आईफॉरेस्ट संस्था ने बताई तुरंत भविष्य की योजना बनाने की जरूरत
आज तो देश का 16 फीसदी कोयला भेजता है यह अकेला जिला, और 7 हजार करोड़ से अधिक टैक्स
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 6 मई। दुनिया में कोयले से बनने वाली बिजली लगातार महंगी होती जा रही है, और कोयले या तेल से बनने वाली बिजली के मुकाबले सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, या जलबिजली सस्ती होती जा रही है। ऐसे में क्या आने वाले बरसों में कोयले से बनने वाली महंगी बिजली के कोई खरीददार नहीं रह जाएंगे? और अगर ऐसा होगा, तो फिर कोयला खदानों का क्या होगा, और ऐसे खदान इलाकों की अर्थव्यवस्था का क्या होगा? इस पर देश की एक गैरसरकारी संस्था आईफॉरेस्ट ने छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले पर एक रिपोर्ट तैयार की है कि कोयला अर्थव्यवस्था खत्म होने पर इस जिले और छत्तीसगढ़ प्रदेश के लिए वैकल्पिक अर्थव्यवस्था क्या हो सकेगी?
आईफॉरेस्ट नाम की यह संस्था छत्तीसगढ़ सरकार के साथ मिलकर इस पर विचार-विमर्श कर रही है, और आज आईफॉरेस्ट के प्रमुख, चंद्र भूषण ने रायपुर में यह विस्तृत रिपोर्ट जारी की है जो कि कोरबा के भविष्य पर उठने वाले संभावित सवालों के जवाब तलाशती है। कल राज्य शासन के साथ अपनी लंबी बैठकों के बाद आज आईफॉरेस्ट के प्रमुख लोगों ने छत्तीसगढ़ के मीडिया के बीच आज इस रिपोर्ट को जारी किया जिससे यह खुलासा होता है कि देश के कोयला उत्पादन में अकेले कोरबा जिले का कितना बड़ा योगदान है। अकेले कोरबा जिले का कोयला उत्पादन पूरे झारखंड के कोयला उत्पादन से अधिक है, और देश का 16 फीसदी कोयला कोरबा से निकलता है। अकेले कोरबा से पिछले साल 7 हजार 150 करोड़ रुपये के केंद्रीय टैक्स भारत सरकार को गए हैं।
रिपोर्ट, और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में कोल इंडिया की दो तिहाई खदानें घाटे में चल रही हैं, और देश भर में कोल इंडिया की गिनी-चुनी खदानें मुनाफे में हैं। और आने वाले दिनों में कोल इंडिया की 3सौ खदानें बंद हो सकती हैं जिनमें छत्तीसगढ़ की भी दो तिहाई खदानें हो सकती हैं।
आईफॉरेस्ट की टीम ने कोरबा जिले का अध्ययन करके अभी वहां की अर्थव्यवस्था, रोजगार, कारोबार और टैक्स, कोयले का उत्पादन जैसी चीजों को सामने रखा है। आज के प्रस्तुतिकरण में इस रिपोर्ट के हवाले से यह बताया गया है कि कोयला उत्पादन घटने के साथ और कोयले खदानें बंद होने पर आज से 25-30 बरस बाद जाकर किस तरह की वैकल्पिक जिंदगी वहां हो सकती है, और इस बारे में राज्य सरकार को अभी से तैयारी करनी चाहिए।
चंद्र भूषण ने जर्मनी के एक कोयला इलाके का उदाहरण देकर बताया कि किस तरह वहां पर खदानों और बिजलीघरों के बंद होने के 60 बरस पहले से वैकल्पिक अर्थव्यवस्था और जिंदगी की तैयारी की जा रही थी और आज वहां पर एक शानदार शहर बना हुआ है।
इस रिपोर्ट का अनुमान है कि भारत के कोयला बिजलीघरों को आने वाले बरसों में दूसरे किस्म की सस्ती बिजली के मुकाबले का सामना करना पड़ेगा, और कोयले का भविष्य जितना लंबा समझा जा रहा है, हो सकता है कि यह उतना लंबा न रहे। इस रिपोर्ट के मुताबिक कोरबा जिले जैसे पूरी तरह कोयला आधारित जिलों को 10 बरसों के भीतर ऐसे बदलाव का सामना करना पड़ सकता है और जिले की बड़ी कोयला खदानों में अगले 20-25 बरसों में कोयला भंडार खत्म हो जाएगा। इस रिपोर्ट का यह भी अंदाज है कि कोयला भंडार खत्म होने के काफी पहले ही कोयले की बिजली की मांग खत्म हो सकती है क्योंकि वह सौर ऊर्जा जैसे विकल्पों से आज ही महंगी पडऩे लगी है। जैसे-जैसे दूसरे किस्म की बिजली का उत्पादन देश में बढऩे लगेगा कोयले की बिजली के ग्राहक नहीं बचेंगे।
