विचार / लेख
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- सेबेस्टियन अशर
इसराइल ने ईरान पर जो ताजा हमला किया है वो पिछले साल अंजाम दिए गए उसके दो सैन्य ऑपरेशनों की तुलना में ज्यादा व्यापक और भयावह है।
ऐसा लगता है कि इस हमले में उसने वैसी ही रणनीति अपनाई है, जैसी पिछले साल नवंबर में लेबनान में हिज्बुल्लाह के खिलाफ हमले के दौरान इस्तेमाल की गई थी।
इसका मकसद न सिर्फ ईरान के मिसाइल बेस पर हमला करना था बल्कि ये भी सुनिश्चित करना था कि बड़ा जवाबी हमला होता है तो भी तुरंत कार्रवाई कर ईरान की यह क्षमता खत्म कर दी जाए।
पिछले साल नवंबर में जब इसराइल ने हिज़्बुल्लाह के खिलाफ अभियान चलाया था तो उसका मकसद इस संगठन के नेताओं को मारना था।
इसराइल की इस कामयाबी ने हिज़्बुल्लाह के जवाबी हमला करने की क्षमता को भारी चोट पहुंचाई थी।
ईरान से इसराइल के हमले के जो फुटेज हासिल हुए हैं, उनमें दिख रहा कि वैसी ही इमारतों पर हमला किया गया है जैसा पहले बेरूत के दक्षिणी उपनगरों की इमारतों पर किया गया था।
ऐसे ही हमलों में हिज़्बुल्लाह के नेता हसन नसरल्लाह को मार दिया गया था।
इसराइल ने ईरान के बहुत बड़े कद के नेता को नहीं मारा है। उसने ईरान के सर्वोच्च नेता अली ख़ामेनेई को भी निशाना नहीं बनाया है।
लेकिन ईरान के ताक़तवर रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के कमांडर हुसैन सलामी और देश के कई शीर्ष परमाणु वैज्ञानिकों को सैन्य ऑपरेशन के शुरुआती घंटों में मारकर ईरान की सत्ता के उच्च वर्ग को अभूतपूर्व चोट पहुंचाई है।
इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने कहा है कि इस तरह का ऑपरेशन कई दिनों तक चल सकता है।
ऐसा लगता है कि ईरान की ओर से और ताकतवर प्रतिक्रिया की जरूरत होगी। उससे भी ज्यादा जोरदार तरीके से जब बीते साल उसने भी इसराइल पर हमला किया था।
लेकिन ईरान की ओर से जवाबी हमले करने में अब ज़्यादा मुश्किल भी आ सकती है।
शायद इसे भांप कर ही नेतन्याहू ने इस संघर्ष को तेज़ करने का आदेश दिया होगा।
आखऱि हमले के लिए ये वक़्त क्यों चुना गया?
आखिर नेतन्याहू ने अभी हमला करने का फ़ैसला क्यों किया। हालांकि वो लंबे समय से इसकी वकालत करते रहे हैं।
इसकी कुछ वजहें हो सकती हैं।
ऑपरेशन शुरू होने के कुछ समय बाद जारी एक बयान में उन्होंने कहा कि यह इसराइल के अस्तित्व का सवाल है।
लेकिन नेतन्याहू कई सालों से यह तर्क दे रहे हैं कि अगर ईरान परमाणु बम बना लेता है तो इसराइल के अस्तित्व को खतरा हो सकता है।
इस नई तात्कालिकता को ज़ाहिर करते हुए एक वरिष्ठ इसराइली सैन्य अधिकारी ने कहा है कि ऐसी जानकारी है कि ईरान के पास कुछ ही दिनों में 15 परमाणु बम बनाने के लिए पर्याप्त सामग्री है।
लेकिन हो सकता है कि ईरान पर इसराइल के हमलों में कुछ दूसरे कारक भी भूमिका निभा रहे हों।
रविवार को परमाणु समझौते को लेकर ईरान और अमेरिका की बातचीत छठे दौर में पहुंच जाएगी।
हालांकि इस मसले पर कितनी प्रगति हुई है इसे लेकर विरोधाभासी संकेत मिल रहे हैं।
हालांकि नेतन्याहू के लिए यह एक अहम मौक़ा है। वो ये सुनिश्चित कर सकते हैं कि ठीक न लगने पर समझौता न होने दिया जाए।
सैन्य नजरिये से देखें तो नेतन्याहू के सलाहकारों को लगा होगा कि न सिर्फ ईरान बल्कि उसकी ओर से लडऩे वाला हिज़्बुल्लाह इस हद तक कमज़ोर हो गए हैं कि पहले जैसा खतरा पैदा करने में सक्षम नहीं हैं।
आने वाले कुछ दिनों में पता चलेगा कि इसराइल का ये अनुमान सही साबित हुआ या फिर ख़तरनाक तौर पर ग़लत। (bbc.com/hindi)