाबालिगों को जोड़ा जा रहा है क्योंकि कानून में नाबालिगों के लिए अधिक कड़ी सजा नहीं है। दूसरी तरफ नाबालिगों को बड़े पैमाने पर नशा करते देखा जा रहा है। और शायद इस नशे का भी कुछ असर है कि नाबालिगों का भयानक हिंसक दर्जे के जुर्मों में शामिल होना भी लगातार बढ़ते चल रहा है। वे कत्ल कर रहे हैं, गैंगरेप कर रहे हैं, और सडक़ों पर चाकू तो चला ही रहे हैं। इसके साथ-साथ एक दूसरी चीज को जोडक़र देखना भी जरूरी है कि जिस तरह रेलवे स्टेशनों से लेकर ट्रेनों तक, और फुटपाथों तक बेघर हो चुके छोटे बच्चे बढ़ते चल रहे हैं, और वे बहुत लंबे समय से पंक्चर बनाने में काम आने वाले एक रासायनिक गोंद को सूंघने का नशा करते हैं, उनके हाथ अब नशे से कमाई का एक नया जरिया भी अगर लग रहा है, तो उस नशे का खुद इस्तेमाल तो उनके लिए एक आसान और स्वाभाविक बात रहेगी। नशे के आदी लोगों का दायरा रफ्तार से बढ़ते चलता है, और खासकर ऐसे समाज में जहां पर कि उन पीढिय़ों के लोगों के पास कोई प्रेरणा नहीं रहती है। जिनको अपना कोई भविष्य नहीं दिखता है, जिनके लिए आज की जिंदगी में कोई खुशी नहीं है, घर-परिवार या मोहब्बत करने वाले नहीं हैं, वे लोग आने वाले कल की फिक्र से बेफिक्र रहकर नशे में आसानी से डूब जाते हैं।

भारत में प्रदेशों की सरकारें शराब के कारोबार को काबू में रखने में ही अपनी पूरी ताकत झोंक देती हैं क्योंकि इसी से सरकार को सबसे बड़ी कमाई होती है, और राजनीतिक दलों को भी इसी धंधे से मोटी उगाही होती है। लेकिन ऐसा लगता है कि नशे के धंधे पर से शराब का एकाधिकार खासा पहले खत्म हो गया है, और उसका शुरूआती सुबूत पंजाब जैसे राज्य में सामने आया जहां पर शराबेतर नशों में पूरी नौजवान पीढ़ी डूब जाने की भयानक तस्वीर दिखने लगी। अब जिस तरह से शराबेतर नशे गली-गली पकड़ा रहे हैं, उससे साफ है कि मुंह से शराब की बदबू छोड़ते हुए बदनाम होने के बजाय अब अधिक सहूलियत वाले नशे लोकप्रिय होते चल रहे हैं। इनकी तस्करी भी शराब के मुकाबले आसान है क्योंकि पैदल चलता हुआ व्यक्ति भी हजारों लोगों के लायक महीने भर का नशा जेबों में भरकर ले जा सकता है। छत्तीसगढ़ में पुलिस सरकारी शराब से परे के नशों को पकडऩे में जुटी हुई है, और कोई ऐसा दिन नहीं जाता जब दवा कारखानों में बनने वाली और बहुत प्रतिबंधित इस्तेमाल वाली नशे के असर की दवाईयां न पकड़ाती हों।

किसी भी दूसरे नशे के मुकाबले रसायनों से बनने वाले नशे अधिक खतरनाक माने जाते हैं। दुनिया की सबसे बड़ी ताकत अमरीका भी रासायनिक-नशों से हर बरस सैकड़ों मौतें झेल रहा है, और इसका चलन बढ़ते चल रहा है, अमरीकी सरहदों में घुसपैठ करके चारों तरफ से ड्रग-माफिया तरह-तरह की घातक गोलियों को अमरीकी नशेडिय़ों तक पहुंचा रहे हैं। अपनी परले दर्जे की निगरानी के बावजूद अमरीका इस धंधे पर काबू नहीं पा सक रहा है। भारत में कम से कम दो पड़ोसी देशों, पाकिस्तान, और म्यांमार से तो बड़े पैमाने पर नशे की तस्करी हो रही है, और इन दोनों देशों में आर्थिक स्थिति बहुत खराब है, लोकतंत्र बहुत कमजोर है या नहीं है, और इन वजहों से वहां पर नशे का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। इनके अलावा जिस अफगानिस्तान में अफीम की खेती अर्थव्यवस्था का एक हिस्सा है, उस अफगानिस्तान की एक सरहद सीधे भारत से भी जुड़ी हुई है, जो कि सौ किलोमीटर से अधिक लंबी है। तस्करों के लिए इतनी लंबाई घुसपैठ को कम नहीं होती है। फिर भारत को इस खतरे को भी समझना चाहिए कि जिस तरह पाकिस्तान की तरफ से भारत में लगातार नशे की तस्करी होते हुए पकड़ाती भी है, उसी तरह चीन की तरफ से भी भारत में नशा आ सकता है क्योंकि दुश्मन देश को कमजोर करने में नशा एक बड़ा हथियार माना जाता है। भारत के बाकी पड़ोसी देश भी किसी अच्छी आर्थिक हालत में नहीं हैं, और अस्थिर लोकतंत्र, और फटेहाली मिलकर कब किस देश को नशे के धंधे में धकेल दे, इसका कोई ठिकाना नहीं रहता।

लेकिन चेन्नई का यह ताजा मामला एक बिल्कुल नया खतरा सामने रखता है कि बाजार में मौजूद रसायन और उपकरण से नौजवान विज्ञान-छात्र घर पर खतरनाक रासायनिक नशा बना सकते हैं। हो सकता है कि इस नशे की क्वालिटी अंतरराष्ट्रीय बाजार की उम्मीदों पर खरी न उतरे, लेकिन यह घरेलू नशेडिय़ों के लिए सस्ते में मिलने वाला अधकचरा नशा तो बन ही सकता है। फिर छात्रों के इस मेन्युफेक्चरिंग में उतर आने से यह भी है कि उनके आसपास छात्रों के दायरों में उन्हें सीधे-सीधे ग्राहक मिल सकते हैं। अब बाजार के रसायन, उपकरण, जब यूट्यूब पर मौजूद हर किस्म के वीडियो के साथ जोड़े जाएं, तो बहुत से उत्साही और लापरवाह-गैरजिम्मेदार नौजवान छात्र ड्रग माफिया बन सकते हंै। पता नहीं केन्द्र और राज्य सरकारें इस भयानक खतरे से कैसे निपट सकती हैं, लेकिन यह हर किसी के लिए जागने का वक्त तो हो ही गया है।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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