दिल्ली के पर्यावरण थिंकटैंक आईफॉरेस्ट की यह रिपोर्ट सुझाती है कि पूरी तरह कोयला खदान की अर्थव्यवस्था पर टिके हुए कोरबा जैसे जिले को तुरंत ही भविष्य के लिए तैयार करने की योजना शुरू की जानी चाहिए। इस रिपोर्ट में इसे जस्ट ट्रांजिशन कहा गया है।
इस रिपोर्ट का कहना है कि कोरबा जिले के आधे थर्मल पावर प्लांट 30 साल से अधिक पुराने हैं और अगले 40 बरस में इन सबके बंद हो जाने की संभावना है। इसलिए अभी से यह योजना बनानी चाहिए कि खदान और बिजलीघर के मजदूर, कर्मचारी आगे चलकर किस तरह का रोजगार पा सकते हैं, कारखानों और बिजलीघरों की जमीन और ढांचे का क्या इस्तेमाल हो सकता है, गहरी खुदी खदानों और खदान इलाकों में कौन से नए काम शुरू किए जा सकते हैं? इस तरह की योजना अभी से बनानी जरूरी है ताकि पूरे जिले और बाकी प्रदेश पर भी कोयले के बाद की जिंदगी के असर को देखते हुए फेरबदल किया जा सके।
इस रिपोर्ट ने यह भी पाया है कि कोयले से बिजलीघरों के अलावा और भी कई किस्म के उद्योग चलते हैं और उन पर भी इसका फर्क पड़ सकता है।
कोरबा में रोजगार कोयला खनन-जुड़े उद्योगों से
जिले की आधी थर्मल पावर प्लांट 30 वर्ष से अधिक पुरानी है और अगले 40 वर्षों में इसे चरणबद्ध तरीके से बंद किया जा सकता है। कोरबा रोजगार और विकास के लिए कोयला उद्योग पर अत्यधिक निर्भर है। कोरबा के सकल घरेलू उत्पाद का 60 फीसदी से अधिक और पांच में से एक रोजगार कोयला खनन और कोयले से संबंधित उद्योगों से है।
इसलिए, यह जरूरी है कि कोरबा जैसे जिलों के लिए एक न्यायसंगत ट्रांजिशन योजना शुरू की जानी चाहिए ताकि सरकार के लिए आजीविकाविविधकरण और राजस्व प्रतिस्थापन के रास्ते भी बनाए जा सकें। छत्तीसगढ़ में कुल कोयला खदानों में से 60 फीसदी से अधिक वर्तमान में लाभहीन हैं। इसलिए, अनियोजित तरीके से बंद का असर कोरबा के अलावे अन्य कोयला जिलों भी महसूस किया जाएगा।
कोरबा अपने कोयले और कोयला आधारित बिजली उत्पादन के पैमाने को देखते हुए जस्ट ट्रांजिशन प्लानिंग के लिए एक महत्वपूर्ण मामला प्रस्तुत करता है। आईफॉरेस्ट की रिपोर्ट जिले के लिए जस्ट ट्रांजिशन प्लानिंग का एक रोडमैप प्रस्तुत करती है, जिसका उपयोग अन्य प्रमुख कोयला जिलों के लिए भी एक खाका के रूप में किया जा सकता है।
आईफॉरेस्ट के सीईओ चंद्रभूषण ने कहा कि कोरबा में सबसे बड़ा प्रभाव कोयला खनन और कोयला आधारित उद्योग जैसे थर्मल पावर प्लांट, सडक़ परिवहन, कोल वाशरी आदि में आजीविका के लिए निर्भर 85,000 से अधिक श्रमिकों द्वारा महसूस किया जाएगा। हालांकि, जिले की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को देखते हुए, जस्ट ट्रांजिशन एक समग्र विकास का रूप होना चाहिए।
उन्होंने कहा, ट्रांजिशन न केवल एक जिले के लिए है, बल्कि एक ऐसी आर्थिक व्यवस्था के लिए भी है जिसका प्रभाव राज्य के अन्य हिस्सों पर भी पड़ता सकता है। कोरबा हरित विकास और आजीविका विविधीकरण का अवसर प्रस्तुत करता है। वास्तव में, कोरबा के लिए एक समयबद्ध और व्यवस्थित जस्ट ट्रांजिशन प्लानिंग भारत के कई शीर्ष कोयला जिलों के लिए एक मॉडल पेश कर सकता है, भूषण ने कहा।
अध्ययन के निष्कर्ष
