विचार / लेख

फैज अहमद फैज की कविता पढऩे पर राजद्रोह का केस दर्ज, क्या है पूरा मामला?
22-May-2025 8:50 PM
फैज अहमद फैज की कविता पढऩे पर राजद्रोह का केस दर्ज, क्या है पूरा मामला?

- शताली शेडमाके

उर्दू शायर फैज अहमद फैज की मशहूर कविता ‘हम देखेंगे’ का पाठ करने पर महाराष्ट्र में राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया है।

जाने-माने आंबेडकरवादी सामाजिक कार्यकर्ता वीरा साथीदार की याद में बीते 13 मई को महाराष्ट्र के नागपुर में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इसी कार्यक्रम में फैज की कविता का पाठ किया गया था।

जन संघर्ष समिति नाम के एक स्थानीय संगठन के अध्यक्ष दत्तात्रेय शिर्के की शिकायत पर 16 मई को नागपुर के सीताबर्डी पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज कराया गया।

इस कार्यक्रम का आयोजन वीरा साथीदार की पत्नी पुष्पा ने किया था। पुलिस ने शिकायत के आधार पर आयोजकों और अन्य लोगों पर जो मामला दर्ज किया उसमें राजद्रोह की धारा भी जोड़ दी।

क्या है पूरा मामला

नागपुर में वीरा साथीदार स्मृति समन्वय समिति और समता कला मंच ने विदर्भ हिंदी साहित्य संघ भवन में एक सभा का आयोजन किया था।

दत्तात्रेय शिर्के ने 16 मई को सीताबर्डी पुलिस थाने में कार्यक्रम की आयोजक वीरा साथीदार की पत्नी पुष्पा और वहां मौजूद कलाकारों के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई थी।

शिर्के ने शिकायत में कार्यक्रम के दौरान ‘भडक़ाऊ और आपत्तिजनक’ बयान देने के आरोप लगाए हैं।

इसमें कहा गया है कि वीरा साथीदार की याद में आयोजित एक कार्यक्रम में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की एक कविता पढ़ी गई। इसके बाद एक कलाकार ने ‘आपत्तिजनक बयान’ दिया।

शिकायत में शिर्के ने कहा कि कविता में ‘सब ताज उछाले जाएंगे, सब तख़्त गिराए जाएंगे।’ जैसे बोल हैं। शिर्के ने कहा कि एक निजी समाचार चैनल एबीपी माझा पर उन्होंने इस कार्यक्रम का फुटेज देखा था। उन्होंने शिकायत में उस वीडियो का यूट्यूब लिंक भी दिया है।

शिकायतकर्ता शिर्के का क्या कहना है?

शिकायतकर्ता दत्तात्रेय शिर्के ने बीबीसी मराठी से कहा, ‘मैंने इस कार्यक्रम का फ़ुटेज एबीपी माझा पर देखा। फिर मैंने इसे यूट्यूब पर देखा और फिर शिकायत दर्ज कराई।’

उन्होंने कहा, ‘हम उनके विवादित बयान पर आपत्ति जताते हैं। हमारा कहना है कि ऐसा बयान नहीं दिया जाना चाहिए। मैंने आयोजकों खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए शिकायत दर्ज कराई।’

शिर्के ने आगे कहा, ‘वीडियो में एक व्यक्ति ने आपत्तिजनक बयान देते हुए कहा- जिस गाने से सरकार हिल गई थी, उसी से इस सिंहासन को हिलाने की ज़रूरत है। हम फासीवाद के युग में रह रहे हैं। यह युग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को छीन रहा है। यह युग तानाशाही का है।’

बीबीसी ने इस मामले पर आयोजकों से संपर्क किया और उनका पक्ष जानने की कोशिश की। उनका जवाब हमें फि़लहाल नहीं मिल सका है। जवाब मिलने पर उनका पक्ष जोड़ा दिया जाएगा।

पुलिस का क्या कहना है?