40 फीसदी से अधिक आदिवासी आबादी के साथ कोरबा एक अनुसूची जिला है। यह एक आकांक्षी जिला है जहां 41 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं और जिले की 32 प्रतिशत से अधिक आबादी स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं तक सीमित पहुंच के साथ बहुआयामी गरीब-'multidimensionally poor' है।
यह नौकरियों और विकास के लिए कोयला उद्योग पर अत्यधिक निर्भर है। कोरबा के सकल घरेलू उत्पाद का 60 प्रतिशत से अधिक और पांच में से एक रोजगार कोयला खनन और कोयले से संबंधित उद्योगों से है।
कोयला केंद्रित अर्थव्यवस्था ने कृषि, वानिकी, विनिर्माण और सेवाओं सहित अन्य आर्थिक क्षेत्रों के विकास को रोक दिया है। खराब सामाजिक-आर्थिक स्थिति और कोयला अर्थव्यवस्था पर अत्यधिक निर्भरता के कारण जिला खदानों और उद्योगों के अनियोजित बंद होने से अत्यधिक संवेदनशील है।
कोरबा में 13 चालू खदानें हैं। इनमे तीन ओपन कास्ट खानों में- दीपका, गेवरा, कुसमुंडा- 95 प्रतिशत कोयले का उत्पादन करती हैं। आठ भूमिगत खदानें कम उत्पादन वाली हैं और लाभहीन हैं। कोरबा की कोयला खदानें 2050 तक और बिजली संयंत्र 2040 तक चरणबद्ध तरीके से समाप्त हो रहे हैं। गेवरा और कुसमुंडा जैसी बड़ी खदानों का शेष जीवन 15 वर्ष से कम है।
कोरबा में औपचारिक कार्यबल ज्यादा उम्र वाले है - एसईसीएल और एनटीपीसी के कम से कम 70 प्रतिशत कर्मचारी 40-60 वर्ष की आयु के हैं। उनकी सेवानिवृत्ति को संयंत्र और खदानों के बंद होने के साथ समकालिक किया जा सकता है। इसलिए, औपचारिक श्रमिकों का ट्रांजिशन ज्यादा चुनौती नहीं है।
हालांकि, सबसे बड़ी चुनौती अनौपचारिक श्रमिकों का पुन: रोजगार होगा, जो कोयला उद्योग में 60 प्रतिशत से अधिक कार्यबल का गठन करते हैं।
नया उद्योग लाना होगा जो न केवल सतत हो बल्कि क्षेत्र के मैनपावर को काम दे सके। निष्कर्षों के आधार पर, रिपोर्ट ने कोरबा के लिए एक जस्ट ट्रांजिशन योजना ढांचा विकसित किया है, जो 5आर के सिद्धांत पर आधारित है, और अन्य जिलों के लिए एक खाका हो सकता है।
तुरंत बदलाव की जरूरत
1. अर्थव्यवस्था का पुनर्गठन इसमें कोयले के योगदान को कम करना और अन्य संभावित क्षेत्रों में निवेश के माध्यम से सकल घरेलू उत्पाद में अन्य क्षेत्रों के योगदान को बढ़ाना शामिल होगा, जिसमें कृषि और खाद्य प्रसंस्करण सहित स्थानीय संसाधनों पर आधारित लो-कार्बन उद्योग साथ हीगैर- इमारती लकड़ी वन उत्पाद प्रसंस्करण, सेवा क्षेत्र आदि शामिल हैं ।
2.भूमि का पुन: उपयोग-कोरबा में वर्तमान में, 24,000 हेक्टेयर भूमि और बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा कोयला और बिजली कंपनियों के पास है। वैज्ञानिक रूप से खान बंदी और खनन भूमि का पुनर्निमाण एक नई हरित अर्थव्यवस्था के निर्माण और निवेश को आकर्षित करने के लिए महत्वपूर्ण क्षमता रखता है।
3. कार्यबल की रीस्किलिंग और स्किलिंग-कोयला खनन और बिजली संयंत्रों में औपचारिक श्रमिकों के लिए सेवानिवृत्ति लाभ और नए उद्योगों के लिए कार्यबल के कौशल विकास करना आवश्यक होगा। अनौपचारिक श्रमिकों को रोजगार और आय के लिए सरकारी सहायता की आवश्यकता होगी।
4. राजस्व प्रतिस्थापन-कोरबा में कोयला खनन वर्तमान में 7000 करोड़ (यूएस $1.0 बिलियन) रुपये से अधिक रॉयल्टी, डीएमएफ फंड और कोयला उपकर से योगदान करता है। यह केंद्र, राज्य और जिले के राजस्व के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं। इस राजस्व को प्रतिस्थापित करने के लिए एक प्रगतिशील आर्थिक विविधीकरण योजना की आवश्यकता होगी।