मामले की जांच कर रहीं पुलिस इंस्पेक्टर राखी गेडाम ने बीबीसी मराठी से कहा, ‘नागपुर के रहने वाले दत्तात्रेय शिर्के ने 16 मई को पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि वीरा साथीदार की स्मृति में आयोजित एक कार्यक्रम में भडक़ाऊ बयान दिया गया था।’

पुलिस के मुताबिक शिकायत में कहा है कि इस तरह के कार्यक्रम आयोजित करके आयोजकों ने जानबूझकर जनता को गुमराह करने और देश की संप्रभुता को ख़तरे में डालने का असंवैधानिक काम किया है।

इंस्पेक्टर गेडाम ने कहा, ‘शिकायत के आधार पर कार्यक्रम की आयोजक पुष्पा वीरा साथीदार, एक अज्ञात व्यक्ति और एक अज्ञात महिला समेत अन्य लोगों के ख़िलाफ़ बीएनएस की धारा 152, 196, 353, 3(5) के तहत मामला दर्ज किया गया है।’

धारा 152 राजद्रोह से संबंधित है। धारा 196 धर्म, जाति, भाषा, जन्म स्थान, निवास आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता पैदा करने और शांति में बाधा पैदा करने से जुड़ी है।

धारा 353 शांति भंग करने और अफ़वाह फैलाने की संभावना या ऐसे किसी कार्य या टिप्पणी जिससे कानून व्यवस्था बाधित हो, से संबंधित है।

वीरा साथीदार कौन थे?

वीरा साथीदार महाराष्ट्र के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता थे। कोविड से 2021 में उनका निधन हो गया था।

उन्होंने मराठी फिल्म 'कोर्ट' में नारायण कांबले की मुख्य भूमिका भी निभाई थी। इस फि़ल्म को समीक्षकों की ओर से काफ़ी सराहना मिली और इसने राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीता।

वर्धा जि़ले के जोगीनगर में अपना बचपन बिताने वाले वीरा साथीदार का असली नाम विजय वैरागड़े था। वह सत्तर के दशक से ही आंबेडकरवादी आंदोलन से जुड़ गए थे।

सामाजिक आंदोलनों में हिस्सा लेने की वजह से उन्होंने अपना सरनेम छोड़ दिया था और वीरा साथीदार कहलाने लगे।

वीरा साथीदार ने ‘विद्रोही’ नामक पत्रिका का संपादन किया था। उन्होंने पत्रकार के रूप में भी कार्य किया। वह ‘रिपब्लिकन पैंथर’ संगठन के माध्यम से दलितों के बीच काम कर रहे थे।

फैज  की शायरी पर इतना विवाद क्यों है?

फैज अहमद फैज  (1911-1984) एक प्रसिद्ध उर्दू शायर थे। उनकी लिखी कविताएं, नज़्में बेहद लोकप्रिय हैं।

फैज अपनी रचनाओं के माध्यम से सत्ता से सवाल पूछने में संकोच नहीं करते थे। उनकी लिखी प्रसिद्ध कविता ‘हम देखेंगे’ उनमें से एक है।

दरअसल, 1979 में लिखी गई इस कविता में पाकिस्तान की तत्कालीन सरकार का संदर्भ था। पाकिस्तान में ये सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक का दौर था।

1977 में जनरल जिय़ा के सत्ता में आने के बाद फैज को पाकिस्तान छोडऩा पड़ा और उन्होंने चार वर्षों तक बेरूत में निर्वासन का जीवन बिताया।

फैज अहमद फैज का 1984 में निधन हो गया था।

दो साल बाद, 1986 में, गज़़ल गायिका इकबाल बानो ने पाकिस्तान के लाहौर में अल-हमरा आर्ट्स काउंसिल ऑडिटोरियम में फैज की कविता 'हम देखेंगे’ गाई।

इकबाल बानो की आवाज़ ने इस कविता को अमर कर दिया।

फैज की पूरी कविता इस प्रकार है-

हम देखेंगे

लाजि़म है कि हम भी देखेंगे

वो दिन कि जिस का वादा है

जो लौह-ए-अज़ल में लिख्खा है

जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिराँ

रूई की तरह उड़ जाएँगे

हम महकूमों के पाँव-तले

जब धरती धड़-धड़ धडक़ेगी

और अहल-ए-हकम के सर-ऊपर

जब बिजली कड़-कड़ कडक़ेगी

जब अजऱ्-ए-ख़ुदा के काबे से

सब बुत उठवाए जाएँगे

हम अहल-ए-सफ़ा मरदूद-ए-हरम

मसनद पे बिठाए जाएँगे

सब ताज उछाले जाएँगे

सब तख़्त गिराए जाएँगे

बस नाम रहेगा अल्लाह का

जो ग़ाएब भी है हाजिऱ भी

जो मंजऱ भी है नाजिऱ भी

उ_ेगा अनल-हक़ का नारा

जो मैं भी हूँ और तुम भी हो

और राज करेगी ख़ल्क़-ए-ख़ुदा

जो मैं भी हूँ और तुम भी हो

(bbc.com/hindi)


अन्य पोस्ट